18.12.19

यात्रा के दौरान मितली उल्टी आने के उपाय व उपचार




बस या कार में यात्रा करते हुए जी मचलना या उल्टी आना, ऐसी परेशानी बहुत लोगों को होती है. असल में ऐसा मस्तिष्क के जबरदस्त हुनर के चलते होता है.
हममें से कई लोग यात्रा के दौरान होने वाली मतली या उल्टी के कारण, बस में या कार में सफर करना अवॉयड करते हैं। मोशन सिकनेस बीमारी (Motion sickness)(यात्रा संबंधी मतली) एक ऐसी स्थिति है जिसमें आँखों के द्वारा मूवमेंट को भापना और वेस्टिबुलर सिस्टम की मूवमेंट की भावना के बीच के अंतर के कारण होता है। इसके कई कारण हो सकते हैं जिनके बारे में हम आमतौर पर ध्यान नहीं देते। यात्रा के दौरान उल्टी को कार सिकनेस (बीमारी), सिमुलेशन सिकनेस या एयर सिकनेस के रूप में भी समझा जा सकता है।
बस, कार, विमान या पानी के जहाज में यात्रा करने के दौरान शरीर और मस्तिष्क के बीच एक असमंजस की स्थिति बन जाती है. कार्डिफ यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट डॉक्टर डिएन बर्नेट के मुताबिक यात्रा के दौरान दिमाग को ऐसा लगता है जैसे शरीर में जहर फैल रहा है. जान बचाने के लिए मस्तिष्क हरकत में आता है. जी मचलने लगता है और उल्टी सी आने लगती है. इस तरह दिमाग शरीर से विषैले तत्वों को बाहर करने की कोशिश करता है.
चक्कर आना, थकान और मतली, मोशन सिकनेस के सबसे आम लक्षण हैं। सोपाइट सिंड्रोम (Sopite syndrome), जिसमें एक व्यक्ति थकान या थकावट महसूस करता है, मोशन सिकनेस से भी जुड़ा हुआ है। ग्रीक में “मतली”(nausea) का अर्थ सी-सिकनेस (See-sick syndrome) है। अगर मतली पैदा करने वाली गति का समाधान नहीं होता है, तो पीड़ित को आमतौर पर उल्टी हो जाएगी। उल्टी से अक्सर कमजोरी और मतली की भावना से छुटकारा नहीं मिलता है, जिसका मतलब है कि जब तक मतली का इलाज नहीं किया जाता है तब तक व्यक्ति को उल्टियां आती रहेगी।
मोशन सिकनेस आमतौर पर पेट के खराब होने का कारण बनती है। इसके अन्य लक्षणों में ठंडा पसीना और चक्कर आना शामिल है। मोशन सिकनेस वाले व्यक्ति को सिरदर्द, और पीले पड़ने की शिकायत हो सकती है। मोशन सिकनेस के परिणामस्वरूप निम्न लक्षणों का अनुभव करना भी आम है:
यात्रा सम्बन्धी मतली के गंभीर लक्षणों में शामिल हैं:
हल्की बेचैनी
उबासी लेना
पसीना आना
असुविधा की एक सामान्य भावना
अच्छी तरह से महसूस नहीं करना (malaise)
हल्की सांस लेना (सांस की कमी)
सिर चकराना
जी मिचलाना
उल्टी
पीलापन
उनींदापन
सरदर्द
किसी को भी यात्रा के दौरान उल्टी (मोशन सिकनेस) हो सकती है, लेकिन यह बच्चों और गर्भवती महिलाओं में सबसे आम है। यह संक्रामक नहीं है।
2 से 12 वर्ष की उम्र के बच्चों को मोशन सिकनेस से ग्रस्त होने की सबसे अधिक संभावना है। गर्भवती महिलाओं को भी इसका सामना करने की संभावना अधिक होती है।
आपकी इंद्रियों के बीच में संघर्ष होने पर आपको मोशन सिकनेस की बीमारी होती है। मान लें कि आप मेले में एक झूले पर हैं, और यह आपको चारों ओर और ऊपर घुमाया जा रहा है। आपकी आंखें एक चीज को देखती हैं, आपकी मांसपेशियों को कुछ और महसूस होता है, और आपके कान के भीतर कुछ और समझ आता है।
आपका दिमाग उन मिश्रित संकेतों को एक साथ नहीं ले सकता है। यही कारण है कि आप को चक्कर आना और बीमार महसूस होने जैसा लगता है।
सफर के दौरान उल्टियां होने पर (मोशन सिकनेस) अधिकांश मामले में आप खुद इलाज कर सकते हैं।
बहुत गंभीर मामले, और जो प्रगतिशील रूप से बदतर हो जाते हैं, जैसे कान में असंतुलन और तंत्रिका तंत्र की बीमारियों में, अपने चिकित्सक से जाकर मिले।
मोशन सिकनेस का निदान करने में मदद के लिए, डॉक्टर आपके लक्षणों के बारे में पूछेगा और पता लगाएगा कि आम तौर पर समस्या का कारण क्या होता है (जैसे नाव में सवारी करना, विमान में उड़ना, या कार में सफर करना और गाड़ी चलाना)।
मोशन सिकनेस के लक्षण आमतौर पर तब बंद हो जाते हैं जब आप रुक जाते हैं। लेकिन यह हमेशा सच नहीं है। ऐसे लोग हैं जो यात्रा खत्म होने के कुछ दिनों बाद भी लक्षण से पीड़ित रहते हैं। अतीत में यात्रा के दौरान उल्टी (मोशन सिकनेस) वाले ज्यादातर लोग अपने डॉक्टर से पूछते हैं कि अगली बार सफर के दौरान उल्टियां होने पर क्या करें और कैसे रोकें। निम्नलिखित उपचार आपकी यात्रा के दौरान उल्टी और मतली ठीक करने में मदद कर सकते हैं:
एक्यूप्रेशर में सुइयों को डालने के बजाये उंगली के दबाव से मतली में राहत मिलती है। कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि एक्यूप्रेशर एक्यूपंक्चर के समान मोशन सिकनेस के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है।
सफर के दौरान उल्टियां होने पर ताजा, ठंडी हवा भी मोशन सिकनेस में थोड़ी राहत दे सकती है। यदि आप कार, बस, ट्रेन में सफर कर रहें हैं तो खिड़की से ताजी हवा ले सकते हैं।
च्यूइंग गम मोशन सिकनेस को कम करने का एक आसान तरीका है। सफर के दौरान उल्टियां होने पर सामान्य और हल्की कार सिकनेस से मुक्त होने के लिए यह एक सरल विधि है। च्यूइंग गम या लौंग या इलायची चबाने से कार में वोमिटिंग के हल्के प्रभाव से छुटकारा पाने में मदद मिलती है।
यात्रा के दौरान उल्टी रोकने के लिए एक आम सुझाव है कि चलती गाड़ी की खिड़की से बाहर यात्रा की दिशा में क्षितिज (सामने की तरफ) की ओर देखे। यह गति की द्रश्य में नयापन लाकर आपके संतुलन की भावना को फिर से चालू करने में मदद करता है।
यात्रा या हवाई यात्रा के दौरान उल्टी रोकने के लिए जहाज में, आंखों को बंद करना उपयोगी होता है, इसलिए यदि संभव होतो झपकी लें। यह आंखों और आंतरिक कान के बीच के इनपुट संघर्ष को हल करता है।
एक बार यात्रा खत्म होने के बाद मोशन सिकनेस बीमारी आमतौर पर दूर हो जाती है। लेकिन अगर आप को अभी भी चक्कर आ रहे हैं, सिरदर्द है, उल्टी, सुनने में कमी या छाती में दर्द है, तो अपने डॉक्टर से मिले।
यात्रा के दौरान मितली होने पर, यात्रा के दौरान आप कहां बैठते हैं इससे भी फर्क पड़ता है। कार की आगे की सीट, ट्रेन-बस में खिड़की वाली सीट, नाव में ऊपरी डेक या विमान में विंग सीट आपको यात्रा के दौरान उल्टी के बिना एक आसान सवारी का मजा दे सकती है। यात्रा करते वक्त खिड़की के बहार दाए और बाए दिशा में देखें। वाहन में कुछ पढ़ने या देखने की कोशिश ना करें, और यात्रा के पहले भारी भोजन, शराब और अन्य सॉफ्ट ड्रिंक्स से बचें। इसके अलावा यात्रा के दौरान उल्टी से बचने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पियें।
यात्रा में उल्टी- घबराहट से बचने के घरेलू उपाय
अदरक:
अदरक में ऐंटीमैनिक गुण होते हैं। एंटीमैनिक एक ऐसा पदार्थ है जो उल्टी और चक्कर आने से बचाता है। सफर के दौरान जी मिचलाने पर अदरक की गोलियां या फिर अदरक की चाय का सेवन करें। इससे आपको उल्टी नहीं आएगी। अगर हो सके तो अदरक अपने साथ ही रखें। अगर घबराहट हो तो इसे थोड़ा-थोड़ा खाते रहें।
प्याज का रस
सफर में होने वाली उल्टियों से बचने के लिए सफर पर जाने से आधे घंटे पहले 1 चम्मच प्याज के रस में 1 चम्मच अदरक के रस को मिलाकर लेना चाहिए। इससे आपको सफर के दौरान उल्टियां नहीं आएंगी। लेकिन अगर सफर लंबा है तो यह रस साथ में बनाकर भी रख सकते हैं।
लौंग
सफर के दौरान जैसे ही आपको लगे कि जी मिचलाने लगा है तो आपको तुरंत ही अपने मुंह में लौंग रखकर चूसनी चाहिए। ऐसा करने से आपका जी मिचलाना बंद हो जाएगा।लौंग को भूनकर इसे पीस लें और किसी डिब्बी में भरकर रख लें। जब भी सफर में जाएं या उल्टी जैसा मन हो तो इसे सिर्फ एक चुटकी मात्रा में चीनी या काले नमक के साथ लें और चूसें।
रुमाल में पुदीना रख लें
पुदीना पेट की मांसपेशियों को आराम देता है और इस तरह चक्कर आने और यात्रा के दौरान तबीयत खराब लगने की स्थिति को भी खत्म करता है। पुदीने का तेल भी उल्टियों को रोकने में बेहद मददगार है। इसके लिए रुमाल पर पुदीने के तेल की कुछ बूंदे छिड़कें और सफर के दौरान उसे सूंघते रहें। सूखे पुदीने के पत्तों को गर्म पानी में मिलाकर खुद के लिए पुदीने की चाय बनाएं। इस मिश्रण को अच्छे से मिलाएं और इसमें 1 चम्मच शहद मिलाएं। कहीं निकलने से पहले इस मिश्रण को पिएं।
नींबू
नींबू में मौजूद सिट्रिक ऐसिड उलटी और जी मिचलाने की समस्या को रोकते हैं। एक छोटे कप में गर्म पानी लें और उसमें 1 नींबू का रस व थोड़ा सा नमक मिलाएं। इसे अच्छे से मिलाकर पिएं। आप नींबू के रस को गर्म पानी में मिलाकर या शहद डालकर भी पी सकते हैं। यात्रा के दौरान होने वाली परेशानियों को दूर करने का यह एक कारगर इलाज है।
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18.11.19

ग्रीन टी सेहत के लिए वरदान तुल्य



ग्रीन टी में अधिक मात्रा में पौषक तत्व पाये जाते है जो हमारे शरीर के प्रतिरक्षातन्त्र को ताकतवर बनाते है| इससे हमारा शरीर विभिन्न तरह के रोगों से लड़ने लिये मजबूत हो जाता है, ग्रीन टी को मॉर्निंग ड्रिंक की तरह उपयोग करने के अलावा इसे हम अलग-अलग के तरह घरेलू नुस्खों और सौंदर्य संबंधी नुस्खों में भी इस्तेमाल करते है--आज हम भी आपसे घर पर ग्रीन टी बनाने की विधि बता रहे हैं जिससे आप भी इसे आसानी से बनाकर तैयार कर सकें तो आईये आज हम स्वादिष्ट और पौष्टिक ग्रीन टी (Green Tea) बनायेंगें-सामग्री :-
ग्रीन टी की पत्ती एक चम्मच या 5 ग्राम
पानी डेढ कप पावडर 1-2 चुटकी भर
शकर या शहद एक चम्मच या स्वाद के मुताबिक
ईलायची

विधि :-
ग्रीन टी बनाने के लिये सबसे पहले चाय बनाने की एक तपेली में पानी डालकर गरम करने के लिये गैस पर रखें, जब पानी में उबाल आ जाए तब उबलते हुये पानी में ग्रीन टी पाउडर डालकर गैस बंद दें और तपेली को
एक प्लेट से ढक दें जिससे ग्रीन टी पाउडर फ्लेवर पानी में अच्छी तरह से आ जाये। करीब 2 मिनट के बाद ग्रीन टी को एक छन्नी की सहायता से एक कप में छानकर निकाल लें और अब इस छनी हुई चाय में अपने स्वाद के अनुसार चीनी या फिर शहद और इलाइची पाउडर को डालकर चम्मच से अच्छी तरह मिला लें । स्वादिष्ट और पौष्टिक ग्रीन टी बनकर तैयार गयी है, आप ग्रीन टी को हल्का गुनगुना या फिर ठंडा करके सर्विंग कप में निकालकर सर्व करें। ग्रीन टी एंटी ऑक्सीडेंट की तरह काम करती है|
व्यायाम से भी आपको लग रहा है कि आपका वज़न कम नहीं हो रहा, तो आप दिन में ग्रीन टी पीना शुरू करें। ग्रीन टी में एंटी-ऑक्सीडेंट्स होने की वजह से यह शरीर की चर्बी को खत्म करती है। एक अध्ययन के अनुसार, ग्रीन टी शरीर के वज़न को स्थिर रखती है। ग्रीन टी सिर्फ चर्बी ही कम नहीं होती बल्कि मेटाबॉल्ज़िम भी सुधरता है और पाचक संस्थान की परेशानियां भी खत्म होती हैं। यह मोटापा कम करने के लिये काफी सहायक सिद्ध होती है, इसलिये ग्रीन टी को रोजाना कम से कम एक बार अपनी दिनचर्या में जरूर शामिल करें|
फ्रेश तैयार हरी चाय शरीर के लिए अच्छी और स्वस्थ्य वर्धक होती है। आप इसे या तो गर्म या ठंडा कर के पी सकते हैं, लेकिन इस बात का यकीन हो कि चाय एक घंटे से अधिक समय की पुरानी ना हो। ज्यादा खौलती गर्म चाय गले के कैंसर को आमंत्रित कर सकती है, तो बेहद गर्म चाय भी ना पिएं। यदि आप चाय को लंबे समय के लिए स्टोर कर के रखेंगे तो, इसके एंटीऑक्सीडेंट्स और विटामिन्स खत्म हो जाएँगे| इसके अलावा, इसमें मौजूद जीवाणुरोधी गुण भी समय के साथ कम हो जाते हैं। वास्तव में, अगर चाय अधिक देर के लिये रखी रही तो यह बैक्टीरिया को शरण देना शुरू कर देगी। इसलिये हमेशा ताजी ग्रीन टी ही पिएं|
*ग्रीन टी को भोजन से एक घंटा पहले पीने से वजन कम होता है। इसे पीने से भूख देर से लगती है दरअसल यह हमारी भूख को नियंत्रित करती है। ग्रीन टी को सुबह-सुबह खाली पेट बिल्‍कुल भी नहीं पीनी चाहिये|
दवाई के साथ ग्रीन टी लेना वर्जित है | दवाई को हमेशा पानी के साथ ही लेना चाहिये|
*ग्रीन टी में गुलाब जल मिलाने से इसमें मौजूद एंटी एजिंग और एंटी कार्सिनोजेनिक (कैंसर विरोधी तत्‍व) लाभ डबल हो जाते हैं। और शरीर में जमा अतिरिक्त टॉक्सिन निकल जाते है। इसे बनाने के लिए ग्रीन टी में एक बड़ा चम्‍मच गुलाब जल का मिलाये। 
*ज्यादा  तेज ग्रीन टी में कैफीन और पोलीफिनॉल की मात्रा बहुत अधिक  होती है। ग्रीन टी में इन सब सामग्री से शरीर पर खराब प्रभाव पड़ता है। तेज और कड़वी ग्रीन टी पीने से पेट की खराबी, अनिद्रा और चक्‍कर आने जैसी प्राबलेंम  पैदा हो सकती है|
*ज्यादा  चाय नुक्‍सानदायक हो सकती है। इसी तरह से अगर आप रोजाना 2-3 कप से ज्‍यादा ग्रीन टी पिएंगे तो यह नुक्‍सान करेगी। क्‍योंकि इसमें कैफीन होती है इसलिये तीन कप से ज्‍यादा चाय ना पिएं|
ग्रीन टी सेवन करने के लाभ 
*ग्रीन टी (Green Tea) मृत्यु दर को कम करने में सहायक होती हैं -
*शोध द्वारा ज्ञात हुआ कि ग्रीन टी (Green Tea) पीने वालों को मृत्यु का खतरा अन्य की अपेक्षा कम रहता हैं |*ग्रीन टी (Green Tea) से हृदय रोगियों को राहत मिलती हैं इससे हार्ट अटैक का खतरा कम होता हैं | और आज के समय में हार्ट अटैक से ही अधिक मृत्यु होती हैं जिस पर उम्र का कोई बंधन नहीं रह गया हैं | इस तरह ग्रीन टी मृत्यु दर को कम करती हैं |
ग्रीन टी कैंसर में भी फायदेमंद होती हैं -
*एक शौध के अनुसार ग्रीन टी से ब्रेस्ट कैंसर की बीमारी का खतरा 25 % तक कम होता हैं |यह कैंसर विषाणुओं को मारता हैं और शरीर के लिए आवश्यक तत्व को शरीर में बनाये रखता हैं |
*ग्रीन टी से वजन कम होता हैं :
ग्रीन टी से शरीर का मेटाबोलिज्म बढ़ता हैं जिससे उपापचय की क्रिया संतुलित होती हैं और शरीर का एक्स्ट्रा वसा कम होता हैं | और इससे वजन कम होता हैं और साथ ही उर्जा मिलती हैं |
ग्रीन टी मधुमेह के रोगियों के लिए भी फायदेमंद हैं :ग्रीन टी के सेवन से मधुमेह रोगी के रक्त में शर्करा का स्तर कम होता हैं | मधुमेह रोगी जैसे ही भोजन करता हैं | उसके शर्करा का स्तर बढ़ता हैं इसी लेवल को ग्रीन टी संतुलित करने में सहायक होती हैं |



ग्रीन टी से रक्त का कॉलेस्ट्रोल कम होता हैं :
ग्रीन टी से शरीर का हानिकारक कॉलेस्ट्रोल कम होता हैं और लाभकारी कॉलेस्ट्रोल का लेवल बनाये रखता हैं |ग्रीन टी ब्लडप्रेशर के रोगियों के लिए फायदेमंद हैं :
ग्रीन टी के सेवन से शरीर का ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता हैं क्यूंकि यह कॉलेस्ट्रोल के लेवल को बनाये रखता हैं |अल्जाईमर एवम पार्किन्सन जैसे रोगियों के लिए ग्रीन टी फायदेमंद होती हैं - ग्रीन टी के सेवन से अल्जाईमर एवम पार्किन्सन जैसी बीमारियाँ धीरे-धीरे बढ़ती हैं |ग्रीन टी ब्रेन सेल्स को बचाती हैं |और डैमेज सेल्स को रिकवर करते हैं |

ग्रीन टी दांत के लिए भी फायदेमंद होती हैं -
ग्रीन टी में केफीन होता हैं जो दांतों में लगे कीटाणुओं को मारता हैं, बेक्टेरिया को कम करता हैं | इससे दांत सुरक्षित होते हैं |ग्रीन टी (Green Tea)के सेवन से मानसिक शांति मिलती हैं :
ग्रीन टी (Green Tea)में थेनाइन होता हैं जिससे एमिनो एसिड बनता हैं जो शरीर में ताजगी बनाये रखता हैं इससे थकावट दूर होती हैं और मानसिक शांति मिलती हैं |
ग्रीन टी (Green Tea)से स्किन की केयर होती हैं : ग्रीन टी में एंटीएजिंग तत्व होते हैं जिससे चेहरे की झुर्रियां कम होती हैं | और चेहरे पर चमक और ताजगी बनी रहती हैं |इससे सन बर्न ने भी राहत मिलती हैं | स्किन पर सूर्य की तेज किरणों का प्रभाव नहीं पड़ता |
ग्रीन टी में केफीन की मात्रा अधिक होती हैं अतः इसका अत्यधिक सेवन हानिकारक हो सकता हैं | केफीन की अधिक मात्रा मेटाबोलिज्म बढाती हैं जिससे कई लाभ मिलते हैं जो उपर दिए गये हैं लेकिन अधिक मात्रा में केफीन भी शरीर के लिए गलत हो सकता हैं | खासतौर पर गर्भवती महिला या जो महिलायें गर्भ धारण करना चाहती हैं उनके लिए ग्रीन टी सही नहीं हैं कारण इससे आयरन और फोलिक एसिड कम होता हैं |ग्रीन टी को अदरक, नींबू एवम तुलसी के साथ लेना और भी फायदेमंद होता हैं | ऐसा नहीं हैं कि ग्रीन टी में केफीन होने से इसके सारे गुण अवगुण हो जाए लेकिन किसी भी चीज की अधिकता नुकसान का रूप ले लेती हैं |गर्भावस्था में हरी चाय के फायदे
ग्रीन चाय गर्भावस्था के दौरान शरीर में लौह, कैल्शियम और मैग्नेशियम की मात्रा की पूर्ती करती है।
आमतौर पर रात को सोते समय और भूख लगने पर कैफीन नहीं पीना चाहिये। रात को पीने से यह भूख बढ़ाता है और नींद भी ठीक से नहीं आती लेकिन इसके विपरीत गर्भावस्था के दौरान भी रात में हरी चाय पी सकते हैं, क्योंकि इसमें कैफीन की मात्रा कम होती है।

हाल में हुए शोधों से पता चला है कि हरी चाय बहुत सी कैंसर जैसी भयावह बीमारियों से भी बचाती हैं।
गर्भावस्था के दौरान हरी चाय रोगों से लड़ने का ना सिर्फ एक अच्छा उपाय है बल्कि इसमें सम्भावित रोगों से लड़ने की शक्ति भी है। यानी गर्भावस्था के दौरान होने वाली किसी भी संक्रमित बीमारी से बचाने का काम हरी चाय करती है।
गर्भावस्था के दौरान दांतों और मसूड़ों की कई तरह की समस्याएं हो जाती हैं और कई अध्ययनों के अनुसार दांतों के लिए ग्रीन-टी काफी लाभदायक है।गर्भावस्था के दौरान तरोताजा महसूस करवाने और चुस्त-दुरूस्त रखने में हरी चाय फायदेमंद है|
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15.11.19

वजन कम करने के लिए पानी कितना ,कैसे पीएं?how much water to lose weight




सेहत के लिए सबसे जरुरी है भरपूर मात्रा में पानी पीना। खासकर, अगर आप वजन कम करने का सोच रहे हैं तो पानी और भी जरुरी हो जाता है। पानी पीने से कैलोरी इनटेक कम हो जाती है क्योंकि इससे आपका पेट भरा हुआ रहता है।

 शोधकर्ता इस बात पर पूर्ण सहमत हैं कि पानी कैलोरी के सेवन को कम करता है, मेटाबोलिस्म को बढ़ाता है और पूर्णता की भावना को बनाए रखता है। इसके साथ ही पानी कोशिकाओं को हाइड्रेटेड रखने,   डिटॉक्सिफिकेशन और वजन घटाने की प्रक्रियाओं में योगदान देता है। यही कारण है कि फिटनेस विशेषज्ञ व्यक्तियों को “अधिक पानी” पीने की सलाह देते हैं। आप इस लेख में पानी और वजन कम करने के बीच संबंध को जान पायेगें। इस आर्टिकल में आप निम्न प्रश्नों के बारे में जानेगें, जैसे- पानी कैसे वजन कम करने में मदद करता है? वजन घटाने के लिए कितना पानी पीना पर्याप्त है? और वजन कम करने के लिए रोज कितना पानी पीना चाहिए।
 रिसर्च द्वारा स्पष्ट किया गया है कि, पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से वजन में कमी आती है। पानी थर्मोजेनेसिस (thermogenesis) को बढ़ाने में मदद करता है। यह प्रक्रिया शरीर में ऊष्मा के उत्पादन अर्थात चयापचय की क्रिया को बढ़ाती है। इसके अतिरिक्त भोजन से पहले पानी पीने से, पूर्णता की भावना में वृद्धि होती है जिससे पेट भरा हुआ महसूस करता है और जिससे अधिक भोजन का सेवन करने से बचा जा सकता है।

वजन घटाने के लिए कैसे पीएं पानी?

सुबह उठने के बाद - 2 गिलास सादा या नींबू पानी
वर्कआउट से 1 घंटे पहले - 2 गिलास
वर्काउट के बाद - 2 गिलास
खाने से 30 मिनट पहले - 2 गिलास
स्नैक्स टाइम - 2 गिलास पानी या डिटॉक्स वॉटर |एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन नहीं करने वाले व्यक्तियों की अपेक्षा, उन लोगों में जो पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन करते थे उनमे 12 सप्ताह में 44% अधिक वजन में कमी देखी गई।
 
गर्म पानी है ज्यादा फायदेमंद?

सर्दी हो या गर्मी, एक्सपर्ट हमेशा गुनगुना पानी पीने की ही सलाह देते हैं। दरअसल, ठंडे पानी से फैट जम जाता है और जल्दी नहीं पिघलता इसलिए हमेशा गुनगुना पानी पीने की सलाह दी जाती हैं। वहीं सुबह 1 गिलास गुनगुना पानी पीने से मेटाबॉलिज्म भी बूस्ट होता है, जिससे आप दिनभर एनर्जी के साथ वजन घटाने में भी काफी मदद मिलती है। यही नहीं, शरीर को डिटॉक्सीफाई करने के लिए गुनगुना पानी पीना फायदेमंद होता है।   पानी, लिपोलिसिस (lipolysis) की क्रिया को बढ़ाता है। लिपोलिसिस एक चयापचय प्रक्रिया है जिसके माध्यम से लिपिड ट्राइग्लिसराइड्स (lipid triglycerides) को ग्लिसरॉल और फैटी एसिड में हाइड्रोलाइज किया जाता है।
ऐसे आहार जिसमे अधिक पानी हो का सेवन करने से बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) कम हो जाता है, 
 अतः पानी का अधिक मात्रा में सेवन करने से व्यक्तियों को वजन कम करने में मदद मिल सकती है। पर्याप्त पानी का सेवन भूख में कमी करने, पूर्णता में वृद्धि करने, चयापचय और इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार करने, बीएमआई को कम करने और वसा को जलाने का काम करता है। पानी विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में भी मदद करता है, जिससे शरीर में सूजन और अन्य बीमारियों का ख़तरा कम होता है।
क्या पानी कैलोरी जला सकता है
 पीने का पानी थर्मोजेनेसिस (thermogenesis) को बढ़ाने में मदद करता है। थर्मोजेनेसिस जीवों में ऊष्मा के उत्पादन की एक प्रक्रिया है, जो कैलोरी को जलाने में मदद करती है। अधिक वजन और मोटापे से ग्रस्त बच्चों के एक अध्ययन में देखा गया है कि ठंडा पानी पीनेके बाद ऊर्जा की खपत 25% तक बढ़ गई। इसी के साथ एक अध्ययन में पाया कि 0.5 लीटर पानी पीने से अतिरिक्त 23 कैलोरी बर्न हो जाती है।
 पानी प्राकृतिक रूप से कैलोरी-मुक्त (calorie-free) होता है, इसलिए इसे आमतौर पर कम कैलोरी डाइट में शामिल किया जाता है। भोजन से पहले पानी पीने से मध्यम आयु वर्ग और वृद्ध व्यक्तियों को भूख कम लगती है। जिसके फलस्वरूप कैलोरी की मात्रा घटती है, और वजन में कमी आती है।
पेयजल या पीने का पानी भूख को प्रभावित करता है और पूर्णता में सुधार होता है। अध्ययनों से पता चला है कि नियमित रूप से भोजन से कुछ समय पहले पानी पीने से भूख में कमी आती है और 12 सप्ताह की अवधि में 2 किलो वजन कम हो सकता है। अतः वजन कम करने का प्रयास करने वाले व्यक्तियों को भोजन के 20 से 30 मिनट पहले पानी पीने की सलाह दी जाती है। एक अध्ययन से पता चला है कि नाश्ते से पहले पानी का सेवन करने से भोजन के दौरान कैलोरी की खपत 13% तक कम हो जाती है।
वजन घटाने के लिए एक दिन में कितना पानी पीना चाहिए
 सामान्य स्थितियों में, जब व्यक्ति वर्कआउट नहीं करता है, तब महिलाओं के लिए प्रतिदिन 2200 मिलीलीटर (2 लीटर) और पुरुषों को 3000 मिलीलीटर (3 लीटर) पानी पीना चाहिए। लेकिन यदि कोई व्यक्ति नियमित रूप से 60 मिनट तक कसरत (workout) करता है, तो उसे पानी का अधिक सेवन करने पर जोर देना चाहिए। एक्सरसाइज (exercising) करते समय 900 मिलीलीटर (लगभग 1 लीटर) पानी या हर 15 से 20 मिनट में 150-300 मिलीलीटर (mL) पानी घूंट-घूंट करके पीना आवश्यक होता है। जैसे-जैसे व्यायाम में वृद्धि की जाती है, तो सम्बंधित व्यक्ति को अपने आहार में हाइड्रेटिंग खाद्य पदार्थों और नारियल पानी को शामिल करने पर विचार करना चाहिए तथा इलेक्ट्रोलाइट संतुलन पर भी ध्यान रखना चाहिए।
 पानी का सेवन, किसी विशेष क्षेत्र के मौसम पर भी निर्भर करता है। शुष्क या आर्द्र क्षेत्रों में अधिक पसीना निकलने के कारण शरीर में पानी की कमी आ सकती है। अतः इस स्थिति में व्यक्ति को हर 15 मिनट में कम से कम 150 से 200 मिलीलीटर (mL) पानी पीना चाहिए।
 जो व्यक्ति औसतन वजन घटाने का प्रयास कर रहें है, उन्हें नियमित रूप से इंटेंसिव एक्सरसाइज करने के साथ-साथ महिलाओं को 4 से 5 लीटर प्रतिदिन और पुरुषों को 6 से 7 लीटर प्रतिदिन पानी पीने पर जोर देना चाहिए।
 वजन कम करने और सेल्युलर डिटॉक्सिफिकेशन (cellular detoxification) के लिए पर्याप्त इलेक्ट्रोलाइट्स की जरूरत होती है। वजन कम करने के लिए पानी की उच्च मात्रा वाले निम्नलिखित खाद्य पदार्थों का सेवन किया जा सकता हैं, जैसे:

अजवायन

खीरा
कीवी
बेल मिर्च
खट्टे फल
गाजर
अनानास
मूली , इत्यादि।

पर्याप्त पानी पीने के फायदे

पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से व्यक्ति को निम्न फायदे होते हैं जैसे:
पानी अनेक प्रकार के रोगों को रोकने में मदद करता है।
पानी शरीर में विषाक्तता को कम करने में मदद करता है।
पर्याप्त पानी का सेवन तनाव की स्थिति को कम करने में मदद करता है।
पानी मस्तिष्क के कार्य में सुधार करके मूड को बेहतर बनाने में मदद करता है।
पानी त्वचा को स्वस्थ रखने में मदद करता है।
फाइबर आहार के साथ अधिक पानी का सेवन, मल त्याग को बेहतर बनाने में मदद करता है।

पानी पीने का सही तरीका

-भोजन से आधा घंटे पहले कम से कम 2 गिलास पानी पीएं।
-भोजन करने के बाद भी तुरंत पानी ना पीएं। इसके 30 मिनट बाद पानी पीएं।
-बाहर से घर आने के बाद भी तुरंत पानी नहीं पीना चाहिए।
-वर्कआउट से पहले व बाद में 1-2 गिलास पानी जरूर पीएं। 
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14.11.19

खजूर (छुहारा) अनेक मर्ज की एक औषधि







छुहारा और खजूर एक ही पेड़ की देन है। इन दोनों की तासीर गर्म होती है और ये दोनों शरीर को स्वस्थ रखने, मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।छुहारे को खारक भी कहते हैं। यह पिण्ड खजूर का सूखा हुआ रूप होता है, जैसे अंगूर का सूखा हुआ रूप किशमिश और मुनक्का होता है। छुहारे का प्रयोग मेवा के रूप में किया जाता है। इसके मुख्य भेद दो हैं- 1. खजूर और 2. पिण्ड खजूर। इसके फल लाल, भूरे या काले बेलन आकार के होते हैं, जो 6 महीनों में पकते हैं। इसके फल में एक बीज होता है और छिलका गूदेदार होता है।एक पेड़ 50 किलो फल हर मौसम में देता है। इसकी औसत उम्र 50 वर्ष आँकी गई है। इसकी खेती मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के सूखे क्षेत्रों में की जाती है। इराक, ईरान और सऊदी अरब में इसका उत्पादन सर्वाधिक होता है। ठंड के दिनों में खाया जाने वाला यह फल बहुत पौष्टिक होता है। इसमें 75 से 80 प्रतिशत ग्लूकोज होता है।
खजूर को सर्दियों का मेवा कहा जाता है और इसे इस मौसम में खाने से खास फायदे होते हैं। खजूर या पिंडखजूर कई प्रकार के पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसमें आयरन और फ्लोरिन भरपूर मात्रा में होते हैं इसके अलावा यह कई प्रकार के विटामिंस और मिनरल्स का बहुत ही खास स्त्रोत होता है।
गर्म तासीर होने के कारण सर्दियों में तो इसकी उपयोगिता और बढ़ जाती है। खजूर में छुहारे से ज्यादा पौष्टिकता होती है। खजूर मिलता भी सर्दी में ही है।
गुण : यह शीतल, रस तथा पाक में मधुर, स्निग्ध, रुचिकारक, हृदय को प्रिय, भारी तृप्तिदायक, ग्राही, वीर्यवर्द्धक, बलदायक और क्षत, क्षय, रक्तपित्त, कोठे की वायु, उलटी, कफ, बुखार, अतिसार, भूख, प्यास, खाँसी, श्वास, दम, मूर्च्छा, वात और पित्त और मद्य सेवन से हुए रोगों को नष्ट करने वाला होता है। यह शीतवीर्य होता है, पर सूखने के बाद छुहारा गर्म प्रकृति का हो जाता है।
परिचय : यह 30 से 50 फुट ऊँचे वृक्ष का फल होता है। खजूर, पिण्ड खजूर और गोस्तन खजूर (छुहारा) ये तीन भेद भाव प्रकाश में बताए गए हैं। खजूर के पेड़ भारत में सर्वत्र पाए जाते हैं। सिन्ध और पंजाब में इसकी खेती विशेष रूप से की जाती है। पिण्ड खजूर उत्तरी अफ्रीका, मिस्र, सीरिया और अरब देशों में पैदा होता है। इसके वृक्ष से रस निकालकर नीरा बनाई जाती है।
उपयोग
खजूर के पेड़ से रस निकालकर 'नीरा' बनाई जाती है, जो तुरन्त पी ली जाए तो बहुत पौष्टिक और बलवर्द्धक होती है और कुछ समय तक रखी जाए तो शराब बन जाती है। इसके रस से गुड़ भी बनाया जाता है। इसका उपयोग वात और पित्त का शमन करने के लिए किया जाता है। यह पौष्टिक और मूत्रल है, हृदय और स्नायविक संस्थान को बल देने वाला तथा शुक्र दौर्बल्य दूर करने वाला होने से इन व्याधियों को नष्ट करने के लिए उपयोगी है। कुछ घरेलू इलाज में उपयोगी प्रयोग इस प्रकार हैं-
दुर्बलता : 4 छुहारे एक गिलास दूध में उबालकर ठण्डा कर लें। प्रातःकाल या रात को सोते समय, गुठली अलग कर दें और छुहारें को खूब चबा-चबाकर खाएँ और दूध पी जाएँ। लगातार 3-4 माह सेवन करने से शरीर का दुबलापन दूर होता है, चेहरा भर जाता है, सुन्दरता बढ़ती है, बाल लम्बे व घने होते हैं और बलवीर्य की वृद्धि होती है। यह प्रयोग नवयुवा, प्रौढ़ और वृद्ध आयु के स्त्री-पुरुष, सबके लिए उपयोगी और लाभकारी है।
इसका इस्तेमाल नियमित तौर पर करने से आप खुद को कई प्रकार के रोगों से दूर रख सकते हैं और यह कॉलेस्ट्राल कम रखने में भी मददगार है। खजूर को इस्तेमाल करने के अनगिनत फायदे हैं क्योंकि खजूर में कॉलेस्ट्रोल नही होता है और फेट का स्तर भी काफी कम होता है। खजूर में प्रोटीन के साथ साथ डाइटरी फाइबर और विटामिन B1,B2,B3,B5,A1 और c भरपूर मात्रा में होते हैं।
घाव और गुहेरी : छुहारे की गुठली को पानी के साथ पत्थर पर घिसकर, इसका लेप घाव पर लगाने से घाव ठीक होता है। आँख की पलक पर गुहेरी हो तो उस पर यह लेप लगाने से ठीक होती है।
रात में बिस्तर गीला करने वाले बच्चों के लिए खजूर अत्यधिक लाभकारी है। यह उन लोगों के लिए भी बहुत कारगर है जिन्हें बार-बार बाथरुम जाना पडता है
शीघ्रपतन : प्रातः खाली पेट दो छुहारे टोपी सहित खूब चबा-चबाकर दो सप्ताह तक खाएँ। तीसरे सप्ताह से 3 छुहारे लेने लगें और चौथे सप्ताह से 4 चार छुहारे से ज्यादा न लें। इस प्रयोग के साथ ही रात को सोते समय दो सप्ताह तक दो छुहारे, तीसरे सप्ताह में तीन छुहारे और चौथे सप्ताह से बारहवें सप्ताह तक यानी तीन माह पूरे होने तक चार छुहारे एक गिलास दूध में उबालकर, गुठली हटाकर, खूब चबा-चबाकर खाएँ और ऊपर से दूध पी लें। यह प्रयोग स्त्री-पुरुषों को अपूर्व शक्ति देने वाला, शरीर को पुष्ट और सुडौल बनाने वाला तथा पुरुषों में शीघ्रपतन रोग को नष्ट करने वाला है।
*खजूर में शरीर को एनर्जी प्रदान करने की अद्भुत क्षमता होती है क्योंकि इसमें प्राक्रतिक शुगर जैसे की ग्लूकोज़, सुक्रोज़ और फ्रुक्टोज़ पाए जाते हैं। खजूर का भरपूर फायदा इसे दूध में मिलाकर इस्तेमाल करने से मिलता है।
दमा : दमा के रोगी को प्रतिदिन सुबह-शाम 2-2 छुहारे खूब चबाकर खाना चाहिए। इससे फेफड़ों को शक्ति मिलती है और कफ व सर्दी का प्रकोप कम होता है।
खजूर उन लोगों के लिए अत्यधिक लाभकारी है जो वजन बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। इसका उपयोग शराब पीने से शरीर को होने वाले नुकसान से बचने में भी किया जाता है।अगर पाचन शक्ति अच्छी हो तो खजूर खाना ज्यादा फायदेमंद है।
*अगर आप अपने शरीर का शुगर स्तर को खजूर के उपयोग से निय़ंत्रित कर सकते हैं। खजूर को शहद के साथ इस्तेमाल करने से डायरिया में भरपूर लाभ होता है।
*छुहारे का सेवन तो सालभर किया जा सकता है, क्योंकि यह सूखा फल बाजार में सालभर मिलता है।
खजूर से पेट का कैंसर भी ठीक होता है। इसके विषय में सबसे अच्छी बात यह है कि इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। इससे आंखों की रोशनी भी बढ़ती है और इसके नियमित उपयोग से रतोंधी से भी छुटकारा मिलता है।
*छुहारा यानी सूखा हुआ खजूर आमाशय को बल प्रदान करता है।
*खजूर में पाए जाने वाली पोटेशियम की भरपूर और सोडियम की कम मात्रा के कारण से शरीर के नर्वस सिस्टम के लिए बेहद लाभकारी है। शोध से साबित हुआ है कि शरीर को पोटेशियम की काफी जरुरत होती है और इससे स्ट्रोक का खतरा कम होता है। खजूर शरीर में होने वाले LDL कॉलेस्ट्रोल के स्तर को भी कम रखकर आपके दिल के स्वास्थ्य की रक्षा करता है।
*छुहारे की तासीर गर्म होने से ठंड के दिनों में इसका सेवन नाड़ी के दर्द में भी आराम देता है।
*खजूर के उपयोग से निराशा को दूर किया जा सकता है और यह स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए अत्यधिक लाभकारी है। खजूर गर्भवती महिलाओं में होने वाली कई प्रकार की समस्याओं से छुटकारा दिलाता है क्योंकि यह बच्चेदानी की दीवार को मज़बूती प्रदान करता है। इससे बच्चों के पैदा होने की प्रक्रिया आसान हो जाती है और खून का स्त्राव भी कम होता है।
*छुहारा खुश्क फलों में गिना जाता है, जिसके प्रयोग से शरीर हृष्ट-पुष्ट बनता है। शरीर को शक्ति देने के लिए मेवों के साथ छुहारे का प्रयोग खासतौर पर किया जाता है।
. *सेक्सुअल स्टेमिना बढाने में खजूर की अहम भूमिका होती है। खजूर को रातभर बकरी के दूध में गलाकर सुबह पीस लेना चाहिए और फिर इसमें थोड़ा शहद और इलाइची मिलाकर सेवन करने से सेक्स संबंधी समस्याओं में बहुत लाभ होता है।
*छुहारे व खजूर दिल को शक्ति प्रदान करते हैं। यह शरीर में रक्त वृद्धि करते हैं।
*खजूर में पाया जाने वाला आयरन शरीर में खून की कमी यानी की एनीमिया को ठीक करने में बहुत कारगर है। *खजूर की मात्रा बढाकर खून की कमी को दूर किया जा सकता है। ख़जूर में फ्लूरिन भी पाया जाता है जिससे दांतों के क्षय होने की प्रकिया धीमी हो जाती है।
*साइटिका रोग से पीड़ित लोगों को इससे विशेष लाभ होता है।


*खजूर के सेवन से दमे के रोगियों के फेफड़ों से बलगम आसानी से निकल जाता है।
लकवा और सीने के दर्द की शिकायत को दूर करने में भी खजूर सहायता करता है।
*भूख बढ़ाने के लिए छुहारे का गूदा निकाल कर दूध में पकाएं। उसे थोड़ी देर पकने के बाद ठंडा करके पीस लें। यह दूध बहुत पौष्टिक होता है। इससे भूख बढ़ती है और खाना भी पच जाता है।
*प्रदर रोग स्त्रियों की बड़ी बीमारी है। छुआरे की गुठलियों को कूट कर घी में तल कर, गोपी चन्दन के साथ खाने से प्रदर रोग दूर हो जाता है।
*छुहारे को पानी में भिगो दें। गल जाने पर इन्हें हाथ से मसल दें। इस पानी का कुछ दिन प्रयोग करें, शारीरिक जलन दूर होगी।
*अगर आप पतले हैं और थोड़ा मोटा होना चाहते हैं तो छुहारा आपके लिए वरदान साबित हो सकता है, लेकिन अगर मोटे हैं तो इसका सेवन सावधानीपूर्वक करें।
*जुकाम से परेशान रहते हैं तो एक गिलास दूध में पांच दाने खजूर डालें। पांच दाने काली मिर्च, एक दाना इलायची और उसे अच्छी तरह उबाल कर उसमें एक चम्मच घी डाल कर रात में पी लें। सर्दी-जुकाम बिल्कुल ठीक हो जाएगा।
*दमा की शिकायत है तो दो-दो छुहारे सुबह-शाम चबा-चबा कर खाएं। इससे कफ व सर्दी से मुक्ति मिलती है।
घाव है तो छुहारे की गुठली को पानी के साथ पत्थर पर घिस कर उसका लेप घाव पर लगाएं, घाव तुरंत भर जाएगा।
*अगर शीघ्रपतन की समस्या से परेशान हैं तो तीन महीने तक छुहारे का सेवन आपको समस्या से मुक्ति दिला देगा। इसके लिए प्रात: खाली पेट दो छुहारे टोपी समेत दो सप्ताह तक खूब चबा-चबाकर खाएं। तीसरे सप्ताह में तीन छुहारे खाएं और चौथे सप्ताह से 12वें सप्ताह तक चार-चार छुहारों का रोज सेवन करें। इस समस्या से मुक्ति मिल जाएगी।
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29.8.19

रजोनिवृत्ति की समस्याओं के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार //menopause




मेनोपॉज या रजोनिवृति
मेनोपॉज महिला के शरीर की उस अवस्था को कहते हैं. जिस अवस्था में महिला को मासिक धर्म होने बंद हो जाते हैं. मेनोपॉज होने का मतलब हैं महिला के शरीर में प्रजनन क्षमता का खत्म हो जाना. इस अवस्था में पहुंचकर महिला के अंडाशय में अंडाणुओं के बनने की क्रिया समाप्त हो जाती हैं. महिला में मेनोपॉज की अवस्था 40 से 50 वर्ष के बीच की हो सकती हैं.

जैसे आजकल कुछ महिलाओं में समय से पहले यह समस्या उत्पन्न हो रही है की उनका अंडाशय कम एस्ट्रोजन का उत्पादन कर रहा है जिससे उनके शरीर में एस्ट्रोजन की कमी हो रही है और जिसकी वजह से उनकी माहवारी भी अनियमित हो जाती है जिसे प्रीमेनोपॉज (perimenopause) कहा जाता है और जब पूरे एक साल तक माहवारी ना आने की स्थिति बनी रहे तो उसे फुल मेनोपॉज (full menopause) कहा जाता है।
रजोनिवृत्ति की स्थिति आने के बाद महिलाओं में कई तरह की परेशानियां उत्पन्न होने लगती है जैसे नींद ना आना, मूड स्विंग्स होना, चिड़चिड़ापन, थकान, तनाव आदि होना। इसके अलावा रजोनिवृत्त महिलाओं को ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis), मोटापा, हृदय रोग और टाइप 2 डायबिटीज सहित कई अन्य बीमारियों का खतरा भी होता है।
रजोनिवृत्ति के बाद होने वाली समस्या को कैसे कम करें
आप रजोनिवृत्ति या मीनोपॉज की समस्या को आसानी से कुछ घरेलू उपाय या घरेलू नुस्खे अपना कर या अपनी जीवनशैली में कुछ बदलाव करके कम कर सकती है। अगर आप मीनोपॉज के बाद भी स्वस्थ और खुशहाल जीवन चाहती है तो बहुत से घरेलू तरीके आपके काम आ सकते है और आपको रजोनिवृत्ति के बाद होने वाली कई गंभीर बीमारियों से भी बचा सकते है।
घरेलू उपचार
कैल्शियम से भरपूर खाद्य पदार्थ
कैल्शियम से भरपूर खाद्य पदार्थ रजोनिवृत्ति को जल्दी आने से रोकने का एक अच्छा घरेलू उपाय है। रजोनिवृत्ति या मीनोपॉज के दौरान हार्मोनल परिवर्तन की वजह से हड्डियाँ कमजोर हो सकती है, जिससे ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ सकता है। कैल्शियम और विटामिन डी मजबूत हड्डियों के लिए अच्छे स्रोत होते हैं, इसलिए आपके आहार में इन पोषक तत्वों का पर्याप्त मात्रा में होना महत्वपूर्ण होता है। पोस्टमेनोपॉज़ल (postmenopausal) वाली महिलाओं द्वारा पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी का सेवन करने से कमजोर हड्डियों के कारण होने वाले हिप फ्रैक्चर के जोखिम को भी कम किया जा सकता है।
कई खाद्य पदार्थ कैल्शियम से भरपूर होते हैं, जिसमें कई डेयरी उत्पाद भी शामिल है जैसे दही, दूध और पनीर।
रजोनिवृत्ति के घरेलू उपाय के रूप में आप हरी, पत्तेदार सब्जियाँ जैसे पालक, पत्तागोभी में भी बहुत सारा कैल्शियम होता है तो आप इनका भी सेवन कर सकती है। टोफू, बीन्स जैसे अन्य खाद्य पदार्थों में भी भरपूर मात्रा में कैल्शियम और विटामिन डी होता है। इसके अतिरिक्त, शरीर में कैल्शियम बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ जैसे अनाज, फलों का रस या दूध के विकल्प को भी शामिल किया जा सकता है और यह इसके बहुत अच्छे स्रोत भी हैं।
विटामिन डी का सेवन
सूर्य का प्रकाश विटामिन डी का मुख्य स्रोत माना जाता है, क्योंकि जब आपकी त्वचा सूर्य के संपर्क में आती है तब वह इसका उत्पादन करती है जिससे हमारे शरीर को विटामिन डी मिलता है। हालाँकि, जैसे-जैसे हम बूढ़े होते जाते हैं, हमारी त्वचा इसे बनाने में कम कुशल हो जाती है। इसलिए यदि आप धूप में ज्यादा बाहर नहीं निकलती हैं या अपने आप को पूरा ढंक कर चलती हैं, तो आपको विटामिन डी के सप्लीमेंट या खाद्य पदार्थ लेना बहुत ही महत्वपूर्ण हो सकता है। विटामिन डी के समृद्ध आहार स्रोतों में शामिल है ऑयली फिश, अंडे, मशरुम, सोया मिल्क आदि।
मेनोपॉज का आयुर्वेदिक इलाज
सही वजन को बनाये रखना रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज) के लक्षणों को कम करने का अचूक घरेलू उपाय माना जाता है रजोनिवृत्ति के दौरान वजन बढ़ना एक आम बात है। वजन बढ़ने का कारण बदलते हार्मोन, बढ़ती उम्र, अनियमित जीवन शैली और आनुवांशिक भी हो सकता है।
रजोनिवृत्ति के दौरान शरीर की अतिरिक्त चर्बी, विशेषकर कमर के आस-पास की चर्बी से हृदय रोग और मधुमेहजैसी बीमारियों के होने का खतरा बढ़ सकता है। इसके अलावा, आपके शरीर का वजन आपके रजोनिवृत्ति के लक्षणों की वजह से भी प्रभावित हो सकता है।
फल और सब्जियां
मीनोपॉज की समस्या के लिए एक अच्छा घरेलू तरीका है फल और सब्जियों का सेवन करना क्योकि फलों और सब्जियों का भरपूर आहार लेने से रजोनिवृत्ति के बाद उत्पन्न होने वाले कई लक्षणों और समस्याओं को रोका जा सकता है।
फल और सब्जियों में कैलोरी की मात्रा कम होती हैं इसलिए इनके सेवन से आसानी से वजन घटाया जा सकता हैं। फल और सब्जियों का आहार लेने से हृदय रोग सहित कई बीमारियों को होने से भी रोका जा सकता हैं। ऐसा करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि रजोनिवृत्ति के बाद हृदय रोग का जोखिम बढ़ जाता है। यह बीमारी उम्र बढ़ने, वजन बढ़ने या संभवतः एस्ट्रोजन के स्तर को कम करने जैसे कारकों के कारण होती है।
जल्दी रजोनिवृत्ति के लक्षणों को रोकने के लिए फल और सब्जियों के सेवन से हड्डियों को होने वाले नुकसान को रोकने में मदद मिल सकती हैं। एक शोध में यह पाया गया है की 50-59 आयु वर्ग की महिलाओं का फल और सब्जियों के आहार अधिक लेने से हड्डियों के टूटने की समस्या को कम किया जा सकता है।
भरपूर पानी पीना
रजोनिवृत्ति या मीनोपॉज के दौरान, महिलाओं को अक्सर सूखापन का अनुभव होता है। यह एस्ट्रोजन के स्तर में कमी के कारण हो सकता है। इसलिए दिन में 8-12 गिलास पानी पीने से इन लक्षणों को कम करने में मदद मिल सकती है।
भरपूर पानी पीने से हार्मोनल परिवर्तन के साथ शरीर में होने वाली सूजन को भी कम किया जा सकता है। जो मेनोपॉज को रोकने में है लाभकारी साबित हो सकता है इसके अलावा ज्यादा पानी पीने से आपको वजन कम करने
में भी सहायता मिल सकती है और आप अपने मेटाबोलिज्म को भी मजबूत कर सकती हैं।
ऐसा माना गया है की भोजन से 30 मिनट पहले 500 मिली पानी पीने से आप भोजन के दौरान 13% कम कैलोरी का उपभोग कर सकती हैं।
रिफाइंड शुगर और प्रोसेस्ड फूड से बचें-
रिफाइंड कार्ब्स (refined carbs) और चीनी का उच्च आहार लेने से ब्लड शुगर का स्तर तेजी से बढ़ और घट सकता है जिससे आप रजोनिवृत्ति के दौरान थका हुआ और चिड़चिड़ा महसूस कर सकती हैं। एक अध्ययन में पाया गया कि रिफाइंड कार्ब्स का उच्च आहार लेने से पोस्टमेनोपॉज़ल (postmenopausal) महिलाओं में अवसाद का जोखिम बढ़ सकता हैं। प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (processed food) का उच्च आहार लेने से हड्डियां भी प्रभावित हो सकती है।
प्रोटीन युक्त आहार
नियमित रूप से दिन भर प्रोटीन युक्त आहार लेने से कमजोर मांसपेशियों को नुकसान पहुँचने से बचाया जा सकता है, क्योकि रजोनिवृत्ति की यह समस्या उम्र के साथ बढ़ती है इसलिए हमेशा कोशिश करें की आप ज्यादा से ज्यादा मात्रा में प्रोटीन युक्त भोजन ले पाएं। मांसपेशियों के नुकसान को रोकने में मदद करने के अलावा, उच्च-प्रोटीन आहार वजन घटाने में भी मदद कर सकते हैं क्योंकि वह शरीर में कैलोरी की मात्रा को कम करते हैं। मेनोपॉज के लक्षणों को रोकने के लिए प्रोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थों में शामिल है मांस, मछली, अंडे, फलियां, नट और डेयरी प्रोडक्ट। इन सभी घरेलू उपचारों से आप रजोनिवृत्ति या मेनोपॉज की समस्या से आसानी से उभर सकती है और स्वस्थ रह सकती है।
फाइटोएस्ट्रोजेन से भरपूर आहार
फाइटोएस्ट्रोजेन (phytoestrogen) स्वाभाविक रूप से पैदा हुए पौधे के यौगिक (compound) होते हैं जो शरीर में एस्ट्रोजेन के प्रभाव की नकल करते हैं। इसलिए यह फाइटोएस्ट्रोजेन हार्मोन को संतुलित करने में मदद करते हैं।
फाइटोएस्ट्रोजेन से भरपूर खाद्य पदार्थों में शामिल है सोयाबीन और सोया उत्पाद जैसे टोफू, अलसी, तिल और सेम।
कई शोध से यह पता चला है कि रजोनिवृत्ति के दौरान फाइटोएस्ट्रोजेन से भरे खाद्य पदार्थ, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (processed food) जिनमें सोया प्रोटीन होता है और बहुत से सप्लीमेंट्स से बेहतर होता हैं।
मेनोपॉज के उपचार
1. मेनोपॉज से होने वाली किसी भी समस्या से छुटकारा पाने के लिए महिलाएं भोजन में कुछ विशेष पदार्थों का सेवन कर सकती हैं. मेनोपॉज की अवस्था में बंदगोभी, फलीदार सब्जियों की तथा दलों का सेवन करना चाहियें. इससे मेनोपॉज से होने वाली शरीर की सारी बिमारियां ठीक हो जाती हैं.
2. मेनोपॉज की अवस्था में महिलाओं को फाइटो एस्ट्रोजन लेना आरम्भ कर देना चाहिए. फाइटो एस्ट्रोजन हमें सोयाबीन से, सोया से, पनीर से, सोया मिल्क से, सोया आटा से तथा सोयाबीन की बड़ियों से मिलता हैं. इस लिए 50 साल की तथा इससे ज्यादा उम्र की महिलाओं को इन सभी खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए.
3. मेनोपॉज में महिला अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए दूध और तिल का प्रयोग कर सकती हैं. मेनोपॉज की अवस्था में महिला को प्रतिदिन एक गिलास दूध में तिल को मिलाकर पीना चाहिए. इस दूध को पीने से महिला का शरीर स्वस्थ रहता हैं.
4. मेनोपॉज के कारण अगर किसी महिला के शरीर के अंगों में दर्द रहता हैं तो वह गाजर के बीजों का उपयोग कर सकती हैं. इसके लिए गाजर के बीजों को दूध में डालकर कुछ देर उबाल लें.

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    15.8.19

    दारुहरिद्रा है गुणों का खजाना-daru haridra benefits




      दारुहल्दी एक आयुर्वेदिक औषधीय पौधा है | इसे दारुहरिद्रा भी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है हल्दी के समान पिली लकड़ी | इसका वृक्ष अधिकतर भारत और नेपाल के हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाते है | इसके वृक्ष की लम्बाई 6 से 18 फीट तक होती है | पेड़ का तना 8 से 9 इंच के व्यास का होता है | भारत में दारूहल्दी के वृक्ष अधिकतर समुद्रतल से 6 – 10 हजार फीट की ऊंचाई पर जैसे – हिमाचल प्रदेश, बिहार, निलगिरी की पहाड़ियां आदि जगह पाए जाते है |

    दारुहरिद्रा (वानस्पतिक नाम:Berberis aristata) एक औषधीय जड़ी बूटी है। दारुहरिद्रा के फायदे जानकर आप हैरान हो जाएगें। इसे दारू हल्दी के नाम से भी जाना जाता हैं । यह मधुमेह की चिकित्सा में बहुत उपयोगी है। यह ऐसी जड़ी बूटी है जो कई असाध्‍य स्‍वास्‍थ्‍य सस्‍याओं को प्रभावी रूप से दूर कर सकती है। दारू हल्दी का पौधा भारत और नेपाल के पर्वतीय हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। यह श्रीलंका के कुछ स्थानों में भी पाया जाता है। दारुहरिद्रा के फायदे होने के साथ ही कुछ सामान्‍य नुकसान भी होते हैं। दारुहरिद्रा को इंडियन बारबेरी (Indian barberry) या ट्री हल्‍दी (tree turmeric) के नाम से भी जाना जाता है। यह बार्बरीदासी परिवार से संबंधित जड़ी बूटी है। इस जड़ी बूटी को प्राचीन समय से ही आयुर्वेदिक चिकित्‍सा प्रणाली में उपयोग किया जा रहा है।
    दारुहरिद्रा के फायदे लीवर सिरोसिस, सूजन कम करने, पीलिया, दस्‍त का इलाज करने, मधुमेह को नियंत्रित करने, कैंसर को रोकने, बवासीर का इलाज करने, मासिक धर्म की समस्‍याओं को रोकने आदि में होते हैं। 
    आयुर्वेदिक मतानुसार दारुहल्दी गुण में लघु , स्वाद में कटु कषाय, तिक्त तासीर में गर्म, अग्निवद्धक, पौष्टिक, रक्तशोधक, यकृत उत्तेजक, कफ नाशक, व्रण शोधक, पीड़ा, शोथ नाशक होती है। यह ज्वर, श्वेत व रक्त प्रदर, नेत्र रोग, त्वचा विकार, गर्भाशय के रोग, पीलिया, पेट के कृमि, मुख रोग, दांतों और मसूड़ों के रोग, गर्भावस्था की जी मिचलाहट आदि में गुणकारी है।
    यूनानी चिकित्सा पद्धति में दारुहल्दी दूसरे दर्जे की सर्द और खुश्क तथा जड़ की छाल पहले दर्जे की गर्म और खुश्क मानी गई है। इसके फल जरिश्क, यूनानी में एक उत्तम औषधि मानी गई है। यह आमाशय, जिगर और हृदय के लिए बलवर्द्धक है। इसके सेवन से जिगर और मेदे की खराबी से दस्त लगना, मासिक धर्म की अधिकता, सूजन, बवासीर के कष्टों में आराम मिलता है।

    दारुहरिद्रा की तासीर

    दारुहरिद्रा की तासीर गर्म होती है जिसके कारण यह हमारे पाचन तंत्र के अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य में मदद करता है। इसके अलावा दारुहरिद्रा में अन्‍य पोषक तत्‍वों और खनिज पदार्थों की भी उच्‍च मात्रा होती है। जिसके कारण यह हमारे शरीर को कई स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं से बचाता है।

    दारुहरिद्रा के अन्‍य नाम

    दारुहरिद्रा एक प्रभावी जड़ी बूटी है जिसे अलग-अलग स्‍थानों पर कई नामों से जाना जाता है। दारुहरिद्रा का वान‍स्‍पतिक नाम बर्बेरिस एरिस्‍टाटा डीसी (Berberis aristata Dc) है जो कि बरबरीदासी (Berberidaceae) परिवार से संब‍ंधित है। दारुहरिद्रा के अन्‍य भाषाओं में नाम इस प्रकार हैं :
    अंग्रेजी नाम – इंडियन बारबेरी (Indian berberi)
    हिंदी नाम – दारु हल्‍दी (Daru Haldi)
    तमिल नाम – मारा मंजल (Mara Manjal)
    बंगाली नाम – दारुहरिद्रा (Daruharidra)
    पंजाबी नाम – दारू हल्‍दी (Daru Haldi)
    मराठी नाम – दारुहलद (Daruhalad)
    गुजराती नाम – दारु हलधर (Daru Haldar)
    फारसी नाम – दारचोबा (Darchoba)
    तेलुगु नाम – कस्‍तूरीपुष्‍पा (Kasturipushpa)

    दारुहरिद्रा के फायदे

    पोषक तत्वों और खनिज पदार्थों की उच्‍च मात्रा होने के कारण दारुहरिद्रा के फायदे हमारे बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य के लिए होते हैं। यह ऐसी जड़ी बूटी है जो उपयोग करने पर कई जटिल स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं को आसानी से दूर कर सकती है। आइए विस्‍तार से समझें दारुहरिद्रा के स्‍वास्‍थ्‍य लाभ और उपयोग करने का तरीका क्‍या है।

    रसौत के लाभ बवासीर के लिए

    दारुहरिद्रा या रसौत के फायदे बवासीर के लिए भी होते हैं। बवासीर की समस्‍या किसी भी व्‍यक्ति के लिए बहुत ही कष्‍टदायक होती है। इसके अलावा रोगी इस बीमारी के कारण बहुत ही कमजोर हो जाता है। क्‍योंकि इस दौरान उनके शरीर में रक्‍त की कमी हो सकती है। लेकिन इस समस्‍या से बचने के लिए दारुहरिद्रा के फायदे होते हैं। दारुहरिद्रा में ब्‍लीडिंग पाइल्‍स का उपचार करने की क्षमता होती है। बवासीर रोगी को नियमित रूप से इस जड़ी बूटी को मक्‍खन के साथ 40-100 मिलीग्राम मात्रा का सेवन करना चाहिए। दारुहरिद्रा के यह लाभ इसमें मौजूद एंटीआक्‍सीडेंट, जीवाणुरोधी, एंटीफंगल और एंटीवायरल गुणों के कारण होते हैं। ये सभी गुण बवासीर के लक्षणों को कम करने और शरीर को अन्‍य प्रकार के संक्रमण से बचाने में सहायक होते हैं।

    आंखों के लिए

    आप अपनी आंखों को स्‍वस्‍थ्‍य रखने और देखने की क्षमता को बढ़ाने के लिए दारु हल्‍दी का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। औषधीय गुणों से भरपूर दारुहरिद्रा को आंखों के संक्रमण दूर करने में प्रभावी पाया गया। इसके लिए आप दारुहरिद्रा को मक्‍खन, दही या चूने के साथ मिलाएं और आंखों की ऊपरी क्षेत्र में बाहृ रूप से लगाएं। यह आंखों की बहुत सी समस्‍याओं को दूर कर सकता है। यदि आप आंख आना या कंजंक्टिवाइटिस से परेशान हैं तो दूध के साथ इस जड़ी बूटी को मिलकार लगाएं। यह आंख के संक्रमण को प्रभावी रूप से दूर कर नेत्रश्‍लेष्‍म को कम करने में मदद करती है।

    दारुहरिद्रा के फायदे मधुमेह के लिए

    यदि आप मधुमेह रोगी हैं तो दारुहरिद्रा जड़ी बूटी आपके लिए बहुत ही फायदेमंद हो सकती है। क्‍योंकि इस पौधे के फलों में रक्‍त शर्करा को कम करने की क्षमता होती है। नियमित रूप से उपयोग करने पर यह आपके शरीर में चयापचय एंजाइमों को सक्रिय करता है। जिससे आपके रक्‍त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है। आप भी अपने आहार में दारुहरिद्रा और इसके फल को शामिल कर मधुमेह के लक्षणों को कम कर सकते हैं।

    बुखार ठीक करे

    जब शरीर का तापमान अधिक होता है या बुखार की संभावना होती है तो दारुहरिद्रा का उपयोग लाभकारी होता है। इस दौरान इस जड़ी बूटी का सेवन करने से शरीर के तापमान को कम करने में मदद मिलती है। इसके अलावा यह शरीर में पसीने को प्रेरित भी करता है। पसीना निकलना शरीर में तापमान को अनुकूलित करने का एक तरीका होता है। साथ ही पसीने के द्वारा शरीर में मौजूद संक्रमण और विषाक्‍तता को बाहर निकालने में भी मदद मिलती है। इस तरह से दारुहरिद्रा का उपयोग बुखार को ठीक करने में मदद करता है। रोगी को दारुहरिद्रा के पौधे की छाल और जड़ की छाल को मिलाकर एक काढ़ा तैयार करें। इस काढ़े को नियमित रूप से दिन में 2 बार सेवन करें। यह बुखार को कम करने का सबसे बेहतरीन तरीका हो सकता है।

    दस्‍त के इलाज में

    आयुर्वेद और अध्‍ययनों दोनों से इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि दारुहरिद्रा जड़ी बूटी दस्‍त जैसी गंभीर समस्‍या का निदान कर सकती है। शोध के अनुसार इस जड़ी बूटी में ऐसे घटक मौजूद होते हैं जो पाचन संबंधी समस्‍याओं को दूर कर सकते हैं। इसके अलावा इसमें मौजूद एंटीबैक्‍टीरियल और एंटीमाइक्रोबियल गुण पेट में मौजूद संक्रामक जीवाणुओं के विकास और प्रभाव को कम करते हैं। जिससे दस्‍त और पेचिश जैसी समस्‍याओं को रोकने में मदद मिलती है। आप सभी जानते हैं कि दूषित भोजन और दूषित पानी पीने के कारण ही दस्‍त और पेचिश जैसी समस्‍याएं होती है। लेकिन इन समस्‍याओं से बचने के लिए दारुहरिद्रा जड़ी बूटी फायदेमंद होती है। दस्‍त का उपचार करने के लिए इस जड़ी बूटी को पीसकर शहद के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करना चाहिए।
    बेनिफिट्स फॉर स्किन
    अध्‍ययनों से पता चलता है कि दारुहरिद्रा में त्‍वचा समस्‍याओं को दूर करने की क्षमता भी होती है। आप अपनी 

    त्वचा समस्‍याओं जैसे मुंहासे

    , घाव, अल्‍सर आदि का इलाज करने के लिए दारुहरिद्रा जड़ी बूटी का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। ऐसी स्थितियों का उपचार करने के लिए आप इस पौधे की जड़ का इस्‍तेमाल कर सकते हैं।

    सूजन के लिए

    अध्‍ययनों से पता चलता है कि सूजन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने के लिए दारुहरिद्रा फायदेमंद होती है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि इस जड़ी बूटी में एंटीऑक्‍सीडेंट और एंटी-इंफ्लामेटरी गुण होते हैं। जिनके कारण यह सूजन और इससे होने वाले दर्द को प्रभावी रूप से कम कर सकता है। अध्‍ययनों से यह भी पता चलता है कि यह गठिया की सूजन को दूर करने में सक्षम होता है। सूजन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने के लिए आप दारू हल्‍दी का पेस्‍ट बनाएं और प्रभावित जगह पर लगाएं। ऐसा करने से आपको सूजन और दर्द से राहत मिल सकती है।

    कैंसर से बचाव

    दारुहरिद्रा या रसौत में कैंसर कोशिकाओं को रोकने और नष्‍ट करने की क्षमता होती है। क्‍योंकि यह जड़ी बूटी एंटीऑक्‍सीडेंट से भरपूर होती है। कैंसर का उपचार अब तक संभव नहीं है लेकिन आप इसके लक्षणों को कम कर सकते हैं। कैंसर के मरीज को नियमित रूप से दारुहरिद्रा और हल्‍दी के मिश्रण का सेवन करना चाहिए। क्‍योंकि इन दोनो ही उत्‍पादों में कैंसर विरोधी गुण होते हैं। जो ट्यूमर के विकास को रोकने में सहायक होते हैं। इस तरह से दारुहरिद्रा का सेवन करने के फायदे कैंसर के लिए प्रभावी उपचार होते हैं।
    ऊपर बताए गए लाभों के अलावा भी इस जड़ी बूटी के अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य लाभ होते हैं जो इस प्रकार हैं :
    और भी स्वास्थ्य लाभ हैं दारूहरिद्रा के-
    इसका उपयोग घावों की त्‍वरित चिकित्‍सा के लिए भी किया जाता है। इस औषधीय जड़ी बूटी के पेस्‍ट को फोड़ों, अल्सर आदि में उपयोग किये जाते हैं।
    शारीरिक मांसपेशियों के दर्द को कम करने के लिए भी इस जड़ी बूटी का इस्‍तेमाल किया जाता है। क्‍योंकि इस जड़ी बूटी में दर्द निवारक गुण होते हैं जो ल्‍यूकोरिया (leucorrhoea) और मेनोरेजिया (menorrhagia) जैसी समस्‍याओं के लिए लाभकारी होते हैं।
    पीलिया के उपचार में भी यह जड़ी बूटी आंशिक रूप से मददगार होती है। क्‍योंकि इस जड़ी बूटी का उपयोग करने से शरीर में मौजूद विषाक्‍तता को दूर करने में मदद मिलती है। यह यकृत को भी विषाक्‍तता मुक्‍त रखती है और पीलिया के लक्षणों और संभावना को कम करती है।
    दारुहरिद्रा में कैंसर के लक्षणों को कम करने की क्षमता होती है। क्‍योंकि इस जड़ी बूटी में एंटीकैंसर गुण होते हैं। जिसके कारण इसका नियमित सेवन करने से पेट संबंधी कैंसर की संभावना को कम किया जा सकता है।
    कान के दर्द को कम करने के लिए भी दारू हल्‍दी लाभकारी होती है। इसके अलावा यह कान से होने वाले स्राव को भी नियंत्रित कर सकती है।
    पाचन शक्ति को बढ़ाने के लिए इस औषधी का नियमित सेवन किया जाना चाहिए। यह आपकी भूख को बढ़ाने और पाचन तंत्र को मजबूत करने में प्रभावी होती है।
    कब्‍ज जैसी पेट संबंधी समस्‍या के लिए दारुहरिद्रा का इस्‍तेमाल फायदेमंद होता है।
    बुखार होने पर इसकी जड़ से बनाये गए काढ़े को इस्तेमाल करने से जल्द ही बुखार से छुटकारा मिलता है |
    दालचीनी के साथ दारू हल्दी को मिलाकर चूर्ण बना ले | इस चूर्ण को नित्य सुबह – शाम 1 चम्मच की मात्रा में शहद के साथ उपयोग करने से महिलाओं की सफ़ेद पानी की समस्या दूर हो जाती है |
    अगर शरीर में कहीं सुजन होतो इसकी जड़ को पानी में घिसकर इसका लेप प्रभावित अंग पर करने से सुजन दूर हो जाती है एवं साथ ही दर्द अगर होतो उसमे भी लाभ मिलता है | इस प्रयोग को आप घाव या फोड़े – फुंसियों पर भी कर सकते है , इससे जल्दी ही घाब भर जाता है |
    इसका लेप आँखों पर करने से आँखों की जलन दूर होती है |
    दारुहल्दी के फलों में विभिन्न प्रकार के पूरक तत्व होते है | यह वृक्ष जहाँ पाया जाता है वहां के लोग इनका इस्तेमाल करते है , जिससे उन्हें विभिन्न प्रकार के पौषक तत्वों के सेवन से विभिन स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते है 
    पीलिया रोग में भी इसका उपयोग लाभ देता है | इसके फांट को शहद के साथ गृहण लाभ देता है |
    मधुमेह रोग में इसका क्वाथ बना कर प्रयोग करने से काफी लाभ मिलता है |
    इससे बनाये जाने वाले रसांजन से विभिन्न रोगों में लाभ मिलता है
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    6.8.19

    कुटज (इन्द्रजौ) के स्वास्थ्य लाभ और नुस्खे




    कुटज (संस्कृत), कूड़ा या कुरैया (हिन्दी), कुरजी (बंगला), कुड़ा (मराठी), कुड़ी (गुजराती), वेप्पलाई (तमिल), कछोडाइस (तेलुगु) तथा मोलेरीना एण्टी डिसेण्टीरिका (लैटिन) कहते हैं। इन्द्रजौ 5 से10 फुट ऊंचा जंगली पौधा होता है जिसके पत्ते बादाम के पत्तों की तरह लंबे होते हैं। कोंकण (महाराष्ट्र) में इन्द्रजौ ‌‌‌के पत्तों का बहुत उपयोग किया जाता है। इसके फूलों की सब्जी बनायी जाती है। इसमें फलियां पतली और लंबी होती हैं, इन फलियों का भी साग और अचार बनाया जाता है। फलियों के अंदर से जौ की तरह बीज निकलते हैं। इन्ही बीजों को इन्द्रजौ कहते हैं। सिरदर्द तथा साधारण प्रकृति वाले मनुष्यों के लिए यह नुकसानदायक है। इसके दोषों को दूर करने के लिए इसमें धनियां मिलाया जाता है। इसकी तुलना जायफल से भी की जा सकती है। इसके फूल भी कड़वे होते हैं। इनका एक पकवान भी बनाया जाता है। इन्द्रजौ के पेड़ की दो जातियां – काली ‌‌‌वसफेदइन्द्र जौ होती हैं और इन दोनों में ये कुछ अन्तर इस प्रकार होते हैं। कुटज का पेड़ मध्यम आकार का, कत्थई या पीलाई लिये कोमल छालवाला होता है। कुटज के पत्ते 6-12 इंच लम्बे, 1-1 इंच चौड़े होते हैं। कुटज के फूल सफेद, 1-1 इंच लम्बे, चमेली के फूल की तरह कुछ गन्धयुक्त होते हैं। कुटज के फल 8-16 इंच लम्बे, फली के समान होते हैं। दो फलियाँ डंठल तथा सिरों पर भी मिली-सी रहती हैं। बीज जौ (यव) के समान अनेक, पीलापन लिये कत्थई रंग के होते हैं। ऊपर से रूई चढ़ी रहती है। इसे ‘इन्द्रजौ‘ (इन्द्रयव) कहते हैं। इसकी जातियाँ दो होती हैं : (क) कृष्ण-कुटज (स्त्री-जाति का) और (ख) श्वेत-कुटज (पुरुष-जाति का) । यह हिमालय प्रदेश, बंगाल, असम, उड़ीसा, दक्षिण भारत तथा महाराष्ट्र में प्राप्त होता है।

    विभिन्न रोगों में उपचार -

    ‌‌‌जलोदर: –

     इन्द्रजौ की जड़ को पानी के साथ पीसकर 14-21 दिन नियमित लेने से जलोदर समाप्त हो जाता है।

    पीलिया: 

    पीलिया के रोग में इसका रस नियमित रूप से 3 दिन पीने से अच्छा लाभ मिलता है।

    ‌‌‌पुराना ज्वर ‌‌‌व बच्चों में दस्त: – 

    इन्द्रजौ व टीनोस्पोरा की छाल को पानी में उबाल कर काढ़ा या इन्द्रजौ की छाल को रातभर पानी में भिगो कर रखने से व पानी को छान कर लेने से पुराना ज्वर लाभ प्रदान करता है।
    ‌‌‌
    पेट में एंठन: –

     गर्म किये हुए इन्द्रजौ के बीजों को पानी में भिगो कर लेने से पेट की एंठन में लाभ मिलता है।
    ‌‌‌बवासीर: – इन्द्रजौ को पानी के साथ पीस कर बाराबर मात्रा में जामुन के साथ मिला कर छोटी-छोटी गोलींयां बना लें। सोते समय दो गोलीयां ठण्डे पानी के साथ लेने से बवासीर में लाभ मिलता है।

    पुराना बुखार
    :

    इन्द्र जौ के पेड़ की छाल और गिलोय का काढ़ा पिलायें अथवा रात को छाल को पानी में गला दें और सुबह उस पानी को छानकर पिलायें। इससे पुराना बुखार दूर हो जाता है।

    हैजा :

    इन्द्र जौ की जड़ और एरंड की जड़ को छाछ के पानी में घिसकर और उसमें थोड़ी हींग डालकर पिलाने से लाभ मिलता है।

    बच्चों के दस्त :

    छाछ के पानी में इन्द्र जौ के मूल को घिसे और उसमें थोड़ी हींग डालकर पिलायें। इससे बच्चों का दस्त आना बंद हो जाता है।

    पथरी :

    इन्द्र जौ और नौसादर का चूर्ण दूध अथवा चावल के धोये हुए पानी में डालकर पीना चाहिए। इससे पथरी गलकर निकल जाती है।
    इन्द्र जौ की छाल को दही में पीसकर पिलाना चाहिए। इससे पथरी नष्ट हो जाती है।

    फोड़े-फुंसियां :

    इन्द्र जौ की छाल और सेंधानमक को गाय के मूत्र में पीसकर लेप करने से लाभ मिलता है।

    बुखार में दस्त होना :

    10 ग्राम इन्द्र जौ को थोड़े से पानी में ड़ालकर काढ़ा बनाकर उसमें शहद मिलायें और पियें। इससे सभी तरह के बुखार दूर हो जाते हैं।


    मुंह के छाले :
    इन्द्र जौ और काला जीरा 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर कूटकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को छालों पर दिन में 2 बार लगाने से छाले नष्ट होते हैं।

    दस्त :

    इन्द्र-जौ को पीसकर चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में ठंडे पानी के साथ दिन में 3 बार पिलाने से अतिसार समाप्त हो जाती है।
    इन्द्र जौ की छाल का रस निकालकर पिलायें।
    इन्द्र-जौ की जड़ को छाछ में से निकले हुए पानी के साथ पीसकर थोड़ी-सी मात्रा में हींग को डालकर खाने से बच्चों को दस्त में आराम पहुंचता है।
    इन्द्रजौ की जड़ की छाल और अतीस को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बनाकर लगभग 2 ग्राम को शहद के साथ 1 दिन में 3 से 4 बार चाटने से सभी प्रकार के दस्त समाप्त हो जाते हैं।
    इन्द्रजौ की 40 ग्राम जड़ की छाल और 40 ग्राम अनार के छिलकों को अलग-अलग 320-320 ग्राम पानी में पकाएं, जब पानी थोड़ा-सा बच जाये तब छिलकों को उतारकर छान लें, फिर दोनों को 1 साथ मिलाकर दुबारा आग पर पकाने को रख दें, जब वह काढ़ा गाढ़ा हो जाये तब उतारकर रख लें, इसे लगभग 8 ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ पिलाने से अतिसार में लाभ पहुंचता है।

    बवासीर (अर्श) :

    कड़वे इन्द्रजौ को पानी के साथ पीसकर बेर के बराबर गोलियां बना लें। रात को सोते समय दो गोली ठंडे जल के साथ खायें। इससे बादी बवासीर ठीक होती है।

    आंवरक्त (पेचिश) :

    50 ग्राम इन्द्रजौ की छाल पीसकर उसकी 10 पुड़िया बना लें। सुबह-सुबह एक पुड़िया गाय के दूध की दही के साथ सेवन करें। भूख लगने पर दही-चावल में डालकर लें। इससे पेचिश के रोगी को लाभ मिलेगा।
    अग्निमान्द्य (हाजमे की खराबी) :
    इन्द्रजौ के चूर्ण को 2-2 ग्राम खाने से पेट का दर्द और मंदाग्नि समाप्त हो जाती है।

    कान से पीव बहना :

    इन्द्रजौ के पेड़ की छाल का चूरन कपड़छन करके कान में डालकर और इसके बाद मखमली के पत्तों का रस कान में डालना चाहिए।

    दर्द :

    इन्द्र जौ का चूर्ण गरम पानी के साथ देना चाहिए।

    वातशूल :

    इन्द्र जौ का काढ़ा बना लें और उसमें संचर तथा सेंकी हुई हींग डालकर पिलायें। इससे वातशूल नष्ट हो जाती है।

    वात ज्वर :

    इन्द्र जौ की छाल 10 ग्राम को बिलकुल बारीक कूटे और 50 ग्राम पानी में डालकर तथा कपड़े में छानकर पिलायें।

    पित्त ज्वर :

    इन्द्र जौ, पित्तपापड़ा, धनिया, पटोलपत्र और नीम की छाल को बराबर भाग में लेकर काढ़ा बनाकर पी लें। इससे पित्त-कफ दूर होता है। काढ़े में मिश्री और शहद भी मिलाकर सेवन करने से पित्त ज्वर नष्ट हो जाता है।
    जलोदर :
    इन्द्रजौ चार ग्राम, सुहागा चार ग्राम, हींग चार ग्राम और शंख भस्म चार ग्राम और छोटी पीपल 6 ग्राम को गाय के पेशाब में पीसकर पीने से जलोदर सहित सभी प्रकार के पेट की बीमारियां ठीक हो जाती हैं।

    पेट के कीड़े :

    इन्द्रजौ को पीस और छानकर 1-1 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम पीने से पेट के कीडे़ मरकर, मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।

    अश्मरी: – 

    इन्द्रजौ के पाउडर व सालमोनिक को दूध या चावल के धोवल के साथ ‌‌‌या पीसी हुई इन्द्रजौ की छाल को दही के साथ लेने से पत्थरी टूटकर बाहर आ जाती है।

    ‌‌‌गर्भ निरोधक: –

     10-10 ग्राम पीसी हुई इन्द्रजौ, सुवा सुपारी, कबाबचीनी और सौंठ को छानकर 20 ग्राम मिश्री मिला लें। मासिक धर्म के बाद, 5-5 ग्राम, दिन में दो बार लेने से गर्भधारण नही होगा।

    ‌‌‌हैजा: – 

    इन्‍द्रजौ की जड़ को अरंडी के साथ पीसकर हींग ​मिलाकर लेने से हैजे में आराम ​मिलता है।
    रक्त-पित्तातिसार : कुटज की छाल को पीसकर सोंठ के साथ देने से रक्त बन्द होता है। रक्त-पित्त में घी के साथ देने से रक्त आना रुकता है। कुटज के फल पीसकर देने से रक्तातिसार और पित्तातिसार में लाभ होता है।

    रक्तार्श :

     इसकी छाल पीसकर पानी में रात्रि को भिगोकर सुबह छानकर पीने से खूनी बवासीर में निश्चित लाभ होता है।

    प्रमेह :

     प्रमेह में उपर्युक्त विधि से फूलों को पीसकर दें।

    डायबिटीज़ का काल है इन्द्रजौ का यह नुस्खा

    इन्द्र जो कडवा या इन्द्र जो तल्ख़ 250 ग्राम
    बादाम 250 ग्राम
    भुने चने 250 ग्राम
    यह योग बिल्कुल अजूबा योग है अनेकों रोगियों पर आजमाया गया है मेरे द्वारा 100% रिजल्ट आया है आप इस नुस्खे के रिजल्ट का अंदाजा यूं लगा सकते हैं कि अगर इसको उसकी मात्रा से ज्यादा लिया जाए तो शुगर इसके सेवन से लो होने लगती है |बादाम को इस वजह से शामिल किया गया यह शुगर रोगी की दुर्बलता कमजोरी सब दूर कर देता है चने को इन्द्र जो की कड़वाहट थोड़ी कम करने के लिए मिलाया गया |

    बनाने की विधि :

    तीनों औषधियों का अलग अलग पावडर बनाए और तीनो को मिक्स कर लीजिये और कांच के जार में रख लें और खाने के बाद एक चाय वाला चम्मच एक दिन में केवल एक बार खाएं सादे जल से |
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