19.12.19

खाने के बाद 30-40 मिनट पैदल चलने से मोटापा और हार्ट रोग रहेंगे दूर


पैदल चलना (Walking) अपने आप में एक बेहतरीन एक्सरसाइज है। सुबह से लेकर रात तक जब भी समय और मौका मिले, आपको पैदल जरूर चलना चाहिए। रेगुलर वॉक करने से आप न सिर्फ शारीरिक रूप से फिट रहते हैं, बल्कि शरीर की कई बीमारियों की भी 'टाटा बाय-बाय' कह सकते हैं। जी हां, शायद आपको जानकर हैरानी होगी कि सिर्फ 3 मिनट पैदल चलकर आप अपना बढ़ा हुआ ब्लड प्रेशर कंट्रोल कर सकते हैं। इसी तरह 5 मिनट पैदल चलकर आप अपने खराब मूड को ठीक कर सकते हैं।
दरअसल प्रकृति ने आपका शरीर आराम करने के लिए नहीं बनाया गया है। अगर आप दिन भर एक ही जगह बैठे-बैठे या लेटे हुए गुजार देते हैं, तो आपका शरीर कई तरह की बीमारियों का शिकार बनता जाता है। इसलिए अपने बॉडी पार्ट्स को मूव करते रहना और थोड़ा-बहुत काम करते रहना बेहद जरूरी है। अगर आप जिम जाकर वर्कआउट नहीं कर सकते हैं, सुबह उठकर पार्क में एक्सरसाइज नहीं कर सकते हैं, घर में योगासन भी नहीं कर सकते हैं, तो कम से कम आपको पैदल तो चलना ही चाहिए। आइए आपको बताते हैं दिन में थोड़ा-थोड़ा पैदल चलना आपके लिए कैसे फायदेमंद साबित होता है।
10 मिनट चलकर घटा सकते हैं ब्लड प्रेशर

शोध बताते हैं कि अगर आप हाइपरटेंशन (हाई ब्लड प्रेशर) के शिकार हैं, तो दिन में 3-4 बार 10 मिनट तेज गति से पैदल चलने से आपका ब्लड प्रेशर कंट्रोल हो सकता है। ये ऐसे लोगों के लिए बहुत फायदेमंद है, जो काफी बिजी रहते हैं। ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करना इसलिए जरूरी है क्योंकि इसके कारण आपको हार्ट अटैक, किडनी फेल्योर और स्ट्रोक आदि गंभीर स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है।
5 मिनट पैदल चलने से आपका बिगड़ा मूड सही हो जाता है
इस बात को आपने भी महसूस किया होगा कि जब आप बहुत अधिक टेंशन में हों, तो उठकर थोड़ी दूर पैदल चलने से आपकी टेंशन कम हो जाती है। दरअसल पैदल चलना आपके मूड को सही करता है। जब भी आपका मूड थोड़ा खराब हो, कमरे से बाहर निकलें और 5-7 मिनट चीजों-लोगों को देखते हुए पैदल चलें। इससे आपका मूड तुरंत सही हो जाएगा और तनाव भी कम होगा। शोध बताता है कि जो लोग ऑफिस में देर तक बैठकर काम करते हैं, वो अगर अपनी सीट से उठकर हर 1-2 घंटे में 5 मिनट पैदल चलें, तो उनकी प्रोडक्टिविटी बढ़ती है।
5-10 मिनट पैदल चलने से बढ़ती है आपकी क्रिएटिविटी

अगर आप कोई क्रिएटिव आइडिया खोज रहे हैं या कोई समस्या सुलझा रहे हैं, जो आपको काफी देर से उलझाए हुए है, तो 5 मिनट पैदल चलें और आप पाएंगे कि आप ज्यादा बेहतर सोच पा रहे हैं। जी हां, रिसर्च बताती है कि पैदल चलने से आपकी क्रिएटिविटी बेहतर होती है और आप ज्यादा बेहतर सोच सकते हैं।
रात के खाने के बाद 15 मिनट पैदल चलें, कंट्रोल होगा ब्लड शुगर
रात के खाने के बाद आपको तुरंत लेटना या बैठना नहीं चाहिए। खाने के बाद 15 मिनट पैदल चलने से आप अपने ब्लड शुगर को बढ़ने से रोक सकते हैं। जी हां, अमेरिकन डायबिटीज सेंटर के डायबिटीज केयर नाम के जर्नल में छपे अध्ययन के अनुसार आप रात के खाने के बाद सिर्फ 15 मिनट पैदल चलकर, दिनभर अपना ब्लड शुगर कंट्रोल रख सकते हैं।
खाने के बाद 30-40 मिनट पैदल चलने से मोटापा और हार्ट रोग रहेंगे दूर
रोजाना खाना खाने के बाद अगर आप सिर्फ 30 मिनट पैदल चलते हैं, तो इससे आपका मोटापा कम होता है और शरीर में जमा अतिरिक्त चर्बी घटती है। इसके अलावा अगर आप खाने के बाद 40 मिनट पैदल चलते हैं, तो आप कार्डियोवस्कुलर बीमारियों (हार्ट अटैक, कार्डियक अरेस्ट और स्ट्रोक आदि) के खतरे को कम कर सकते हैं।
अध्ययन से पता चलता है कि सुबह की गई नियमित सैर जोड़ों के दर्द और अकड़न से निजात दिला सकती है । सुबह की सैर हड्डियों के साथ-साथ मांसपेशियों की क्षमता को भी बढ़ाती हैं। ऑस्टियोपोरोसिस के मरीजों के लिए सुबह की सैर फायदा पहुंचा सकती है। इसके अलावा, कुछ अध्ययन बताते हैं कि रजोनिवृत्ति के बाद जो महिलाएं रोजाना एक मील चलती हैं, उनमें हड्डियों का घनत्व रोजाना कम चलने वाली महिलाओं की तुलना में अधिक रहता है।
डिप्रेशन से मुक्ति
इस समय की सबसे बड़ी बीमारियों में डिप्रेशन को गिना जाता है। यह कई मानसिक व शारीरिक रोगों का कारण बन सकता है और सबसे घातक परिणाम मृत्य भी हो सकता है। यह एक धातक विकार है, लेकिन अच्छी खबर यह है कि अगर आप सुबह भ्रमण पर निकलते हैं, तो आप तनाव मुक्त हो सकते हैं। सुबह की ताजगी भरी सैर मन-मस्तिष्क को शांत करने में मदद करेगी।
शोध में पता चलता है कि अगर तनाव से ग्रसित इंसान रोज 20 से 40 मिनट की सैर करे, तो वो अपने तनाव का स्तर कम कर सकता है। इसलिए, डिप्रेशन से मुक्त होने के लिए आप रोजाना नियमित सुबह की सैर कर सकते हैं
हृदय स्वास्थ्य
मॉर्निंग वॉक का सबसे बड़ा फायदा हृदय का ध्यान रखना भी है। सुबह की नियमित सैर आपको मजबूत बनाती है, जिससे आपको हृदय से जुड़े रोगों से लड़ने में मदद मिलती है। हृदय की बीमारी से जूझ रहे मरीजों के लिए सुबह की सैर अच्छा विकल्प हो सकता है।
शोध से पता चलता है कि मात्र चलने से हृदय संबंधी जोखिम 31 प्रतिशत और इससे मरने का जोखिम 32 प्रतिशत तक कम हो सकता है। यह लाभ पुरुष और महिलाओं दोनों पर लागू होता है। हृदय स्वास्थ्य को बरकरार रखने के लिए आप रोज सुबह की सैर का आनंद ले सकते हैं

मधुमेह नियंत्रण

Pinit
मधुमेह अनियंत्रित जीवनशैली के कारण होनी वाली आम बीमारियों में से एक है। वहीं, अगर आप सुबह घूमने जाते हैं, तो आप इस समस्या को कुछ हद तक कम कर सकते हैं। शोध के अनुसार, सुबह 30 मिनट की सैर ब्लड शुगर को नियंत्रित करने के साथ-साथ टाइप-2 डायबिटीज से निजात दिलाने में मदद कर सकती है (5)।
 कैंसर से बचाव
विशेषज्ञों का मानना है कि कैंसर का खतरा सुस्त और व्यस्त जीवनशैली की वजह से भी हो सकता है। ऐसे में सुबह की सैर कई तरह के कैंसर को दूर रखने में मदद करती है। सुबह की ताजगी भरी सैर आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने का काम करती, जिससे कैंसर से लड़ने में मदद मिलती है।
यहां हम यह नहीं कर रहे हैं कि मॉर्निंग वॉक कैंसर का सटीक इलाज है, लेकिन यह कैंसर की आशंका को कम कर सकती है। शोध बताते हैं कि सुबह की सैर स्तन, किडनी, ओवेरियन और सर्वाइकल से जुड़े कैंसर से लड़ने में मदद कर सकती है|
बढ़ती है मस्तिष्क की कार्यक्षमता
मस्तिष्क की कार्यप्रणाली के लिए भी सुबह की सैर जरूरी है। नियमित व्यायाम जैसे मॉर्निंग वॉक आपकी याददाश्त को बढ़ा सकता है और मस्तिष्क की कार्यक्षमता को बेहतर कर सकता है (9)। जब आप चलते हैं, तो मस्तिष्क को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती है और रक्त की आपूर्ति (Supply) में तेजी आती है, जिससे याददाश्त मजबूत होती है |
 वजन घटाने में मदद
अनियंत्रित खान-पान और खराब जीवनशैली मोटापे का सबसे बड़ा कारण है। जब हम बिना शारीरिक परिश्रम के किसी भी वक्त भोजन का सेवन करने लग जाते हैं, तो इससे शरीर का वजन बढ़ने लगता है। बाद में यही मोटापा कई बीमारियों का कारण बन सकता है। अगर आप इसे कम करना चाहते हैं, तो रोजाना नियमित रूप से मॉर्निंग वॉक करें। प्रतिदिन 30-40 मिनट की सैर आपकी अतिरिक्त कैलोरी को कम करने में मदद करेगी।
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18.12.19

यात्रा के दौरान मितली उल्टी आने के उपाय व उपचार




बस या कार में यात्रा करते हुए जी मचलना या उल्टी आना, ऐसी परेशानी बहुत लोगों को होती है. असल में ऐसा मस्तिष्क के जबरदस्त हुनर के चलते होता है.
हममें से कई लोग यात्रा के दौरान होने वाली मतली या उल्टी के कारण, बस में या कार में सफर करना अवॉयड करते हैं। मोशन सिकनेस बीमारी (Motion sickness)(यात्रा संबंधी मतली) एक ऐसी स्थिति है जिसमें आँखों के द्वारा मूवमेंट को भापना और वेस्टिबुलर सिस्टम की मूवमेंट की भावना के बीच के अंतर के कारण होता है। इसके कई कारण हो सकते हैं जिनके बारे में हम आमतौर पर ध्यान नहीं देते। यात्रा के दौरान उल्टी को कार सिकनेस (बीमारी), सिमुलेशन सिकनेस या एयर सिकनेस के रूप में भी समझा जा सकता है।
बस, कार, विमान या पानी के जहाज में यात्रा करने के दौरान शरीर और मस्तिष्क के बीच एक असमंजस की स्थिति बन जाती है. कार्डिफ यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट डॉक्टर डिएन बर्नेट के मुताबिक यात्रा के दौरान दिमाग को ऐसा लगता है जैसे शरीर में जहर फैल रहा है. जान बचाने के लिए मस्तिष्क हरकत में आता है. जी मचलने लगता है और उल्टी सी आने लगती है. इस तरह दिमाग शरीर से विषैले तत्वों को बाहर करने की कोशिश करता है.
चक्कर आना, थकान और मतली, मोशन सिकनेस के सबसे आम लक्षण हैं। सोपाइट सिंड्रोम (Sopite syndrome), जिसमें एक व्यक्ति थकान या थकावट महसूस करता है, मोशन सिकनेस से भी जुड़ा हुआ है। ग्रीक में “मतली”(nausea) का अर्थ सी-सिकनेस (See-sick syndrome) है। अगर मतली पैदा करने वाली गति का समाधान नहीं होता है, तो पीड़ित को आमतौर पर उल्टी हो जाएगी। उल्टी से अक्सर कमजोरी और मतली की भावना से छुटकारा नहीं मिलता है, जिसका मतलब है कि जब तक मतली का इलाज नहीं किया जाता है तब तक व्यक्ति को उल्टियां आती रहेगी।
मोशन सिकनेस आमतौर पर पेट के खराब होने का कारण बनती है। इसके अन्य लक्षणों में ठंडा पसीना और चक्कर आना शामिल है। मोशन सिकनेस वाले व्यक्ति को सिरदर्द, और पीले पड़ने की शिकायत हो सकती है। मोशन सिकनेस के परिणामस्वरूप निम्न लक्षणों का अनुभव करना भी आम है:
यात्रा सम्बन्धी मतली के गंभीर लक्षणों में शामिल हैं:
हल्की बेचैनी
उबासी लेना
पसीना आना
असुविधा की एक सामान्य भावना
अच्छी तरह से महसूस नहीं करना (malaise)
हल्की सांस लेना (सांस की कमी)
सिर चकराना
जी मिचलाना
उल्टी
पीलापन
उनींदापन
सरदर्द
किसी को भी यात्रा के दौरान उल्टी (मोशन सिकनेस) हो सकती है, लेकिन यह बच्चों और गर्भवती महिलाओं में सबसे आम है। यह संक्रामक नहीं है।
2 से 12 वर्ष की उम्र के बच्चों को मोशन सिकनेस से ग्रस्त होने की सबसे अधिक संभावना है। गर्भवती महिलाओं को भी इसका सामना करने की संभावना अधिक होती है।
आपकी इंद्रियों के बीच में संघर्ष होने पर आपको मोशन सिकनेस की बीमारी होती है। मान लें कि आप मेले में एक झूले पर हैं, और यह आपको चारों ओर और ऊपर घुमाया जा रहा है। आपकी आंखें एक चीज को देखती हैं, आपकी मांसपेशियों को कुछ और महसूस होता है, और आपके कान के भीतर कुछ और समझ आता है।
आपका दिमाग उन मिश्रित संकेतों को एक साथ नहीं ले सकता है। यही कारण है कि आप को चक्कर आना और बीमार महसूस होने जैसा लगता है।
सफर के दौरान उल्टियां होने पर (मोशन सिकनेस) अधिकांश मामले में आप खुद इलाज कर सकते हैं।
बहुत गंभीर मामले, और जो प्रगतिशील रूप से बदतर हो जाते हैं, जैसे कान में असंतुलन और तंत्रिका तंत्र की बीमारियों में, अपने चिकित्सक से जाकर मिले।
मोशन सिकनेस का निदान करने में मदद के लिए, डॉक्टर आपके लक्षणों के बारे में पूछेगा और पता लगाएगा कि आम तौर पर समस्या का कारण क्या होता है (जैसे नाव में सवारी करना, विमान में उड़ना, या कार में सफर करना और गाड़ी चलाना)।
मोशन सिकनेस के लक्षण आमतौर पर तब बंद हो जाते हैं जब आप रुक जाते हैं। लेकिन यह हमेशा सच नहीं है। ऐसे लोग हैं जो यात्रा खत्म होने के कुछ दिनों बाद भी लक्षण से पीड़ित रहते हैं। अतीत में यात्रा के दौरान उल्टी (मोशन सिकनेस) वाले ज्यादातर लोग अपने डॉक्टर से पूछते हैं कि अगली बार सफर के दौरान उल्टियां होने पर क्या करें और कैसे रोकें। निम्नलिखित उपचार आपकी यात्रा के दौरान उल्टी और मतली ठीक करने में मदद कर सकते हैं:
एक्यूप्रेशर में सुइयों को डालने के बजाये उंगली के दबाव से मतली में राहत मिलती है। कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि एक्यूप्रेशर एक्यूपंक्चर के समान मोशन सिकनेस के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है।
सफर के दौरान उल्टियां होने पर ताजा, ठंडी हवा भी मोशन सिकनेस में थोड़ी राहत दे सकती है। यदि आप कार, बस, ट्रेन में सफर कर रहें हैं तो खिड़की से ताजी हवा ले सकते हैं।
च्यूइंग गम मोशन सिकनेस को कम करने का एक आसान तरीका है। सफर के दौरान उल्टियां होने पर सामान्य और हल्की कार सिकनेस से मुक्त होने के लिए यह एक सरल विधि है। च्यूइंग गम या लौंग या इलायची चबाने से कार में वोमिटिंग के हल्के प्रभाव से छुटकारा पाने में मदद मिलती है।
यात्रा के दौरान उल्टी रोकने के लिए एक आम सुझाव है कि चलती गाड़ी की खिड़की से बाहर यात्रा की दिशा में क्षितिज (सामने की तरफ) की ओर देखे। यह गति की द्रश्य में नयापन लाकर आपके संतुलन की भावना को फिर से चालू करने में मदद करता है।
यात्रा या हवाई यात्रा के दौरान उल्टी रोकने के लिए जहाज में, आंखों को बंद करना उपयोगी होता है, इसलिए यदि संभव होतो झपकी लें। यह आंखों और आंतरिक कान के बीच के इनपुट संघर्ष को हल करता है।
एक बार यात्रा खत्म होने के बाद मोशन सिकनेस बीमारी आमतौर पर दूर हो जाती है। लेकिन अगर आप को अभी भी चक्कर आ रहे हैं, सिरदर्द है, उल्टी, सुनने में कमी या छाती में दर्द है, तो अपने डॉक्टर से मिले।
यात्रा के दौरान मितली होने पर, यात्रा के दौरान आप कहां बैठते हैं इससे भी फर्क पड़ता है। कार की आगे की सीट, ट्रेन-बस में खिड़की वाली सीट, नाव में ऊपरी डेक या विमान में विंग सीट आपको यात्रा के दौरान उल्टी के बिना एक आसान सवारी का मजा दे सकती है। यात्रा करते वक्त खिड़की के बहार दाए और बाए दिशा में देखें। वाहन में कुछ पढ़ने या देखने की कोशिश ना करें, और यात्रा के पहले भारी भोजन, शराब और अन्य सॉफ्ट ड्रिंक्स से बचें। इसके अलावा यात्रा के दौरान उल्टी से बचने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पियें।
यात्रा में उल्टी- घबराहट से बचने के घरेलू उपाय
अदरक:
अदरक में ऐंटीमैनिक गुण होते हैं। एंटीमैनिक एक ऐसा पदार्थ है जो उल्टी और चक्कर आने से बचाता है। सफर के दौरान जी मिचलाने पर अदरक की गोलियां या फिर अदरक की चाय का सेवन करें। इससे आपको उल्टी नहीं आएगी। अगर हो सके तो अदरक अपने साथ ही रखें। अगर घबराहट हो तो इसे थोड़ा-थोड़ा खाते रहें।
प्याज का रस
सफर में होने वाली उल्टियों से बचने के लिए सफर पर जाने से आधे घंटे पहले 1 चम्मच प्याज के रस में 1 चम्मच अदरक के रस को मिलाकर लेना चाहिए। इससे आपको सफर के दौरान उल्टियां नहीं आएंगी। लेकिन अगर सफर लंबा है तो यह रस साथ में बनाकर भी रख सकते हैं।
लौंग
सफर के दौरान जैसे ही आपको लगे कि जी मिचलाने लगा है तो आपको तुरंत ही अपने मुंह में लौंग रखकर चूसनी चाहिए। ऐसा करने से आपका जी मिचलाना बंद हो जाएगा।लौंग को भूनकर इसे पीस लें और किसी डिब्बी में भरकर रख लें। जब भी सफर में जाएं या उल्टी जैसा मन हो तो इसे सिर्फ एक चुटकी मात्रा में चीनी या काले नमक के साथ लें और चूसें।
रुमाल में पुदीना रख लें
पुदीना पेट की मांसपेशियों को आराम देता है और इस तरह चक्कर आने और यात्रा के दौरान तबीयत खराब लगने की स्थिति को भी खत्म करता है। पुदीने का तेल भी उल्टियों को रोकने में बेहद मददगार है। इसके लिए रुमाल पर पुदीने के तेल की कुछ बूंदे छिड़कें और सफर के दौरान उसे सूंघते रहें। सूखे पुदीने के पत्तों को गर्म पानी में मिलाकर खुद के लिए पुदीने की चाय बनाएं। इस मिश्रण को अच्छे से मिलाएं और इसमें 1 चम्मच शहद मिलाएं। कहीं निकलने से पहले इस मिश्रण को पिएं।
नींबू
नींबू में मौजूद सिट्रिक ऐसिड उलटी और जी मिचलाने की समस्या को रोकते हैं। एक छोटे कप में गर्म पानी लें और उसमें 1 नींबू का रस व थोड़ा सा नमक मिलाएं। इसे अच्छे से मिलाकर पिएं। आप नींबू के रस को गर्म पानी में मिलाकर या शहद डालकर भी पी सकते हैं। यात्रा के दौरान होने वाली परेशानियों को दूर करने का यह एक कारगर इलाज है।






9.12.19

सर्दी के मौसम के फलों से तंदुरुस्ती बढ़ाएँ



 सभी मौसम के सीजनल फलों का सेवन करना स्‍वास्‍थ्‍य के लिए बेहद फायदेमंद होता है। लेकिन क्‍या आप सर्दियों में खाये जाने वाले फल और उनके लाभ जानते हैं? कई बार हम फलों की तासीर जाने बिना ही उनका उपभोग कर लेते हैं जिससे हम सर्दी और खांसी की तरह ही अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं का शिकार हो सकते हैं। जबकि ठंडी के मौसम में हमें गर्म तासीर वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। वैसे तो सर्दियों के मौसम में ही सबसे ज्‍यादा फल और सब्जियां मिलती हैं। ऐसी स्थिति में यह निश्चित करना मुश्किल होता है कि सर्दियों में क्‍या खाना चाहिए और क्‍या नहीं।
सर्दी के मौसम में हमारे शरीर को विभिन्‍न प्रकार के खनिज पदार्थ और पोषक तत्‍वों की अतिरिक्‍त मात्रा की आवश्‍यकता होती है। हालांकि इस मौसम में अधिक कैलोरी और वसा वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए। सर्दी के सीजन में हमारे शरीर को विटामिन, मिनरल, फोलेट, एंटीऑक्‍सीडेंट और एंटी-बैक्‍टीरियल गुणों से भरपूर खाद्य पदार्थों का पर्याप्‍त सेवन करना चाहिए। इन पोषक तत्‍वों को प्राप्‍त करने के लिए आपको सर्दियों में मिलने वाले लगभग सभी प्रकार के फलों का सेवन करना चाहिए। इन फलों को सेवन करने का फायदा वजन घटाने, मधुमेह को रोकने, कैंसर की रोकथाम करने, त्‍वचा सौंदर्य और बालों के लिए भी होता है। ये सभी फल हमें सर्दी के दौरान होने वाली समस्‍याओं से लड़ने की शक्ति देते हैं और शरीर की ऊर्जा को बढ़ाने में मदद करते हैं।
सामान्‍य रूप से सर्दियों में खाये जाने वाले फलों के लिए कोई निश्चित समय निर्धारित नहीं किया गया है। इसका मतलब यह है कि आप अपनी सुविधा के अनुसार इन्‍हें कभी भी खा सकते हैं। लेकिन जानकारों का मानना है कि सुबह के नाश्‍ते के समय और दोपहर के भोजन के कुछ समय पहले इनका सेवन करना अच्‍छा होता है। खाली पेट फलों का सेवन अधिक लाभकारी माना जाता है। इसलिए भोजन करने के बाद फलों का सेवन करने से बचना चाहिए।
ठंडी के मौसम में फल खाने का सबसे अच्‍छा समय भोजन करने के लगभग 15 से 20 मिनिट पहले या भोजन करने के लगभग 1 से 2 घंटे बाद होता है। ऐसा करने पर इन्‍हें पचाने में आसानी होती है साथ ही इनके पूरे पोषक तत्‍वों और खनिज पदार्थों का उपयोग किया जा सकता है। सर्दियों के मौसम में खाये जाने वाले फलों को रात के समय खाने से बचना चाहिए।
फल तो हमें हर मौसम में प्राप्‍त होते हैं जो हमारे शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद होते हैं। लेकिन सर्दियों में कुछ विशेष फलों का सेवन करना हमारे स्‍वास्‍थ्‍य के बहुत ही लाभकारी हो सकता है। आइए जाने सर्दियों में कौन-कौन से फलों का सेवन करना चाहिए।


खजूर



खजूर एक छोटा और अनोखा फल है जिसके बहुत से फायदे होते हैं। इस अद्भुद फल में कई प्रकार के विटामिन और खनिज पदार्थों की उच्‍च मात्रा होती है। जिसके कारण सर्दियों में मौसम में विशेष रूप से खजूर का सेवन किया जाता है। खजूर में आयरन और कैल्सियम की उच्‍च मात्रा एनीमिया के उपचार में मदद कर सकती है। साथ ही उन लोगों के लिए भी खजूर फायदेमंद होता है जिनकी हड्डियों भंगुर या हड्डी का घनत्‍व कम होता है।
ठंडी में खजूर खाने का सबसे बड़ा फायदा इसमें मौजूद फाइबर के कारण होता है। जो कि आपकी पाचन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने में प्रभावी होता है। यदि आप सर्दी के मौसम में कब्‍ज से परेशान हैं तो खजूर आपके लिए सबसे अच्‍छे घरेलू उपाय साबित हो सकते हैं।

पपीता


अक्‍सर बीमार होने पर डॉक्‍टर हमें पपीता का सेवन करने की सलाह देते हैं। क्‍योंकि पपीता में ऐसे पोषक तत्‍व और खनिज पदार्थ होते हैं जो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करते हैं। हालांकि पपीता साल के 12 महिने बाजार में उपलब्‍ध होता है। लेकिन सर्दी के मौसम में पपीता खाना अधिक फायदेमंद होता है। क्‍योंकि पपीता में न केवल विटामिन सी बल्कि विटामिन बी की भी अच्‍छी मात्रा होती है। इसके अलावा इसमें बहुत से एंटीऑक्‍सीडेंट और खजिन पदार्थ भी होते हैं। जिनमें हृदय और पाचन संबंधी समस्‍याओं को रोकने की क्षमता होती है। इसलिए आप पपीता को न केवल सर्दी में बल्कि पूरे साल तक उपभोग कर सकते हैं।

नाशपाती

सर्दियों के सीजन में इम्‍यूनिटी पावर को बेहतर बनाना सरल होता है, क्योंकि इस समय हमारा डायजेशन सिस्‍टम ज्यादा अच्‍छे से काम करता है। सर्दी के मौसम में आप अपने आहार में नाशपाती को भी शामिल कर सकते हैं। ठंड के सीजन में यदि आप अपनी और अपने बच्‍चों की सुरक्षा सर्दी और वायरल फ्लू से करना चाहते हैं तो नाशपाती एक अच्‍छा विकल्‍प है। क्‍योंकि इसमें कई प्रकार के विटामिन, खनिज पदार्थ और अन्‍य पोषक तत्‍व होते हैं। जो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में सहायक होते हैं।

सेब


अक्‍सर सर्दियों के मौसम में फलों की बहार आ जाती है। जिसके कारण बाजार में कई रंगों के फल दखाई देने लगते हैं। सेब भी उन्‍हीं फलों में से एक है। अंग्रेजी में कहा भी जाता है कि ‘’ एन एप्पल अ डे कीप्स द डॉक्टर अवे’’ (An apple a day keeps the doctor away) क्‍योंकि सेब है ही ऐसा अद्भुद फल। सेब में ग्लूकोज के स्तर को हमारे शरीर में कम करने और कैंसर से लड़ने की क्षमता देता है। सर्दियों में सेब का सेवन करने से हमारे सारे सिस्टम को डिटोक्सिंग करने में मदद मिलती है। आप भी सर्दियों में खाये जाने वाले फलों की सूची में सेब को शामिल कर सकते हैं।



ठंडी के मौसम अक्‍सर आवला न खाने की सलाह दी जाती है। कारण कि इसका सेवन करने से सर्दी हो सकती है। लेकिन लोगों को शायद पता नहीं है कि आंवला में रोग प्रतिरक्षा शक्ति को बढ़ाने की क्षमता होती है। आंवला में विटामिन ए, सी और बहुत से खनिज पदार्थ उच्‍च मात्रा में होते हैं। नियमित आधार पर आंवला का सेवन करने से रक्‍त शर्करा के स्‍तर को भी नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। आप अपने आहार में आंवले को कई प्रकार से शामिल कर सकते हैं। जैसे आंवले का अचार या आंवले का मुरब्‍बा या कच्‍चे ही आंवले के रूप में।

नींबू


नींबू में विटामिन सी की सबसे अधिक मात्रा होती है। विटामिन सी एक प्रकार का एंटीऑक्‍सीडेंट है जो हमारे शरीर को फ्री रेडिकल्‍स से होने वाले नुकसान से बचाने में मदद करता है। सर्दियों के मौसम में आप अपने आहार के साथ ताजा नींबू के रस का उपयोग कर सकते हैं। यह आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकता है।

संतरा


ठंडी के मौसम में खाये जाने वाले फलों में संतरा सबसे प्रमुख है। क्‍योंकि इन दिनों पूरे बाजार में केवल संतरा का सुनेहरा रंग अलग ही दिखाई देता है। ठंड में फ्लू और सर्दी से बचने के लिए आप संतरा का सेवन कर सकते हैं। सभी लोग जानते हैं कि संतरा विटामिन सी के सबसे अच्‍छे स्रोत में से एक है। लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि ऑरेंज में फाइटोकेमिकल्‍स (phytochemicals) भी होते हैं जिनमें कैंसर रोधी (Anti-Cancer) गुण होते हैं। इसके अलावा संतरा में मौजूद अन्‍य पोषक तत्‍व किड़नी संबंधी बीमारियों से लड़ने में भी सहायक होते हैं। अच्‍छी बात यह है कि संतरा आज कल केवल सर्दियों में ही नहीं बल्कि इसके अलावा साल के कुछ महिनों में प्राप्त किये जा सकते हैं। आप अपने शरीर को विभिन्‍न प्रकार की बीमारियों से बचाने और इम्‍यूनिटी बढ़ाने के लिए संतरे का नियमित सेवन कर सकते हैं।

केला


सर्दियों के मौसम में खाये जाने वाले फलों में केला को भी शामिल किया जा सकता है। अधिकांश लोगों का मानना होता है कि ठंडी के मौसम में केला खाने से सर्दी हो सकती है। जबकि इसमें ऐसे पोषक तत्‍व और खनिज पदार्थ होते हैं जो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बए़ाने में मदद कर सकते हैं। आप अपने शरीर स्‍वस्‍थ रखने के लिए सर्दियों के मौसम में केला को नियमित आहार के रूप में जगह दे सकते हैं। यह आपके लिए बेहतरीन आहार साबित हो सकता है।



सर्दी के मौसम में स्‍वस्‍थ रहने का सबसे अच्‍छा घरेलू उपाय अनार का नियमित सेवन करना हो सकता है। अनार में एलैजिक एसिड, एलैजिटानिंस, प्यूनिसिक एसिड, फ्लेनॉयड, एंथोसायनिन जैसे भिन्न-भिन्न प्रकार के सैकड़ों बायोएक्टिव यौगिक पाये जाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए कई मायनों में गुणकारी होते हैं। विभिन्न बीमारियों के इलाज में अनार का उपयोग वर्षों से किया जा रहा है। अनार का उपयोग परजीवी और माइक्रोबियल संक्रमण, डायरिया, अल्सर, रक्तस्राव और श्वसन संबंधी समस्याओं के इलाज में किया जाता है। अनार प्रोबायोटिक बैक्टीरिया को उत्तेजित करता है जिससे यह संक्रमण से लड़ने में सक्षम होता है और बीमारियों से हमें छुटकारा दिलाता है। हालांकि अनार भी ऐसा फल है जो 12 महिने उपलब्‍ध होता है। लेकिन ठंडी में इस फल का नियमित सेवन करने के लाभ बहुत अधिक होते हैं।

शकरकंद

सर्दियों के मौसम में शकरकंद भी पर्याप्‍त मात्रा में मिलता है। हालांकि यह फल न होकर एक कंद है। लेकिन सर्दियों में मौसम में इसका पर्याप्‍त सेवन करना आपको कई स्‍वास्‍थ्‍य लाभ दिला सकता है। शकरकंद में विटामिन ए और विटामिन सी की पर्याप्‍त मात्रा होती है। इसके अलावा शकरकंद की गर्म तासीर हमारे शरीर को सर्दियों के मौसम में गर्म रखने में मदद कर सकती है। यह फाइबर का सबसे अच्‍छा स्रोत होता है जो पाचन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने में सहायक होता है। आप भी इस मौसम में अपने शरीर को स्‍वस्‍थ रखने के लिए शकरकंद का नियमित सेवन कर सकते हैं।

शरीफा या सीताफल

कस्टर्ड एप्पल, जिसे शरीफा या सीताफल के रूप में भी जाना जाता है, एक मीठा फल है, जो दुनिया भर में व्यापक रूप से उगाया जाता है। भारत में इसे आमतौर पर ‘सीताफल’ के रूप में जाना जाता है। यह व्यापक रूप से सर्दियों के मौसम में उपलब्ध होता है और भारत के स्थानीय बाजारों में बेचा जाता है। नियमित रूप से सीताफल का सेवन आपकी त्वचा को प्राकृतिक रूप से सुंदर बनाने में मदद कर सकता है। इस फल में प्रचुर मात्रा में मौजूद विटामिन ए त्वचा को स्वस्थ रखने में मदद करती है।

अमरूद


सर्दियों के मौसम में अमरूद भी बहुत देखने मिलते हैं। पके हुए अमरूद देखकर कोई भी इन्‍हें खाने का मन बना सकता है। लेकिन क्‍या आप अमरूद खाने के फायदे जानते हैं। सर्दियों में अमरूद खाना आपकी सेहत के लिए बहुत ही अच्‍छा माना जाता है। क्‍योंकि अमरूद में फोलेट, फाइबर, विटामिन और कई प्रकार के एंटीऑक्‍सीडेंट भरपूर मात्रा में होते हैं। जिसके कारण सर्दियों में होने वाली बहुत सी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं की रोकथाम करने में अमरूद आपकी मदद कर सकती है।



सिंघाड़ा एक जलीय फल है जिसे वॉटर चेस्‍टनट्स (Water Chestnut) भी कहा जाता है। यह सर्दीयों के मौसम में विशेष रूप से भारतीय बाजारों में मिलता है। सिंघाड़ा के फायदे इसमें उपस्थित पोषक तत्‍वों और स्‍वाद के कारण स्‍वास्‍थ्‍य के लिए बहुत अधिक होते हैं। पानी में पैदा होने वाले फल सिंघाड़ा सर्दियों के मौसम में अक्सर बाजार में देखने को मिलता है। सिघाड़े में साइट्रिक एसिड, कर्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फैट, निकोटेनिक एसिड, रीबोफ्लेविन, थायमाइन, विटामिन्स-ए, सी, मैगनीज तथा फास्फोरस आदि होते हैं। सिंघाड़ा सर्दियों में खाये जाना वाला एक अच्छा फल है।

बेर


ठंड के मौसम में मिलने वाला एक खास और खट्टा-मीठा फल है ‘बेर’। यह फल खाने में जितना स्वादिष्ट होता है, इसके फायदे भी उतने ही अधिक होते है। पकी हुई बेर का नाम सुनते ही आपके मुंह में पानी आना लाजमी है क्‍योंकि यह फल है ही इतना स्‍वादिष्‍ट। बेर खाने के फायदे वजन कम करने, हृदय स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ाने, कैंसर रोकने, रक्‍तचाप नियंत्रित करने, पेट की समस्‍याओं आदि के लिए होते हैं।

18.11.19

ग्रीन टी सेहत के लिए वरदान तुल्य



ग्रीन टी में अधिक मात्रा में पौषक तत्व पाये जाते है जो हमारे शरीर के प्रतिरक्षातन्त्र को ताकतवर बनाते है| इससे हमारा शरीर विभिन्न तरह के रोगों से लड़ने लिये मजबूत हो जाता है, ग्रीन टी को मॉर्निंग ड्रिंक की तरह उपयोग करने के अलावा इसे हम अलग-अलग के तरह घरेलू नुस्खों और सौंदर्य संबंधी नुस्खों में भी इस्तेमाल करते है--आज हम भी आपसे घर पर ग्रीन टी बनाने की विधि बता रहे हैं जिससे आप भी इसे आसानी से बनाकर तैयार कर सकें तो आईये आज हम स्वादिष्ट और पौष्टिक ग्रीन टी (Green Tea) बनायेंगें-सामग्री :-
ग्रीन टी की पत्ती एक चम्मच या 5 ग्राम
पानी डेढ कप पावडर 1-2 चुटकी भर
शकर या शहद एक चम्मच या स्वाद के मुताबिक
ईलायची

विधि :-
ग्रीन टी बनाने के लिये सबसे पहले चाय बनाने की एक तपेली में पानी डालकर गरम करने के लिये गैस पर रखें, जब पानी में उबाल आ जाए तब उबलते हुये पानी में ग्रीन टी पाउडर डालकर गैस बंद दें और तपेली को
एक प्लेट से ढक दें जिससे ग्रीन टी पाउडर फ्लेवर पानी में अच्छी तरह से आ जाये। करीब 2 मिनट के बाद ग्रीन टी को एक छन्नी की सहायता से एक कप में छानकर निकाल लें और अब इस छनी हुई चाय में अपने स्वाद के अनुसार चीनी या फिर शहद और इलाइची पाउडर को डालकर चम्मच से अच्छी तरह मिला लें । स्वादिष्ट और पौष्टिक ग्रीन टी बनकर तैयार गयी है, आप ग्रीन टी को हल्का गुनगुना या फिर ठंडा करके सर्विंग कप में निकालकर सर्व करें। ग्रीन टी एंटी ऑक्सीडेंट की तरह काम करती है|
व्यायाम से भी आपको लग रहा है कि आपका वज़न कम नहीं हो रहा, तो आप दिन में ग्रीन टी पीना शुरू करें। ग्रीन टी में एंटी-ऑक्सीडेंट्स होने की वजह से यह शरीर की चर्बी को खत्म करती है। एक अध्ययन के अनुसार, ग्रीन टी शरीर के वज़न को स्थिर रखती है। ग्रीन टी सिर्फ चर्बी ही कम नहीं होती बल्कि मेटाबॉल्ज़िम भी सुधरता है और पाचक संस्थान की परेशानियां भी खत्म होती हैं। यह मोटापा कम करने के लिये काफी सहायक सिद्ध होती है, इसलिये ग्रीन टी को रोजाना कम से कम एक बार अपनी दिनचर्या में जरूर शामिल करें|
फ्रेश तैयार हरी चाय शरीर के लिए अच्छी और स्वस्थ्य वर्धक होती है। आप इसे या तो गर्म या ठंडा कर के पी सकते हैं, लेकिन इस बात का यकीन हो कि चाय एक घंटे से अधिक समय की पुरानी ना हो। ज्यादा खौलती गर्म चाय गले के कैंसर को आमंत्रित कर सकती है, तो बेहद गर्म चाय भी ना पिएं। यदि आप चाय को लंबे समय के लिए स्टोर कर के रखेंगे तो, इसके एंटीऑक्सीडेंट्स और विटामिन्स खत्म हो जाएँगे| इसके अलावा, इसमें मौजूद जीवाणुरोधी गुण भी समय के साथ कम हो जाते हैं। वास्तव में, अगर चाय अधिक देर के लिये रखी रही तो यह बैक्टीरिया को शरण देना शुरू कर देगी। इसलिये हमेशा ताजी ग्रीन टी ही पिएं|
*ग्रीन टी को भोजन से एक घंटा पहले पीने से वजन कम होता है। इसे पीने से भूख देर से लगती है दरअसल यह हमारी भूख को नियंत्रित करती है। ग्रीन टी को सुबह-सुबह खाली पेट बिल्‍कुल भी नहीं पीनी चाहिये|
दवाई के साथ ग्रीन टी लेना वर्जित है | दवाई को हमेशा पानी के साथ ही लेना चाहिये|
*ग्रीन टी में गुलाब जल मिलाने से इसमें मौजूद एंटी एजिंग और एंटी कार्सिनोजेनिक (कैंसर विरोधी तत्‍व) लाभ डबल हो जाते हैं। और शरीर में जमा अतिरिक्त टॉक्सिन निकल जाते है। इसे बनाने के लिए ग्रीन टी में एक बड़ा चम्‍मच गुलाब जल का मिलाये। 
*ज्यादा  तेज ग्रीन टी में कैफीन और पोलीफिनॉल की मात्रा बहुत अधिक  होती है। ग्रीन टी में इन सब सामग्री से शरीर पर खराब प्रभाव पड़ता है। तेज और कड़वी ग्रीन टी पीने से पेट की खराबी, अनिद्रा और चक्‍कर आने जैसी प्राबलेंम  पैदा हो सकती है|
*ज्यादा  चाय नुक्‍सानदायक हो सकती है। इसी तरह से अगर आप रोजाना 2-3 कप से ज्‍यादा ग्रीन टी पिएंगे तो यह नुक्‍सान करेगी। क्‍योंकि इसमें कैफीन होती है इसलिये तीन कप से ज्‍यादा चाय ना पिएं|
ग्रीन टी सेवन करने के लाभ 
*ग्रीन टी (Green Tea) मृत्यु दर को कम करने में सहायक होती हैं -
*शोध द्वारा ज्ञात हुआ कि ग्रीन टी (Green Tea) पीने वालों को मृत्यु का खतरा अन्य की अपेक्षा कम रहता हैं |*ग्रीन टी (Green Tea) से हृदय रोगियों को राहत मिलती हैं इससे हार्ट अटैक का खतरा कम होता हैं | और आज के समय में हार्ट अटैक से ही अधिक मृत्यु होती हैं जिस पर उम्र का कोई बंधन नहीं रह गया हैं | इस तरह ग्रीन टी मृत्यु दर को कम करती हैं |
ग्रीन टी कैंसर में भी फायदेमंद होती हैं -
*एक शौध के अनुसार ग्रीन टी से ब्रेस्ट कैंसर की बीमारी का खतरा 25 % तक कम होता हैं |यह कैंसर विषाणुओं को मारता हैं और शरीर के लिए आवश्यक तत्व को शरीर में बनाये रखता हैं |
*ग्रीन टी से वजन कम होता हैं :
ग्रीन टी से शरीर का मेटाबोलिज्म बढ़ता हैं जिससे उपापचय की क्रिया संतुलित होती हैं और शरीर का एक्स्ट्रा वसा कम होता हैं | और इससे वजन कम होता हैं और साथ ही उर्जा मिलती हैं |
ग्रीन टी मधुमेह के रोगियों के लिए भी फायदेमंद हैं :ग्रीन टी के सेवन से मधुमेह रोगी के रक्त में शर्करा का स्तर कम होता हैं | मधुमेह रोगी जैसे ही भोजन करता हैं | उसके शर्करा का स्तर बढ़ता हैं इसी लेवल को ग्रीन टी संतुलित करने में सहायक होती हैं |



ग्रीन टी से रक्त का कॉलेस्ट्रोल कम होता हैं :
ग्रीन टी से शरीर का हानिकारक कॉलेस्ट्रोल कम होता हैं और लाभकारी कॉलेस्ट्रोल का लेवल बनाये रखता हैं |ग्रीन टी ब्लडप्रेशर के रोगियों के लिए फायदेमंद हैं :
ग्रीन टी के सेवन से शरीर का ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता हैं क्यूंकि यह कॉलेस्ट्रोल के लेवल को बनाये रखता हैं |अल्जाईमर एवम पार्किन्सन जैसे रोगियों के लिए ग्रीन टी फायदेमंद होती हैं - ग्रीन टी के सेवन से अल्जाईमर एवम पार्किन्सन जैसी बीमारियाँ धीरे-धीरे बढ़ती हैं |ग्रीन टी ब्रेन सेल्स को बचाती हैं |और डैमेज सेल्स को रिकवर करते हैं |

ग्रीन टी दांत के लिए भी फायदेमंद होती हैं -
ग्रीन टी में केफीन होता हैं जो दांतों में लगे कीटाणुओं को मारता हैं, बेक्टेरिया को कम करता हैं | इससे दांत सुरक्षित होते हैं |ग्रीन टी (Green Tea)के सेवन से मानसिक शांति मिलती हैं :
ग्रीन टी (Green Tea)में थेनाइन होता हैं जिससे एमिनो एसिड बनता हैं जो शरीर में ताजगी बनाये रखता हैं इससे थकावट दूर होती हैं और मानसिक शांति मिलती हैं |
ग्रीन टी (Green Tea)से स्किन की केयर होती हैं : ग्रीन टी में एंटीएजिंग तत्व होते हैं जिससे चेहरे की झुर्रियां कम होती हैं | और चेहरे पर चमक और ताजगी बनी रहती हैं |इससे सन बर्न ने भी राहत मिलती हैं | स्किन पर सूर्य की तेज किरणों का प्रभाव नहीं पड़ता |
ग्रीन टी में केफीन की मात्रा अधिक होती हैं अतः इसका अत्यधिक सेवन हानिकारक हो सकता हैं | केफीन की अधिक मात्रा मेटाबोलिज्म बढाती हैं जिससे कई लाभ मिलते हैं जो उपर दिए गये हैं लेकिन अधिक मात्रा में केफीन भी शरीर के लिए गलत हो सकता हैं | खासतौर पर गर्भवती महिला या जो महिलायें गर्भ धारण करना चाहती हैं उनके लिए ग्रीन टी सही नहीं हैं कारण इससे आयरन और फोलिक एसिड कम होता हैं |ग्रीन टी को अदरक, नींबू एवम तुलसी के साथ लेना और भी फायदेमंद होता हैं | ऐसा नहीं हैं कि ग्रीन टी में केफीन होने से इसके सारे गुण अवगुण हो जाए लेकिन किसी भी चीज की अधिकता नुकसान का रूप ले लेती हैं |गर्भावस्था में हरी चाय के फायदे
ग्रीन चाय गर्भावस्था के दौरान शरीर में लौह, कैल्शियम और मैग्नेशियम की मात्रा की पूर्ती करती है।
आमतौर पर रात को सोते समय और भूख लगने पर कैफीन नहीं पीना चाहिये। रात को पीने से यह भूख बढ़ाता है और नींद भी ठीक से नहीं आती लेकिन इसके विपरीत गर्भावस्था के दौरान भी रात में हरी चाय पी सकते हैं, क्योंकि इसमें कैफीन की मात्रा कम होती है।

हाल में हुए शोधों से पता चला है कि हरी चाय बहुत सी कैंसर जैसी भयावह बीमारियों से भी बचाती हैं।
गर्भावस्था के दौरान हरी चाय रोगों से लड़ने का ना सिर्फ एक अच्छा उपाय है बल्कि इसमें सम्भावित रोगों से लड़ने की शक्ति भी है। यानी गर्भावस्था के दौरान होने वाली किसी भी संक्रमित बीमारी से बचाने का काम हरी चाय करती है।
गर्भावस्था के दौरान दांतों और मसूड़ों की कई तरह की समस्याएं हो जाती हैं और कई अध्ययनों के अनुसार दांतों के लिए ग्रीन-टी काफी लाभदायक है।गर्भावस्था के दौरान तरोताजा महसूस करवाने और चुस्त-दुरूस्त रखने में हरी चाय फायदेमंद है|
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17.11.19

रतनजोत के फायदे


    



 

रतनजोत का उपयोग बालों को काला करने के लिए किया जाता है | परन्तु इसका उपयोग मसाले के रूप में भी किया जाता है | रतनजोत को और भी कई नामों से जाना जाता है | जैसे :- लालजड़ी और दामिनी बालछड | अंगेजी भाषा में इस पौधे को onosma भी कहा जाता है | रतनजोत अधिकतर हिमालय के भागों में पाया जाता है | इसका उपयोग आँखों की रौशनी और बालो को काला करने के लिए किया जाता है | तो आइए जानते है कि रतनजोत को कैसे बालों के लिए प्रयोग करें | *सबसे पहले महंदी का पेस्ट बना लें | इसके बाद इस पेस्ट में रतनजोत मिला लें और गर्म कर लें | जब यह गर्म हो जाये तो ठंडा होने के लिए रख दें | जब यह ठंडा हो जाये तो इसे बालों में लगा लें और कम से कम 15 से 20 मिनट के लिए छोड़ दें | इसके बाद पानी से सिर धो लें |
जिस तेल का आप प्रयोग करते है | उस तेल में रतनजोत के थोड़े से टुकड़े डालकर अच्छी तरह से मिलाएं | इसके मिलाने से तेल का रंग सुंदर तो होता है | इस तेल को बालों में लगाने से बाल स्वस्थ और काले हो जाते है | इसके साथ ही साथ इस तेल का प्रयोग करने से मष्तिष्क की ताकत भी बढती है | *रतनजोत को थोडा सा घिस लें | इस घिसे हुए रतनजोत को अपने माथे पे लगायें | इस उपचार को करने से डिप्रेशन नही होता और मानसिक क्षमता बढती है | *रतनजोत को बारीक़ पीस लें | इसे तेल में डाल दें | इस तैयार तेल से अपने शरीर की मालिश करें | ऐसा करने से स्किन का रुखापन दूर हो जाता है 
 
रतनजोत के और भी अन्य उपाय निम्नलिखित है :-  रतनजोत के पौधे की जड़ को पीसकर बारीक कर लें | जिन लोगों को मिर्गी या दौरे पड़ते हों ,उन्हें इस बारीक़ चूर्ण की एक ग्राम की मात्रा को सुबह के समय और शाम के समय खिलाएं | इस उपचार को लगातार करने से मिर्गी और दौरे की समस्या दूर हो जाती है  |यदि आपको स्किन की बीमारी है तो रतनजोत के पौधे की जड़ को पीसकर पावडर बना लें | इस पावडर को रोजाना सुबह और शाम लगभग आधे ग्राम की मात्रा में सेवन करें | इस उपचार को करने से स्किन की प्रोब्लम दूर हो जाती है |
 


 रतनजोत के पौधे की पत्तियों की चाय बनाकर पीने से दिल से जुडी हुई बीमारी नही होती | · रतनजोत की ताज़ी पत्तियों का सेवन करने से खून का शुद्धिकरण होता है | इसके आलावा रतनजोत का उपयोग से स्किन पर होने वाले दाद , खुजली से छुटकारा मिल जाता है | जिसे पथरी की समस्या है , उसे नियमित रूप से रतनजोत के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीना चाहिए | इस उपचार को करने से गुर्दे की पथरी ठीक हो जाती है |
     रतनजोत , एक किलोग्राम सरसों का तेल , मेंहदी के पत्ते , जलभांगर के पत्ते , और आम की गुठलियों को आपस में मिलाकर सरसों के तेल को छोडकर कूट लें | (लेकिन ध्यान रहे कि इन सभी पदार्थों की लगभग 100 – 100 ग्राम की मात्रा ही लेनी है | ) जब यह कूट जाये तो इसे निचोड़ लें | निचोड़ने के बाद इसे सरसों के तेल में इतना उबाल ले कि इसका पानी खत्म हो जाये और केवल तेल बचे | अब इस तेल को छानकर अलग कर लें | इस तरह से यह एक औषधि तैयार है | इस तेल को रोजाना सिर पर लगाने से बाल काले हो जाते है | इस तेल को लगाने के साथ ही साथ कम से कम 250 ग्राम दूध का सेवन करना चाहिए |यह उपचार बेहद कारगर है | · आंवले को पीसकर बारीक़ चूर्ण बना लें | इस चूर्ण में निम्बू का रस और रतनजोत मिलाकर के मिश्रण बनाएं | इस तैयार मिश्रण को बालों में लेप की तरह लगा लें | इस लेप को लगभग १५ से 20 मिनट तक रखें और सिर धो लें | ऐसा करने से बाल काले हो जाते है | आंवला और लौह चूर्ण को आपस में मिलाकर पानी के साथ पीस लें | इसे अपने बालो में लगा लें और कुछ समय बाद सिर धो लें | ऐसा करने से सफेद बाल काले हो जाते है |
  100 ग्राम दही ,100 ग्राम हल्दी , पीसी हुई एक ग्राम काली मिर्च और रतनजोत लें | अब इन सभी को आपस में मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण को सिर में कुछ देर तक लगाकर छोड़ दें और हल्के गर्म पानी से सिर धो लें | इस तरह के उपचार को एक सप्ताह में कम से कम एक बार करें | इससे आपके बालों का झड़ना बंद हो जायेगा और बाल स्वस्थ और काले हो जायेंगे |

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वीर्य जल्दी निकलने की समस्या के उपचार

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वजन कम करने के लिए कितना पानी कैसे पीएं?

आलू से वजन कम करने के तरीके

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सेक्स का महारथी बनाने वाले आयुर्वेदिक नुस्खे

आर्थराइटिस(संधिवात),गठियावात ,सायटिका की तुरंत असर हर्बल औषधि

खीरा ककड़ी खाने के जबर्दस्त फायदे

शाबर मंत्र से रोग निवारण

उड़द की दाल के जबर्दस्त फायदे

किडनी फेल (गुर्दे खराब ) की रामबाण औषधि

किडनी फेल रोगी का डाईट चार्ट और इलाज

प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब रुकावट की कारगर हर्बल औषधि

सिर्फ आपरेशन नहीं ,किडनी की पथरी की १००% सफल हर्बल औषधि

मिश्री के सेहत के लिए कमाल के फायदे

महिलाओं मे कामेच्छा बढ़ाने के उपाय

गिलोय के जबर्दस्त फायदे

कान मे तरह तरह की आवाज आने की बीमारी

छाती मे दर्द Chest Pain के उपचार

सिर्फ आपरेशन नहीं ,किडनी की पथरी की १००% सफल हर्बल औषधि

बाहर निकले पेट को अंदर करने के उपाय

किडनी फेल रोगी का डाईट चार्ट और इलाज

थायरायड समस्या का जड़ से इलाज

तिल्ली बढ़ जाने के आयुर्वेदिक नुस्खे

यौन शक्ति बढ़ाने के अचूक घरेलू उपाय/sex power

 कई बीमारियों से मुक्ति द‍िलाने वाला है गिलोय

किडनी स्टोन के अचूक हर्बल उपचार

स्तनों की कसावट और सुडौल बनाने के उपाय

लीवर रोगों के अचूक हर्बल इलाज

सफ़ेद मूसली के आयुर्वेदिक उपयोग

दामोदर चिकित्सालय शामगढ़ के आशु लाभकारी उत्पाद

तुलसी है कई रोगों मे उपयोगी औषधि

मूत्र चिकित्सा (यूरिन थेरेपी) से रोग निवारण/self urine therapy




परिचय-
मूत्र चिकित्सा Urine therapy  के बारे मे जहा बाइबिल मे जिक्र है वही आयुर्वेद मे इसका विस्तृत विवरण और रोगो का निदान है आयुर्वेद मे 9 प्रकार के मूत्र के बारे मे जिक्र है वर्तमान मे गोमूत्र का प्रचलन बड़ी तेजी से बढने का मुख्य कारण इससे उन रोगो का निदान भी हो रहा है जिनका प्रचलित किसी भी पद्धति मे इलाज नही है ,परन्तु यह लेख स्वमूत्र चिकित्सा के बारे मे और अनुभव के बाद लिखा हुआ है सामान्यतः स्वमूत्र चिकित्सा का सिद्धांत ,प्राकृतिक भोजन मे ही पूर्ण स्वास्थ्य के तत्व होते है के आधार पर है जैसे जैसे शरीर की आयु बढ़ती है वैसे-वैसे शारारिक क्षमता घटने के कारण स्वास्थ्य के मुख्य तत्व मूत्र मे विसर्जित होने लगते है यदि इन्ही तत्वो को पुनः लिया जाए तो शरीर स्वस्थ्य होने लगता है चिकित्सा मे स्वमूत्र का मुख्य तीन प्रकार से प्रयोग किया जाता है
1.बाह्य रूप से -इसमे शरीर पर मालिश इत्यादि है
2.अतः करण रूप से -इसमे स्वमूत्र को पिया जाता है
3.गंध द्वारा- स्वमूत्र की गंध को सुंघकर चिकित्सा की जाती है


स्वमूत्र का प्रयोग -

स्वमूत्र चिकित्सा निम्न छह प्रकार से की जाती है-
1. स्वमूत्र से सारे शरीर की मालिश
2. स्वमूत्रपान
3. केवल स्वमूत्र और पानी के साथ उपवास
4. स्वमूत्र की पट्टी रखना
5. स्वमूत्र के साथ अन्य प्राकृतिक पदार्थों का उपयोग
6. स्वमूत्र को सूर्य किरण देकर

(1) स्वमूत्र से मालिश

बड़े फोड़े, चमड़ी की सूजन, चीरे, जख्म, फफोले और आग के घाव आदि को छोड़कर शेष सभी रोगों के उपचार का आरंभ स्वमूत्र मालिश से करना चाहिए। मालिश के लिए 36 घंटे से सात-आठ दिन का पुराना स्वमूत्र ही अत्यधिक फायदेमंद सिद्ध होता है। पुराना होने पर इसमें अमोनिया नामक द्रव्य बढ़ जाता है। अमोनिया के कारण यह मूत्र शरीर के लाखोंलाख छिद्रों में जल्दी से और ज्यादा परिमाण में दाखिल हो जाता है।
प्रत्येक व्यक्ति को मालिश के लिए प्रतिदिन करीब आधा सेर स्वमूत्र की आवश्यकता होती है। सात बड़ी शीशियों में सात दिन के पुराने स्वमूत्र का संग्रह क्रम में रखा जाए। शीशियों का मुँह हमेशा बन्द रखा जाए, ताकि उसमें कोई भी जीव-जन्तु मरने न पाए। मानव मूत्र कृमिनाशक है। उसमें कीड़े नहीं पड़ते। शीशियाँ इस क्रम में रखी जाएँ, ताकि जो शीशी खाली हो जाए वह भरती जाए। सर्दी की ऋतु में या मनुष्य की प्रकृति के अनुसार रखा हुआ मूत्र थोड़ा गरम भी किया जा सकता है।
 पहले रखे हुए स्वमूत्र में से एक पाव मूत्र एक कटोरी में डालकर तलवे से कमर तक मालिश करके सुखा दें और जो गंदा अंश कटोरी में बचे उसे गिरा दें। फिर एक पाव लेकर कमर से सिर तक मालिश करनी चाहिए। मालिश हलके हाथ से करनी चाहिए, ताकि रोगी या मालिश कराने वाले को कष्ट न हो। हाथ ऊपर-नीचे ले जाना चाहिए। मालिश कितनी देर की जाए यह आवश्यकतानुसार तय किया जा सकता है। अगर मालिश के लिए अपना मूत्र पर्याप्त न हो, तो दूसरे स्वस्थ व्यक्ति का (जो उसी प्रकार का आहार लेता हो) मूत्र ले सकते हैं।
 किसी भी रोग में, स्वमूत्र का प्रयोग मालिश से प्रारंभ किया जाए तो पहले सप्ताह में ही फायदा झलकने लगता है। चार-पाँच दिन की मालिश के बाद शरीर की गरमी बाहर आने लगती है और शरीर पर लाल रंग की सफेद मुँह वाली फुंसियाँ निकल आती हैं। कभी-कभी इनमें खुजली बढ़ जाती है। कभी-कभी खुजलाने से बड़े-बड़े फोड़े निकल आते हैं। लेकिन इससे न तो घबराना चाहिए और न ही उसका बाहरी इलाज ही इलाज करना चाहिए। मूत्र मालिश का क्रम जारी रखना चाहिए। जरा जोर से मालिश कर देने पर वे फुंसियाँ फूट जाएँगी और जहाँ उनमें मूत्र दाखिल हुआ वहाँ वे शांत हो जाएँगी। बड़े फोड़े होने पर गरम मूत्र से दो-तीन बार सेंक कर दें।
 ऐसा इसलिए होता है कि मालिश से शरीर के छिद्रों द्वारा मूत्र जब अन्दर जाता है, तो छोटे-छोटे रोग भागने लगते हैं, जिसकी यह पहली प्रतिक्रिया है। खुलजी, दाद, एक्जिमा आदि तथा शरीर के अन्य सामान्य रोग केवल दस-पन्द्रह दिन की मालिश से दूर होने लगते हैं, किन्तु यदि गंभीर और जीर्ण रोग हों, जिसे सूई लेकर या दवा की पुड़िया खाकर हटाया नहीं जा सका है, उस असाध्य से असाध्य रोग को मिटाने के लिए स्वमूत्र और निर्मल पानी के साथ उपवास करना ही होगा।
 मालिश करने के दो घंटे बाद गुनगुने या ठंडे जल से स्नान करना चाहिए। किसी प्रकार के साबुन का प्रयोग नहीं करना चाहिए। मालिश करने के बाद धूप स्नान लिया जा सकता है। मेहनत भी की जा सकती है। स्वमूत्र चिकित्सा में मूत्र मालिश का एक अद्वितीय महत्वपूर्ण स्थान है। उपवास में यदि नियमित मूत्र मालिश न की गई, तो उपवास का सारा असर जाता रहता है और वह निष्फल सिद्ध होता है।

परिचय

स्वमूत्र चिकित्सा का अर्थ है स्वयं के मूत्र द्वारा विभिन्न बीमारियों का उपचार। इस पद्धति में न तो रोगी की नाड़ी देखने की आवश्यकता है, न एक्स-रे लेने की। न थर्मामीटर लगाना है, न सूई की जरूरत। न दवा और पथ्य का सिरदर्द है और न धन या समय खर्च करने की अनिवार्यता। इसमें स्वमूत्र ही निदानकर्ता, चिकित्सक एवं दवा है। रोगी स्वयं बिना खर्च और बिना किसी परिश्रम के स्वमूत्र सेवन कर रोगमुक्त हो सकता है। स्वमूत्र चिकित्सा के माध्यम से कई असाध्य बीमारियों का उपचार भी संभव है।

इतिहास
स्वमूत्र चिकित्सा का इतिहास काफी पुराना है। भगवान शंकर के डामरतंत्रान्तर्गत शिवाम्बुकल्प की अमरौली मुद्रा का परिचायक एक श्लोक है जिसमें कहा गया है-
शिवाम्बु चामृतं दिव्यं जरारोगविनाशनम्‌।
तदादाय महायोगी कुर्याद्वै निजसाधनम्‌॥1॥
शिवाम्बु दिव्य अमृत है, बुढ़ापे एवं रोग का नाशक है। महायोगी उसका पान करके अपनी साधना करें।
इसी प्रकार दूसरा श्लोक है-
द्वादशाब्दप्रयोगेण जीवेदाचन्द्रतारकम्‌।
बाध्यते नैव सर्पाद्यैर्विषाद्यैर्न विहिंस्यते॥
न दह्येताऽग्निना क्वापि जलं तरति काष्ठवत्‌।2
बारह वर्ष तक शिवाम्बु का सेवन करने वाला चाँद-तारों की तरह दीर्घ अवधि तक जीता है। उसे सर्प आदि विषैले प्राणी पीड़ा नहीं पहुँचाते और न उस पर विष का असर होता है। वह आग से कभी नहीं जलता और पानी पर लकड़ी की तरह तैरने लगता है।
उपलब्ध ग्रंथों में प्राप्त उद्धरणों से यह स्पष्ट है कि आदिकालीन जम्बूदीप में मानव-मूत्र की चिकित्सा पद्धति प्रचलित थी और इसके आचार्य भगवान शंकर थे। कालान्तर में अरण्यांचलों में रहने तथा अपने निरन्तर अन्वेषणों के कारण ऋषि-कुल स्वमूत्र चिकित्सा के बजाय प्राकृतिक चिकित्सा की ओर झुका। 'जल, अग्नि, आकाश, मिट्टी और हवा' के विभिन्न प्रयोग कर उसने रोग से मुक्त होने की नई विधि बनाई। उसमें मूत्र चिकित्सा जैसी चमत्कारिता, पवित्रता तथा उपादेयता का अभाव रहा, इसलिए प्रकृति प्रदत्त जड़ी-बूटियों, खनिज पदार्थों आदि के गुणकारी तत्वों में पंचभूतों की खोज की गई, जिससे 'भेषज चिकित्सा' प्रणाली अविर्भूत हुई, जो आज आयुर्वेद के नाम से जानी जाती है।
भावप्रकाश में स्वमूत्र की चर्चा करते हुए इसे रसायन, निर्दोष और विषघ्न बताया गया है। डामरतन्त्र में प्राप्त उद्धरणों के अनुसार भगवान शंकर ने माता पार्वती को इसकी महिमा समझाई और कहा कि स्वशरीर के लिए स्वमूत्र अमृत है। इसके प्राशन से मनुष्य निरोग, तेजस्वी, बलिष्ठ, कांतिवान, निरापद तथा दीर्घायु को प्राप्त होता है। अथर्ववेद, हठयोगप्रदीपिका, हारीत, वृद्धवाग्भट्ट, योगरत्नाकर, जैन, बौद्ध, ईसाई आदि धर्मों के अनेक ग्रंथों में स्वमूत्र चिकित्सा की चर्चा है।
अघोरपंथी अवधूतों तथा तांत्रिकों की परम्परागत स्वमूत्र प्राशन विधि तथा स्वमूत्र मालिश क्रिया ने स्वमूत्र चिकित्सा को आज तक जीवित रखकर न केवल मानव जाति का उपकार किया है, वरन चिन्तकों के समक्ष यह यक्ष प्रश्न खड़ा कर दिया है कि वे इस चिकित्सा प्रणाली को पुनः प्रतिष्ठित करने की अगुआई करें।
सोलहवीं शताब्दी के सूफी कवियों और एशिया तथा यूरोप के कुछ वैज्ञानिकों ने स्वमूत्र चिकित्सा को लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया, मगर उन्हें सफलता नहीं मिली। मगर इतना निर्विवाद है कि आज भी शीत प्रदेश तथा पीत प्रदेश में रहने वाले लोग बड़ी संख्या में हैं, जो स्वमूत्र प्राशन से अपने को निरोग रखते हुए दीर्घ जीवन जीते हैं।
तिरुवनंतपुरम स्थित गवर्नमेंट आयुर्वेद कॉलेज द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक आयुर्वेदिक नारियल चटाई से लैस कमरों में रहने से कई बीमारियाँ दूर हो जाती हैं। इस शोध के अंतर्गत शोधकर्ताओं ने लोगों को दो समूहों में बाँटा। कुछ लोगों को आयुर्वेदिक तत्वों से युक्त नारियल रेशों से बनी चटाइयों से फिट कमरों में रखा गया, जबकि कुछ को साधारण कमरों में।
कुछ कमरों की आंतरिक दीवारों और फर्श को इन चटाइयों से लैस किया गया, जबकि दूसरे कमरों को इससे वंचित रखा गया। 36 रोगियों पर यह शोध किया गया। 19 रोगियों को आयुर्वेदिक चटाइयों वाले कमरों में रखा गया जबकि शेष को सामान्य कमरों में।
इन चटाइयों को कई तरह के आयुर्वेदिक तत्वों के घोल में डालकर सुखाया गया था। यहाँ तक कि बिस्तर और तकियों को भी कुछ खास तरह की जड़ी-बूटियों के घोल में डुबोकर सुखाया गया। फिर उन पर रोगियों को सोने के लिए कहा गया। दोनों तरह के रोगियों को एक ही तरह की दवाई और भोजन दिया गया। जिन रोगियों को आयुर्वेदिक कमरों में रखा गया, उनमें कई सकारात्मक बदलाव देखे गए।
आयुर्वेद के एक डॉक्टर एन. विश्वनाथन ने दावा किया कि जो रोगी चर्मरोग से ग्रस्त थे और जिन्हें आयुर्वेदिक कमरों में रखा या था, वे गैर-आयुर्वेदिक कमरों में रहने वाले लोगों की तुलना में काफी कम समय में चंगे हो गए। वे इन आयुर्वेदिक कमरों में दो सप्ताह रहने के बाद स्वस्थ हो गए, जबकि सामान्य आहार और दवा लेने वाले दूसरे रोगियों को और 26 दिनों तक स्वस्थ होने के लिए इंतजार करना पड़ा। उनके मुताबिक गठिया, उच्च रक्तचाप आदि जैसी बीमारियों से ग्रस्त लोगों पर यह आयुर्वेदिक तकनीकी अधिक असर दिखाती है।
 अतः करण रूप मे इसका प्रयोग जहा इसको तुरंत विसर्जित वाले का सेवन किया जाता है वही बाह्य रूप मे इसका प्रयोग तुरंत विसर्जित से लेकर 9 दिन तक पुराने वाले का प्रयोग किया जाता है इसमे प्रतिदिन एक बोतल भरतेहुए 9 बोतल भर लेते हैं 10 वे दिन ,पहली दिन वाली बोतल अर्थात 9 दिन पुराने मूत्र से शरीर पर चर्म रोग ,अन्य दर्दों वाले स्थानो पर मालिश लगातार 15-20 दिन की जाए तो चर्म व अन्य रोग दूर हो जाते हैं वही तुरंत विसर्जित वाले मूत्र को आंख,कान दर्द, जैसे अनेक रोगो मे इसकी बूंद डालकर इसका प्रयोग किया जा सकता है 
  यदि बॉल झडते है तब इससे इनको धोया जाए तो उनका झड़ना बंद हो जाता है परहेज के नाम पर मात्र साबुन शेम्पू का प्रयोग नही करना है खाने के नाम पर मात्र सात्विक भोजन करना है ये तो मात्र कुछ उदहारण है मात्र उपरोक्त सरल विधि विधान से स्वमूत्र चिकित्सा द्वारा लगभग सभी रोगों का इलाज है इस पद्धति मे पहले रोग अपने चरम अवस्था मे आकर धीमे-धीमे उसका शमन होने लगता है यदि सामान्य अवस्था मे स्वमूत्र चिकित्सा को किया जाए तो तो शरीर उत्तम स्वास्थ्य को प्राप्त करता जाता है तब स्वमूत्र को जिसे हम सबसे घ्रृणित व त्याज्य मानते है वह तो हमारी सभी रोगो की रामवाण दवा है अर्थात एक अनार( स्वमूत्र),सौ बीमार की दवा है यह स्वमूत्र चिकित्सा मानव के लिए ही नही ,पशुयों के लिए भी उतनी उपयोगी है जितनी मानव के लिए .वैसे दवा दवे(रहस्य) की होती है और प्राण के मूल्य पर ,औषधि का हर रूप स्वीकार होता है तब क्या समाज मे स्वमूत्र का औषधि रूप प्रचलित हो पाएगा ? जिसको कभी हमारे भूतपूर्व प्रधान मंत्री मोरार जी देसाई ने जीवन जल का नाम दिया था अर्थात कलियुग का गंगाजल.
 स्वमूत्र चिकित्सा का अर्थ है स्वयं के मूत्र द्वारा विभिन्न बीमारियों का उपचार। इस पद्धति में न तो रोगी की नाड़ी देखने की आवश्यकता है, न एक्स-रे लेने की। न थर्मामीटर लगाना है, न सूई की जरूरत। न दवा और पथ्य का सिरदर्द है और न धन या समय खर्च करने की अनिवार्यता। इसमें स्वमूत्र ही निदानकर्ता, चिकित्सक एवं दवा है। रोगी स्वयं बिना खर्च और बिना किसी परिश्रम के स्वमूत्र सेवन कर रोगमुक्त हो सकता है।
 स्वमूत्र चिकित्सा के माध्यम से कई असाध्य बीमारियों का उपचार भी संभव है।स्वमूत्र चिकित्सा निम्न छह प्रकार से की जाती है|स्वमूत्र से सारे शरीर की मालिश स्वमूत्रपान,केवल स्वमूत्र और पानी के साथ उपवास,स्वमूत्र की पट्टी रखना,स्वमूत्र के साथ अन्य प्राकृतिक पदार्थों का उपयोग|स्वमूत्र को सूर्य किरण देकर प्रावीष्ठ बड़े फोड़े, चमड़ी की सूजन, चीरे, जख्म, फफोले और आग के घाव आदि को छोड़कर शेष सभी रोगों के उपचार का आरंभ स्वमूत्र मालिश से करना चाहिए। मालिश के लिए 36 घंटे से सात-आठ दिन का पुराना स्वमूत्र ही अत्यधिक फायदेमंद सिद्ध होता है। पुराना होने पर इसमें अमोनिया नामक द्रव्य बढ़ जाता है। अमोनिया के कारण यह मूत्र शरीर के लाखों लाख छिद्रों में जल्दी से और ज्यादा परिमाण में प्रविष्ठ>हो जाता है।
 प्रत्येक व्यक्ति को मालिश के लिए प्रतिदिन करीब आधा लीटर स्वमूत्र की आवश्यकता होती है। सात बड़ी शीशियों में सात दिन के पुराने स्वमूत्र का संग्रह क्रम में रखा जाए। शीशियों का मुँह हमेशा बन्द रखा जाए, ताकि उसमें कोई भी जीव-जन्तु मरने न पाए। मानव मूत्र कृमिनाशक है। उसमें कीड़े नहीं पड़ते। शीशियाँ इस क्रम में रखी जाएँ, ताकि जो शीशी खाली हो जाए वह भरती जाए। सर्दी की ऋतु में या मनुष्य की प्रकृति के अनुसार रखा हुआ मूत्र थोड़ा गरम भी किया जा सकता है।पहले रखे हुए स्वमूत्र में से एक पाव मूत्र एक कटोरी में डालकर तलवे से कमर तक मालिश करके सुखा दें और जो गंदा अंश कटोरी में बचे उसे गिरा दें। फिर एक पाव लेकर कमर से सिर तक मालिश करनी चाहिए। मालिश हलके हाथ से करनी चाहिए, ताकि रोगी या मालिश कराने वाले को कष्ट न हो। हाथ ऊपर-नीचे ले जाना चाहिए। मालिश कितनी देर की जाए यह आवश्यकतानुसार तय किया जा सकता है। अगर मालिश के लिए अपना मूत्र पर्याप्त न हो, तो दूसरे स्वस्थ व्यक्ति का (जो उसी प्रकार का आहार लेता हो) मूत्र ले सकते हैं।सभी रोग में, स्वमूत्र का प्रयोग मालिश से प्रारंभ किया जाए तो पहले सप्ताह में ही फायदा झलकने लगता है।