29.12.18

तुलसी है अनेक रोगों मे उपयोगी पौधा/Tulsi ke fayde

                                             


तुलसी अत्यंत महत्वपूर्ण एवं उपयोगी पौधा है। इसके सभी भाग अलौकिक शक्ति और तत्वों से परिपूर्ण माने गए हैं। तुलसी के पौधे से निकलने वाली सुगंध वातावरण को शुध्द रखने में तो अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती ही है, भारत में आयुर्वेद चिकित्सा पध्दति में भी तुलसी का बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। तुलसी का सदियों में औषधीय रूप में प्रयोग होता चला आ रहा है। तुलसी दल का प्रयोग खांसी, विष, श्वांस, कफ, बात, हिचकी और भोज्य पदार्थों की दुर्गन्ध को दूर करता है। इसके अलावा तुलसी बलवर्ध्दक होती है तथा सिरदर्द स्मरण शक्ति, आंखों में जलन, मुंह में छाले, दमा, ज्वर, पेशाब में जलन व विभिन्न प्रकार के रक्त व हृदय संबंधी बीमारियों को दूर करने में भी सहायक है।

तुलसी में छोटे-छोटे रोगों से लेकर असाध्य रोगों को भी जड़ में खत्म कर देने की अद्भुत क्षमता है। इसके गुणों को जानकर और तुलसी का उचित उपयोग कर हमें अत्यधिक लाभ मिल सकता है। तो लीजिए डाल लेते है 

तुलसी के महत्वपूर्ण औषधीय उपयोगी एवं गुणों पर एक नजरः

श्वेत तुलसी बच्चों के कफ विकार, सर्दी, खांसी इत्यादि में लाभदायक है। कफ निवारणार्थ तुलसी को काली मिर्च पाउडर के साथ लेने से बहुत लाभ होता है। गले में सूजन तथा गले की खराश दूर करने के लिए तुलसी के बीज का सेवन शक्कर के साथ करने से बहुत राहत मिलती। तुलसी के पत्तों को काली मिर्च, सौंठ तथा चीनी के साथ पानी में उबालकर पीने में खांसी, जुकाम, फ्लू और बुखार में फायदा पहुंचता है। पेट में दर्द होने पर तुलसी रस और अदरक का रस समान मात्रा में लेने से दर्द में राहत मिलती है। इसके उपयोग से पाचन क्रिया में भी सुधार होता है। कान के साधारण दर्द में तुलसी की पत्तियों का रस गुनगुना करके डाले। नित्य प्रति तुलसी की पत्तियां चबाकर खाने से रक्त साफ होता है।

चर्म रोग होने पर तुलसी के पत्तों के रस के नींबू के रस में मिलाकर लगाने से फायदा होता है। तुलसी के पत्तों का रस पीने से शरीर में ताकत और स्मरण शक्ति में वृध्दि होती है। प्रसव के समय स्त्रियों को तुलसी के पत्तों का रस देन से प्रसव पीड़ा कम होती है। तुलसी की जड़ का चूर्ण पान में रखकर खिलाने से स्त्रियों का अनावश्यक रक्तस्राव बंद होता है। जहरीले कीड़े या सांप के काटने पर तुलसी की जड़ पीसकर काटे गए स्थान पर लगाने से दर्द में राहत मिलती है। फोड़े फुंसी आदि पर तुलसी के पत्तो का लेप लाभदायक होता है। तुलसी की मंजरी और अजवायन देने से चेचक का प्रभाव कम होता है। सफेद दाग, झाईयां, कील, मुंहासे आदि हो जाने पर तुलसी के रस में समान भाग नींबू का रस मिलाकर 24 घंट तक धूप में रखे। थोड़ा गाढ़ा होने पर चेहरे पर लगाएं। इसके नियमित प्रयोग से झाईयां, काले दाग, कीले आदि नष्ट होकर चेहरा बेदाग हो जाता है।
तुलसी के बीजों का सेवन दूध के साथ करने से पुरुषों में बल, वीर्य और संतोनोत्पति की क्षमता में वृध्दि होती है। तुलसी का प्रयोग मलेरिया बुखार के प्रकोप को भी कम करता है। तुलसी का शर्बत, अबलेह इत्यादि बनाकर पीने से मन शांत रहता है। आलस्य निराशा, कफ, सिरदर्द, जुकाम, खांसी, शरीर की ऐठन, अकड़न इत्यादि बीमारियों को दूर करने के लिए तुलसी की जाय का सेवन करें। क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया कि आपके घर, परिवार या आप पर कोई मुसीबत आने वाली होती है तो उसका असर सबसे पहले आपके घर में स्थित तुलसी के पौधे पर होता है। आप उस पौधे का कितना भी ध्यान रखें धीरे-धीरे वो पौधा सूखने लगता है। तुलसी का पौधा ऐसा है जो आपको पहले ही बता देगा कि आप पर या आपके घर परिवार को किसी मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है।
  पुराणों और शास्त्रों के अनुसार माना जाए तो ऐसा इसलिए होता है कि जिस घर पर मुसीबत आने वाली होती है उस घर से सबसे पहले लक्ष्मी यानी तुलसी चली जाती है। क्योंकि दरिद्रता, अशांति या क्लेश जहां होता है वहां लक्ष्मी जी का निवास नही होता। अगर ज्योतिष की माने तो ऐसा बुध के कारण होता है। बुध का प्रभाव हरे रंग पर होता है और बुध को पेड़ पौधों का कारक ग्रह माना जाता है। बुध ऐसा ग्रह है जो अन्य ग्रहों के अच्छे और बुरे प्रभाव जातक तक पहुंचाता है। अगर कोई ग्रह अशुभ फल देगा तो उसका अशुभ प्रभाव बुध के कारक वस्तुओं पर भी होता है। अगर कोई ग्रह शुभ फल देता है तो उसके शुभ प्रभाव से तुलसी का पौधा उत्तरोत्तर बढ़ता रहता है।
बुध के प्रभाव से पौधे में फल फूल लगने लगते हैं।प्रतिदिन चार पत्तियां तुलसी की सुबह खाली पेट ग्रहण करने से मधुमेह, रक्त विकार, वात, पित्त आदि दोष दूर होने लगते है मां तुलसी के समीप आसन लगा कर यदि कुछ समय हेतु प्रतिदिन बैठा जाये तो श्वास के रोग अस्थमा आदि से जल्दी छुटकारा मिलता है। घर में तुलसी के पौधे की उपस्थिति एक वैद्य समान तो है ही यह वास्तु के दोष भी दूर करने में सक्षम है हमारें शास्त्र इस के गुणों से भरे पड़े है जन्म से लेकर मृत्यु तक काम आती है यह तुलसी. कभी सोचा है कि मामूली सी दिखने वाली यह तुलसी हमारे घर या भवन के समस्त दोष को दूर कर हमारे जीवन को निरोग एवम सुखमय बनाने में सक्षम है माता के समान सुख प्रदान करने वाली तुलसी का वास्तु शास्त्र में विशेष स्थान है हम ऐसे समाज में निवास करते है कि सस्ती वस्तुएं एवम सुलभ सामग्री को शान के विपरीत समझने लगे है महंगी चीजों को हम अपनी प्रतिष्ठा मानते है कुछ भी हो तुलसी का स्थान हमारे शास्त्रों में पूज्यनीय देवी के रूप में है तुलसी को मां शब्द से अलंकृत कर हम नित्य इसकी पूजा आराधना भी करते है इसके गुणों को आधुनिक रसायन शास्त्र भी मानता है इसकी हवा तथा स्पर्श एवम इसका भोग दीर्घ आयु तथा स्वास्थ्य विशेष रूप से वातावरण को शुद्ध करने में सक्षम होता है शास्त्रानुसार तुलसी के विभिन्न प्रकार के पौधे मिलते है उनमें श्रीकृष्ण तुलसी, लक्ष्मी तुलसी, राम तुलसी, भू तुलसी, नील तुलसी, श्वेत तुलसी, रक्त तुलसी, वन तुलसी, ज्ञान तुलसी मुख्य रूप से विद्यमान है सबके गुण अलग अलग है शरीर में नाक कान वायु कफ ज्वर खांसी और दिल की बिमारिओं पर खास प्रभाव डालती है द्य वास्तु दोष को दूर करने के लिए तुलसी के पौधे अग्नि कोण अर्थात दक्षिण-पूर्व से लेकर वायव्य उत्तर-पश्चिम तक के खाली स्थान में लगा सकते है यदि खाली जमीन ना हो तो गमलों में भी तुलसी को स्थान दे कर सम्मानित किया जा सकता है।
  तुलसी का गमला रसोई के पास रखने से पारिवारिक कलह समाप्त होती है पूर्व दिशा की खिडकी के पास रखने से पुत्र यदि जिद्दी हो तो उसका हठ दूर होता है यदि घर की कोई सन्तान अपनी मर्यादा से बाहर है अर्थात नियंत्रण में नहीं है तो पूर्व दिशा मंग रखे तुलसी के पौधे में से तीन पत्ते किसी ना किसी रूप में सन्तान को खिलाने से सन्तान आज्ञानुसार व्यवहार करने लगती है। कन्या के विवाह में विलम्ब हो रहा हो तो अग्नि कोण में तुलसी के पौधे को कन्या नित्य जल अर्पण कर एक प्रदक्षिणा करने से विवाह जल्दी और अनुकूल स्थान में होता है सारी बाधाए दूर होती है। यदि कारोबार ठीक नहीं चल रहा तो दक्षिण-पश्चिम में रखे तुलसी कि गमले पर प्रति शुक्रवार को सुबह कच्चा दूध अर्पण करे व मिठाई का भोग रख कर किसी सुहागिन स्त्री को मीठी वस्तु देने से व्यवसाय में सफलता मिलती है।
  नौकरी में यदि उच्चाधिकारी की वजह से परेशानी हो तो ऑफिस में खाली जमीन या किसी गमले आदि जहाँ पर भी मिटटी हो वहां पर सोमवार को तुलसी के सोलह बीज किसी सफेद कपडे में बाँध कर सुबह दबा दे इससे सम्मान की वृद्धि होगी. नित्य पंचामृत बना कर यदि घर कि महिला शालिग्राम जी का अभिषेक करती है तो घर में वास्तु दोष हो ही नहीं सकता। कुछ मित्रो ने इसे अन्ध विश्वास करार दिया है सो ये उनकी सोच हो सकती है। इसमें किसी को बाध्य भी नहीं किया गया है। तुलसी की देखभाल, उपाय के बारे में जानकारी दी गई है। ये तो पुराणों में भी लिखा हुआ है कि तुलसी का महत्व क्या है।


तुलसी का प्रयोग-Tulsi ke fayde 

मलेरिया पर :- 

मलेरिया की तो तुलसी शत्रु है। तुलसी मलेरिया के कीटाणुओं को भगाती है। मलेरिया के मरीज को जितनी हो सके (अधिक से अधिक 50 या 60 तुलसी की पत्तियाँ प्रतिदिन खानी चाहिए तथा काली मिर्च पीसकर तुलसी के रस के साथ पीनी चाहिए। इससे ज्वर जड़ से नष्ट हो जायेगा।

ज्वर पर :- Tulsi ke fayde 

तुलसी का काढ़ा बनाकर रोगी को पिलाना चाहिए, इसके बाद रजाई ओढ़कर कुछ देर सो रहिए, पसीना आकर बुखार उतर जायगा।

खाँसी पर :- Tulsi ke fayde 

तुलसी और अडूसा के पत्तों को बराबर मात्रा में घोट कर पीजिए।

जी घबड़ाने पर :- Tulsi ke fayde 

तुलसी की पत्तियाँ 1 तोला और काली मिर्च 1 मासा पीसकर शहद के साथ चाटिए। आपका जी नहीं घबड़ायेगा तथा चित्त प्रसन्न रहेगा।

कान के दर्द पर :- 

तुलसी की पत्तियों को पीसकर उनके रस में रुई को भिगोकर कान पर रखे रहिए। दर्द फौरन बन्द हो जायगा।

दांतों के दर्द पर :-Tulsi ke fayde 

तुलसी और काली मिर्च पीसकर उसकी गोलियाँ बनाकर पीड़ा के स्थान पर रखने से दर्द बन्द हो जायगा।

गले के दर्द पर :- Tulsi ke fayde 

तुलसी की पत्तियों को पीसकर शहद में चाटने से गले का दर्द बन्द हो जावेगा।

जुकाम पर :- 

तुलसी का रस पीजिए और तुलसी की सूखी पत्तियाँ खाइए। अगर हो सके तो तुलसी की चाय भी पीजिये। जुकाम नष्ट हो जायेगा।

फोड़ो पर :-Tulsi ke fayde 

तुलसी की एक छटाँक पत्तियों को औटा लीजिए और उसके पानी को छानकर फोड़ो को धोइये, दर्द बन्द हो जायेगा तथा विष भी नष्ट हो जावेगा।

सिर दर्द पर :- 

तुलसी की पत्तियों के रस को और कपूर को चन्दन में घिसिये। खूब गाढ़ा करके उसे सिर पर लगाइये। सिर दर्द बंद हो जाएगा।

जल जाने पर :- 

तुलसी का लेप बनाकर उसमें गोले का तेल मिलाकर जले हुए स्थान पर लगाइये।

आंखों के रोग पर :-Tulsi ke fayde  


तुलसी का लेप बनाकर आंखों के आस-पास रखना चाहिए। इससे आँख ठीक हो जाती है। अगर हो सके तो तुलसी के रस में रुई को भागो कर पलक के ऊपर रखिए। इससे आँखों की रोशनी बढ़ती है।

पित्ती निकलने पर :- 
तुलसी के बीजों को पीसकर आँवले के मुरब्बे के साथ खाने से पित्ती दूर हो जाती है।

जहर खा लेने पर :- 

तुलसी की पत्तियों को पीस कर उनको मक्खन के साथ खाने से विष दूर होता है।

बाल झड़ने पर अथवा सफेदी होने पर :-

 तुलसी की पत्तियों के साथ आँवले से सिर धोने पर बाल न तो सफेद होते है और न झड़ते हैं।

तपैदिक होने पर :- 

तपैदिक के मरीज को किसी तुलसी के बगीचे में रहना चाहिये और अधिक से अधिक तुलसी खानी चाहिये इससे वह शीघ्र ही स्वस्थ हो जावेगा। तुलसी की आव-हवा का तपैदिक के मरीज पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। तुलसी की गन्ध से तपैदिक के कीटाणु मर जाते है। रोगी शीघ्र स्वस्थ होकर स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त करेगा।
इसी तरह साँप के विष को दूर करने के लिये भी तुलसी एक अमूल्य औषधि है। साँप के काट लेने पर तुरन्त ही रोगी को तुलसी की पत्तियाँ खिलानी चाहिये। इसके बाद जहाँ साँप ने काटा है उस जगह को शीघ्र ही चाकू से काट देना चाहिये तथा घाव के ऊपर एक कपड़ा बड़ी मजबूती से कसकर बाँध दीजिये। इसके पश्चात जहां साँप ने काटा है वहाँ तुलसी की सुखी जड़ को घिस कर मक्खन मिलाकर उसकी पट्टी बाँधनी चाहिए। पट्टी विष को अपनी तरफ खींचेगी। जिससे उसका रंग काला पड़ जायेगा। रंग काला पड़ते ही दूसरी पट्टी बाँधनी चाहिये। जब तक पट्टी का रंग बिलकुल सफेद ही न रहे यह क्रम जारी रखना चाहिये। शीघ्र ही साँप का विष उतर जायगा।

शिरो रोग :-

- तुलसी की छाया शुष्क मंजरी के 1-2 ग्राम चूर्ण को मधु के साथ खाने से शिरो रोग से लाभ होता है।
- तुलसी के 5 पत्रों को प्रतिदिन पानी के साथ निगलने से बुद्धि, मेधा तथा मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है।
- तुलसी तेल को 1-2 बूंद नाक में टपकाने से पुराना स्मि दर्द तथा अन्य सिर संबंध्ी रोग दूर होते हैं।
- तुलसी के तेल को सिर में लगाने से जुएं व लीखें मर जाती हैं। तेल को मुंह पर मलने से चेहरे का रंग सापफ हो जाता है।

कर्ण रोग :-

- कर्णशाल - तुलसी पत्रा स्वरस को गर्म करके 2-2 बूंद कान में टपकाने से कर्णशूल का शमन होता है।

- तुलसी के पत्ते, एरंड की कॉपले और चुटकी भर नमक को पीसकर कान पर उसका गुनगुना लेप करने से कान के पीछे (कर्णशूल) की सूजन नष्ट होती है।

मुख रोग :-

- दंतशूल- काली मिर्च और तुलसी के पत्तों की गोली बनाकर दांत के नीचे रखने से दंतशूल दूर होता है।
- तुलसी के रस को हल्के गुनगुने पानी में मिलाकर कुल्ला करने से कंठ के रोगों में लाभ होता है।
- तुलसी रस युक्त जल में हल्दी और संेध नमक मिलाकर कुल्ला करने से मुख, दांत तथा गले के विकार दूर हाते हैं।

वक्ष रोग :-

- सर्दी, खांसी, प्रतिश्चाय एवं जुकाम-तुलसी पत्रा (मंजरी सहित) 50 ग्राम, अदरक 25 ग्राम तथा काली मिर्च 15 ग्राम को 500 मिली जल में मिलाकर क्वाथ करें। चौथाई शेष रहने पर छाने तथा इसमें 10 ग्राम छोटी इलायची के बीजों को महीन चूर्ण डालें व 200 ग्राम चीनी डालकर पकायें और एक बार की चाशनी हो जाने पर छानकर रख लें।
- इस शर्बत का आधे से डेढ़ चम्मच की मात्रा में बच्चों को तथा 2 से चार चम्मच तक बड़ों को सेवन कराने से खांसी, श्वास, काली खांसी, कुक्कर खांसी, गले की खराश आदि से फायदा होता है।
- इस शर्बत में गर्म पानी मिलाकर लेने से जुकाम तथा दमा में बहुत लाभ होता है।
- तुलसी की मंजरी, सोंठ, प्याज का रस और शहद मिलाकर चटाने से सूखी खांसी और बच्चे के दमें में लाभ होता है।

उदर रोग :-

- वमन: 

10 मिली तुलसी पत्रा स्वरस में समभाग अदरक स्वरस तथा 500 मिग्रा इलायची चूर्ण मिलाकर लेने से आराम मिलता है।

- अग्निमांद्य-

तुलसी पत्रा के स्वरस अथवा पफाण्ट को दिन में तीन बार भोजन से पहले पिलाने से अजीर्ण अग्निमांद्य, बालकों की वकृत प्लीहा की विकृतियों में लाभ होता है।

- अपच-

-तुलसी की 2 ग्राम मंजरी को पीसकर काले नमक के साथ दिन में 3 से 4 बार देने से लाभ होता है।

अस्थिसंधि रोग :-

- वातव्याधि - 2 से 4 ग्राम तुलसी पन्चाड चूर्ण का सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से संधिशोथ एवं गठिया के दर्द में लाभ होता है।

बाल रोग:

- छोटे बच्चों को सर्दी जुकाम होने पर तुलसी व 5-7 बूंद अदरक रस को शहद में मिलाकर चटाने से बच्चों का कफ, सर्दी, जुकाम ठीक हो जाता है पर नवजात शिशु को यह मिश्रण अल्प मात्रा में ही दें।इन सब गुणों के अतिरिक्त तुलसी और बहुत से रोगों को दूर करती है। तुलसी की पत्तियों को सुखाकर उनको कूटकर छान लेना चाहिये और फिर नहाते समय दूध अथवा दही के साथ शरीर पर मलना चाहिये। इस प्रकार तुलसी साबुन का काम भी दे सकती है। तुलसी की पत्तियाँ और काली मिर्च सुबह नहा धोकर खानी चाहिये इससे दिन भर चित्त प्रसन्न रहता है, दिनभर शरीर में स्फूर्ति रहती है और मन शान्त रहता है। तभी तो शास्त्रों में भी लिखा है :-
“महा प्रसाद जननी, सर्व सौभाग्य वर्दिधुनी। आदि व्याधि हरि निर्त्य, तुलसित्वं नमोस्तुते॥”
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1.10.18

कबाबचीनी (शीतल चीनी ) के फायदे / Benefits of Kebabchini (soft sugar)





यह काली मिर्ची जैसी होती है। इसे कच्ची अवस्था में तोड़कर सुखा लेते हैं। इसे मुंह में रखने पर जीभ पर ठंडक मालूम होती है, इसीलिए इसे शीतलचीनी भी कहते हैं।
इसका प्रचलित नाम कबाबचीनी है। यह सुगंधयुक्त होती है, अतः इसे मुंह में रखकर चबाने और चूसने से मुंह सुगन्धित हो जाता है।
यह भारत में मैसूर प्रान्त में और विदेशों में जावा, सुमात्रा, श्रीलंका आदि देशों में पैदा होती है। इसका तेल निकाला जाता है जो उड़नशील और सुगंधित होता है। यह बाजार में पंसारी या जड़ी-बूटी बेचने वाली दुकान पर आसानी से मिल जाती है।
विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- कंकोलं। हिन्दी- शीतलचीनी, कबाबचीनी। मराठी- कंकोल। गुजराती- तड़मिरे, चणकबात। बंगला- कोकला, शीतलचीनी। तेलुगू- टोकामिरियालू, कबाबचीनी। तमिल- वलमिलाकू। मलयालम- चीनीमुलक। कन्नड़- गंधमेणसु, बालमेणस। फारसी- कबाबचीनी। इंग्लिश- क्यूबेब। लैटिन- पाइपर क्यूबेबा।
गुण : यह स्वाद में चरपरी, तीक्ष्ण, कड़वी, रुचिकर, मूत्रल, दीपन, पाचन, हल्की, वृष्य, ऊष्णवीर्य और हृदयरोग, कफ वात तथा अंधत्व को दूर करने वाली होती है।
उपयोग : सुगंधित मसाले के रूप में, औषधि के रूप में, मुखलेप, उबटन में सुगंध के लिए इसका उपयोग होता है।



* कबाबचीनी का उपयोग कुछ उत्तम आयुर्वेदिक योगों में भी किया जाता है, जैसे अश्वगंधा पाक, कौंच पाक, मकरध्वज वटी, सालम पाक आदि।पुराना सुजाक : कबाबचीनी का चूर्ण 100 ग्राम और सोडा बाईकार्ब 100 ग्राम या पिसी फिटकरी 50 ग्राम मिलाकर इस मिश्रण को 1-1 चम्मच सुबह-शाम दूध-पानी की लस्सी के साथ सेवन करना चाहिए। एक कप उबलता पानी लेकर एक चम्मच कबाबचीनी का चूर्ण डालकर ढंक दें। 15-20 मिनट बाद छानकर ठंडा कर लें। इसमें 5 बूंद चंदन तेल डालकर पीने से पेशाब खुलकर होता है और वेदना मिटती है। चाहे तो इसमें आधा चम्मच पिसी मिश्री भी डालकर पी सकते हैं।
*कबाबचीनी,चोटी इलायची,वंशलोचन,पिपली  10 ग्राम प्रत्येक लेकर महीन चूर्ण बनाएँ|इसमे 40 ग्राम मिश्री मिलाके आधा चम्मच सुबह शाम एक कप दूध के साथ लेने से स्वप्न दोष समाप्त होकर वीर्य गाढ़ा होता है|
*पुराना सुजाक : कबाबचीनी का चूर्ण 100 ग्राम और सोडा बाईकार्ब 100 ग्राम या पिसी फिटकरी 50 ग्राम मिलाकर इस मिश्रण को 1-1 चम्मच सुबह-शाम दूध-पानी की लस्सी के साथ सेवन करना चाहिए। एक कप उबलता पानी लेकर एक चम्मच कबाबचीनी का चूर्ण डालकर ढंक दें। 15-20 मिनट बाद छानकर ठंडा कर लें। इसमें 5 बूंद चंदन तेल डालकर पीने से पेशाब खुलकर होता है और वेदना मिटती है। चाहे तो इसमें आधा चम्मच पिसी मिश्री भी डालकर पी सकते हैं।
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16.9.18

जावित्री मसाले के औषधीय गुण / benefits of mace spice

                                                                    



जावित्री (Mace Spice – javitri) एक मसाला है जिसका वैज्ञानिक नाम मिरिस्टिका फ्रेग्रेंस (Myristicafragrans) है। इसे जायफल की जुड़वां बहन के नाम से भी पुकारा जाता है। यह एक सुनहरे रंग का मसाला है जो कड़े छिल्‍के (hard shell) से जायफल को ढकता है। इस मसाले का आयुर्वेद नाम जतिसास्‍य या जतिफाला है और यह कई पोषक तत्‍वों से भरपूर होता है। जावित्री के फायदे अनिद्रा, खून का जमना (congestion), अस्‍थमा आदि के लिए हैं। जावित्री को पाउडर बनाकर मसाले के रूप में उपयोग किया जाता है जो कई प्रकार के स्‍वास्‍थ्‍य लाभ प्रदान करने में मदद करता है।

*अपने पोषक तत्‍वों के कारण जावित्री को आयुर्वेदिक औषधी के रूप में जाना जाता है। जावित्री में तांबा और आयरन बहुत अच्‍छी मात्रा में होते हैं। जावित्री में विटामिन ए, विटामिन बी 1 , विटामिन सी, विटामिन बी 2 और कैल्शियम(Calcium), मैग्‍नीशियम, फॉस्‍फोरस, मैंगनीज और जस्‍ता जैसे खनिजों जैसे कई विटामिन अच्‍छी मात्रा में उपलब्‍ध होते हैं। जावित्री में कई आवश्‍यक शीघ्रवाष्‍पशील तेल (essential volatile oils) होते हैं जैसे कि सफ्रोल, मैरिस्टिकिन, एमिमिसिन, युजीनॉल और फिक्स्ड तेल ट्रिमिरीस्‍टीन (fixed oil trimyristine) बहुत ही स्‍वस्‍थ्‍य मसाले के रूप में होता है।

तनाव करें छूमंतर:benefits of mace spice

आजकल की जीवनशैली के चलते हर दूसरा व्‍यक्ति तनाव से ग्रस्‍त हैं। ऐसे में आपकी रसोई में मौजूद ये मसाला तनाव को दूर भगाता हैं। यह प्रभावशाली तरीके से तनाव और चिन्ता को दूर कर आपको शांत महसूस कराता है। तनाव दूर करने के साथ-साथ यह आपके मस्तिष्‍क को तेज करने में भी मदद करता है।
*मैस मसाले का एक और स्‍वास्‍थ्‍य लाभ रक्‍त परिसं‍चरण (blood circulation) को बढ़ावा देने की क्षमता है। जावित्री आपकी त्‍वचा और बालों को स्‍वस्‍थ रखने में मदद करता है और आपको अन्‍य संक्रमण और खतरों से बचाता है। रक्‍त परिसंचरण अच्‍छा होने से मधुमेह (diabetes) और अन्‍य दिल से संबंधित बीमारियों के खतरे को कम करता है।

अर्थराइटिस का दर्द दूर करें:benefits of mace spice

जावित्री में मौजूद एंटी-इंफ्लेमेंटरी गुणों के कारण यह जोड़ों में दर्द और सूजन को दूर करने में मदद करता है। अगर आप भी अर्थराइटिस से परेशान रहते हैं तो 2 ग्राम जावित्री और थोड़ी सी सोंठ मिलाकर गर्म पानी के साथ खाने से अर्थराइटिस का दर्द दूर हो जाता है।
*इस मसाले में पोटेशियम (potassium) की अच्‍छी मात्रा होती है जो हृदय को स्‍वस्‍थ्‍य बनाए रखने में मदद करती हैं। सभी प्रकार की कार्डियोवैस्‍कुलर समस्‍याओं को दूर करने के लिए यह सबसे अच्‍छा विकल्‍प है। यह मसाला वासोडिलेटर (vasodilator) के रूप में कार्य करता है और रक्‍त वाहिकाओं को आराम दिलाने में सहायक होता है। जावित्री के फायदे उच्‍च रक्‍तचाप को नियंत्रित करने के लिए भी होते हैं जो पूरे शरीर में स्‍वस्‍थ्‍य रक्‍त *परिसंचरण (blood circulation) बनाए रखता है। यदि आप उच्‍च रक्‍तचाप की समस्‍या से जूझ रहे हैं तो आप जावित्री का उपयोग कर सकते हैं।

सर्दी जुकाम का इलाज:benefits of mace spice

इस मसाले से आप अपनी सर्दी और जुकाम का इलाज भी कर सकते हैं। यह आपको फ्लू और वायरल रोगों से बचाता है और आपके शरीर को रोगों से सुरक्षित रखता है। इसका उपयोग खांसी के सिरप को तैयार करने के लिए भी किया जाता है। जावित्री अस्थमा के रोगियों के लिए बहुत अच्छा होता है।
*दांतों को स्‍वस्‍थ्‍य (Healthy Teeth) बनाने के लिए जावित्री का उपयोग बहुत ही फायदेमंद होता है। इसके साथ आप अपने मुंह की बदबू के उपचार के लिए भी इसका उपयोग कर सकते हैं। जावित्री के फायदे सभी प्रकार की दांत समस्‍याओं को दूर करने में मदद करते हैं। जावित्री मसाला दांतों और मसूढ़ों के दर्द को दूर करने का प्राकृतिक उपाय है और बहुत से दंत मंजनों में इसका उपयोग किया जाता है।


*आजकल की भाग दोड़ भरी जिन्दंगी में मानसिक तनाव एक ऐसे बीमारी है जो किसी को बक्श नहीं रही है| तनाव एक ऐसा शब्द बन गया है जो सुबह से उठते ही हर कोई महसूस करता है| आज हम जानेंगे तनाव के कारण, लक्षण एवं तनाव से बचने के उपाय| तनाव मुख्या रूप से दो प्रकार के होते है| अच्छा तनाव और बुरा तनाव, दोनों मे अंतर इतना है की एक तनाव तरक्की की तरफ ले जाता है और दूसरा समय और जिन्दंगी नष्ट करता है| अच्चा तनाव के कारण हम अपने काम को सही तरीके से और समय पर कर पाते है| वही दूसरी ओर बुरे तनाव के कारण हम अपनी सेहत को नुकसान पंहुचाते है और मानसिक बीमारियों को बुलाते है|
*मस्तिष्‍क स्‍वास्‍थ्‍य (Brain health) को बढ़ावा देने और मस्तिष्‍क के कार्यों को उत्‍तेजित करना जावित्री के प्रमुख स्‍वास्‍थ्‍य लाभों में से एक है। मस्तिष्‍क स्‍वास्‍थ्‍य के लिए जावित्री के फायदे सिर्फ इतने ही नहीं है, बल्कि यह तंत्रिका मार्गों को भी स्‍वस्‍थ्‍य बनाता हैं क्‍योंकि इसमें माइरिस्टिन और मेकेलिग्‍न (myristicin and macelignan) होते हैं। साथ ही यह आपके संज्ञानात्‍मक कार्यों को बढ़ाने वाले तत्‍व होते हैं। इन्‍ही उपयोगिताओं के कारण जावित्री मस्तिष्कि के लिए बहुत अधिक फायदेमंद होती है।

मुंह स्वास्थ्य के लिए अच्‍छा:benefits of mace spice

जावित्री में एंटीबैक्‍टीरियल और एंटिफंगल गुण होते हैं। जो बैक्‍टीरिया के विकास को रोकते है जिससे सांसों की बदबू दूर होती है और मसूड़े स्वस्थ रहते है। युजनोल की उपस्थिति के कारण दांत दर्द कम करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। यहां तक कि बहुत सारे टूथपेस्ट्स और ओरल केयर उत्पादों में एक जावित्री एक आम घटक है।
*मानसिक तनाव आजकल लोगो पर इतना हावी हो चुका है की लोगो को मनोचिकित्सक का सहारा लेना पड़ रहा है| यह एक भयंकर बीमारी का रूप ले रही है जिसका इलाज काफी कठिन है|
*इस मसाले का सेवन करने का एक और फायदा यह है‍ कि यह सर्दी और खांसी (Cold and Cough) से आपकी रक्षा करता है। इस मसाले का सेवन करने से यह फ्लू और वायरल बीमारियों से आपको बचाता है। इस मसाले में मौजूद गुणों के कारण यह आपके मस्ति‍ष्‍क, अस्‍थमा (asthma) और अन्‍य श्वसन संबंधी समस्‍याओं का उपचार करने में मदद करता है। यदि आप जावित्री के फायदे नहीं जानते थे, तो अब आप इसका उपयोग कर लाभ प्राप्‍त कर सकते हैं।

त्‍वचा के लिए उत्‍कृष्‍ट:benefits of mace spice

सेहत के साथ-साथ जावित्री त्‍वचा के लिए भी बहुत अच्‍छा होता है। जी हां जावित्री मसाले का इस्‍तेमाल पुराने समय से ही त्‍वचा देखभाल के लिए किया जाता है। इसमें मौजूद एंटी-बैक्‍टीरियल, एंटी-इंफ्लेमेटरी और सुखदायक गुण त्‍वचा की अच्‍छे से देखभाल करते हैं। यह जलन को कम और त्‍वचा को अच्‍छे से हाइड्रेट्स करता है। साथ ही जावित्री मुंहासे के निशान और ब्लैकहैड्स को दूर करता है। यह पोर्स को साफ और मृत त्वचा को निकालने में मदद करता है।
*आप अपने गुर्दे को स्‍वस्‍थ्‍य रखने के लिए जावित्री का उपभोग कर सकते हैं। इसमें गुर्दे की रक्षा करने की क्षमता होती है। यह आपके शरीर में गुर्दे के पत्‍थरों के विकास को रोकने में मदद करता है, और यदि आपको गुर्दे की पथरी(kidney stone) है तो यह उन्‍हें दूर करने में भी मदद करता है। गुर्दे के संक्रमण और अन्‍य संबंधित समस्‍याओं को दूर करने का जावित्री एक प्राकृतिक उपाय है। 
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9.9.18

सफ़ेद मूसली के उपयोग,Safed Musli fayde

                                                                                                                                                                                                                   

                       


 

(क्लोरोफिटम बोरेवियायनम), जिसे व्हाईट मुस्ली भी कहा जाता है, आयुर्वेद और हर्बल विज्ञान में प्रयोग किया जाने वाला एक शक्तिशाली कामोत्तेजक और स्ट्रिंग एडेडोजेनिक जड़ी बूटी है। परंपरागत रूप से यह गठिया, कैंसर, मधुमेह, जीवन शक्ति बढ़ाने और यौन प्रदर्शन में सुधार के लिए इस्तेमाल किया गया था। यह विशेष रूप से उन पुरुषों के लिए निर्धारित है जिनके कम शुक्राणुओं की संख्या और कम कामेच्छा है।

आयुर्वेदिक अभ्यास में सफेद मुस्ली या क्लोरोफिटम बोरेवियायनम जड़ पाउडर का उपयोग किया जाता है। यह विभिन्न आयुर्वेदिक योगों के रूप में भी प्रयोग किया जाता है जिसमें मुस्ली पाक शामिल है। यह पुरुष कमजोरी, शारीरिक दुर्बलता, स्तंभन दोष, ऑलिगॉस्पर्मिया, रात का उत्सर्जन, आदि के उपचार में उपयोगी है।

सफेद मूसली के लाभ:Safed Musli fayde

1. थकान और कमजोरी के लिए: शक्कर (गन्ना ब्राउन शुगर) के साथ सफेद मुस्ली थकान को कम करने में मदद करता है और शरीर को ताकत देता है।
2. वजन बढ़ाने के लिए: आप वजन बढ़ाने के लिए दूध के साथ इसे ले सकते हैं।
3. अल्पशुक्राणुता के लिए: यह अल्पशुक्राणुता के उपचार के लिए बहुत उपयोगी है और गिनती, मात्रा, द्रवीकरण समय और गतिशीलता को बेहतर बनाता है। यह सीरम टेस्टोस्टेरोन का स्तर और वृषण कार्य भी सुधारता है।
4. स्वप्नदोष के इलाज के लिए: अगर रोगी रात में उत्सर्जन के बाद कमजोरी, पीठ दर्द और शक्ति या ऊर्जा की कमी महसूस करता है, तो शक्कर के साथ सफ़ेद मूसली पाउडर का कुछ हफ्तों तक इस्तेमाल किया जाना चाहिए।


5. स्तम्भन दोष के इलाज के लिए:Safed Musli fayde


यह लिंग ऊतक को ताकत प्रदान करता है, कठोरता में सुधार करता है, और लंबे समय तक उत्सर्जन को बनाए रखने में मदद करता है। यह मुख्य रूप से ताकत प्रदान करता है, टेस्टो पर कार्य करता है, हार्मोन प्रोफ़ाइल में सुधार करता है, और शुक्राणुजनन को प्रेरित करता है।
6. गठिया और संयुक्त दर्द के लिए: इसमे अनुत्तेजक गुण है, जो गठिया में होने वाली संयुक्त सूजन को कम करने में मदद करतें हैं।
7. यह मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने और तनाव और अवसाद का सामना करने में मदद करता है।
8. महिलाओं के लिए यह जड़ी-बूटी योनि के  सूखापन से छुटकारा पाने में मदद कर सकती है।

Safed Musli fayde

9. यह स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए भी उपयोगी है क्योंकि इससे दूध की गुणवत्ता में सुधार होता है।
10. यह शरीर के निर्माण के लिए एक स्वास्थ्य- पूरक के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
*यह अल्पशुक्राणुता के उपचार के लिए बहुत उपयोगी है और शुक्राणुओं की संख्या, वीर्य की मात्रा, सम्भोग का समयऔर गतिशीलता को बेहतर बनाता है। सफेद मूसली टेस्टोस्टेरोन (पुरषों का सेक्स होर्मोन) का स्तर को बढ़ाता है और वृषण के कार्य (वीर्य उत्पादन) को भी सुधारता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सफेद मूसली के नियमित सेवन से वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या बढ़ती है। इससे आपको कई तरह की सेक्स समस्याओं में आराम मिलता है। अगर आप भी शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाना के कोशिश कर रहे है तो आपको इसका इस्तेमाल जरुर करना चाहिए|
*अगर आप अपनी सेक्स क्लिफे को सही से एन्जॉय नहीं कर पा रहे है और उतेज्जना की कमी से जूझ रहे है तो आपको सफ़ेद मूसली का सेवन मिश्री और दूध के साथ करना चाहिए इससे आपकी शरीर की कामोत्तेजना फिर से पहले जैसी हो जाएगी |
*सफ़ेद मूसली  का सेवन लिंग के ऊतक को ताकत प्रदान करता है, और उसकी कठोरता में सुधार करता है, और लंबे समय तक उत्सर्जन को बनाए रखने में मदद करता है। यह मुख्य रूप से टेस्टेरोंन पर कार्य करता है जो मेल सेक्स होर्मोन होता है जिससे लिंग को ताकत मिलती है इसके नियमित सेवन से शुक्राणुजनन को बढ़ाया जाता है।
*अगर आपको कोई दुबला पतला बोलता है तो आप उनको आपकी बॉडी क्या है दिखाने के लिए आपको सफेद मुसली का इस्तमाल से अपने दुबलेपन का इलाज कर सकते हो. इसके लिए आपको अश्वगंधा,शतावरी,सफेद मुसली और मुलहठी इन सब को 50 -50 ग्राम लेकर इनका चूर्ण बनाके इसमें १०० ग्राम मिश्री को पीसकर मिला दे . इसको रोज सुबह शाम मतलब दिन में दो बार ४० दिन तक पिने से आपका शरीर मजबूत और शक्तिशाली बन जाता है.

Safed Musli fayde

*अगर आपको पेशाब करने में दर्द होता है तो हो सकता है कि सेक्स की वजह से आपको कोई समस्या हुई हो। इसके लिए आपको सफेद मूसली का सेवन करना चाहिए आपको बार बार पेशाब जाना पड़ता हो तो इस के लिए आपको 2 ग्राम जायफल का चूर्ण और 5 ग्राम मुसली का चूर्ण या मुसली की पाउडर पानी के साथ पिने से आपकी बार बार मूत्र आने की समस्या दूर हो जायेगी.
महिलाओं के लिए यह जड़ीबूटी योनि में सूखापन से छुटकारा पाने में मदद कर सकती है। इसके इस्तमाल से आप लम्बे समय तक जवान रहती है
यह स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए भी उपयोगी है क्योंकि इससे दूध की गुणवत्ता में सुधार होता है। महिला के स्तनों का दूध शुद्ध करने और ब्रैस्ट का दूध को बढाता है.
गर्भावस्था में सफेद मुसली का थोडा इस्तमाल करने से बच्चे की और माँ के लिए nutritive tonic की तरह काम करता है
*कौंच के बीज, सफेद मूसली और अश्वगंधा के बीजों को बराबर मात्रा में मिश्री के साथ मिलाकर बारीक चूर्ण बनाकर एक चम्मच चूर्ण सुबह और शाम एक कप दूध के साथ लेने से शीघ्रपतन और वीर्य की कमी जैसी समस्याएं दूर हो जाती हैं। सालों से विभिन्न दवाइयो के निर्माण में भी सफेद मूसली का उपयोग किया जाता है। मूलतः यह एक ऐसी जडी-बूटी है जिससे किसी भी प्रकार की शारीरिक शिथिलता को दूर करने की क्षमता होती है। यही कारण है की कोई भी आयुर्वेदिक सत्व जैसे च्यवनप्राश आदि इसके बिना संम्पूर्ण नहीं माने जाते हैं।
यह इतनी पौष्टिक तथा बलवर्धक होती है की इसे शिलाजीत की संज्ञा भी दी जाती है। चीन, उत्तरी अमेरिका में पाये जाने वाले इस पौधे, जिसका वानस्पतिक नाम पेनेक्स जिंन्सेग है का विदेशों में फलेक्स बनाये जाने पर भी काम कर रहे हैं। सफेद मुसली पुरुषों को शारीरिक तौर पर पुष्ट बनाने के अलावा वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने में भी मदद करती है। यही नहीं, कई शोध अपने परिणाम बताते हैं कि डायबिटीस के बाद होने वाली नपुंसकता में भी सफेद मुसली सकारात्मक असर करती पाई गई है।


दुष्प्रभाव:


हालांकि अधिकांश दुष्प्रभाव सामान्य होते हैं और ठीक हो सकते हैं सफेद मुसली का अत्यधिक सेवन सही नहीं है।
इसमें मौजूद फाइबर, नमी को कम करके मल को कड़ा करता है। आप आंत में एक रूकावट का अनुभव कर सकते हैं जिसके कारण कब्ज, ऐंठन और दर्द हो सकता है ।
आँख की सूजन, चिड़चिड़ापन और खुजली गले, त्वचा पर खुजली, जी मचलना, हल्कापन, चक्कर आना, सिरदर्द, सांस लेने में कठिनाई कुछ सामान्य साइड इफ़ेक्ट हो सकते है|
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26.7.18

भूख बढ़ाने वाली आयुर्वेदिक औषधियाँ : increase appetite

                                             




आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में भूख बढ़ाने की विभिन्न दवा उपलब्ध है | इनका उपयोग करके भी आप अपनी समस्या से निजात पा सकते है | यहाँ हमने आयुर्वेद की सर्वमान्य एवं प्रशिद्ध दवाओं की सूचि दी है जो भूख न लगने की समस्या में अचूक दवा साबित होती है |


शिवाक्षार पाचन चूर्ण

भूख न लगने की समस्या, अजीर्ण, अपच एवं अरुचि में आयुर्वेद का सबसे अधिक प्रसिद्ध चूर्ण है | इसका प्रयोग किया जा सकता है | अगर आपको पाचन की खराबी के कारण भूख नहीं लगती तो निश्चित ही इस चूर्ण का उपयोग करना चाहिए | निरंतर 10 दिन के प्रयोग से ही आपकी भूख बढ़ने लगेगी | पतंजलि, डाबर, बैद्यनाथ, आदि सभी कम्पनियाँ इसका निर्माण करती है |

हिंग्वाष्टक चूर्ण

भूख बढ़ाने के लिए हिंग्वाष्टक चूर्ण भी रामबाण औषधीय दवा सिद्ध होती है | अगर आपको भूख कम लगने की समस्या के साथ – साथ गैस, पेट दर्द, कब्ज, पेट में कीड़े एवं अजीर्ण एवं अपच की समस्या भी है तो निश्चित रूप से हिंग्वाष्टक चूर्ण के सेवन से इन समस्याओं से पूर्णत: निजात पाया जा सकता है

अग्निकुमार रस

अग्नि कुमार रस का सेवन भूख बढ़ाने के लिए किया जा सकता है एवं इसके परिणाम भी अच्छे मिलते है | यह आयुर्वेद के रस प्रकरण की औषधि है | इसका सेवन भूख न लगने, कमजोर पाचन, अजीर्ण, अपच में किया जा सकता है | अगर आप इसका सेवन भूख बढ़ाने के लिए कर रहें है तो 1 से 2 गोली सौंफ अर्क या चिकित्सक के निर्देशानुसार करें |

*अग्निमुख चूर्ण

अग्निमंध्य, पाचन का ठीक ढंग से काम न करना, खट्टी डकारें आना आदि में अग्निमुख चूर्ण का सेवन कर सकते है | इसका निर्माण सोंठ, जीरा, काला नमक एवं सेंधा नमक आदि से होता है | अत: भूख कम लगने की बीमारी में 1 से 3 ग्राम की मात्रा में भोजन के बाद पानी के साथ सेवन किया जा सकता है | 5 – 7 खुराक में ही भूख बढ़ने लगेगी |

* चित्रकादी वटी

मन्दाग्नि के साथ साथ , आंतो में सुजन, उदर के विकार एवं आमातिसार आदि रोगों में उपयोग की जाती है | चित्रक, हिंग, पीपल एवं यवक्षार आदि औषध द्रवों से इसका निर्माण किया जाता है 
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भूख बढ़ाने वाले औषध योग एवं चूर्ण का करे घर पर निर्माण

* अग्निवर्धक चूर्ण

अग्नि को बढ़ाने वाला यह चूर्ण आप घर पर ही बना सकते है , इसके लिए आपको निम्न चीजों की आवश्यकता होगी |

भुना हुआ जीरा 100 ग्राम
पीसी हुई सोंठ 50 ग्राम
कालीमिर्च 50 ग्राम
निम्बू का सत 50 ग्राम
काला नमक 50 ग्राम
सेंधा नमक 150 ग्राम
पिपरमेंट – 2 ग्राम
इन सभी को कूट पीसकर महीन चूर्ण बना ले एवं शीशी में भर ले | यह अग्निवर्धक चूर्ण तैयार हो गया | इसका इस्तेमाल नित्य भोजन के पश्चात आधा – आधा चम्मच की मात्रा में पानी के साथ करें | नित्य प्रयोग से भोजन अच्छी तरह पचने लगेगा और खुल कर भूख लगेगी | गैस एवं आफरे की समस्या में भी आराम पहुंचाता है |
2. त्रिफला चूर्ण-
आंवला , हरड एवं बहेड़ा – इन तीनो को सामान मात्रा में लेकर कूट पीसकर चूर्ण बना ले | त्रिफला चूर्ण सम्पूर्ण शरीर के कायाकल्प के काम आता है | नित्य प्रयोग से पाचन की क्रिया सुधरती है एवं भूख बढती है | इसे आयुर्वेद में त्रिदोष शामक औषधि माना जाता है | अत: यह सभी प्रकार के अन्य रोगों में भी लाभदायक सिद्ध होता है |
 लवण भास्कर चूर्ण भी एक उत्तम योग है जिसके प्रयोग से सभी प्रकार के पेट के रोग दूर होते है | भूख बढ़ाने के लिए आप इसका इस्तेमाल कर सकते है |
 पंचकोल चूर्ण
दीपन एवं पाचन गुणों से युक्त इस चूर्ण का इस्तेमाल भी आप भोजन में रूचि जगाने के लिए कर सकते है | भूख बढ़ाने के साथ – साथ पेट की विभिन्न रोग जैसे – आफरा, पेट दर्द एवं अपचन में लाभ देता है |
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20.7.18

पोहा है वजन कम करनेवाला सेहतमंद नाश्ता //poha ka nashta

                                                                                     
                                                       





पोहा पीटे हुए चावल से बना एक स्‍वस्‍थ नाश्ता है। यह आसानी से तैयार होने वाला स्‍वादिष्‍ट और अधिक मात्रा में सब्जियों की मौजूदगी के कारण बेहद पौष्टिक होता है। भारत के विभिन्न राज्यों में, पोहा अलग अलग तरीकों से तैयार किया जाता है और कई घरों का तो यह एक प्रधान नाश्ता है।

भारत में पोहा सुबह के नाश्ते के तौर पर खासा पसंद किया जाता है। लंबे समय से भारतीय पोहे का सुबह के नाश्ते में सेवन कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर अब बाजार में ओट और कीनोआ जैसे नाश्ते के तौर पर सेवन किए जाने वाले आहार भी मौजूद हैं, इनको बनाने वाली कंपनिया दावा करती हैं कि इनसे आप तेजी से वजन कम कर सकते हैं। लेकिन इन सब के बीच विशषज्ञों का मानना है कि पोहा सबसे सेहतमंद नाश्ता है। पोहे में 76.9 फीसदी कार्बोहाइड्रेट्स और 23.1 फीसदी प्रोटीन होता है। जो कि इसे एक सेहतमंद नाश्ता बनाता है, जो आपको सुबह-सुबह ऊर्जा देता है।
हल्का आहार :
अधिकांश स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति जागरूक लोग वजन घटाने वाले आहार में कुछ समय के लिए पोहा को शामिल कर इसके प्रभाव को देखते हैं। यह आहार पेट के लिए हल्‍का होता है और आमतौर पर कम मात्रा में परोसा जाता है साथ ही यह एक स्‍वस्‍थ जीवन शैली को आगे बढ़ने में मदद करता है। इस आहार को नींबू के साथ परोसा जाता है। पोहे पर नींबू के रस की मौजूदगी इसे अतिरिक्‍त स्‍वास्‍थ्‍य लाभ प्रदान करती हैं।
- पोहा खाने से पेट से संबंधित समस्याएं नहीं होंगी क्योंकि इसमें बहुत ही कम मात्रा में ग्लूटीन पाया जाता है.
- डायबिटीज के मरीज को पोहा खिलाने से भूख कम लगती है साथ ही ब्लडप्रेशर लेवल में रहता है.
- पोहे में बहुत ज्यादा मात्रा में कैलोरी पायी जाती है. इसे कई तरीके से बनाया जाता है. जहां वेजीटेबल पोहा में 244 किलो कैलोरी होती है वहीं मूंगफली पोहा में 549 किलो कैलारी शामिल होती है.
पोहा भारत का एक मशहुर नाश्ता है, जिसे चावल से बनाया जाता है। वे कहती हैं कि यह अपने आप में एक पूर्ण आहार है। इसमें भारी मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स, आयरन और फाइबर होते हैं। साथ ही पोहे में एंटी ऑक्सीडेंट और जरूरी विटामिन की भी जरूरी मात्रा में होती है। वे कहती हैं कि यह सुबह के नाश्ते के लिए या दिन में किसी भी समय स्नैक की तरह खाया जा सकता है। इसके अलावा इसमें कार्ब्स की मात्रा बहुत कम होती है। साथ ही इसमें इंसुलिन न होने के कारण पोहा वजन कम करने में भी मदद करता है।
क्योंकि पोहा को चावलों को पीटकर बनाया जाता है। जिसके कारण ये आासनी से पच जाता है, जिस कारण पेट पर दबाव नहीं रहता और आपको पूरे दिन पेट फुला हुआ महसूस नहीं होता।
अगर आप सोचते हैं पोहा सिर्फ ब्रेकफास्ट मील है तो यह काफी नहीं है. पोहे में ऐसे कई गुण हैं जो आपको हेल्दी रखने में काफी मददगार हैं. जानिए एक्सपर्ट क्या कहते हैं पोहे के बारे में.
- पोहे में भरपूर मात्रा में आयरन पाया जाता है. इसको खाने से शरीर में हीमोग्लोबिन और इम्यूनिटी पावर बढ़ती है.
- पोहे में सबसे ज्यादा सब्जियों का इस्तेमाल किया जाता है. जिस कारण यह खनिज, विटामिन और फाइबर का खजाना हो जाता है.
- अगर पोहे में सोयाबीन, सूखे मेवे और अंडा मिलाकर खाया जाए तो विटामिन के साथ ही प्रोटीन भी मिलेगा.
- पोहे में अच्छी मात्रा में कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है. जिससे शरीर को ऊर्जा मिलती है. इससे शरीर को बीमीरियों से लड़ने में मदद मिलती है.
पोहे को पचाने में शरीर को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती. यह आसानी से पचने वाला खाना है.
- वहीं एक्सपर्ट का मानना है कि पोहे को ब्रेकफास्ट में खाने से इसका फायदा कई गुना बढ़ जाता है.
कार्बोहाइड्रेट से भरपूर
आप पोहे पर भरोसा कर इसे कार्बोहाइड्रेट के लिए अपना प्राथमिक स्रोत बना सकते हैं। पीटा चावल अन्य कार्बोहाइड्रेट विकल्पों की तुलना में स्वस्थ होता है। आप चिप्स या अन्य नाश्ते की तुलना में नाश्ते में इसे खा सकते हैं। पर्याप्त कार्बोहाइड्रेट के बिना, आप अपनी दैनिक गतिविधियों को नहीं कर सकते हैं। एक और अच्छी खबर, पोहा फाइबर से भी समृद्ध होता है।
पोषक तत्व से भरपूर
पोहे में अनेक प्रकार की सब्जियों को मिलाने के कारण इसमें विटामिन और मिनरल की अधिकता पाई जाती है। आप इसे स्‍वादिष्‍ट और प्रोटीन युक्‍त बनाने के लिए इसमें मूंगफली और अंकुरित दालों को भी मिला सकते हैं। कुछ लोग पोहे को प्रोटीन से भरपूर बनाने के लिए इसमें अंडा भी मिला देते हैं। आप इसे अपने बच्‍चे के लंच बॉक्‍स में भी पैक कर सकते हैं।
ग्लूटेन का कम स्तर
पोहा में ग्‍लूटेन के कम स्‍तर के कारण, कम ग्‍लूटेन खाद्य पदार्थों का उपभोग करने वाले डॉक्‍टर की सलाह से इसे अपने आहार में शामिल कर सकते हैं। पोहा मधुमेह रोगियों द्वारा भी सेवन किया जा सकता है। यह पोहे के स्वास्थ्य लाभ में से एक है।
मधुमेह रोगियों के लिए
खून में शुगर के धीमी गति से बढ़ावा देने के कारण पोहा मधुमेह रोगियों के लिए भोजन का अच्‍छा विकल्प माना जाता है। साथ ही यह आपको लंबे समय तक पूर्ण महसूस करता है। एक बार इसके सेवन से आप भूख के कष्‍ट और अस्वास्थ्यकर मिठाई और जंक फूड को दूर रखने में पर्याप्‍त होता है। इसके पोषक मूल्य में वृद्धि करने के लिए आप इसमें सोया मिला सकते हैं।
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18.7.18

प्राकृतिक चिकित्सा मे कटि स्नान के स्वास्थ्य लाभ//nature cure


                                                             




साधन :-

टब, छोटा स्टूल, छोटा तौलिया, कम्बल, पानी |

जल का तापमान :

-कटि स्नान में प्रयोग में लाये जाने वाले जल का तापमान शरीर के तापमान से कम रहना चाहिए तभी जल का प्रभाव शरीर पर हो सकेगा | सामान्यतः गर्मी के दिनों में जल का तापमान 55 डिग्री फारनहाईट तथा सर्दियों में ७५ से ८४ डिग्री फारनहाईट रहना चाहिए | ठन्डे जल का तापमान बढ़ाने के लिए उसमे अलग से गर्म पानी मिला देना चाहिए |

कटि स्नान करने का समय :-

कटि स्नान प्रारंभ में पांच मिनट से शुरू करके प्रतिदिन एक -एक मिनट बढ़ाते हुए पंद्रह मिनट तक किया जा सकता है | बच्चों व् कमजोर व्यक्तियों को पांच मिनट से अधिक नही लेना चाहिए | प्रातः खाली पेट कटि स्नान करना चाहिए |

कटि स्नान करने की विधि :-

टब में लगभग 12 से 14 इंच गहराई तक पानी भरें जिससे कि टब में बैठने पर पानी उपर नाभि तक एवं नीचे आधी जंघाओं तक आ जाये |
टब में अधलेटी अवस्था [ जैसे आराम कुर्सी पर बैठते हैं ] में बैठ जाएँ | दोनों पैर टब के बाहर चौकी पर रख लें | ध्यान रहे कि पानी से पैर न भीगने पायें |
रोयेंदार तौलिये से पेडू पर दायें से बाएं अर्ध चंद्राकर घर्षण करें [ मालिश करें ] |
कटि स्नान के बाद शरीर में गर्मी लाने के लिए लगभग 15 -20 मिनट टहलें,व्यायाम करें अथवा कम्बल ओढ़कर लेट जाएँ |

विशेष :-

यदि कमजोरी अधिक हो तो सिर को छोडकर टब सहित पूरा शरीर एक कम्बल से ढक लें |
कटि स्नान करते समय तब में पीछे से पीठ को बीच-बीच में हिलाते रहें, इससे रीढ़ के स्नायु उद्दीप्त होंगे फलस्वरूप शरीर में चेतनता आयेगी और रोगप्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होगी |

कटि स्नान से शरीर में होने वाली प्रतिक्रिया :-

साधारण सी दिखने वाली इस क्रिया का प्रभाव सम्पूर्ण शरीर पर पड़ता है | यदि यह कहा जाय कि “कटि स्नान प्राकृतिक चिकित्सा की संजीवनी बूटी है |” तो अतिशयोक्ति नही होगा |

पानी का तापमान शरीर के तापमान से कम होने के कारण टब में बैठते ही पेडू की अतिरिक्त गर्मी कम होकर पूरे पाचन तंत्र में संकुचन की स्थिति उत्पन्न होती है जिससे कई अंग जैसे लीवर,क्लोम ग्रंथि,आमाशय, छोटी आंत आदि में सक्रियता आती है और वे पर्याप्त मात्रा में पाचक रसों को स्रवित करना प्रारंभ कर देते हैं जिससे पाचन तंत्र की मजबूती के साथ ही जीर्ण कब्ज, जो सभी रोगों की जननी है , से भी छुटकारा मिलता है | इसके अतिरिक्त रीढ़ की हड्डी में पानी का स्पर्श होने से स्नायुविक रोग भी दूर हो जाते हैं |

कटि स्नान से लाभ :-


छोटी व् बड़ी आंत के अधिकांशतः सभी रोग कटि स्नान से दूर हो जाते हैं |
पीलिया रोग में स्टीम बाथ के तुरंत बाद २-३ मिनट कटि स्नान करने के उपरांत पूर्ण स्नान करने से पित्त पर्याप्त मात्रा में निकलता है एवं पीलिया समाप्त हो जाता है |
कटि स्नान जननेंद्रिय की दुर्बलता एवं वीर्य के पतलेपन को दूर करता है |
बबासीर , आंत, गर्भाशय की रक्तस्राव की अवस्था में कटि स्नान अत्यंत हितकारी है | रक्तस्राव की अवस्था में कटि स्नान लेते समय यह ध्यान रहे कि दोनों पैर चौकी पर रखने की बजाय किसी बर्तन में गर्म पानी में डुबोकर रखें |इस क्रिया को करने से पेडू में स्थित अतिरिक्त रक्त पैरों में उतर जाता है तथा पानी की ठंडक से पेडू सिकुड़ने लगता है, फलस्वरूप रक्तस्राव बंद हो जाता है |
पेडू की अतिरिक्त गर्मी के फलस्वरूप मल में जो स्वाभाविक नमी होती है, वह सूख जाती है जिसके कारण मल आंत में सूखकर कड़ा हो जाता है, इसी अवस्था को जीर्ण कब्ज या कोष्ठबद्धता कहते हैं | कटि स्नान से पेट की अतिरिक्त गर्मी पानी में निकल जाती है एवं कब्ज से मुक्ति मिलती है |

दर्द रहित पेडू की पुरानी सूजन में विशेष लाभकारी है |
नये एक्जिमा में कटि स्नान अत्यंत लाभकारी है |
नियमित कटि स्नान करने से शरीर की जीवनीशक्ति आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है जिससे कैंसर, लकवा, क्षय जैसे भयंकर रोगों से बचाव होता है |
अनिद्रा, हिस्टीरिया, चिडचिडापन, स्नायुविक रोगों में कटि स्नान अति लाभप्रद है |

स्त्री रोगों में कटि स्नान से लाभ :-

स्त्रियों के लगभग सभी रोगों में कटि स्नान बहुत लाभकारी है |
गर्भाशय की स्थानभ्रष्टता एवं जब गर्भाशय आदि अन्दर से बाहर आते मालूम हों तो कटि स्नान से आश्चर्यजनक रूप से लाभ पहुंचता है |
पुराने रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर में कटि स्नान लाभ करता है |
गर्भवती स्त्री प्रसव से दो माह पूर्व से ही कटि स्नान लेना प्रारंभ कर दे तो बिना कष्ट के सामान्य रूप से प्रसव होगा |

गर्भपात के लक्षण दिखाई पड़ने पर यदि २० से ३० मिनट तक कटि स्नान लिया जाय तो गर्भपात रुक सकता है | इस अवस्था में सावधानीपूर्वक पेट को बहुत धीरे -धीरे रगड़ना आवश्यक है |

बाल रोगों में कटि स्नान से लाभ :-

बच्चों को कटि स्नान करने से उनकी स्मरण शक्ति व् बुद्धि का विकास होता है |
बच्चों को सोते समय बिस्तर में पेशाब करना एक ऐसा रोग है जिससे बच्चे में इस रोग के आलावा हीनभावना आनी प्रारंभ हो जाती है | इन बच्चों को यदि नियमित कटि स्नान कराना प्रारंभ कर दिया जाय तो कुछ ही दिनों में रोग से छुटकारा मिल जाता है |

सावधानियां :-

कटि स्नान खाली पेट ही लें |
पानी और शरीर का तापमान समान नही होना चाहिए |
पहले दिन ही अधिक ठन्डे जल से कटि स्नान नहीं करना चाहिए बल्कि प्रथम दो-तीन दिन सामान्य जल [ 
कटि स्नान ऐसी जगह में करना चाहिए, जहाँ पर ठंडी हवा के झोंके न आ रहे हों |

कटि स्नान लेने के डेढ़-दो घंटे तक स्नान नहीं करना चाहिए |
एपेंडिक्स, गर्भाशय, मूत्राशय, बड़ी आंत, जननेंद्रिय के विभिन्न अवयवों की नई सूजन तथा ह्रदय रोग की ख़राब स्थिति में कभी भी ठन्डे पानी से कटि स्नान नहीं करना चाहिए |
न्युमोनिया, गठिया, दमा, साईटिका के तीव्र दर्द में कटि स्नान नही लेना चाहिए |

शरीर के तापमान से थोडा कम तापमान का जल ] का प्रयोग करें तत्पश्चात क्रमशः प्रतिदिन जल के तापमान को कम करते जाएँ |सामान्यतः कटि स्नान लम्बे समय तक करने पर भी कोई हानि नही है बल्कि लम्बे समय तक ही क्यों इसे अपनी जीवन शैली में ही सम्मिलित कर लेना चाहिए, ताकि आपका शरीर स्वस्थ्य एवं जीवन सुखमय रहे |
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17.7.18

प्राकृतिक चिकित्सा मे गीली पट्टियों का चमत्कार/ The wonders of wet bandage in natural medicine

                                           


 

प्राकृतिक चिकित्सा में साधारण सी दिखने वाली क्रियाएं शरीर पर अपना रोगनिवारक प्रभाव छोडती हैं | किसी सूती या खादी के कपडे की पट्टी को सामान्य ठन्डे जल में भिगोकर , निचोड़कर अंग विशेष पर लपेटने के पश्चात् उसके ऊपर से ऊनी कपडे की [सूखी] पट्टी इस तरह लपेटी जाती है कि अन्दर वाली सूती/खादी पट्टी पूर्ण रूप से ढक जाये | इस लेख में रोगनिवारण हेतु विभिन्न "जल पट्टी लपेट" के विषय में जानकारी प्रस्तुत है -

1. सिर की गीली पट्टी -
लाभ : सिर की गीली पट्टी से कान का दर्द , सिरदर्द व सिर की जकड़न दूर होती है |
साधन
एक मोटे खद्दर के कपडे की पट्टी जो कि इतनी लम्बी हो कि गले के पीछे, के ऊपर से कानों को ढकते हुए आँखों और मस्तक को पूरा ढक ले |
ऊनी कपडे कि पट्टी [ खादी की पट्टी से लगभग दो इंच चौड़ी और दोगुनी लम्बी ]विधि :
खद्दर की पट्टी को ठन्डे पानी में भिगोकर निचोड़ लें तत्पश्चात इस पट्टी को आँखें,मस्तक एवं पीछे कानों को ढकते हुए एक राउण्ड लपेट दें | अब इसके ऊपर ऊनी पट्टी को लगभग दो राउण्ड इस तरह लपेट दें कि नीचे वाली गीली पट्टी अच्छी तरह से ढक जाये | लगभग एक घंटा इस पट्टी को लगायें |

2. पेडू की गीली पट्टी : 
लाभ : पेट के समस्त रोगों,पुरानी पेचिस, कोलायिटिस,पेट की नयी-पुरानी सूजन,अनिद्रा,बुखार एवं स्त्रियों के गुप्त रोगों की रामबाण चिकित्सा है |इसे रात्रि भोजन के दो घंटे बाद पूरी रात तक लपेटा जा सकता है |
साधन : 
खद्दर या सूती कपडे की पट्टी इतनी चौड़ी जो पेडू सहित नाभि के तीन अंगुल ऊपर तक आ जाये एवं इतनी लम्बी कि पेडू के तीन-चार लपेट लग सकें |
सूती कपडे से दो इंच चौड़ी एवं इतनी ही लम्बी ऊनी पट्टी |विधि :
उपर्युक्त पट्टियों की विधि से सूती/खद्दर की पट्टी को भिगोकर,निचोड़कर पेडू से नाभि के तीन अंगुल ऊपर तक लपेट दें ,इसके ऊपर से ऊनी पट्टी इस तरह से लपेट दें कि नीचे वाली गीली पट्टी पूरी तरह से ढक जाये |एक से दो घंटा या सारी रात इसे लपेट कर रखें |

 wonders of wet bandage 

3 जोड़ों की गीली पट्टी : 

शरीर के विभिन्न जोड़ों के दर्द एवं सूजन की अवस्था में एक घंटे के लिए जोड़ के आकर के अनुसार गीली फिर ऊनी पट्टी का प्रयोग करें |

4. गले की गीली पट्टी :

लाभ : इस पट्टी को रोगनिवारक प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ता है | गले की पट्टी से गले के ऊपर-नीचे की अनावश्यक गर्मी समाप्त होती है |
टांसिलायिटिस, गले के आस-पास की सूजन, गला बैठना,घेंघा जैसे रोगों में लाभकारी है |
साधन :
एक सूती पट्टी -गले की चौडाई जितनी चौड़ी एवं इतनी लम्बी कि गले में तीन-चार लपेट लग जाएँ |
गले में तीन-चार लपेट लगने भर की लम्बी, ऊनी पट्टी या मफलर |विधि :
सूती पट्टी को ठन्डे पानी में भिगोकर , निचोड़कर गले में तीन-चार लपेटे लगा दें ऊपर से ऊनी पट्टी या मफलर लपेट लें | समय – ४५ मिनट से १ घंटा |

 wonders of wet bandage 

5. छाती की पट्टी :

लाभ : छाती के सभी रोग जैसे -खांसी,निमोनिया,क्षय [ फेफड़ों का ] दमा, कफ,पुरानी खांसी में लाभकारी |
सावधानी :
अत्यंत निर्बल रोगी को पट्टी देते समय सूती/खादी पट्टी को गुनगुने पानी में भिगोकर,निचोड़कर प्रयोग करना चाहिए |
फेफड़ों के रक्तस्राव की अवस्था में पट्टी का प्रयोग कम समय के लिए एवं फेफड़ों की कैविटी [ जैसा कि क्षय में होता है ] भरने हेतु अधिक समय के लिए पट्टी का प्रयोग करना चाहिए |साधन :
खद्दर या सूती कपडे की एक पट्टी जो कि छाती की चौडाई के बराबर चौड़ी हो एवं लम्बाई इतनी कि छाती से पीठ तक घुमाते हुए तीन राउण्ड लग जाएँ |
ऊनी या गर्म कपडे की पट्टी जो नीचे की सूती/खद्दर की पट्टी को ढक ले |विधि :
खद्दर या सूती पट्टी को ठन्डे पानी में भिगोकर निचोड़ लें , अब इसे पूरी छाती पर पसलियों के नीचे तक लपेट दें | इस पट्टी के ऊपर ऊनी पट्टी लपेट दें | यह पट्टी रोग की अवस्था के अनुसार १ से ४ घंटे तक बांधी जा सकती है |

6. धड की गीली पट्टी :

लाभ :- योनि की सूजन, आमाशायिक रोग, पेट-पेडू का दर्द व सूजन, लीवर,तिल्ली के रोगों में अत्यंत लाभकारी है |
विधि :
यह भी छाती पट्टी की तरह लपेटनी होती है बस इस पट्टी की चौडाई नाभि के नीचे तक बढ़ा लेनी चाहिए एवं पट्टी के दौरान रोगी को लिटाकर सिर खुला रखकर पैर से गर्दन तक कम्बल उढ़ा देना चाहिए | एक से दो घंटा इस पट्टी का प्रयोग करना चाहिए |
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