एनल फिशर और फिस्टुला (भगंदर) को अनदेखा करना बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकता है। खासतौर से तब जब एनल एरिया में खुजली या फिर ब्लीडिंग होने जैसे लक्षण शामिल हों। हालांकि ऐसी स्थिति में मरीजों के लिए ये बवासीर की ओर इशारा होता है। जो समान्य है। लेकिन ज्यादातर मामलों में एनल से जुड़ा ऊतक फिशर या फिस्टुला के परिणामस्वरूप बढ़ जाता है। अगर आपको भी बवासीर की समस्या है, तो इससे जुड़े लक्षण काफी दर्दनाक हो सकते हैं। इसके अलावा अगर फिशर या फिस्टुला बढ़ जाता है, तो स्थिति बेहद बुरी हो सकती है। इस स्थिति में बिना देर किये किसी एक्सपर्ट की सलाह लेने से समस्या को हल किया जा सकता है। हालांकि एनल फिस्टुला और फिशर के बीच की समानता और अंतर) जानने से आपको अपनी समस्या का निदान करने का बेहतर तरीका मिल सकता है।फिशर और फिस्टुला (भगंदर) में अंतरफिस्टुला और फिशर एक ही चीज है, अगर आप भी यही सोच रहे हैं, तो आप बिलकुल गलत हैं। फिशर एक मेडिकल वर्ड है जो स्किन के फटने का जिक्र करता है। वहीं फिस्टुला एक असमान्य ट्यूब जैसे कनेक्शन या अंगों के बिच का मार्ग है। आमतौर पर फिशर कुछ दिनों में या कुछ हफ्तों में ठीक हो सकता है। जिसमें उपचार की जरूरत नहीं पड़ सकती। क्योंकि ये खतरनाक नहीं होता। इसके बजाय फिस्टुला को बिना इलाज के छोड़ना खतरनाक हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि, आप जिन लक्षणों को महसूस कर रहे हैं, उसके अनुसार ही उसका इलाज करें।फिशर और फिस्टुला (भगंदर) होने के कारणएनल फिशर होने के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। इसके मलाशय का कैंसर, वजाइनल चाइल्डबर्थ, अप्राकृतिक यौन संबंध, और लंबे समय तक दस्त होने की समस्या हो सकती है। ज्यादातर मामलों में फिशर गोने के कारण मल त्याग में रुकावट या फिर कब्ज हो सकता है। ये उन मांसपेशियों को फाड़ देता है एनल के अंदर से दबाने वाले सिस्टम को कंट्रोल करता है।वहीं फिस्टुला एनल की स्किन तक बनता है। इस स्तिथि में दोनों तरफ की स्किन के नीचे वाले हिस्से में इन्फेक्शन हो जाता है। आमतौर पर फिस्टुला पुराने फोड़े का ही परिणाम होता है। इसलिए अगर इसका इलाज नहीं किया गया तो एक फिस्टुला कई खतरनाक फिस्टुला बनाने का कारण बन सकता है।फिशर और फिस्टुला (भगंदर) के लक्षणएनल फिशर के लक्षण -गुदा में फिशर के लक्षण व संकेतों में निम्न शामिल हो सकते हैं:
मल त्याग के दौरान दर्द, कभी-कभी गंभीर दर्द होना। मल त्याग करने के बाद दर्द होना जो कई घंटों तक रह सकता है। मल त्याग के बाद मल पर गहरा लाल रंग दिखाई देना। गुदा के आसपास खुजली या जलन होना। गुदा के चारों ओर की त्वचा में एक दरार दिखाई देना। गुदा फिशर के पास त्वचा पर गांठ या स्किन टैग दिखाई देना।
आमतौर पर एनल फिशर से जुड़े कुछ लक्षण में एनल एरिया में मल त्याग के दौरान तेज दर्द महसूस होता है। इसमें खुनी मल के साथ एनल और उसके आस-पास लगातर जलन या खुजली होती महसूस होती है। आमतौर पर एनल एरिया के आसपास पानी भी दिखाई देता है।
फिशर के लक्षण
मल त्याग करते वक्त दर्द होना।
जलन होना।
कभी कभी रक्ततस्राव होना।
फिशर होने के कारण -
एनल फिशर होने के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। इसके मलाशय का कैंसर, वजाइनल चाइल्डबर्थ, अप्राकृतिक यौन संबंध, और लंबे समय तक दस्त होने की समस्या हो सकती है। ज्यादातर मामलों में फिशर गोने के कारण मल त्याग में रुकावट या फिर कब्ज हो सकता है। ये उन मांसपेशियों को फाड़ देता है एनल के अंदर से दबाने वाले सिस्टम को कंट्रोल करता है।
लंबे समय से डायरिया होना-
डायरिया यानी दस्त होना। यदि किसी व्यक्ति को लंबे समय तक दस्त होते रहें, तो इससे एनल फिशर होने का रिस्क बढ़ जाता है। फिशर के मुख्य लक्षण है जो आम तोर पर देखने को मिल जाते है बार-बार दस्त होने के कारण शरीर से काफी मात्रा में पानी निकल जाता है। इस वजह से स्किन काफी ज्यादा ड्राई हो जाती है और एनल ओपनिंग में कट लग जाता है। वैसे भी एनल स्किन काफी सेंसिटिव होती है। इस वजह से एनल फिशर होने पर काफी ज्यादा दर्द का अहसास भी होता है।
इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज-
फिशर, इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज के कारण भी हो सकता है। इसका मतलब है जिस व्यक्ति को अक्सर कब्ज की समस्या रहती है या फिर दस्त बने रहते हैं, उन्हें एनल फिशर हो सकता है। इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज में दो तरह की कंडीशन आती है। एक क्रोहन डिजीज ( Crohn's disease) और अल्सरेटिव कोलाइटिस । इसका मतलब है कि गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (जीआई) ट्रैक में लंबे समय से चल रही सूजन। इस सूजन के कारण अक्सर मरीज को फिशर की प्रॉब्लम का सामना करना पड़ता है।
प्रेग्नेंसी या डिलीवरी-
डिलीवरी के दौरान दबाव बनाते समय एनल लाइनिंग में घाव हो जाता है या कट लग जाता है। सामान्य तौर पर इसको कब्ज से जोड़कर देखा जाता है। अगर किसी महिला को कब्ज है, तो डिलीवरी के लिए दबाव बनाते समय फिशर की समस्या हो सकती है। ये बात अलग है कि जिन महिलाओं को कब्ज नहीं है, उन्हें भी डिलीवरी के दौरान दबाव बनाने के कारण एनल फिशर हो सकता है।
एनल ट्रॉमा के कारण-
अगर किसी को सेक्सुअल एक्टिविटी के दौरान एनल में चोट लग जाए, तो भी एनल फिशर होने का रिस्क बढ़ जाता है। हालांकि, सबके साथ ऐसा हो, यह जरूरी नहीं है। लेकिन, अगर एसटीआई, जैसे सिफलिस और हर्पीस जैसी घातक बीमारियां हैं, तो भी एनल फिशर हो सकता है। इससे एनल कैनाल पूरी तरह डैमेज हो सकती है या फिर इंफेक्शनका खतरा बढ़ सकता है।
एनल फिशर से कैसे करें बचाव-
एनल फिशर से बचाव के लिए आप कुछ उपाय आजमा सकते हैं, जैसे की अगर डायरिया की वजह से एनल फिशर है, तो पहले उसका इलाज करवाएं। ज्यादा से ज्याद खुद को हाइड्रेट रखें, ताकि मल त्याग करते समय तकलीफ कम हो। अपनी डाइट में हेल्दी चीजें शामिल करें, जैसे फाइबर खाएं और फ्लूइड इनटेक ज्यादा लें। आप प्रभावित हिस्से में नारियल तेल या कोई भी लुब्रिकेंट लगा सकते हैं।
एनल फिशर यानी गूदा में फटा हुआ या खुला हुआ घाव। यह किस्म से अल्सर की तरह होता है, जो कि गूदा (एनस) के पास बड़ी आंत की लाइनिंग में विकसित होता है। एनल फिशर होने पर व्यक्ति को मल त्यागने में बहुत ज्यादा दिक्कतें आती हैं। यहां तक कि कई बार मल त्यागते समय तीव्र दर्द होता है और खून भी निकल जाता है। किसी भी व्यक्ति के लिए यह कंडीशन काफी कष्टकारी हो सकती है। सवाल है, ऐसी कंडीशन में क्या किया जा सकता है। हालांकि, इसके लिए कई तरह के ट्रीटमेंट मौजूद हैं। लेकिन आप कुछ घरेलू उपायों की मदद से इसकी तकलीफ को कम कर सकते हैं नारियल का तेल अप्लाई करें- A : एनल फिशर के उपचार के लिए आप नारियल के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसमें ट्राइग्लिसराइड्स नाम का एक तत्व होता है, जो इसे लुब्रिकेंट बनाता है। नारियल तेल को प्रभावित हिस्से में लगाने से मल त्याग करते समय दर्द कम होता है। आप इसका उपयोग एक दिन में से दो से तीन बार कर सकते हैं। इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता है। यही नहीं, नारियल तेल के उपयोग से खुजली और जलन की समस्या में भी कमी आती है।
पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं- :
एनल फिशर से राहत पाने के लिए बहुत जरूरी है कि आप पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं। पानी की कमी के कारण अक्सर व्यक्ति को बहुत सारी तकलीफों का सामना करना पड़ता है। पानी की कमी की वजह से कब्ज की समस्या भी होती है। इसलिए, जरूरी है कि आप एक दिन में कम से कम आठ गिलास पानी जरूर पिएं। पानी पीने से मल नर्म होता है और मल त्याग करने में दिक्कत नहीं होती है।
डाइट में घी शामिल करें- :
सर्दियों में घी खाने से कई तरह के लाभ होते हैं। कुछ लोग रोजाना सुबह घी खाने से अपने दिन की शुरुआत करते हैं। एनल फिशर के उपचार तौर पर आप घी का उपयोग कर सकते हैं। दरअसल, घी में नेचुरल तरीके लैक्सेटिव और फैटी एसिड मौजूद होता है, जो कि मल त्याग करने को आसाना बनाता है। हालांकि, घी की ओवर ईटिंग करना ठीक नहीं है। इससे आपका वेट गेन हो सकता है।
गर्म पानी से सिंकाई करें- :
एनल फिशर की समस्या बहुत ज्यादा बढ़ने पर आप गर्म पानी से प्रभावित हिस्से का सिंकाई कर सकते है। यह बहुत ही बेहतरीन उपचार है। लेकिन ध्यान रहे कि पानी बहुत ज्यादा गर्म न हो। गर्म पानी में सिंकाई करने से दर्द कम होता है। एनल फिशर से उपचार के तौर पर आप एक दिन में कम से तीन से चार बार इस प्रोसेस को दोहराएं।
डाइट में करें बदलाव- :
डाइट में ऐसी चीजें शामिल करने से बचें, जिससे स्टूल सख्त हो सकता है। इसमें खासकर, जंक फूड, स्ट्रीट फूड, रेडी टू फूड जैसी चीजें शामिल हैं। आपको अपनी डाइट में ज्यादा से ज्यादा फाइबर युक्त चीजें शामिल करनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर, मौसमी सब्जियां और फल। इनके सेवन से मल सॉफ्ट होता है और मल त्याग करते समय तकलीफ भी कम होती है।
फिशर में क्या नहीं खाना चाहिएफिशर को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए, कुछ कारकों से बचने की सलाह दी जाती है जो लक्षणों को खराब कर सकते हैं और उपचार प्रक्रिया में बाधा डाल सकते हैं। सबसे पहले, मसालेदार भोजन से दूर रहें, क्योंकि उनमें पहले से ही संवेदनशील गुदा क्षेत्र में जलन पैदा करने की क्षमता होती है। इसके अतिरिक्त, कॉफी, चाय और कुछ सोडा में पाए जाने वाले कैफीन का सेवन सीमित करें, क्योंकि यह कब्ज को बढ़ा सकता है। शराब से भी बचना चाहिए, क्योंकि इससे निर्जलीकरण हो सकता है और लक्षण बढ़ सकते हैं।फिशर को और अधिक नुकसान से बचाने के लिए मल त्याग के दौरान तनाव को कम करना चाहिए। नरम और नियमित मल त्याग सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है, इसलिए उच्च फाइबर आहार को शामिल करने से इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। लंबे समय तक बैठने से असुविधा बढ़ सकती है, इसलिए सलाह दी जाती है कि ब्रेक लें और लंबे समय तक बैठने से बचें। भारी सामान उठाने से बचें, क्योंकि इससे गुदा क्षेत्र पर दबाव पड़ सकता है। तनाव कब्ज में योगदान कर सकता है, इसलिए तनाव प्रबंधन तकनीकों को लागू करना फायदेमंद है। अंत में, यह महत्वपूर्ण है कि लक्षणों को नज़रअंदाज न किया जाए; यदि वे बने रहते हैं या बिगड़ जाते हैं, तो विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है।यहाँ फिशर के लिए कुछ घरेलू नुस्खे दिए गए हैं:
सिट्ज़ बाथ:
दर्द से राहत और उपचार के लिए गुदा क्षेत्र को दिन में कई बार गर्म पानी में भिगोएँ। इस प्रक्रिया को सिट्ज़ बाथ या सिट्ज़ स्नान कहा जाता है।
टॉपिकल मलहम:
हाइड्रोकार्टिसोन या लिडोकेन वाली ओवर-द-काउंटर क्रीम अस्थायी रूप से दर्द को कम करने में मदद कर सकती हैं।
आहार परिवर्तन:
मल को नरम करने और कब्ज को रोकने के लिए फलों, सब्जियों और साबुत अनाज के माध्यम से फाइबर का सेवन बढ़ाएँ।
स्वच्छता:
मल त्याग के बाद हल्के साबुन और पानी या बिना खुशबू वाले गीले पोंछे का उपयोग करके गुदा क्षेत्र को साफ और सूखा रखें।
मल सॉफ़्नर:
मल त्याग के दौरान तनाव से बचने के लिए ओवर-द-काउंटर विकल्प या फाइबर सप्लीमेंट का उपयोग करें।
दर्द निवारक दवाएं
एसिटामिनोफेन या एनएसएआईडी जैसी ओवर-द-काउंटर दर्द निवारक दवाएं अस्थायी रूप से असुविधा को कम कर सकती हैं।\