15.10.24

वो फिल्मी गाने जिन्हें सुनने से रोग छूमंतर / sangeet se chikitsa




*संगीत का हमारे जीवन पर प्रभाव*

● आजकल संगीत द्वारा बहुत सी बीमारियों का इलाज किया जाने लगा हैं।

● चिकित्सा विज्ञान भी यह मानने लगा हैं कि प्रतिदिन 20 मिनट अपनी पसंद का संगीत सुनने से रोज़मर्रा की होने वाली बहुत सी बीमारियो से निजात पायी जा सकती हैं।

● जिस प्रकार हर रोग का संबंध किसी ना किसी ग्रह विशेष से होता हैं उसी प्रकार संगीत के हर सुर व राग का संबंध किसी ना किसी ग्रह से अवश्य होता हैं।

● यदि किसी जातक को किसी ग्रह विशेष से संबन्धित रोग हो और उसे उस ग्रह से संबन्धित राग, सुर अथवा गीत सुनाये जायें तो जातक विशेष जल्दी ही स्वस्थ हो जाता हैं।

● यहाँ इसी विषय को आधार बनाकर ऐसे बहुत से रोगो व उनसे राहत देने वाले रागों के विषय मे जानकारी देने का प्रयास किया गया है।

● जिन शास्त्रीय रागों का उल्लेख किया किया गया है उन रागो मे कोई भी गीत, संगीत, भजन या वाद्य यंत्र बजा कर लाभ प्राप्त किया जा सकता हैं।

● यहाँ उनसे संबन्धित फिल्मी गीतो के उदाहरण देने का प्रयास भी किया गया है।

(1)हृदय रोग –


इस रोग मे राग दरबारी व राग सारंग से संबन्धित संगीत सुनना लाभदायक है।

इनसे संबन्धित फिल्मी गीत निम्न हैं-

तोरा मन दर्पण कहलाए (काजल),

राधिके तूने बंसरी चुराई (बेटी बेटे),

झनक झनक तोरी बाजे पायलिया (मेरे हुज़ूर),

बहुत प्यार करते हैं तुमको सनम (साजन),

जादूगर सइयां छोड़ मोरी (फाल्गुन),

ओ दुनिया के रखवाले (बैजू बावरा),

मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये (मुगले आजम)


(2)अनिद्रा –

यह रोग हमारे जीवन मे होने वाले सबसे साधारण रोगों में से एक है। इस रोग के होने पर राग भैरवी व राग सोहनी सुनना लाभकारी होता है, जिनके प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं

●)रात भर उनकी याद आती रही (गमन),

(●)नाचे मन मोरा (कोहिनूर),

(●)मीठे बोल बोले बोले पायलिया (कितारा),

(●)तू गंगा की मौज मैं यमुना (बैजु बावरा),

(●)ऋतु बसंत आई पवन (झनक झनक पायल बाजे),

(●)सावरे सावरे (अंनुराधा),

(●)चिंगारी कोई भड़के (अमर प्रेम),

(●) छम छम बजे रे पायलिया (घूँघट),

(●) झूमती चली हवा (संगीत सम्राट तानसेन ),

(●) कुहूु कुहू बोले कोयलिया (सुवर्ण सुंदरी )


(3)एसिडिटी –

इस रोग के होने पर राग खमाज सुनने से लाभ मिलता है। इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं

(4)कमजोरी –

यह रोग शारीरिक शक्तिहीनता से संबन्धित है।

इस रोग से पीड़ित व्यक्ति कुछ भी काम कर पाने मे खुद को असमर्थ महसूस करता है।

इस रोग के होने पर राग जय जयवंती सुनना या गाना लाभदायक होता है।

इस राग के प्रमुख गीत निम्न हैं


जिन लोगों की याददाश्त कम हो या कम हो रही हो, उन्हे राग शिवरंजनी सुनने से बहुत लाभ मिलता है।

इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं,

(●)ना किसी की आँख का नूर हूँ (लालकिला),

(●)मेरे नैना (महबूबा),

(●)दिल के झरोखे मे तुझको (ब्रह्मचारी),

(●)ओ मेरे सनम ओ मेरे सनम (संगम ),

(●) जीता था जिस के लिए (दिलवाले),

(●) जाने कहाँ गए वो दिन (मेरा नाम जोकर )

(6)खून की कमी –

इस रोग से पीड़ित होने पर व्यक्ति का चेहरा निस्तेज व सूखा सा रहता है। स्वभाव में भी चिड़चिड़ापन होता है। ऐसे में राग पीलू से संबन्धित गीत सुनने से लाभ पाया जा सकता हैं।

(●)आज सोचा तो आँसू भर आए (हँसते जख्म),

(●)नदिया किनारे (अभिमान),

(●)खाली हाथ शाम आई है (इजाजत),

(●)तेरे बिन सूने नयन हमारे (लता रफी),

(●)मैंने रंग ली आज चुनरिया (दुल्हन एक रात की),

(●)मोरे सैयाजी उतरेंगे पार (उड़न खटोला),

(7)मनोरोग अथवा डिप्रेशन –

इस रोग मे राग बिहाग व राग मधुवंती सुनना लाभदायक होता है। इन रागों के प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं।

(●) तुझे देने को मेरे पास कुछ नहीं (कुदरत नई),

(●) तेरे प्यार मे दिलदार (मेरे महबूब),

(●) पिया बावरी (खूबसूरत पुरानी),

(●) दिल जो ना कह सका (भीगी रात) ,

(●) तुम तो प्यार हो(सेहरा),

(●) मेरे सुर और तेरे गीत (गूंज उठी शहनाई ),

(●) मतवारी नार ठुमक ठुमक चली जाये (आम्रपाली),

(●) सखी रे मेरा तन उलझे मन डोले (चित्रलेखा)


(8)रक्तचाप-

ऊंचे रक्तचाप मे धीमी गति और निम्न रक्तचाप मे तीव्र गति का गीत संगीत लाभ देता है।

शास्त्रीय रागों मे राग भूपाली को विलंबित व तीव्र गति से सुना या गाया जा सकता है।
ऊंचे रक्तचाप में...

(●) चल उडजा रे पंछी कि अब ये देश (भाभी),

(●) ज्योति कलश छलके (भाभी की चूड़ियाँ ),

(●) चलो दिलदार चलो (पाकीजा),

(●) नीले गगन के तले (हमराज़) जैसे गीत

निम्न रक्तचाप मे..

इस रोग मे आस्था–भक्ति पर आधारित गीत संगीत सुनने व गाने से लाभ होता है।

राग मालकोस व राग ललित से संबन्धित गीत इस रोग मे सुने जा सकते हैं। जिनमें प्रमुख गीत निम्न हैं..

इस रोग के होने पर राग भैरव सुनना लाभदायक होता है।

इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं..

9.10.24

अरारोट के फायदे और नुकसान पर एक नजर ,Arrowroot benefits




अरारोट एक कंद है। एरोरूट या अरारोट दोनों सामान्य पौधा की तरह है, किंतु यह पौधा न होकर केवल स्टार्च है। इसकी जड़ का उपयोग बड़ी मात्रा में किया जाता है। अरारोट को वैज्ञानिक नाम मारंता अरुंडिनेशिया कहा जाता है।अरारोट के पौधे में स्‍टार्च मौजूद होता है इसका उपयोग करने के लिए जड़ों को खोद कर निकाला जाता है। निकाली हुई जड़ो से छाल को निकालकर धोया जाता है। इसके बाद कंद को पीसकर आटा यानि पाउडर तैयार किया जाता है। इसे छानकर सुखाते है। इन प्रक्रिया से अरारोट पाउडर बनाते है। इसका उपयोग मुख्य रूप से भोजन को गाढ़ा करने के उपयोग किया जाता है। अरारोट में अच्छी मात्रा में पोषक तत्व होता है जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
अरारोट के फायदे तो अनेक है लेकिन अत्यधिक मात्रा में उपयोग करने से कुछ नकारात्मक परिणाम हो सकते है। यह नुकसान कुछ इस तरह है।अगर आप किसी विशेष प्रकार की दवा का सेवन कर रही है, तो अरारोट का सेवन करने से पहले अपने चिकिस्तक से बात करे।
जिन लोगो को अरारोट के सेवन से एलर्जी में खांसी, उल्टी, मलती की समस्या होती है, उनको इसके सेवन से बचाव करना चाहिए।
अरारोट के साथ दूध व फलो के रस के साथ सेवन करने से बचाव करना चाहिए।

अरारोट के फायदे -

रोग प्रतिरोग क्षमता को बढ़ावा देने में - अगर आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है तो आपको अरारोट का सेवन करना चाहिए। अरारोट में बहुत से पोषक तत्व शामिल है जो थकान व कमजोरी को दूर करने में मदद करता है। इसमें विटामिन तो होते है बल्कि शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट भी होता है। यह फ्री रेडिकल्स से बचाव करते है।

आँखों की बीमारी में फायदेमंद -

आयुर्वेद विशेषज्ञ और पतंजलि संस्थापक श्री बालकृष्ण आचार्य जी का कहना है 1 से 2 ग्राम अरारोट के पाउडर में 200 मिली पानी, 250 मिली दूध और 50 ग्राम मिश्री डालकर पकाये। 15 मिनट पकाने के बाद उसका पानी जल जाये तो गैस बंद कर दें। फिर गुनगुना होने पर पी ले।

बालों के लिए फायदेमंद -

आजकल हर कोई बालों के पतलेपन और डॉयनेस से परेशान है। इसमें (Arrowroot benefits) बहुत से पोषक तत्व पाए जाते है जो बालो को मुलायम और घना करने में मदद करता है। हेयर डाई गाढ़ा करने के लिए अरारोट पाउडर का इस्तेमाल किया जाता है।

हृदय के लिए लाभदायक -

 दिल को स्वस्थ रखने के लिए अरारोट फायदेमंद होता है। इसमें पोटेशियम की अच्छी मात्रा होते है यह धमनियों में तनाव कम करने में मदद करते है। इससे रक्तचाप नियंत्रण में रहता है। इसके अलावा अरारोट दिल के दौरे व स्ट्रोक के जोखिम से बचाव करता है। हृदय को स्वस्थ रखने के लिए अरारोट का सेवन करे।

वजन कम करने के लिए - 

अगर आप अपना वजन कम करना चाहते है तो अरारोट का उपयोग करना चाहिए। अरारोट में अन्य खाद्य पदार्थ की तुलना में कम कैलोरी होता है। इसके अलावा इसमें कार्बोहाइड्रेड व उच्च मात्रा में पोषक होता है। इसमें अच्छी मात्रा में फाइबर मौजूद होता है जो चर्बी को कम करने में मदद करता है। अपने डाइट में अरारोट को शामिल करे।

त्वचा के लिए फायदेमंद रहे अरारोट -

 सबकी त्वचा एक दूसरे से अलग होती है। किसी की त्वचा रूखी, उलझन भरी, तैलीय होती है। बाहरी संक्रमण त्वचा को नुकसान पहुंचाते है। इसके अलावा त्वचा में फोड़े-फुंसी, दाग धब्बा, झुर्रिया आदि की समस्या को ठीक करने के लिए अरारोट का उपयोग बहुत फायदेमंद होता है। इसमें बहुत से विटामिन व खनिज है जो त्वचा की समस्या को कम करते है।

सावधानी बरतें 

जिस तरह एक सिक्के के दो पहलू होते है वैसे ही इसमें भी है। जहाँ इसका सेवन सीमित मात्रा में करने पर स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है वही इसका अधिक सेवन करने से इसके नकारात्मक परिणाम भी हो सकते है। आइये जानते है इसके नुकसान -

➤अगर आप किसी विशेष दवा का सेवन कर रहे है तो अरारोट का इस्तेमाल करने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर सलाह लें।

➤बच्चों को, गर्भवती व नर्सिंग महिलाओं को, किडनी या लिवर के रोगियों को इसका सेवन करने से पहले विशेष ध्यान देना चाहिए।

➤जिन लोगों को अरारोट से एलर्जी होता है, जैसे अरारोट खाने से उल्टी, खांसी, मतली की समस्या हो उनको इसका सेवन नहीं करना चाहिए।

➤इसका (Arrowroot) सेवन दूध और फलों के साथ करने से बचना चाहिए।

18.8.24

फिशर फिस्टुला भगन्दर का सही इलाज Fissure remedies

                                       



एनल फिशर और फिस्टुला (भगंदर) को अनदेखा करना बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकता है। खासतौर से तब जब एनल एरिया में खुजली या फिर ब्लीडिंग होने जैसे लक्षण शामिल हों। हालांकि ऐसी स्थिति में मरीजों के लिए ये बवासीर  की ओर इशारा होता है। जो समान्य है। लेकिन ज्यादातर मामलों में एनल से जुड़ा ऊतक फिशर या फिस्टुला के परिणामस्वरूप बढ़ जाता है। अगर आपको भी बवासीर की समस्या है, तो इससे जुड़े लक्षण काफी दर्दनाक हो सकते हैं। इसके अलावा अगर फिशर या फिस्टुला बढ़ जाता है, तो स्थिति बेहद बुरी हो सकती है। इस स्थिति में बिना देर किये किसी एक्सपर्ट की सलाह लेने से समस्या को हल किया जा सकता है। हालांकि एनल फिस्टुला और फिशर के बीच की समानता और अंतर) जानने से आपको अपनी समस्या का निदान करने का बेहतर तरीका मिल सकता है।

फिशर और फिस्टुला (भगंदर) में अंतर

फिस्टुला और फिशर एक ही चीज है, अगर आप भी यही सोच रहे हैं, तो आप बिलकुल गलत हैं। फिशर एक मेडिकल वर्ड है जो स्किन के फटने का जिक्र करता है। वहीं फिस्टुला एक असमान्य ट्यूब जैसे कनेक्शन या अंगों के बिच का मार्ग है।
 आमतौर पर फिशर कुछ दिनों में या कुछ हफ्तों में ठीक हो सकता है। जिसमें उपचार की जरूरत नहीं पड़ सकती। क्योंकि ये खतरनाक नहीं होता। इसके बजाय फिस्टुला को बिना इलाज के छोड़ना खतरनाक हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि, आप जिन लक्षणों को महसूस कर रहे हैं, उसके अनुसार ही उसका इलाज करें।
फिशर और फिस्टुला (भगंदर) होने के कारण
एनल फिशर होने के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। इसके मलाशय का कैंसर, वजाइनल चाइल्डबर्थ, अप्राकृतिक यौन संबंध, और लंबे समय तक दस्त होने की समस्या हो सकती है। ज्यादातर मामलों में फिशर गोने के कारण मल त्याग में रुकावट या फिर कब्ज हो सकता है। ये उन मांसपेशियों को फाड़ देता है एनल के अंदर से दबाने वाले सिस्टम को कंट्रोल करता है।
वहीं फिस्टुला एनल की स्किन तक बनता है। इस स्तिथि में दोनों तरफ की स्किन के नीचे वाले हिस्से में इन्फेक्शन हो जाता है। आमतौर पर फिस्टुला पुराने फोड़े का ही परिणाम होता है। इसलिए अगर इसका इलाज नहीं किया गया तो एक फिस्टुला कई खतरनाक फिस्टुला बनाने का कारण बन सकता है।
फिशर और फिस्टुला (भगंदर) के लक्षण

एनल फिशर के लक्षण -

गुदा में फिशर के लक्षण व संकेतों में निम्न शामिल हो सकते हैं:
 मल त्याग के दौरान दर्द, कभी-कभी गंभीर दर्द होना। मल त्याग करने के बाद दर्द होना जो कई घंटों तक रह सकता है। मल त्याग के बाद मल पर गहरा लाल रंग दिखाई देना। गुदा के आसपास खुजली या जलन होना। गुदा के चारों ओर की त्वचा में एक दरार दिखाई देना। गुदा फिशर के पास त्वचा पर गांठ या स्किन टैग दिखाई देना।
आमतौर पर एनल फिशर से जुड़े कुछ लक्षण में एनल एरिया में मल त्याग के दौरान तेज दर्द महसूस होता है। इसमें खुनी मल के साथ एनल और उसके आस-पास लगातर जलन या खुजली होती महसूस होती है। आमतौर पर एनल एरिया के आसपास पानी भी दिखाई देता है।

फिशर के लक्षण

 मल त्याग करते वक्त दर्द होना।
जलन होना।
कभी कभी रक्ततस्राव होना।

फिशर होने के कारण - 

एनल फिशर होने के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। इसके मलाशय का कैंसर, वजाइनल चाइल्डबर्थ, अप्राकृतिक यौन संबंध, और लंबे समय तक दस्त होने की समस्या हो सकती है। ज्यादातर मामलों में फिशर गोने के कारण मल त्याग में रुकावट या फिर कब्ज हो सकता है। ये उन मांसपेशियों को फाड़ देता है एनल के अंदर से दबाने वाले सिस्टम को कंट्रोल करता है।

लंबे समय से डायरिया होना- 

डायरिया यानी दस्त होना। यदि किसी व्यक्ति को लंबे समय तक दस्त होते रहें, तो इससे एनल फिशर होने का रिस्क  बढ़ जाता है। फिशर के मुख्य लक्षण है जो आम तोर पर देखने को मिल जाते है बार-बार दस्त होने के कारण शरीर से काफी मात्रा में पानी निकल जाता है। इस वजह से स्किन काफी ज्यादा ड्राई हो जाती है और एनल ओपनिंग में कट लग जाता है। वैसे भी एनल स्किन काफी सेंसिटिव होती है। इस वजह से एनल फिशर होने पर काफी ज्यादा दर्द का अहसास भी होता है।

इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज- 


 फिशर, इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज के कारण भी हो सकता है। इसका मतलब है जिस व्यक्ति को अक्सर कब्ज की समस्या रहती है या फिर दस्त बने रहते हैं, उन्हें एनल फिशर हो सकता है। इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज में दो तरह की कंडीशन आती है। एक क्रोहन डिजीज ( Crohn's disease) और अल्सरेटिव कोलाइटिस । इसका मतलब है कि गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (जीआई) ट्रैक में लंबे समय से चल रही सूजन। इस सूजन के कारण अक्सर मरीज को फिशर की प्रॉब्लम का सामना करना पड़ता है।

प्रेग्नेंसी या डिलीवरी-

डिलीवरी के दौरान दबाव बनाते समय एनल लाइनिंग में घाव हो जाता है या कट लग जाता है। सामान्य तौर पर इसको कब्ज से जोड़कर देखा जाता है। अगर किसी महिला को कब्ज है, तो डिलीवरी के लिए दबाव बनाते समय फिशर की समस्या हो सकती है। ये बात अलग है कि जिन महिलाओं को कब्ज नहीं है, उन्हें भी डिलीवरी के दौरान दबाव बनाने के कारण एनल फिशर हो सकता है।

एनल ट्रॉमा के कारण-

अगर किसी को सेक्सुअल एक्टिविटी के दौरान एनल में चोट लग जाए, तो भी एनल फिशर होने का रिस्क बढ़ जाता है। हालांकि, सबके साथ ऐसा हो, यह जरूरी नहीं है। लेकिन, अगर एसटीआई, जैसे सिफलिस और हर्पीस जैसी घातक बीमारियां हैं, तो भी एनल फिशर हो सकता है। इससे एनल कैनाल पूरी तरह डैमेज हो सकती है या फिर इंफेक्शनका खतरा बढ़ सकता है।

एनल फिशर से कैसे करें बचाव-

एनल फिशर से बचाव के लिए आप कुछ उपाय आजमा सकते हैं, जैसे की अगर डायरिया की वजह से एनल फिशर है, तो पहले उसका इलाज करवाएं। ज्यादा से ज्याद खुद को हाइड्रेट रखें, ताकि मल त्याग करते समय तकलीफ कम हो। अपनी डाइट में हेल्दी चीजें शामिल करें, जैसे फाइबर खाएं और फ्लूइड इनटेक ज्यादा लें। आप प्रभावित हिस्से में नारियल तेल या कोई भी लुब्रिकेंट लगा सकते हैं।
एनल फिशर यानी गूदा में फटा हुआ या खुला हुआ घाव। यह किस्म से अल्सर की तरह होता है, जो कि गूदा (एनस) के पास बड़ी आंत की लाइनिंग में विकसित होता है। एनल फिशर होने पर व्यक्ति को मल त्यागने में बहुत ज्यादा दिक्कतें आती हैं। यहां तक कि कई बार मल त्यागते समय तीव्र दर्द होता है और खून भी निकल जाता है। किसी भी व्यक्ति के लिए यह कंडीशन काफी कष्टकारी हो सकती है। सवाल है, ऐसी कंडीशन में क्या किया जा सकता है। हालांकि, इसके लिए कई तरह के ट्रीटमेंट मौजूद हैं। लेकिन आप कुछ घरेलू उपायों की मदद से इसकी तकलीफ को कम कर सकते हैं नारियल का तेल अप्लाई करें- A : एनल फिशर के उपचार के लिए आप नारियल के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसमें ट्राइग्लिसराइड्स नाम का एक तत्व होता है, जो इसे लुब्रिकेंट बनाता है। नारियल तेल को प्रभावित हिस्से में लगाने से मल त्याग करते समय दर्द कम होता है। आप इसका उपयोग एक दिन में से दो से तीन बार कर सकते हैं। इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता है। यही नहीं, नारियल तेल के उपयोग से खुजली और जलन की समस्या में भी कमी आती है।

पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं- :

 एनल फिशर से राहत पाने के लिए बहुत जरूरी है कि आप पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं। पानी की कमी के कारण अक्सर व्यक्ति को बहुत सारी तकलीफों का सामना करना पड़ता है। पानी की कमी की वजह से कब्ज की समस्या भी होती है। इसलिए, जरूरी है कि आप एक दिन में कम से कम आठ गिलास पानी जरूर पिएं। पानी पीने से मल नर्म होता है और मल त्याग करने में दिक्कत नहीं होती है।

डाइट में घी शामिल करें- :

 सर्दियों में घी खाने से कई तरह के लाभ होते हैं। कुछ लोग रोजाना सुबह घी खाने से अपने दिन की शुरुआत करते हैं। एनल फिशर के उपचार तौर पर आप घी का उपयोग कर सकते हैं। दरअसल, घी में नेचुरल तरीके लैक्सेटिव और फैटी एसिड मौजूद होता है, जो कि मल त्याग करने को आसाना बनाता है। हालांकि, घी की ओवर ईटिंग करना ठीक नहीं है। इससे आपका वेट गेन हो सकता है।

गर्म पानी से सिंकाई करें- :

एनल फिशर की समस्या बहुत ज्यादा बढ़ने पर आप गर्म पानी से प्रभावित हिस्से का सिंकाई कर सकते है। यह बहुत ही बेहतरीन उपचार है। लेकिन ध्यान रहे कि पानी बहुत ज्यादा गर्म न हो। गर्म पानी में सिंकाई करने से दर्द कम होता है। एनल फिशर से उपचार के तौर पर आप एक दिन में कम से तीन से चार बार इस प्रोसेस को दोहराएं।

डाइट में करें बदलाव- : 

डाइट में ऐसी चीजें शामिल करने से बचें, जिससे स्टूल सख्त हो सकता है। इसमें खासकर, जंक फूड, स्ट्रीट फूड, रेडी टू फूड जैसी चीजें शामिल हैं। आपको अपनी डाइट में ज्यादा से ज्यादा फाइबर युक्त चीजें शामिल करनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर, मौसमी सब्जियां और फल। इनके सेवन से मल सॉफ्ट होता है और मल त्याग करते समय तकलीफ भी कम होती है।

फिशर में क्या नहीं खाना चाहिए

फिशर को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए, कुछ कारकों से बचने की सलाह दी जाती है जो लक्षणों को खराब कर सकते हैं और उपचार प्रक्रिया में बाधा डाल सकते हैं। सबसे पहले, मसालेदार भोजन से दूर रहें, क्योंकि उनमें पहले से ही संवेदनशील गुदा क्षेत्र में जलन पैदा करने की क्षमता होती है। इसके अतिरिक्त, कॉफी, चाय और कुछ सोडा में पाए जाने वाले कैफीन का सेवन सीमित करें, क्योंकि यह कब्ज को बढ़ा सकता है। शराब से भी बचना चाहिए, क्योंकि इससे निर्जलीकरण हो सकता है और लक्षण बढ़ सकते हैं।
फिशर को और अधिक नुकसान से बचाने के लिए मल त्याग के दौरान तनाव को कम करना चाहिए। नरम और नियमित मल त्याग सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है, इसलिए उच्च फाइबर आहार को शामिल करने से इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। लंबे समय तक बैठने से असुविधा बढ़ सकती है, इसलिए सलाह दी जाती है कि ब्रेक लें और लंबे समय तक बैठने से बचें। भारी सामान उठाने से बचें, क्योंकि इससे गुदा क्षेत्र पर दबाव पड़ सकता है। तनाव कब्ज में योगदान कर सकता है, इसलिए तनाव प्रबंधन तकनीकों को लागू करना फायदेमंद है। अंत में, यह महत्वपूर्ण है कि लक्षणों को नज़रअंदाज न किया जाए; यदि वे बने रहते हैं या बिगड़ जाते हैं, तो विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है।

यहाँ फिशर के लिए कुछ घरेलू नुस्खे दिए गए हैं:

सिट्ज़ बाथ: 

दर्द से राहत और उपचार के लिए गुदा क्षेत्र को दिन में कई बार गर्म पानी में भिगोएँ। इस प्रक्रिया को सिट्ज़ बाथ या सिट्ज़ स्नान कहा जाता है।

टॉपिकल मलहम: 

हाइड्रोकार्टिसोन या लिडोकेन वाली ओवर-द-काउंटर क्रीम अस्थायी रूप से दर्द को कम करने में मदद कर सकती हैं।

आहार परिवर्तन:

 मल को नरम करने और कब्ज को रोकने के लिए फलों, सब्जियों और साबुत अनाज के माध्यम से फाइबर का सेवन बढ़ाएँ।

स्वच्छता: 

मल त्याग के बाद हल्के साबुन और पानी या बिना खुशबू वाले गीले पोंछे का उपयोग करके गुदा क्षेत्र को साफ और सूखा रखें।

मल सॉफ़्नर: 

मल त्याग के दौरान तनाव से बचने के लिए ओवर-द-काउंटर विकल्प या फाइबर सप्लीमेंट का उपयोग करें।

दर्द निवारक दवाएं

एसिटामिनोफेन या एनएसएआईडी जैसी ओवर-द-काउंटर दर्द निवारक दवाएं अस्थायी रूप से असुविधा को कम कर सकती हैं।\

नाशपाती फल है सेहत के लिए गुणों का खजाना pears ke fayde


  सेहतमंद रहने के लिए स्वस्थ आहार लेना जरूरी है। इसके लिए डॉक्टर सब्जियों के साथ-साथ फलों का सेवन करने की सलाह भी देते हैं। अगर फलों की बात करें, तो कई पौष्टिक फल बाजार में उपलब्ध हैं। उन्हीं में से एक है नाशपाती। कई लोगों को नाशपाती फल के बारे में पता तो होगा, लेकिन शरीर के लिए इसके फायदे कम लोगों को ही पता होंगे।

नाशपाती काफी स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरपूर होता है। नाशपाती में विटामिन्स, मिनरल्स और फाइबर अधिक मात्रा में पाया जाता है। नाशपाती पेट के लिए सबसे अधिक फायदेमंद होता है। इसके अलावा इसमें एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटी कैंसर गुण भी होते हैं। नाशपाती वजन घटाने में मदद कर सकता है, साथ ही हार्ट हेल्थ के लिए भी अच्छा होता है। वैसे तो नाशपाती का सेवन दिन के समय कभी भीखाया जा सकता है।

 

 


वजन कंट्रोल रहेगा
नाशपाती में फाइबर अधिक होता है। इसलिए यह वजन को कंट्रोल में रखने में मदद कर सकता है। दरअसल, फाइबर लेने से पेट लंबे समय तक भरा हुआ रहता है और भूख जल्दी नहीं लगती है। इससे हम ओवरइटिंग नहीं करते हैं। जिससे वजन कंट्रोल में रहता है। सुबह खाली पेट नाशपाती खाने से आप लंबे समय तक भूख महसूस नहीं करेंगे।

खाली पेट नाशपाती खाने के फायदे

नाशपाती सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है। रोज सुबह खाली पेट नाशपाती खाने से कई तरह की समस्याओं से बचा जा सकता है। खाली पेट नाशपाती खाने से कब्ज और अपच दूर होती है। इसके अलावा नाशपाती खाने से लंबे समय तक पेट भरा हुआ रहता है। इसलिए आपको भी सुबह खाली पेट नाशपाती जरूर खानी चाहिए।

कैंसर के लिए नाशपाती फल

कैंसर जैसी घातक बीमारी से बचाव करने के लिए नाशपाती फायदेमंद साबित हो सकती है। नाशपाती में यूरोसोलिक एसिड (Urosolic Acid) मौजूद होता है, जो मूत्राशय (Bladder), फेफड़ों (Lungs) और भोजन-नलिका (Oesophageal) के कैंसर से बचाव करने में मदद कर सकता है। नाशपाती को नियमित रूप से खाने से, खासकर रजोनिवृत्ति के दौरान इसे खाने से महिलाओं में कैंसर का जोखिम कम हो सकता है

पेट की समस्याओं में फायदेमंद (Pears for Stomach)

खाली पेट नाशपाती खाने से पेट से जुड़ी समस्याएं दूर हो सकती हैं। नाशपाती में फाइबर होता है, जो कब्ज और अपच को ठीक करने में मदद करता है। फाइबर भोजन को पचाने में मदद करता है, इससे मल नरम बनता है और मल त्याग आसानी से हो जाता है।

हृदय के लिए फायदेमंद

नाशपाती हृदय स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा होता है। यह बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करता है, वहीं गुड कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में मदद कर सकता है। नाशपाती में पोटेशियम होता है, जो हार्ट के लिए जरूर पोषक तत्व है। इसके अलावा यह सूजन को कम करता है। इससे ब्लड प्रेशर भी कंट्रोल में रह सकता है।

एंटी इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर

नाशपाती में एंटीऑक्सीडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण काफी अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। जब सुबह खाली पेट नाशपाती खाई जाती है, तो इससे ये तत्व शरीर आसानी से अवशोषित कर लेता है। इसके बाद शरीर में ये अपना काम करते हैं। एंटीऑक्सीडेंट शरीर को फ्री रेडिकल्स से होने वाले डैमेज से बचाते हैं। एंटी इंफ्लेमेटरी गुण सूजन को कम करने में मदद करते हैं।

ब्लड प्रेशर या उच्च रक्तचाप के लिए नाशपाती फल

अगर आपको ब्लड प्रेशर है या आप उच्च रक्तचाप की समस्या से खुद को बचाना चाहते हैं, तो नाशपाती को अपने डाइट में शामिल करें। यह उच्च रक्तचाप की समस्या से बचाव कर आपको स्वस्थ रहने में मदद कर सकता है

गर्भावस्था के दौरान नाशपाती फल

प्रेगनेंसी के दौरान खान-पान पर विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है। इस दौरान महिलाओं को कई तरह के पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता होती है, लेकिन सबसे ज्यादा जो महत्वपूर्ण होता है, वो है फोलेट। यह शिशु में न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट (Neural Tube Defects) जैसे जन्मदोष से बचाव कर सकता है। ऐसे में नाशपाती का सेवन गर्भवती के लिए बहुत लाभकारी हो सकता है
ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) से बचाव के लिए नाशपाती के लाभ

बढ़ती उम्र और पोषक तत्वों की कमी हड्डियों की समस्याओं का कारण बनती हैं। ऑस्टियोपोरोसिस उन्हीं समस्याओं में से एक है। यह कैल्शियम, विटामिन्स और मिनरल्स की कमी से होने वाली हड्डियों की बीमारी है, जिसमें हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। इससे ये आसानी से टूट सकती हैं या कमर-पीठ में दर्द की शिकायत भी हो सकती है। ऐसे में नाशपाती के सेवन से ऑस्टियोपोरोसिस से बचाव हो सकता है। नाशपाती शरीर के पीएच स्तर को संतुलित करने का काम कर सकती है। इसका बोरोन (Boron, एक प्रकार का केमिकल) शरीर में कैल्शियम को बनाने में मदद कर सकता है, जिससे ऑस्टियोपोरोसिस से बचा जा सकता है

 डायबिटीज के लिए नाशपाती के फायदे

अगर डायबिटीज की बात करें, तो यह सर्दी-जुकाम की तरह आम समस्या बन चुकी है। एक बार अगर किसी को डायबिटीज हो जाए, तो उसे जिंदगी भर सेहत से जुड़ी अन्य समस्याओं को झेलना पड़ सकता है। ऐसे में डायबिटीज से बचाव के लिए नाशपाती का सेवन असरदार हो सकता है। इसमें एंटी-डायबिटिक गुण मौजूद होते हैं, जो डायबिटीज की समस्या से बचाव कर सकते हैं

दर्दनाशक की तरह नाशपाती फल

नाशपाती में एनाल्जेसिक (Analgesic) यानी दर्दनाशक गुण मौजूद होते हैं, जिससे दर्द की समस्या से राहत मिल सकती है। इसलिए, दर्द की समस्या से बचाव करने के लिए नाशपाती का सेवन कर सकते हैं

पाचन के लिए नाशपाती के फायदे

बाहरी और अधिक तेल-मसाले वाले खान-पान के कारण पेट की समस्या आम हो चुकी है। इस स्थिति में आप डाइट में नाशपाती या नाशपाती के जूस को शामिल कर पाचन तंत्र को स्वस्थ रख सकते हैं। इसमें पेक्टिन मौजूद होता है, जो एक तरह का फाइबर है। इसके नियमित सेवन से कब्ज की समस्या से आराम मिल सकता है और पाचन क्रिया स्वस्थ हो सकती है। ध्यान रहे कि अगर किसी को इर्रिटेबल बॉउल सिंड्रोम(Irritable Bowel Syndrome) की समस्या है, तो वो नाशपाती का सेवन डॉक्टर के निर्देशानुसार ही करें, वरना उन्हें पेट दर्द, पेट खराब या गैस जैसी समस्या हो सकती है

दिमागी तनाव से निपटने के घरेलू उपाय how to tackle tension

 



तनाव एक ऐसी बीमारी है जिससे ज्यादातर लोग परेशान हैं. आजकल लोगों को जरा सी बात पर टेंशन हो जाती है. नींद नहीं आती और दिनभर परेशान रहने लगते हैं. तनाव को दूसरी बीमारियों की भी जड़ माना जाता है. तनाव और टेंशन से वजन बढ़ता है, हार्ट की बीमारी होती हैं, ब्लड प्रेशर बढ़ता है, नींद की समस्या हो जाती है और हार्मोंस गड़बड़ होने लगते हैं. हालांकि आप घर में रहकर ऐसे कई काम या एक्टिविटी कर सकते हैं जो तनाव को दूर करने में आपकी मदद करेंगे. आइये जानते हैं घर में रहकर तनाव को कैसे कहें बाय-बाय.आयुर्वेद चिकित्सा की एक प्राचीन भारतीय प्रणाली है जो पूरे स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक उपचार का उपयोग करती है. कुछ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों, तेल और प्रैक्टिस से तनाव को कम करने और विश्राम को बढ़ावा देने में मदद करते हैं, जैसे कि ध्यान, प्राणायाम और योग. ये शरीर, मन और आत्मा में बैलेंस बनाने का काम करते हैं. इसलिए, तनाव से निपटने के लिए आयुर्वेदिक उपायों का प्रयोग करना बहुत फायदेमंद होता है. आइए कुछ आयुर्वेदिक उपायों के बारे में जानते हैं, जिससे तनाव दूर किया जा सकता है.

जटामांसी


जटामांसी शांति और तनाव को कम करने के लिए उपयोगी होती है. इसे चूर्ण बनाकर गर्म पानी के साथ सेवन किया जा सकता है.

ब्राह्मी


ब्राह्मी मस्तिष्क को शांत करने में मदद करती है और तनाव को कम करती है. ब्राह्मी की चाय बनाकर पी सकते हैं.

योग और प्राणायाम


योग और प्राणायाम तनाव कम करने में मदद करते हैं. योग विभिन्न आसनों को शामिल करता है, जो तनाव कम करने में मदद करते हैं. प्राणायाम मानसिक शांति लाने में मदद करता है.


सरसों का तेल


सरसों का तेल शरीर के तनाव को कम करने में मदद करता है. इसे नाभि पर लगाकर मालिश किया जा सकता है.











जिस प्रकार की हम जीवन शैली जी रहे हैं ऐसे में तनाव (Stress) होना स्वभाविक है। ऑफिस का कार्यभार हो या घर की जिम्मेदारी, कभी ना कभी किसी ना किसी ने तनाव को महसूस किया ही है। कारण कुछ भी हो सकता है पर तनाव को समय रहते कम करना बेहद जरूरी है। वरना लोग शारीरिक और मानसिक रूप से बंध जाते हैं, जिसके कारण उन्हें चिंता, डिप्रेशन, हिस्टीरिया आदि समस्याएं होने लगती हैं। इनका प्रभाव दैनिक जीवन पर भी पड़ता है। अगर आप भी तनाव का शिकार हो गए हैं तो आपके घर पर ही इसका इलाज मौजूद है। आज हम आपको इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि आप घरेलू उपाय से कैसे इस तनाव को दूर कर सकते हैं। इसके लिए हमने डॉ निमेश जी देसाई, साइकोलॉजिस्ट और निर्देशक से भी बात की है। पढ़ते हैं आगे...

तनाव को दूर करें हरी चाय (Green Tea for Stress)

हरी चाय जिसे इंग्लिश में ग्रीन टी भी कहा जाता है। अगर उसके साथ शहद और नीबू को मिलाकर पिया जाए तो इससे ना केवल शरीर स्वस्थ बनता है बल्कि यह तनाव को दूर करने में भी बेहद मददगार है। इसके अंदर ऐसे घटक पाए जाते हैं जो व्यक्ति को केंद्रित और उत्पादक बनाते हैं। ऐसे में आप प्रत्येक दिन में एक-दो बार हरी कप की चाय का सेवन कर सकते हैं। ग्रीन टी के अंदर कम मात्रा में कैफीन पाया जाता है ऐसे में आप दिन में तीन बार भी इस चाय का सेवन कर सकते हैं। मानसिक शांति के लिए यह एक अच्छा विकल्प है।

तुलसी

तुलसी तनाव को कम करने में मदद करती है और मानसिक शांति लाती है. तुलसी की चाय बनाकर पी सकते हैं.

सफेद मूसली

सफेद मूसली तनाव को कम करने में मदद करती है और शक्ति बढ़ाती है. इसे पाउडर के रूप में ले सकते हैं

मसाज के माध्यम से दूर करें

मसाज के माध्यम से खुद को रिलैक्स किया जा सकता है। यह न केवल नींद को बढ़ाता है बल्कि अगर आप पैरों की मसाज करवाते हैं तो इससे तनाव भी दूर होता है। इसके लिए आप तिल के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। हर दिन सोने से पहले आप तिल के तेल से अपने बालों की मालिश करें। ऐसा करने से आप अनिद्रा की समस्या को दूर कर पाएंगे और तनाव की समस्या से भी छुटकारा मिल जाएगा। इसके अलावा मसाज से शरीर और मन दोनों को शांति मिलती है।

अश्वगंधा

यह जड़ी-बूटी तनाव कम करने में मदद करती है. आश्वगंधा की जड़ को चूर्ण बनाकर गर्म पानी के साथ सेवन किया जा सकता है.


मसाज के माध्यम से दूर करें 

मसाज के माध्यम से खुद को रिलैक्स किया जा सकता है। यह न केवल नींद को बढ़ाता है बल्कि अगर आप पैरों की मसाज करवाते हैं तो इससे तनाव भी दूर होता है। इसके लिए आप तिल के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। हर दिन सोने से पहले आप तिल के तेल से अपने बालों की मालिश करें। ऐसा करने से आप अनिद्रा की समस्या को दूर कर पाएंगे और तनाव की समस्या से भी छुटकारा मिल जाएगा। इसके अलावा मसाज से शरीर और मन दोनों को शांति मिलती है।

सामाजिक सहयोग

अपने तनाव के क्षणों में अपने दोस्तों व रिश्तेदारों के बीच रहिए क्योंकि इससे आपको सबसे ज्यादा सपोर्ट मिलता है व हिम्मत भी मिलती है विपरीत परिस्थिति का सामना करने की।


अनिद्रा के आयुर्वेदिक घरेलू उपाय nind ke gharelu upchar

 




अनिद्रा (Insomnia) से परेशान व्यक्ति को रात में काफ़ी देर तक बिस्तर पर पड़े रहने से भी नींद नहीं आती है। आयुर्वेद की माने तो यह किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं बल्कि किसी दूसरे रोग से या फिर मानसिक असंतुलन से होने वाली समस्या है।
बता दें कि इसके अलग-अलग कारण जैसे अत्यधिक चिंता, तनाव, मन में कोई न कोई बात सोचते रहना, डर, पाचन तंत्र ठीक न होना हो सकते हैं। इस समस्या में एक बार जागने पर दोबारा सोने में भी बहुत ज़्यादा मुश्किल होने लग जाती है।
आज के समय में लोग इस तनाव भरी स्थिति को दूर करने के लिए काफ़ी दवाइयों का सेवन करते नज़र आते हैं जो उनके शरीर में किडनी और लीवर को नुक़सान पहुंचा सकती हैं। अगर अनिद्रा (insomnia) नींद नहीं आने के कारण के और लक्षणों को अच्छे से जान लिया जाए तो आयुर्वेदिक और घरेलू उपचार की सहायता से इस समस्या को जल्दी दूर किया जा सकता है।

आयुर्वेद में अनिद्रा क्या होती है- What is Insomnia in Ayurveda

आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार अगर आपके शरीर में तीनों दोष यानी वात, पित्त और कफ संतुलित हैं तो आपको किसी भी प्रकार की बीमारी हानि नहीं पहुंचा सकती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जब वात दोष असंतुलित रहने लग जाए तो व्यक्ति अनिद्रा से ग्रसित रहने लग जाता है। वर्तमान समय में लोगों का खान-पान और जीवनशैली बहुत खराब हो गई है जिसके चलते वह अनिद्रा जैसी अनेक समस्याओं से परेशान रहने लग जाता है।
अनिद्रा (Insomnia) नींद नहीं आने के कारण

अगर आप इस समस्या को जड़ से ख़त्म करना चाहते हैं तो आपको इसके मुख्य कारणों की जानकारी होनी बहुत ज़रूरी है। इस आर्टिकल में हम आपको उन्ही के बारे में बताने जा रहे हैं, सही समय पर इनके उपर ध्यान देकर आयुर्वेदिक उपचार के द्वारा अनिद्रा से बचा जा सकता है।आज के समय में लोग आर्थिक परेशानी, पारिवारिक और निजी ज़िन्दगी को लेकर अनेक बातों के बारे में सोचते रहते हैं जिसका प्रभाव उनके मस्तिष्क पर होने लगता है। मानसिक असंतुलन को अनिद्रा का सबसे अहम कारण माना जाता है।
जो लोग शराब का अधिक सेवन करते हैं उनको यह समस्या ज़्यादा परेशान करती है।
एक शोध कहती है कि कई लोग रात को ज़्यादा खाना खा लेते हैं जिसके बाद उनको बेचैनी और घबराहट होने लगती है, यह भी अनिद्रा का मुख्य कारण है।
अधिक चिंता और तनाव की वज़ह से मस्तिष्क की अनेक बीमारियां होने का डर बना रहता है जो अनिद्रा का कारण बन सकती हैं।
जो लोग अपनी किसी भी प्रकार की बीमारी को दूर करने के लिए काफ़ी मात्रा में दवाइयों का सेवन कर रहे हैं वह भी अनिद्रा का आसान शिकार बन सकते हैं।
अगर आपकी पाचन क्रिया खराब है तो आप जल्दी इस समस्या से ग्रसित हो सकते हैं।
इन सभी के अलावा अल्जाइमर, थायराइड, अस्थमा रोग, शुगर, हृदय रोग और जोड़ों की किसी भी प्रकार की बीमारी के कारण भी अनिद्रा की समस्या आपको परेशान कर सकती है।

नींद न आने के मुख्य लक्षण: 

जब व्यक्ति को काफ़ी देर तक बिस्तर पर पड़े रहने पर भी नींद नहीं आती।
कई बार लोग रात को जागने के बाद दोबारा सो नहीं पाते।
सुबह नींद से उठने के बाद भी सुस्ती आना।
थका-थका रहना, घबराहट और आलस्य इसके मुख्य लक्षण।
नींद पूरी न होने की वज़ह से चिड़चिड़ापन रहना।

अनिद्रा को दूर करने के घरेलू उपाय

अश्वगंधा लाभदायक—इसके चूर्ण को अगर वैद्य की सलाह के अनुसार दिन में दो बार गुनगुने पानी के साथ सेवन किया जाए तो अनिद्रा की समस्या को जल्दी ख़त्म किया जा सकता है।

सरसों का तेल फायदेमंद—

आयुर्वेद के मुताबिक़ रात को सोने से पहले अगर व्यक्ति रोजाना पैर के तलवों में इस तेल की अच्छे से मालिश करता है तो रात को अच्छी नींद आने में सहायता मिलती है।

दालचीनी चूर्ण उपयोगी—

रात को सोने से पहले एक गिलास देसी गाय के गुनगुने दूध में आधा चम्मच दालचीनी चूर्ण मिलाकर सेवन करने से अनिद्रा में लाभ मिलता है।

जायफल उत्तम औषधि—

रात में अगर एक गिलास दूध में एक चम्मच जायफल चूर्ण मिश्रण करके कम से कम 1 महिना सेवन किया जाए तो अनिद्रा की परेशानी दूर हो सकती है।
ये जड़ी-बूटियां मस्तिष्क के लिए एक टॉनिक के रूप में काम करती हैं जो सामान्य स्वास्थ्य को बढ़ावा देती हैं और तनाव देने वाले हार्मोन को संतुलित करने में सहायता प्रदान करती हैं।
अच्छी और आरामदायक नींद पाने के लिये इन 10 तरीक़ों को अपनाएं।
सोने और जागने का समय निर्धारित करें
लगभग हर रोज़ एक ही समय पर सोने और जागने का एक नियमित समय तय करें, इससे आपके शरीर को अच्छी और बेहतर नींद मिलेगी। सोने के लिए ऐसा समय चुनें जब आपको थकान महसूस हो रही हो और आपको आसानी से नींद आ जाये।
माहौल ऐसा बनाये जिसमे आपको आसानी से नींद आ जाये
आपके आराम करने वाले कमरे का आपके लिये शांतिपूर्ण होना चाहिये। आपके कमरे का तापमान, रोशनी और शोर सभी पूरी तरह नियंत्रित होनी चाहिये, जिससे आपके सोने के कमरे का वातावरण आपके अच्छी नींद लेने मे सहायक बने।
अगर आपके पास कोई पालतू जानवर हैं जो आपके साथ आपके कमरे मे सोता हैं, और आपको रात मे परेशान करता हैं तो ज्यादा अच्छा रहेगा आप इसे दूसरे कमरे मे सुला दे ,ताकि आप आराम से सो सके।

आरामदायक बिस्तर पर सोएँ

ऐसे किसी गद्दे पर आराम से सोना मुश्किल है जो या तो बहुत नरम या बहुत कठोर है, या एक बिस्तर जो बहुत छोटा या पुराना है।

नियमित व्यायाम करे

नियमित रूप से मध्यम शक्ति वाले व्यायाम करना, जैसे तैराकी या पैदल चलना, दिन भर के तनाव को दूर करने में मदद कर सकता है। सुनिश्चित करें कि आप सोते समय जोरदार व्यायाम नहीं करते हैं, जैसे दौड़ना या जिम, क्योंकि यह आपको जागृत रख सकता है।
आप अपनी सुविधा के अनुसार अपने आप को किस तरह तंदुरुस्त रख सकते हैं देखे।

कैफीन वाली चीजों को कम लें

चाय, कॉफी, एनर्जी ड्रिंक्स और कोला जैसी चीजों से दूर रहे, ख़ासकर शाम के समय इनचीजों को न ले। कैफीन आपकी नींद मे बाधा उत्पन्न कर सकता है,और आप अच्छी नींद नहीं ले पाते। इसलिये अच्छा रहेगा आप सोने से पहले गर्म दूध या हर्बल चाय पीये।
जरूरत से ज्यादा खाना और शराब, इनका सेवन देर रात को करने से भी, आपकी नींद के नियम मे बाधा उत्पन्न होती हैं। शराब का सेवन करने से आपको पहले से ही नींद आने लगती हैं और जब रात मे सोने का समय होता हैं तब आपकी नींद आने मे परेशानी होती हैं।

धुम्रपान न करें

निकोटीन एक उत्तेजक पदार्थ है। धूम्रपान करने वालों को नींद आने में अधिक समय लगता है, वे बार-बार उठते हैं, और अक्सर उनकी नींद बाधित होती है।

जरूरत से ज्यादा खाना न खायें

जरूरत से ज्यादा खाना और शराब, इनका सेवन देर रात को करने से भी, आपकी नींद के नियम मे बाधा उत्पन्न होती हैं। शराब का सेवन करने से आपको पहले से ही नींद आने लगती हैं और जब रात मे सोने का समय होता हैं तब आपकी नींद आने मे परेशानी होती हैं।
सोने से पहले थोडा रिलैक्स करें
गर्म पानी से नहा लें, शांत संगीत सुनें या मन और शरीर आराम देने वाले व्यायाम करें।
आपके डॉक्टर आपको ऐसे सीडी सुनने का सलाह दे सकते हैं जिन्हें सुनकर आपकी थकान दूर हो और आपको आराम महसूस हो।‌

यदि आपको नींद नहीं आ रही हैं, तो उठ जाएं

अगर आपको नींद नहीं आ रही है, तो लेटे हुए इसपर चिंता करने की जरुरत नहीं हैं। उठ जाइए और ऐसा कुछ कीजिए जिससे आपको आराम मिले और दोबारा नींद आ जाए, तब दोबारा सोने जाएं।

इन ख़ास बातों का रखें ध्यान:

निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर और अपनी दिनचर्या में परिवर्तन करके आप अनिद्रा की समस्या से सुरक्षित रह सकते हैं।अपने भोजन में देसी गाय का दूध, दलिया और बादाम को महत्त्व दें।
दोपहर के भोजन में सलाद का सेवन ज़रूर करें क्योंकि इसमें पाया जाने वाला लैक्टोकैरियम तत्व शरीर में जठराग्नि को मज़बूत बनाए रखता है।
रात को सोने से पहले एक गिलास देसी गाय का दूध नियमित रूप से सेवन करें।
नशीले पदार्थों जैसे शराब, सिगरेट और तम्बाकू के सेवन से बचें।
सूर्योदय से पहले उठकर रोजाना 2 से 3 किलोमीटर पैदल चलें।
योग, व्यायाम और प्राणायाम को अपनी दिनचर्या में महत्त्वपूर्ण स्थान दें।
तला हुआ भोजन और फ़ास्ट फ़ूड से आज ही दूरी बनाएं।


17.8.24

गठिया संधिवात का सही इलाज क्या है?गठिया रोगी क्या खाएं क्या परहेज करें


                                                 

गठिया को जितना हो सके उतने प्राकृतिक रूप से इलाज करना चाहिए। कैमिकलयुक्त दवाओं से बेहतर है कि आप इसको घरेलू या आयुर्वेदिक रूप से ठीक करें। इसका कारण यह है कि प्राकृतिक रूप से बनी जड़ी बूटियों में किसी प्रकार के साइड इफेक्ट नहीं होता। गठिया को ठीक करने के लिए आप कुछ घरेलू उपायों का प्रयोग कर सकते हैं।

जितना हो सके उतना ज़्यादा पानी पीएं। इससे आप दिनभर हाइड्रेटिड रहेंगें।
हल्दी एक प्राकृतिक एंटीसेप्टिक माना जाता है। चोट लगने पर हल्दी का प्रयोग किया जाए, तो जल्द राहत मिलती है। इसमें करक्यूमिन नामक तत्व पाया जाता है जिससे शरीर में सूजन कम होने लगती है। साथ ही ये आर्थराइटिस के असर को धीरे-धीरे कम करने में सहायक है।
अरंडी का तेल शरीर में लिम्फोसाइट को बढ़ाने में मदद करता है। इसमें टी सेल यानी श्वेत रक्त कोशिकाएं होती हैं जो किसी भी तरह की बीमारी से लड़ने में सहायक होती है।गठिया (Arthritis) एक ऐसी बीमारी है जो जोड़ों में दर्द, सूजन और अकड़न पैदा करती है. यह किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकती है, लेकिन यह आमतौर पर 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में अधिक आम होती है.
 गठिया, जोड़ों में सूजन और दर्द का कारण बनने वाली एक आम बीमारी है. यह अलग-अलग प्रकारों में हो सकती है, जिनमें ऑस्टियोआर्थराइटिस, रुमेटॉयड गठिया और गाउट शामिल हैं. गठिया के लक्षणों में जोड़ों में दर्द, सूजन, अकड़न और गति की कमी शामिल हो सकती है.
. गठिया के मरीजों को इन पांच फूड्स से बचना चाहिए.
. चावल
चावल में रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट होते हैं, जो सूजन को बढ़ा सकते हैं. गठिया के मरीजों को भूरे चावल या क्विनोआ जैसे साबुत अनाज का विकल्प चुनना चाहिए.
आइसक्रीम
आइसक्रीम में चीनी और डेयरी उत्पाद होते हैं, जो दोनों ही गठिया के लक्षणों को बदतर बना सकते हैं. गठिया के मरीजों को फल या दही से बनी कम वसा वाली आइसक्रीम का विकल्प चुनना चाहिए.
गठिया के मरीजों को एक हेल्दी और बैलेंस डाइट का सेवन करना चाहिए जिसमें फल, सब्जियां, साबुत अनाज और दुबला प्रोटीन शामिल हों. नियमित व्यायाम भी गठिया के लक्षणों को मैनेज करने में मदद कर सकता है
कोल्ड ड्रिंक
कोल्ड ड्रिंक में चीनी और ऑर्टिफिशियल स्वीटनर होते हैं, जो सूजन को बढ़ा सकते हैं. गठिया के मरीजों को पानी, हर्बल चाय या कम चीनी वाले फल पेय का सेवन करना चाहिए.
ठंडा पानी
ठंडा पानी जोड़ों को कठोर बना सकता है और दर्द और अकड़न को बढ़ा सकता है. गठिया के मरीजों को गुनगुने पानी का सेवन करना चाहिए
दही
दही में कैसिइन नामक प्रोटीन होता है, जो कुछ लोगों में सूजन को ट्रिगर कर सकता है. गठिया के मरीजों को दही के बजाय कम वसा वाले दूध या दही का ऑप्शन चुनना चाहिए.
गर्मी का मौसम में कई लोगों के लिए गठिया की समस्या बढ़ जाती है. जोड़ों में अकड़न, दर्द और सूजन की समस्याएं उन्हें परेशान करने लगती हैं. दरअसल, गर्मियों में शरीर में पानी की कमी हो जाती है, जिससे जोड़ों में लुब्रिकेशन कम हो जाता है और दर्द बढ़ जाता है
लेकिन घबराने की जरूरत नहीं है. कुछ आसान उपायों और खान-पान में बदलाव करके आप गर्मियों में भी गठिया के लक्षणों को कंट्रोल कर सकते हैं. आइए जानते हैं गर्मियों में गठिया के लक्षणों को कम करने के कुछ टिप्स और हड्डियों को मजबूत बनाने वाले डेयरी रहित फूड के बारे में.
गर्मियों में गठिया के लक्षणों को कम करने के लिए टिप्स:
पानी भरपूर मात्रा में पिएं: शरीर में पानी की कमी गठिया के दर्द को बढ़ा सकती है. इसलिए, दिन भर में पर्याप्त मात्रा में पानी पीना बहुत जरूरी है.
अरंडी के तेल की मालिश किसी भी दर्द का रामबाण इलाज है। अगर आपके जोड़ों में भी हमेशा दर्द की शिकायत रहती है तो आप अरंडी के तेल से जोड़ों की मालिश कर सकते हैं।
गठिया के लिए आमलकी, अश्वगंधा और शतावरी को मिलाकर उसका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को रोज़ाना सुबह खाली पेट खाएं।
 नींबू का रस निकालकर जोड़ों की मालिश करें। इससे सूजन व जोड़ों का दर्द खत्म होता है।
 गठिया होने का कारण यूरिक एसिड का बढ़ना है। इसको नियंत्रित करने के लिए आप लहसुन को शहद में डालकर इसका सेवन कर सकते हैं।
 कच्चे आलू का रस निकालकर रोज़ाना खाली पेट पानी के साथ आधा कम पिएं।
 सूर्य की किरणों का हल्का सहारा लें: सुबह की हल्की धूप जोड़ों के लिए फायदेमंद होती है. विटामिन-डी हड्डियों को मजबूत बनाने में मदद करता है.
* ठंडे से बचें: एयर कंडीशनर के अत्यधिक प्रयोग से बचें. ठंड जोड़ों के दर्द को बढ़ा सकती है.
* वजन को कंट्रोल में रखें: ज्यादा वजन जोड़ों पर दबाव डालता है, जिससे दर्द बढ़ सकता है. हेल्दी वजन बनाए रखने से गठिया के लक्षणों को कम करने में मदद मिलती है.
* नियमित व्यायाम करें: हल्के व्यायाम जोड़ों को लचीला बनाते हैं और दर्द को कम करते हैं.
गर्मियों में हड्डियों को मजबूत बनाने वाले डेयरी रहित खाद्य पदार्थ:
* हरी पत्तेदार सब्जियां: पालक, मेथी, ब्रोकली जैसी हरी पत्तेदार सब्जियों में कैल्शियम और विटामिन-के भरपूर मात्रा में होते हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाते हैं.
* सोयाबीन: सोयाबीन प्रोटीन और कैल्शियम का अच्छा सोर्स है. सोया दूध, टोफू और एडामे का सेवन गठिया के रोगियों के लिए फायदेमंद होता है.
गठिया का नुस्खा 
*आप दौ सौ पचास ग्राम गुड़ जो दो साल पुराना हो।और इतनी ही साबुत हल्दी की गांठें।बीस ग्राम सौंठ।ले सबसे पहले एक लोहे की कड़ाही में। थोड़ी बालू रेत में धिमी आंच पर हल्दी को बीस मिनट तक पकाये फिर तुरन्त उसे कूटकर कपडछानं कर ले यानी बारिक पाउडर बना लें फिर उस कढ़ाई को साफ करने के बाद उसमें गुड़ डाल दें।और उसे पलटे से हिलाते रहें थोड़ा पिघलने पर उसमें हल्दी पाउडर व सौंठ पावडर डाल कर जल्दी से मिक्स कर लें।और फिर उसकी इक्कीस गोली बना लें ।तीन गोली हर रोज सुबह दोपहर और शाम को एक गिलास थोड़ा गर्म दूध के साथ लें।दुध देशी गाय या बकरी का होना जरूरी है। ये सात दिन लें ।परहेज ।चटपटा व तली हुई चीजें आचार व बाय वाली सब्जी ना लें ।  यही विधि दोबारा करें।जब तक सम्पूर्ण ठीक न हो करते रहे।
* अलसी के बीज: अलसी के बीज ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर होते हैं, जो जोड़ों की सूजन को कम करने में मदद करते हैं.
* अनार का दाना: अनार के दानों में एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं, जो शरीर में सूजन को कम करते हैं.
* नट्स और बीज: बादाम, अखरोट, कद्दू के बीज आदि कैल्शियम, मैग्नीशियम और हेल्दी फैट के अच्छे सोर्स हैं. ये हड्डियों को मजबूत बनाते हैं.
गर्मियों में इन उपायों और फूड को अपनाकर आप गठिया के लक्षणों को कम कर सकते हैं और हड्डियों को मजबूत बनाए रख सकते हैं
गठिया के इलाज के लिए बाजार में कई तरह की दवाइयां उपलब्ध है लेकिन गठिया के सबसे अच्छे इलाज में घरेलू उपचार इन दवाइयों से ज्यादा फायदेमंद साबित होता है -
पानी -पानी यूरिक एसिड की मात्रा को शरीर में संतुलित रखने में बहुत ही ज्यादा कारगर साबित होता है।
आप गठिया के इलाज के लिए दिन भर में 4 से 5 लीटर पानी का सेवन करें।
हल्दी -गठिया के दौरान सूजन और दर्द की समस्या अत्यधिक बढ़ जाती है।
आप रोजाना सोने से पहले हल्दी वाला दूध का सेवन करें। यह आपके सूजन और दर्द को कम करने में मददगार साबित होगा।
अदरक -अदरक हमारे शरीर में रक्त संचार को बढ़ाने के साथ ही दर्द में भी राहत पहुंचाने का काम करता है।
आप दर्द वाले स्थान पर अदरक के तेल की मालिश करें।
लहसुन -गठिया व जोड़ों का दर्द में लहसुन काफी फायदेमंद साबित होता है।
इसके लिए आप लहसुन की 3-4 कलियां सुबह खाली पेट ले।
एलोवेरा -एलोवेरा का इस्तेमाल भी गठिया के दर्द में आराम पाने के लिए किया जाता है।
इसके लिए आप दर्द वाले स्थान पर ताजा एलोवेरा का जेल लगाएं यह आप के दर्द को बहुत हद तक कम कर देगा।
सौंठ -
गठिया के इलाज में सौंठ का सेवन भी बहुत फायदेमंद साबित होता है।
इससे गठिया के रोग में बहुत ज्यादा आराम मिलता है। आप सौंठ का सेवन किसी भी रूप में कर सकते हैं।
आलू -आलू के रस में कार्बनिक और विभिन्न प्रकार के खनिज के गुण मौजूद होते हैं।
जिस वजह से यह गठिया के इलाज में बहुत फायदेमंद साबित होते हैं।

1.8.24

सांस फूलना अस्थमा के कारण, लक्षण घरेलू उपचार :Asthma home remedies

 



दुनियाभर में करीब 24 करोड़ लोग अस्थमा से पीडित हैं। वहीं भारत की बात की जाए तो करीब 2 करोड़ लोग इस बीमारी के शिकार हैं। अस्थमा कई कारणों से हो सकता है। कई लोगों को यह बीमारी जेनेटिक मिलती हैं तो कई लोग एलर्जी के कारण इस समस्या का शिकार हो जाते है। शुरुआत में ही अस्थमा का इलाज करा जाए तो इसके अटैक से आप खुद को बचा सकते हैं। अस्थमा के मरीजों को अपनी डाइट का खास ख्याल रखना पड़ता है। ऐसे में आप कुछ घरेलू उपाय अपनाकर इस समस्या को काफी हद तक कंट्रोल कर सकते हैं।
सांस लिए बिना व्यक्ति दो मिनट तक भी नहीं रह सकता, लेकिन फिर भी लोग इसे बेहद सामान्य मानते हैं। आप भले ही सांसों का मोल न समझते हों लेकिन इसकी वास्तविक कीमत एक अस्थमा पीडि़त व्यक्ति ही समझ सकता है। श्वसन संबंधी यह समस्या कभी−कभी जानलेवा भी साबित होती है।

अस्थमा के कारण क्या है

अभी तक अस्थमा के सटीक कारणों का पता नहीं लगा पाया गया है लेकिन इस बीमारी के पीछे अनुवांशिक और पर्यावरणीय कारण जिम्मेदार हो सकते हैं अस्थमा रोग के शिकार अक्सर धूम्रपान करने वाले या फिर तंबाकू खाने वाले होते हैं। इसके अलावा धूल के कण वायु प्रदूषण ठंडी हवा भी इसके कारण हो सकते हैं शारीरिक गतिविधियां, एलर्जिक रिएक्शन और कुछ भोज्य पदार्थों के कारण होता है। इसके अलावा अधिक तनाव और भावनात्मक रूप से कमजोर होने के कारण भी यह बीमारी हो जाती है। पेय पदार्थों जैसे बीयर, वाइन खाद्य पदार्थों जैसे सूखे मेवे भी इस बीमारी का कारण हो सकते हैं

शहद -

अस्थमा के लक्षणों को कम करने में शहद काफी प्रभावी होता है। इसका उपयोग करने से खांसी, जुकाम और गले में खराश जैसी समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है। इसका इस्तेमाल करने के लिए आप एक गिलास गुनगुने
पानी में एक चम्मच शहद मिलाकर इसे घूंट-घूंट करके पिएं। दिन में दो से तीन बार इसका सेवन करने से आपको जल्द आराम मिल सकता है।
श्वास संबंधी समस्याओं को दूर करने में शहद सबसे पुराना और प्राकृतिक उपचार है। इसके लिए एक गिलास गर्म पानी लेकर उसमें एक चम्मच शहद मिलाकर उसका धीरे−धीरे सेवन करें। इसके अतिरिक्त रात में सोने से पहले भी एक चम्मच शहद में थोड़ा सा दालचीनी पाउडर मिलाकर उसे चाट लें।

अदरक-

अदरक में एंटीऑक्सीडेंट्स और एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह खांसी, गले में खराश और दर्द को दूर करने में मदद कर सकता है। इसके लिए आप अदरक की चाय का सेवन कर सकते हैं। इसके अलावा, आप अदरक के टुकड़े को चबा करके भी खा सकते हैं।

कॉफी

आपको शायद जानकर हैरानी हो लेकिन कॉफी भी अस्थमा से राहत दिलाने का एक आसान लेकिन कारगर उपाय है। इसके लिए आप एक कप गर्मागर्म कॉफी का सेवन करें। इससे आपको तुरंत अस्थमा से राहत मिलती है। दरअसल, यह तुरंत वायुमार्ग को खोलता है, जिससे आपको सांस लेने में आसानी होती है।

हल्दी

एक गिलास पानी में एक चौथाई चम्मच हल्दी मिलाकर उसका सेवन करें। करीबन पंद्रह दिनों तक इस उपचार को दिन में तीन बार करें। हल्दी एक बेहतरीन एंटीमाइक्रोबॉयल एजेंट है। साथ ही इसमें कर्क्युमिन भी पाया जाता है, जो अस्थमा से लड़ने में मददगार है।

अदरक और हल्दी-

अदरक और हल्दी को औषधिय गुणों का भंडार माना जाता है। इसका इस्तेमाल कर आप आसानी से अस्थमा को काफी हद तक कंट्रोल कर सकते हैं। इसके लिए एक गिलास दूध में थोड़ी सी अदरक कद्दूकस करके उबाल लें। इसके साथ ही इसमें आधा चम्मच हल्दी पाउडर या थोड़ी कच्ची अदरक कद्दूकस करके डाल लें। इसके बाद इसका सेवन करे। आयुर्वेद के अनुसार दिन में 2 बार इसका सेवन करने से आपको अस्थमा अटैक से काफी लाभ मिलेगा।

लहसुन

लहसुन में एंटी इंफ्लामेट्री गुण पाए जाते हैं जो अस्थमा की समस्या को कम करने में कारगर होता है। इसे इस्तेमाल करने के लिए आधा कप अदरक वाली चाय में 2-3 लहसुन की कली पीसकर डाल लें। इसके बाद इसका सेवन करे।जाना।
इसके अलावा कुछ व्यक्तियों में एक्सरसाइज के दौरान अस्थमा (दमा)के लक्षण अधिक दिखाई देते हैं और ठंडी या शुष्क हवा में यह लक्षण अधिक गंभीर हो जाते हैं।
फैक्ट्रियों में काम करने वाले लोगों में धूल, गैस, धुआं और रसायनों के कारण अस्थमा के लक्षण अधिक बढ़ जाते हैं।

तेज पत्ता

तेज पत्ता अस्थमा की समस्या को कम करने में काफी फायदेमंद हो सकता है। इसके लिए आधा चम्मच तेज पत्ता पाउडर में एक चौथाई चम्मच पिपली और एक चम्मच शहद मिलाकर दिन में कीन बार इसका सेवन करे। यह क्रोनिक अस्थमा में कारगर साबित हो सकता है।

दालचीनी

दालचीनी में कैल्शियम, मैग्नीशियम आयरन एवं प्रोटीन जैसे गुणकारी तत्व पाए जाते हैं जो अस्थमा के मरीजों के लिए काफी कागर है। इसके साथ ही इसका सेवन शहद के साथ करने से इसके लाभ दोगुना बढ़ जाते हैं। रात को सोने से पहले एक कप गर्म पानी में एक चम्मच दालचीनी पाउडर, एक चौथाई चम्मच त्रिकटु चूर्ण और 1 चम्मच शहद मिलाकर इसका सेवन करें। आप चाहे तो दिन में 2 बार इसका सेवन कर सकते हैं।
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