29.8.19

रजोनिवृत्ति की समस्याओं के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार //menopause




मेनोपॉज या रजोनिवृति
मेनोपॉज महिला के शरीर की उस अवस्था को कहते हैं. जिस अवस्था में महिला को मासिक धर्म होने बंद हो जाते हैं. मेनोपॉज होने का मतलब हैं महिला के शरीर में प्रजनन क्षमता का खत्म हो जाना. इस अवस्था में पहुंचकर महिला के अंडाशय में अंडाणुओं के बनने की क्रिया समाप्त हो जाती हैं. महिला में मेनोपॉज की अवस्था 40 से 50 वर्ष के बीच की हो सकती हैं.

जैसे आजकल कुछ महिलाओं में समय से पहले यह समस्या उत्पन्न हो रही है की उनका अंडाशय कम एस्ट्रोजन का उत्पादन कर रहा है जिससे उनके शरीर में एस्ट्रोजन की कमी हो रही है और जिसकी वजह से उनकी माहवारी भी अनियमित हो जाती है जिसे प्रीमेनोपॉज (perimenopause) कहा जाता है और जब पूरे एक साल तक माहवारी ना आने की स्थिति बनी रहे तो उसे फुल मेनोपॉज (full menopause) कहा जाता है।
रजोनिवृत्ति की स्थिति आने के बाद महिलाओं में कई तरह की परेशानियां उत्पन्न होने लगती है जैसे नींद ना आना, मूड स्विंग्स होना, चिड़चिड़ापन, थकान, तनाव आदि होना। इसके अलावा रजोनिवृत्त महिलाओं को ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis), मोटापा, हृदय रोग और टाइप 2 डायबिटीज सहित कई अन्य बीमारियों का खतरा भी होता है।
रजोनिवृत्ति के बाद होने वाली समस्या को कैसे कम करें
आप रजोनिवृत्ति या मीनोपॉज की समस्या को आसानी से कुछ घरेलू उपाय या घरेलू नुस्खे अपना कर या अपनी जीवनशैली में कुछ बदलाव करके कम कर सकती है। अगर आप मीनोपॉज के बाद भी स्वस्थ और खुशहाल जीवन चाहती है तो बहुत से घरेलू तरीके आपके काम आ सकते है और आपको रजोनिवृत्ति के बाद होने वाली कई गंभीर बीमारियों से भी बचा सकते है।
घरेलू उपचार
कैल्शियम से भरपूर खाद्य पदार्थ
कैल्शियम से भरपूर खाद्य पदार्थ रजोनिवृत्ति को जल्दी आने से रोकने का एक अच्छा घरेलू उपाय है। रजोनिवृत्ति या मीनोपॉज के दौरान हार्मोनल परिवर्तन की वजह से हड्डियाँ कमजोर हो सकती है, जिससे ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ सकता है। कैल्शियम और विटामिन डी मजबूत हड्डियों के लिए अच्छे स्रोत होते हैं, इसलिए आपके आहार में इन पोषक तत्वों का पर्याप्त मात्रा में होना महत्वपूर्ण होता है। पोस्टमेनोपॉज़ल (postmenopausal) वाली महिलाओं द्वारा पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी का सेवन करने से कमजोर हड्डियों के कारण होने वाले हिप फ्रैक्चर के जोखिम को भी कम किया जा सकता है।
कई खाद्य पदार्थ कैल्शियम से भरपूर होते हैं, जिसमें कई डेयरी उत्पाद भी शामिल है जैसे दही, दूध और पनीर।
रजोनिवृत्ति के घरेलू उपाय के रूप में आप हरी, पत्तेदार सब्जियाँ जैसे पालक, पत्तागोभी में भी बहुत सारा कैल्शियम होता है तो आप इनका भी सेवन कर सकती है। टोफू, बीन्स जैसे अन्य खाद्य पदार्थों में भी भरपूर मात्रा में कैल्शियम और विटामिन डी होता है। इसके अतिरिक्त, शरीर में कैल्शियम बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ जैसे अनाज, फलों का रस या दूध के विकल्प को भी शामिल किया जा सकता है और यह इसके बहुत अच्छे स्रोत भी हैं।
विटामिन डी का सेवन
सूर्य का प्रकाश विटामिन डी का मुख्य स्रोत माना जाता है, क्योंकि जब आपकी त्वचा सूर्य के संपर्क में आती है तब वह इसका उत्पादन करती है जिससे हमारे शरीर को विटामिन डी मिलता है। हालाँकि, जैसे-जैसे हम बूढ़े होते जाते हैं, हमारी त्वचा इसे बनाने में कम कुशल हो जाती है। इसलिए यदि आप धूप में ज्यादा बाहर नहीं निकलती हैं या अपने आप को पूरा ढंक कर चलती हैं, तो आपको विटामिन डी के सप्लीमेंट या खाद्य पदार्थ लेना बहुत ही महत्वपूर्ण हो सकता है। विटामिन डी के समृद्ध आहार स्रोतों में शामिल है ऑयली फिश, अंडे, मशरुम, सोया मिल्क आदि।
मेनोपॉज का आयुर्वेदिक इलाज
सही वजन को बनाये रखना रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज) के लक्षणों को कम करने का अचूक घरेलू उपाय माना जाता है रजोनिवृत्ति के दौरान वजन बढ़ना एक आम बात है। वजन बढ़ने का कारण बदलते हार्मोन, बढ़ती उम्र, अनियमित जीवन शैली और आनुवांशिक भी हो सकता है।
रजोनिवृत्ति के दौरान शरीर की अतिरिक्त चर्बी, विशेषकर कमर के आस-पास की चर्बी से हृदय रोग और मधुमेहजैसी बीमारियों के होने का खतरा बढ़ सकता है। इसके अलावा, आपके शरीर का वजन आपके रजोनिवृत्ति के लक्षणों की वजह से भी प्रभावित हो सकता है।
फल और सब्जियां
मीनोपॉज की समस्या के लिए एक अच्छा घरेलू तरीका है फल और सब्जियों का सेवन करना क्योकि फलों और सब्जियों का भरपूर आहार लेने से रजोनिवृत्ति के बाद उत्पन्न होने वाले कई लक्षणों और समस्याओं को रोका जा सकता है।
फल और सब्जियों में कैलोरी की मात्रा कम होती हैं इसलिए इनके सेवन से आसानी से वजन घटाया जा सकता हैं। फल और सब्जियों का आहार लेने से हृदय रोग सहित कई बीमारियों को होने से भी रोका जा सकता हैं। ऐसा करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि रजोनिवृत्ति के बाद हृदय रोग का जोखिम बढ़ जाता है। यह बीमारी उम्र बढ़ने, वजन बढ़ने या संभवतः एस्ट्रोजन के स्तर को कम करने जैसे कारकों के कारण होती है।
जल्दी रजोनिवृत्ति के लक्षणों को रोकने के लिए फल और सब्जियों के सेवन से हड्डियों को होने वाले नुकसान को रोकने में मदद मिल सकती हैं। एक शोध में यह पाया गया है की 50-59 आयु वर्ग की महिलाओं का फल और सब्जियों के आहार अधिक लेने से हड्डियों के टूटने की समस्या को कम किया जा सकता है।
भरपूर पानी पीना
रजोनिवृत्ति या मीनोपॉज के दौरान, महिलाओं को अक्सर सूखापन का अनुभव होता है। यह एस्ट्रोजन के स्तर में कमी के कारण हो सकता है। इसलिए दिन में 8-12 गिलास पानी पीने से इन लक्षणों को कम करने में मदद मिल सकती है।
भरपूर पानी पीने से हार्मोनल परिवर्तन के साथ शरीर में होने वाली सूजन को भी कम किया जा सकता है। जो मेनोपॉज को रोकने में है लाभकारी साबित हो सकता है इसके अलावा ज्यादा पानी पीने से आपको वजन कम करने
में भी सहायता मिल सकती है और आप अपने मेटाबोलिज्म को भी मजबूत कर सकती हैं।
ऐसा माना गया है की भोजन से 30 मिनट पहले 500 मिली पानी पीने से आप भोजन के दौरान 13% कम कैलोरी का उपभोग कर सकती हैं।
रिफाइंड शुगर और प्रोसेस्ड फूड से बचें-
रिफाइंड कार्ब्स (refined carbs) और चीनी का उच्च आहार लेने से ब्लड शुगर का स्तर तेजी से बढ़ और घट सकता है जिससे आप रजोनिवृत्ति के दौरान थका हुआ और चिड़चिड़ा महसूस कर सकती हैं। एक अध्ययन में पाया गया कि रिफाइंड कार्ब्स का उच्च आहार लेने से पोस्टमेनोपॉज़ल (postmenopausal) महिलाओं में अवसाद का जोखिम बढ़ सकता हैं। प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (processed food) का उच्च आहार लेने से हड्डियां भी प्रभावित हो सकती है।
प्रोटीन युक्त आहार
नियमित रूप से दिन भर प्रोटीन युक्त आहार लेने से कमजोर मांसपेशियों को नुकसान पहुँचने से बचाया जा सकता है, क्योकि रजोनिवृत्ति की यह समस्या उम्र के साथ बढ़ती है इसलिए हमेशा कोशिश करें की आप ज्यादा से ज्यादा मात्रा में प्रोटीन युक्त भोजन ले पाएं। मांसपेशियों के नुकसान को रोकने में मदद करने के अलावा, उच्च-प्रोटीन आहार वजन घटाने में भी मदद कर सकते हैं क्योंकि वह शरीर में कैलोरी की मात्रा को कम करते हैं। मेनोपॉज के लक्षणों को रोकने के लिए प्रोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थों में शामिल है मांस, मछली, अंडे, फलियां, नट और डेयरी प्रोडक्ट। इन सभी घरेलू उपचारों से आप रजोनिवृत्ति या मेनोपॉज की समस्या से आसानी से उभर सकती है और स्वस्थ रह सकती है।
फाइटोएस्ट्रोजेन से भरपूर आहार
फाइटोएस्ट्रोजेन (phytoestrogen) स्वाभाविक रूप से पैदा हुए पौधे के यौगिक (compound) होते हैं जो शरीर में एस्ट्रोजेन के प्रभाव की नकल करते हैं। इसलिए यह फाइटोएस्ट्रोजेन हार्मोन को संतुलित करने में मदद करते हैं।
फाइटोएस्ट्रोजेन से भरपूर खाद्य पदार्थों में शामिल है सोयाबीन और सोया उत्पाद जैसे टोफू, अलसी, तिल और सेम।
कई शोध से यह पता चला है कि रजोनिवृत्ति के दौरान फाइटोएस्ट्रोजेन से भरे खाद्य पदार्थ, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (processed food) जिनमें सोया प्रोटीन होता है और बहुत से सप्लीमेंट्स से बेहतर होता हैं।
मेनोपॉज के उपचार
1. मेनोपॉज से होने वाली किसी भी समस्या से छुटकारा पाने के लिए महिलाएं भोजन में कुछ विशेष पदार्थों का सेवन कर सकती हैं. मेनोपॉज की अवस्था में बंदगोभी, फलीदार सब्जियों की तथा दलों का सेवन करना चाहियें. इससे मेनोपॉज से होने वाली शरीर की सारी बिमारियां ठीक हो जाती हैं.
2. मेनोपॉज की अवस्था में महिलाओं को फाइटो एस्ट्रोजन लेना आरम्भ कर देना चाहिए. फाइटो एस्ट्रोजन हमें सोयाबीन से, सोया से, पनीर से, सोया मिल्क से, सोया आटा से तथा सोयाबीन की बड़ियों से मिलता हैं. इस लिए 50 साल की तथा इससे ज्यादा उम्र की महिलाओं को इन सभी खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए.
3. मेनोपॉज में महिला अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए दूध और तिल का प्रयोग कर सकती हैं. मेनोपॉज की अवस्था में महिला को प्रतिदिन एक गिलास दूध में तिल को मिलाकर पीना चाहिए. इस दूध को पीने से महिला का शरीर स्वस्थ रहता हैं.
4. मेनोपॉज के कारण अगर किसी महिला के शरीर के अंगों में दर्द रहता हैं तो वह गाजर के बीजों का उपयोग कर सकती हैं. इसके लिए गाजर के बीजों को दूध में डालकर कुछ देर उबाल लें.

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    15.8.19

    दारूहल्दी की चमत्कारी शक्ति: अनेक बीमारियों का एक समाधान



          दारूहल्दी  की चमत्कारी शक्ति:अनेक बीमारियों का एक समाधान




    मित्रों ,घरेलू आयुर्वेद  चिकित्सा के विडिओ प्रस्तुत करने की शृंखला मे आज का टॉपिक है "दारूहल्दी या रसौत की चमत्कारी शक्ति: अनेक बीमारियों का एक समाधान"

    दारुहरिद्रा  एक औषधीय जड़ी बूटी है। दारुहरिद्रा के फायदे जानकर आप हैरान हो जाएगें। इसे दारू हल्दी के नाम से भी जाना जाता हैं । यह मधुमेह की चिकित्सा में बहुत उपयोगी है। यह ऐसी जड़ी बूटी है जो कई असाध्‍य स्‍वास्‍थ्‍य सस्‍याओं को प्रभावी रूप से दूर कर सकती है। दारू हल्दी का पौधा भारत और नेपाल के पर्वतीय हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। यह श्रीलंका के कुछ स्थानों में भी पाया जाता है।    दारुहरिद्रा को इंडियन बारबेरी  या ट्री हल्‍दी (tree turmeric) के नाम से भी जाना जाता है।   इस जड़ी बूटी को प्राचीन समय से ही आयुर्वेदिक चिकित्‍सा प्रणाली में उपयोग किया जा रहा है।
    दारुहरिद्रा के फायदे लीवर सिरोसिस, सूजन कम करने, पीलिया, दस्‍त का इलाज करने, मधुमेह को नियंत्रित करने, कैंसर को रोकने, बवासीर का इलाज करने, मासिक धर्म की समस्‍याओं को रोकने आदि में होते हैं। 
    आयुर्वेदिक मतानुसार दारुहल्दी गुण में लघु , स्वाद में कटु कषाय, तिक्त तासीर में गर्म, अग्निवद्धक, पौष्टिक, रक्तशोधक, यकृत उत्तेजक, कफ नाशक, व्रण शोधक, पीड़ा, शोथ नाशक होती है। यह ज्वर, श्वेत व रक्त प्रदर, नेत्र रोग, त्वचा विकार, गर्भाशय के रोग, पीलिया, पेट के कृमि, मुख रोग, दांतों और मसूड़ों के रोग, गर्भावस्था की जी मिचलाहट आदि में गुणकारी है।
    यूनानी चिकित्सा पद्धति में दारुहल्दी दूसरे दर्जे की सर्द और खुश्क तथा जड़ की छाल पहले दर्जे की गर्म और खुश्क मानी गई है। इसके फल जरिश्क, यूनानी में एक उत्तम औषधि मानी गई है। यह आमाशय, जिगर और हृदय के लिए बलवर्द्धक है। इसके सेवन से जिगर और मेदे की खराबी से दस्त लगना, मासिक धर्म की अधिकता, सूजन, बवासीर के कष्टों में आराम मिलता है।

    दारुहरिद्रा की तासीर

    दारुहरिद्रा की तासीर गर्म होती है जिसके कारण यह हमारे पाचन तंत्र के अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य में मदद करता है। इसके अलावा दारुहरिद्रा में अन्‍य पोषक तत्‍वों और खनिज पदार्थों की भी उच्‍च मात्रा होती है। जिसके कारण यह हमारे शरीर को कई स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं से बचाता है।
    दारुहरिद्रा के फायदे

    पोषक तत्वों और खनिज पदार्थों की उच्‍च मात्रा होने के कारण दारुहरिद्रा के फायदे हमारे बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य के लिए होते हैं। यह ऐसी जड़ी बूटी है जो उपयोग करने पर कई जटिल स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं को आसानी से दूर कर सकती है। 
     
    रसौत के लाभ बवासीर के लिए

    दारुहरिद्रा या रसौत के फायदे बवासीर के लिए भी होते हैं। बवासीर की समस्‍या किसी भी व्‍यक्ति के लिए बहुत ही कष्‍टदायक होती है। इसके अलावा रोगी इस बीमारी के कारण बहुत ही कमजोर हो जाता है। क्‍योंकि इस दौरान उनके शरीर में रक्‍त की कमी हो सकती है। लेकिन इस समस्‍या से बचने के लिए दारुहरिद्रा के फायदे होते हैं। दारुहरिद्रा में ब्‍लीडिंग पाइल्‍स का उपचार करने की क्षमता होती है। बवासीर रोगी को नियमित रूप से इस जड़ी बूटी को मक्‍खन के साथ 40-100 मिलीग्राम मात्रा का सेवन करना चाहिए। दारुहरिद्रा के यह लाभ इसमें मौजूद एंटीआक्‍सीडेंट, जीवाणुरोधी, एंटीफंगल और एंटीवायरल गुणों के कारण होते हैं। ये सभी गुण बवासीर के लक्षणों को कम करने और शरीर को अन्‍य प्रकार के संक्रमण से बचाने में सहायक होते हैं।

    आंखों के लिए फायदे 

    आप अपनी आंखों को स्‍वस्‍थ्‍य रखने और देखने की क्षमता को बढ़ाने के लिए दारु हल्‍दी का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। औषधीय गुणों से भरपूर दारुहरिद्रा को आंखों के संक्रमण दूर करने में प्रभावी पाया गया। इसके लिए आप दारुहरिद्रा को मक्‍खन, दही या चूने के साथ मिलाएं और आंखों की ऊपरी क्षेत्र में बाहृ रूप से लगाएं। यह आंखों की बहुत सी समस्‍याओं को दूर कर सकता है। यदि आप आंख आना या कंजंक्टिवाइटिस से परेशान हैं तो दूध के साथ इस जड़ी बूटी को मिलकार लगाएं। यह आंख के संक्रमण को प्रभावी रूप से दूर कर नेत्रश्‍लेष्‍म को कम करने में मदद करती है।

    दारुहरिद्रा के फायदे मधुमेह के लिए

    यदि आप मधुमेह रोगी हैं तो दारुहरिद्रा जड़ी बूटी आपके लिए बहुत ही फायदेमंद हो सकती है। क्‍योंकि इस पौधे के फलों में रक्‍त शर्करा को कम करने की क्षमता होती है। नियमित रूप से उपयोग करने पर यह आपके शरीर में चयापचय एंजाइमों को सक्रिय करता है। जिससे आपके रक्‍त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है। 

    बुखार ठीक करे

    जब शरीर का तापमान अधिक होता है या बुखार की संभावना होती है तो दारुहरिद्रा का उपयोग लाभकारी होता है। इस दौरान इस जड़ी बूटी का सेवन करने से शरीर के तापमान को कम करने में मदद मिलती है। इसके अलावा यह शरीर में पसीने को प्रेरित भी करता है। पसीना निकलना शरीर में तापमान को अनुकूलित करने का एक तरीका होता है। साथ ही पसीने के द्वारा शरीर में मौजूद संक्रमण और विषाक्‍तता को बाहर निकालने में भी मदद मिलती है। इस तरह से दारुहरिद्रा का उपयोग बुखार को ठीक करने में मदद करता है। रोगी को दारुहरिद्रा के पौधे की छाल और जड़ की छाल को मिलाकर एक काढ़ा तैयार करें। इस काढ़े को नियमित रूप से दिन में 2 बार सेवन करें। यह बुखार को कम करने का सबसे बेहतरीन तरीका हो सकता है।

    दस्‍त के इलाज में

    आयुर्वेद और अध्‍ययनों दोनों से इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि दारुहरिद्रा जड़ी बूटी दस्‍त जैसी गंभीर समस्‍या का निदान कर सकती है। शोध के अनुसार इस जड़ी बूटी में ऐसे घटक मौजूद होते हैं जो पाचन संबंधी समस्‍याओं को दूर कर सकते हैं। इसके अलावा इसमें मौजूद एंटीबैक्‍टीरियल और एंटीमाइक्रोबियल गुण पेट में मौजूद संक्रामक जीवाणुओं के विकास और प्रभाव को कम करते हैं। जिससे दस्‍त और पेचिश जैसी समस्‍याओं को रोकने में मदद मिलती है। आप सभी जानते हैं कि दूषित भोजन और दूषित पानी पीने के कारण ही दस्‍त और पेचिश जैसी समस्‍याएं होती है। लेकिन इन समस्‍याओं से बचने के लिए दारुहरिद्रा जड़ी बूटी फायदेमंद होती है। दस्‍त का उपचार करने के लिए इस जड़ी बूटी को पीसकर शहद के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करना चाहिए।

    सूजन के लिए

    हर्बल चिकित्सा के जानकार डॉ ,आलोक द्वारा किए गए अध्‍ययनों से पता चलता है कि सूजन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने के लिए दारुहरिद्रा फायदेमंद होती है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि इस जड़ी बूटी में एंटीऑक्‍सीडेंट और एंटी-इंफ्लामेटरी गुण होते हैं। जिनके कारण यह सूजन और इससे होने वाले दर्द को प्रभावी रूप से कम कर सकता है। अध्‍ययनों से यह भी पता चलता है कि यह गठिया की सूजन को दूर करने में सक्षम होता है। सूजन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने के लिए आप दारू हल्‍दी का पेस्‍ट बनाएं और प्रभावित जगह पर लगाएं। ऐसा करने से आपको सूजन और दर्द से राहत मिल सकती है।

    कैंसर से बचाव

    दारुहरिद्रा या रसौत में कैंसर कोशिकाओं को रोकने और नष्‍ट करने की क्षमता होती है। क्‍योंकि यह जड़ी बूटी एंटीऑक्‍सीडेंट से भरपूर होती है। कैंसर का उपचार अब तक संभव नहीं है लेकिन आप इसके लक्षणों को कम कर सकते हैं। कैंसर के मरीज को नियमित रूप से दारुहरिद्रा और हल्‍दी के मिश्रण का सेवन करना चाहिए।
    शारीरिक मांसपेशियों के दर्द को कम करने के लिए भी इस जड़ी बूटी का इस्‍तेमाल किया जाता है। क्‍योंकि इस जड़ी बूटी में दर्द निवारक गुण होते हैं जो औरतों मे  सफेद पानी  की समस्या याने ल्‍यूकोरिया  और  मसिक धर्म की अधिकता  जैसी समस्‍याओं के लिए लाभकारी होते हैं।
    पीलिया के उपचार में भी यह जड़ी बूटी  मददगार होती है। क्‍योंकि इस जड़ी बूटी का उपयोग करने से शरीर में मौजूद विषाक्‍तता को दूर करने में मदद मिलती है। यह यकृत को भी विषाक्‍तता मुक्‍त रखती है और पीलिया के लक्षणों और संभावना को कम करती है।
    दारुहरिद्रा में कैंसर के लक्षणों को कम करने की क्षमता होती है। क्‍योंकि इस जड़ी बूटी में एंटीकैंसर गुण होते हैं। जिसके कारण इसका नियमित सेवन करने से पेट संबंधी कैंसर की संभावना को कम किया जा सकता है।
    कान के दर्द को कम करने के लिए भी दारू हल्‍दी लाभकारी होती है। इसके अलावा यह कान से होने वाले स्राव को भी नियंत्रित कर सकती है।
    पाचन शक्ति को बढ़ाने के लिए इस औषधी का नियमित सेवन किया जाना चाहिए। यह आपकी भूख को बढ़ाने और पाचन तंत्र को मजबूत करने में प्रभावी होती है।
    कब्‍ज जैसी पेट संबंधी समस्‍या के लिए दारुहरिद्रा का इस्‍तेमाल फायदेमंद होता है।
    बुखार होने पर इसकी जड़ से बनाये गए काढ़े को इस्तेमाल करने से जल्द ही बुखार से छुटकारा मिलता है |
    दालचीनी के साथ दारू हल्दी को मिलाकर चूर्ण बना ले | इस चूर्ण को नित्य सुबह – शाम 1 चम्मच की मात्रा में शहद के साथ उपयोग करने से महिलाओं की सफ़ेद पानी की समस्या दूर हो जाती है |
     
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    6.8.19

    सेहत का खजाना कुटज: मधुमेह, पेचिश और जीर्ण ज्वर का आयुर्वेदिक समाधान



    सेहत का खजाना कुटज: मधुमेह, पेचिश और जीर्ण ज्वर का आयुर्वेदिक समाधान

     मित्रों ,घरेलू आयुर्वेद से रोगों की चिकित्सा के विडिओ की शृंखला मे आज का टॉपिक है "सेहत का खजाना कुटज: मधुमेह, पेचिश और जीर्ण ज्वर का आयुर्वेदिक समाधान"
       इंद्रजौ  जिसे कुटज के नाम से भी जाना जाता है, एक आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है जिसका इस्तेमाल सदियों से कई स्वास्थ्य समस्याओं के लिए किया जाता रहा है. यह एक छोटा झाड़ीनुमा पौधा है जिसके बीजों का इस्तेमाल दवा बनाने में किया जाता है. इंद्रजौ में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं जो सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं. इसे त्वचा संबंधी समस्याओं और डायबिटीज व पथरी जैसी गंभीर समस्याओं के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है.
     कुटज की छाल कड़वी, दीपन, ग्राही, मियादी बुखार और ज्वर नाशक है |आप कुटज की छाल को पीसकर दूध के साथ भी पी सकते हैं। इसका प्रयोग पथरी को शरीर से बाहर  निकालने के लिए भी होता है। अगर आप इंद्र जौ की छाल के पाउडर का गरम पानी के साथ सेवन करते हैं तो इससे पथरी न‍िकल जाएगी।


                                                    कुटज के औषधीय उपयोग 


    दस्त को रोकता है कुटज
    नागरमोथा, अतीस, पान, कुटज की छाल तथा लाक्षा चूर्ण को बराबर बराबर (2-5 ग्राम) लें। इसे जल के साथ सेवन करने से दस्त पर रोक लगती है।
    5-10 मिलीग्राम कुटज छाल के रस में 1 चम्मच शहद मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से दस्त में फायदा होता है

    विडिओ मे देखें कुटज के सारे फायदे -




    पेचिश में कुटज के काढे से फायदा

    40 ग्राम इद्रजौ की छाल को 400 मिलीग्राम पानी में उबाल लें। जब काढ़ा एक चौथाई रह जाए तो इसे छानकर इतना ही अनार का रस मिला लें। इसे आग पर गाढ़ा कर लें और छह ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ मिलाकर सुबह-शाम पिएं। इससे पेचिश में लाभ होता है।
    कुटज बीज को 50 मिलीग्राम जल में उबाल लें। इसे छानकर शहद मिलाकर दिन में तीन बार पिलाने से पित्तज विकार के कारण होने वाले दस्त (पित्तातिसार) में लाभ होते हैं।
    त्वचा रोग

    इंद्रजौ का उपयोग त्वचा संबंधी समस्याओं में बहुत अधिक किया जाता है. इसे आंतरिक और बाहरी रूप से दोनों ही प्रकार से इस्तेमाल किया जा सकता है. त्वचा की समस्याओं को यह औषधि तेजी से ठीक करने में मददगार  होती है, और इसके नियमित उपयोग से त्वचा की समस्याएं दूर हो जाती हैं.त्‍वचा में एलर्जी, खुजली, खुरदुरी त्‍वचा, सूजन या फिर कोई और इंफेक्शन हो जाए तो आप संक्रमित जगह पर इंद्र जौ की छाल को लगाकर राहत पा सकते हैं।




    दांत मसूढ़े के लिए कुटज के फायदे 

    दांतों के रोगों में कुटज का इस्तेमाल कई तरह से फायदेमंद हो सकता है। यह दांतों के दर्द, मसूड़ों की सूजन, और दांतों की सड़न जैसी समस्याओं में राहत देता है। कुटज की छाल का पानी या कुटज का पाउडर दांतों और मसूड़ों के लिए प्रभावी उपाय  है.





    ‌‌‌बवासीर मे हितकारी  कुटज : – 

    बवासीर से दर्द, जलन और कभी-कभी रक्तस्राव हो सकता है। कुटज के कषाय (कसैला), रोपन (उपचार) और शीत  (ठंडा) गुण प्रभावित क्षेत्र को ठंडा प्रभाव प्रदान करते हैं और खूनी  बवासीर से जुड़े लक्षणों को कम करने में मदद करते हैं इसके लिए  आधा चमच  कुटज पाउडर लें।


    फैटी लिवर के लिए कुटकी है आयुर्वेद का वरदान 

    कुटज एक आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार के रोगों के इलाज के लिए किया जाता है, जिनमें फैटी लीवर भी शामिल है. आयुर्वेद में, कुटज को 'लिवर डिटॉक्सिफायर' के रूप में माना जाता है और यह लिवर को साफ करने और स्वस्थ रखने में मदद करता है.

                                                     पुराना बुखार ठीक करती है  
    :

    कुटज को बुखार के इलाज में भी बहुत फायदेमंद माना जाता है. इसके एंटीपायरेटिक गुण शरीर के तापमान को नॉर्मल  करने में मदद करते हैं. कुटज का इस्तेमाल  दाद, खाज, खुजली जैसी समस्याओं को दूर करने में मददगार होता है
    इन्द्र जौ के पेड़ की छाल और गिलोय का काढ़ा पिलायें अथवा रात को छाल को पानी में गला दें और सुबह उस पानी को छानकर पिलायें। इससे पुराना बुखार दूर हो जाता है।

     कुटकी की तासीर गर्म होती है या ठंडी?

    कुटकी की तासीर ठंडी होती है। यह शरीर में पित्त और गर्मी को संतुलित करने में मदद करती है, जिससे पाचन में सुधार होता है और लिवर मजबूत होता है।

    डायबिटीज़ का काल है इन्द्रजौ

    इंद्रजौ का उपयोग डायबिटीज से पीड़ित व्यक्तियों के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है. इसका सेवन करने से शुगर के लेविल  को नियंत्रित किया जा सकता है. साथ ही, शुगर से उत्पन्न होने वाली अन्य शारीरिक समस्याओं में भी यह औषधि लाभकारी साबित होती हैअब हम आपको मधुमेह का बहुत ही कारगर नुस्खा याने फार्मूला  भी बताया देते हैं -
    इन्द्र जो कडवा   250 ग्राम
    बादाम 250 ग्राम
    भुने चने 250 ग्राम
    यह योग बिल्कुल अजूबा योग है अनेकों रोगियों पर आजमाया गया है||बादाम  शुगर रोगी की दुर्बलता, कमजोरी   दूर करता है| चने को इन्द्र जो की कड़वाहट  कम करने के लिए मिलाया जाता है 

    बनाने की विधि :

    तीनों औषधियों कुटज,बादाम भुने चने  का अलग अलग पावडर बनाए और तीनो को मिक्स करके  कांच के जार में रख लें |यह औषधि  खाने के बाद एक  चम्मच  दिन में केवल एक बार  सादे जल से लेते रहें 
    सावधानी -
    किसी औषधि तत्व का इस्तेमाल से पहिले किसी चिकित्सा विशेषज्ञ  से संपर्क करना उचित है| हमारा चैनल                  subscribe  कीजिए । धन्यवाद ,आभार !


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