29.8.19

रजोनिवृत्ति की समस्याओं के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार //menopause




मेनोपॉज या रजोनिवृति
मेनोपॉज महिला के शरीर की उस अवस्था को कहते हैं. जिस अवस्था में महिला को मासिक धर्म होने बंद हो जाते हैं. मेनोपॉज होने का मतलब हैं महिला के शरीर में प्रजनन क्षमता का खत्म हो जाना. इस अवस्था में पहुंचकर महिला के अंडाशय में अंडाणुओं के बनने की क्रिया समाप्त हो जाती हैं. महिला में मेनोपॉज की अवस्था 40 से 50 वर्ष के बीच की हो सकती हैं.

जैसे आजकल कुछ महिलाओं में समय से पहले यह समस्या उत्पन्न हो रही है की उनका अंडाशय कम एस्ट्रोजन का उत्पादन कर रहा है जिससे उनके शरीर में एस्ट्रोजन की कमी हो रही है और जिसकी वजह से उनकी माहवारी भी अनियमित हो जाती है जिसे प्रीमेनोपॉज (perimenopause) कहा जाता है और जब पूरे एक साल तक माहवारी ना आने की स्थिति बनी रहे तो उसे फुल मेनोपॉज (full menopause) कहा जाता है।
रजोनिवृत्ति की स्थिति आने के बाद महिलाओं में कई तरह की परेशानियां उत्पन्न होने लगती है जैसे नींद ना आना, मूड स्विंग्स होना, चिड़चिड़ापन, थकान, तनाव आदि होना। इसके अलावा रजोनिवृत्त महिलाओं को ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis), मोटापा, हृदय रोग और टाइप 2 डायबिटीज सहित कई अन्य बीमारियों का खतरा भी होता है।
रजोनिवृत्ति के बाद होने वाली समस्या को कैसे कम करें
आप रजोनिवृत्ति या मीनोपॉज की समस्या को आसानी से कुछ घरेलू उपाय या घरेलू नुस्खे अपना कर या अपनी जीवनशैली में कुछ बदलाव करके कम कर सकती है। अगर आप मीनोपॉज के बाद भी स्वस्थ और खुशहाल जीवन चाहती है तो बहुत से घरेलू तरीके आपके काम आ सकते है और आपको रजोनिवृत्ति के बाद होने वाली कई गंभीर बीमारियों से भी बचा सकते है।
घरेलू उपचार
कैल्शियम से भरपूर खाद्य पदार्थ
कैल्शियम से भरपूर खाद्य पदार्थ रजोनिवृत्ति को जल्दी आने से रोकने का एक अच्छा घरेलू उपाय है। रजोनिवृत्ति या मीनोपॉज के दौरान हार्मोनल परिवर्तन की वजह से हड्डियाँ कमजोर हो सकती है, जिससे ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ सकता है। कैल्शियम और विटामिन डी मजबूत हड्डियों के लिए अच्छे स्रोत होते हैं, इसलिए आपके आहार में इन पोषक तत्वों का पर्याप्त मात्रा में होना महत्वपूर्ण होता है। पोस्टमेनोपॉज़ल (postmenopausal) वाली महिलाओं द्वारा पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी का सेवन करने से कमजोर हड्डियों के कारण होने वाले हिप फ्रैक्चर के जोखिम को भी कम किया जा सकता है।
कई खाद्य पदार्थ कैल्शियम से भरपूर होते हैं, जिसमें कई डेयरी उत्पाद भी शामिल है जैसे दही, दूध और पनीर।
रजोनिवृत्ति के घरेलू उपाय के रूप में आप हरी, पत्तेदार सब्जियाँ जैसे पालक, पत्तागोभी में भी बहुत सारा कैल्शियम होता है तो आप इनका भी सेवन कर सकती है। टोफू, बीन्स जैसे अन्य खाद्य पदार्थों में भी भरपूर मात्रा में कैल्शियम और विटामिन डी होता है। इसके अतिरिक्त, शरीर में कैल्शियम बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ जैसे अनाज, फलों का रस या दूध के विकल्प को भी शामिल किया जा सकता है और यह इसके बहुत अच्छे स्रोत भी हैं।
विटामिन डी का सेवन
सूर्य का प्रकाश विटामिन डी का मुख्य स्रोत माना जाता है, क्योंकि जब आपकी त्वचा सूर्य के संपर्क में आती है तब वह इसका उत्पादन करती है जिससे हमारे शरीर को विटामिन डी मिलता है। हालाँकि, जैसे-जैसे हम बूढ़े होते जाते हैं, हमारी त्वचा इसे बनाने में कम कुशल हो जाती है। इसलिए यदि आप धूप में ज्यादा बाहर नहीं निकलती हैं या अपने आप को पूरा ढंक कर चलती हैं, तो आपको विटामिन डी के सप्लीमेंट या खाद्य पदार्थ लेना बहुत ही महत्वपूर्ण हो सकता है। विटामिन डी के समृद्ध आहार स्रोतों में शामिल है ऑयली फिश, अंडे, मशरुम, सोया मिल्क आदि।
मेनोपॉज का आयुर्वेदिक इलाज
सही वजन को बनाये रखना रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज) के लक्षणों को कम करने का अचूक घरेलू उपाय माना जाता है रजोनिवृत्ति के दौरान वजन बढ़ना एक आम बात है। वजन बढ़ने का कारण बदलते हार्मोन, बढ़ती उम्र, अनियमित जीवन शैली और आनुवांशिक भी हो सकता है।
रजोनिवृत्ति के दौरान शरीर की अतिरिक्त चर्बी, विशेषकर कमर के आस-पास की चर्बी से हृदय रोग और मधुमेहजैसी बीमारियों के होने का खतरा बढ़ सकता है। इसके अलावा, आपके शरीर का वजन आपके रजोनिवृत्ति के लक्षणों की वजह से भी प्रभावित हो सकता है।
फल और सब्जियां
मीनोपॉज की समस्या के लिए एक अच्छा घरेलू तरीका है फल और सब्जियों का सेवन करना क्योकि फलों और सब्जियों का भरपूर आहार लेने से रजोनिवृत्ति के बाद उत्पन्न होने वाले कई लक्षणों और समस्याओं को रोका जा सकता है।
फल और सब्जियों में कैलोरी की मात्रा कम होती हैं इसलिए इनके सेवन से आसानी से वजन घटाया जा सकता हैं। फल और सब्जियों का आहार लेने से हृदय रोग सहित कई बीमारियों को होने से भी रोका जा सकता हैं। ऐसा करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि रजोनिवृत्ति के बाद हृदय रोग का जोखिम बढ़ जाता है। यह बीमारी उम्र बढ़ने, वजन बढ़ने या संभवतः एस्ट्रोजन के स्तर को कम करने जैसे कारकों के कारण होती है।
जल्दी रजोनिवृत्ति के लक्षणों को रोकने के लिए फल और सब्जियों के सेवन से हड्डियों को होने वाले नुकसान को रोकने में मदद मिल सकती हैं। एक शोध में यह पाया गया है की 50-59 आयु वर्ग की महिलाओं का फल और सब्जियों के आहार अधिक लेने से हड्डियों के टूटने की समस्या को कम किया जा सकता है।
भरपूर पानी पीना
रजोनिवृत्ति या मीनोपॉज के दौरान, महिलाओं को अक्सर सूखापन का अनुभव होता है। यह एस्ट्रोजन के स्तर में कमी के कारण हो सकता है। इसलिए दिन में 8-12 गिलास पानी पीने से इन लक्षणों को कम करने में मदद मिल सकती है।
भरपूर पानी पीने से हार्मोनल परिवर्तन के साथ शरीर में होने वाली सूजन को भी कम किया जा सकता है। जो मेनोपॉज को रोकने में है लाभकारी साबित हो सकता है इसके अलावा ज्यादा पानी पीने से आपको वजन कम करने
में भी सहायता मिल सकती है और आप अपने मेटाबोलिज्म को भी मजबूत कर सकती हैं।
ऐसा माना गया है की भोजन से 30 मिनट पहले 500 मिली पानी पीने से आप भोजन के दौरान 13% कम कैलोरी का उपभोग कर सकती हैं।
रिफाइंड शुगर और प्रोसेस्ड फूड से बचें-
रिफाइंड कार्ब्स (refined carbs) और चीनी का उच्च आहार लेने से ब्लड शुगर का स्तर तेजी से बढ़ और घट सकता है जिससे आप रजोनिवृत्ति के दौरान थका हुआ और चिड़चिड़ा महसूस कर सकती हैं। एक अध्ययन में पाया गया कि रिफाइंड कार्ब्स का उच्च आहार लेने से पोस्टमेनोपॉज़ल (postmenopausal) महिलाओं में अवसाद का जोखिम बढ़ सकता हैं। प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (processed food) का उच्च आहार लेने से हड्डियां भी प्रभावित हो सकती है।
प्रोटीन युक्त आहार
नियमित रूप से दिन भर प्रोटीन युक्त आहार लेने से कमजोर मांसपेशियों को नुकसान पहुँचने से बचाया जा सकता है, क्योकि रजोनिवृत्ति की यह समस्या उम्र के साथ बढ़ती है इसलिए हमेशा कोशिश करें की आप ज्यादा से ज्यादा मात्रा में प्रोटीन युक्त भोजन ले पाएं। मांसपेशियों के नुकसान को रोकने में मदद करने के अलावा, उच्च-प्रोटीन आहार वजन घटाने में भी मदद कर सकते हैं क्योंकि वह शरीर में कैलोरी की मात्रा को कम करते हैं। मेनोपॉज के लक्षणों को रोकने के लिए प्रोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थों में शामिल है मांस, मछली, अंडे, फलियां, नट और डेयरी प्रोडक्ट। इन सभी घरेलू उपचारों से आप रजोनिवृत्ति या मेनोपॉज की समस्या से आसानी से उभर सकती है और स्वस्थ रह सकती है।
फाइटोएस्ट्रोजेन से भरपूर आहार
फाइटोएस्ट्रोजेन (phytoestrogen) स्वाभाविक रूप से पैदा हुए पौधे के यौगिक (compound) होते हैं जो शरीर में एस्ट्रोजेन के प्रभाव की नकल करते हैं। इसलिए यह फाइटोएस्ट्रोजेन हार्मोन को संतुलित करने में मदद करते हैं।
फाइटोएस्ट्रोजेन से भरपूर खाद्य पदार्थों में शामिल है सोयाबीन और सोया उत्पाद जैसे टोफू, अलसी, तिल और सेम।
कई शोध से यह पता चला है कि रजोनिवृत्ति के दौरान फाइटोएस्ट्रोजेन से भरे खाद्य पदार्थ, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (processed food) जिनमें सोया प्रोटीन होता है और बहुत से सप्लीमेंट्स से बेहतर होता हैं।
मेनोपॉज के उपचार
1. मेनोपॉज से होने वाली किसी भी समस्या से छुटकारा पाने के लिए महिलाएं भोजन में कुछ विशेष पदार्थों का सेवन कर सकती हैं. मेनोपॉज की अवस्था में बंदगोभी, फलीदार सब्जियों की तथा दलों का सेवन करना चाहियें. इससे मेनोपॉज से होने वाली शरीर की सारी बिमारियां ठीक हो जाती हैं.
2. मेनोपॉज की अवस्था में महिलाओं को फाइटो एस्ट्रोजन लेना आरम्भ कर देना चाहिए. फाइटो एस्ट्रोजन हमें सोयाबीन से, सोया से, पनीर से, सोया मिल्क से, सोया आटा से तथा सोयाबीन की बड़ियों से मिलता हैं. इस लिए 50 साल की तथा इससे ज्यादा उम्र की महिलाओं को इन सभी खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए.
3. मेनोपॉज में महिला अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए दूध और तिल का प्रयोग कर सकती हैं. मेनोपॉज की अवस्था में महिला को प्रतिदिन एक गिलास दूध में तिल को मिलाकर पीना चाहिए. इस दूध को पीने से महिला का शरीर स्वस्थ रहता हैं.
4. मेनोपॉज के कारण अगर किसी महिला के शरीर के अंगों में दर्द रहता हैं तो वह गाजर के बीजों का उपयोग कर सकती हैं. इसके लिए गाजर के बीजों को दूध में डालकर कुछ देर उबाल लें.

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    15.8.19

    दारुहरिद्रा है गुणों का खजाना-daru haridra benefits




      दारुहल्दी एक आयुर्वेदिक औषधीय पौधा है | इसे दारुहरिद्रा भी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है हल्दी के समान पिली लकड़ी | इसका वृक्ष अधिकतर भारत और नेपाल के हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाते है | इसके वृक्ष की लम्बाई 6 से 18 फीट तक होती है | पेड़ का तना 8 से 9 इंच के व्यास का होता है | भारत में दारूहल्दी के वृक्ष अधिकतर समुद्रतल से 6 – 10 हजार फीट की ऊंचाई पर जैसे – हिमाचल प्रदेश, बिहार, निलगिरी की पहाड़ियां आदि जगह पाए जाते है |

    दारुहरिद्रा (वानस्पतिक नाम:Berberis aristata) एक औषधीय जड़ी बूटी है। दारुहरिद्रा के फायदे जानकर आप हैरान हो जाएगें। इसे दारू हल्दी के नाम से भी जाना जाता हैं । यह मधुमेह की चिकित्सा में बहुत उपयोगी है। यह ऐसी जड़ी बूटी है जो कई असाध्‍य स्‍वास्‍थ्‍य सस्‍याओं को प्रभावी रूप से दूर कर सकती है। दारू हल्दी का पौधा भारत और नेपाल के पर्वतीय हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। यह श्रीलंका के कुछ स्थानों में भी पाया जाता है। दारुहरिद्रा के फायदे होने के साथ ही कुछ सामान्‍य नुकसान भी होते हैं। दारुहरिद्रा को इंडियन बारबेरी (Indian barberry) या ट्री हल्‍दी (tree turmeric) के नाम से भी जाना जाता है। यह बार्बरीदासी परिवार से संबंधित जड़ी बूटी है। इस जड़ी बूटी को प्राचीन समय से ही आयुर्वेदिक चिकित्‍सा प्रणाली में उपयोग किया जा रहा है।
    दारुहरिद्रा के फायदे लीवर सिरोसिस, सूजन कम करने, पीलिया, दस्‍त का इलाज करने, मधुमेह को नियंत्रित करने, कैंसर को रोकने, बवासीर का इलाज करने, मासिक धर्म की समस्‍याओं को रोकने आदि में होते हैं। 
    आयुर्वेदिक मतानुसार दारुहल्दी गुण में लघु , स्वाद में कटु कषाय, तिक्त तासीर में गर्म, अग्निवद्धक, पौष्टिक, रक्तशोधक, यकृत उत्तेजक, कफ नाशक, व्रण शोधक, पीड़ा, शोथ नाशक होती है। यह ज्वर, श्वेत व रक्त प्रदर, नेत्र रोग, त्वचा विकार, गर्भाशय के रोग, पीलिया, पेट के कृमि, मुख रोग, दांतों और मसूड़ों के रोग, गर्भावस्था की जी मिचलाहट आदि में गुणकारी है।
    यूनानी चिकित्सा पद्धति में दारुहल्दी दूसरे दर्जे की सर्द और खुश्क तथा जड़ की छाल पहले दर्जे की गर्म और खुश्क मानी गई है। इसके फल जरिश्क, यूनानी में एक उत्तम औषधि मानी गई है। यह आमाशय, जिगर और हृदय के लिए बलवर्द्धक है। इसके सेवन से जिगर और मेदे की खराबी से दस्त लगना, मासिक धर्म की अधिकता, सूजन, बवासीर के कष्टों में आराम मिलता है।

    दारुहरिद्रा की तासीर

    दारुहरिद्रा की तासीर गर्म होती है जिसके कारण यह हमारे पाचन तंत्र के अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य में मदद करता है। इसके अलावा दारुहरिद्रा में अन्‍य पोषक तत्‍वों और खनिज पदार्थों की भी उच्‍च मात्रा होती है। जिसके कारण यह हमारे शरीर को कई स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं से बचाता है।

    दारुहरिद्रा के अन्‍य नाम

    दारुहरिद्रा एक प्रभावी जड़ी बूटी है जिसे अलग-अलग स्‍थानों पर कई नामों से जाना जाता है। दारुहरिद्रा का वान‍स्‍पतिक नाम बर्बेरिस एरिस्‍टाटा डीसी (Berberis aristata Dc) है जो कि बरबरीदासी (Berberidaceae) परिवार से संब‍ंधित है। दारुहरिद्रा के अन्‍य भाषाओं में नाम इस प्रकार हैं :
    अंग्रेजी नाम – इंडियन बारबेरी (Indian berberi)
    हिंदी नाम – दारु हल्‍दी (Daru Haldi)
    तमिल नाम – मारा मंजल (Mara Manjal)
    बंगाली नाम – दारुहरिद्रा (Daruharidra)
    पंजाबी नाम – दारू हल्‍दी (Daru Haldi)
    मराठी नाम – दारुहलद (Daruhalad)
    गुजराती नाम – दारु हलधर (Daru Haldar)
    फारसी नाम – दारचोबा (Darchoba)
    तेलुगु नाम – कस्‍तूरीपुष्‍पा (Kasturipushpa)

    दारुहरिद्रा के फायदे

    पोषक तत्वों और खनिज पदार्थों की उच्‍च मात्रा होने के कारण दारुहरिद्रा के फायदे हमारे बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य के लिए होते हैं। यह ऐसी जड़ी बूटी है जो उपयोग करने पर कई जटिल स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं को आसानी से दूर कर सकती है। आइए विस्‍तार से समझें दारुहरिद्रा के स्‍वास्‍थ्‍य लाभ और उपयोग करने का तरीका क्‍या है।

    रसौत के लाभ बवासीर के लिए

    दारुहरिद्रा या रसौत के फायदे बवासीर के लिए भी होते हैं। बवासीर की समस्‍या किसी भी व्‍यक्ति के लिए बहुत ही कष्‍टदायक होती है। इसके अलावा रोगी इस बीमारी के कारण बहुत ही कमजोर हो जाता है। क्‍योंकि इस दौरान उनके शरीर में रक्‍त की कमी हो सकती है। लेकिन इस समस्‍या से बचने के लिए दारुहरिद्रा के फायदे होते हैं। दारुहरिद्रा में ब्‍लीडिंग पाइल्‍स का उपचार करने की क्षमता होती है। बवासीर रोगी को नियमित रूप से इस जड़ी बूटी को मक्‍खन के साथ 40-100 मिलीग्राम मात्रा का सेवन करना चाहिए। दारुहरिद्रा के यह लाभ इसमें मौजूद एंटीआक्‍सीडेंट, जीवाणुरोधी, एंटीफंगल और एंटीवायरल गुणों के कारण होते हैं। ये सभी गुण बवासीर के लक्षणों को कम करने और शरीर को अन्‍य प्रकार के संक्रमण से बचाने में सहायक होते हैं।

    आंखों के लिए

    आप अपनी आंखों को स्‍वस्‍थ्‍य रखने और देखने की क्षमता को बढ़ाने के लिए दारु हल्‍दी का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। औषधीय गुणों से भरपूर दारुहरिद्रा को आंखों के संक्रमण दूर करने में प्रभावी पाया गया। इसके लिए आप दारुहरिद्रा को मक्‍खन, दही या चूने के साथ मिलाएं और आंखों की ऊपरी क्षेत्र में बाहृ रूप से लगाएं। यह आंखों की बहुत सी समस्‍याओं को दूर कर सकता है। यदि आप आंख आना या कंजंक्टिवाइटिस से परेशान हैं तो दूध के साथ इस जड़ी बूटी को मिलकार लगाएं। यह आंख के संक्रमण को प्रभावी रूप से दूर कर नेत्रश्‍लेष्‍म को कम करने में मदद करती है।

    दारुहरिद्रा के फायदे मधुमेह के लिए

    यदि आप मधुमेह रोगी हैं तो दारुहरिद्रा जड़ी बूटी आपके लिए बहुत ही फायदेमंद हो सकती है। क्‍योंकि इस पौधे के फलों में रक्‍त शर्करा को कम करने की क्षमता होती है। नियमित रूप से उपयोग करने पर यह आपके शरीर में चयापचय एंजाइमों को सक्रिय करता है। जिससे आपके रक्‍त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है। आप भी अपने आहार में दारुहरिद्रा और इसके फल को शामिल कर मधुमेह के लक्षणों को कम कर सकते हैं।

    बुखार ठीक करे

    जब शरीर का तापमान अधिक होता है या बुखार की संभावना होती है तो दारुहरिद्रा का उपयोग लाभकारी होता है। इस दौरान इस जड़ी बूटी का सेवन करने से शरीर के तापमान को कम करने में मदद मिलती है। इसके अलावा यह शरीर में पसीने को प्रेरित भी करता है। पसीना निकलना शरीर में तापमान को अनुकूलित करने का एक तरीका होता है। साथ ही पसीने के द्वारा शरीर में मौजूद संक्रमण और विषाक्‍तता को बाहर निकालने में भी मदद मिलती है। इस तरह से दारुहरिद्रा का उपयोग बुखार को ठीक करने में मदद करता है। रोगी को दारुहरिद्रा के पौधे की छाल और जड़ की छाल को मिलाकर एक काढ़ा तैयार करें। इस काढ़े को नियमित रूप से दिन में 2 बार सेवन करें। यह बुखार को कम करने का सबसे बेहतरीन तरीका हो सकता है।

    दस्‍त के इलाज में

    आयुर्वेद और अध्‍ययनों दोनों से इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि दारुहरिद्रा जड़ी बूटी दस्‍त जैसी गंभीर समस्‍या का निदान कर सकती है। शोध के अनुसार इस जड़ी बूटी में ऐसे घटक मौजूद होते हैं जो पाचन संबंधी समस्‍याओं को दूर कर सकते हैं। इसके अलावा इसमें मौजूद एंटीबैक्‍टीरियल और एंटीमाइक्रोबियल गुण पेट में मौजूद संक्रामक जीवाणुओं के विकास और प्रभाव को कम करते हैं। जिससे दस्‍त और पेचिश जैसी समस्‍याओं को रोकने में मदद मिलती है। आप सभी जानते हैं कि दूषित भोजन और दूषित पानी पीने के कारण ही दस्‍त और पेचिश जैसी समस्‍याएं होती है। लेकिन इन समस्‍याओं से बचने के लिए दारुहरिद्रा जड़ी बूटी फायदेमंद होती है। दस्‍त का उपचार करने के लिए इस जड़ी बूटी को पीसकर शहद के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करना चाहिए।
    बेनिफिट्स फॉर स्किन
    अध्‍ययनों से पता चलता है कि दारुहरिद्रा में त्‍वचा समस्‍याओं को दूर करने की क्षमता भी होती है। आप अपनी 

    त्वचा समस्‍याओं जैसे मुंहासे

    , घाव, अल्‍सर आदि का इलाज करने के लिए दारुहरिद्रा जड़ी बूटी का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। ऐसी स्थितियों का उपचार करने के लिए आप इस पौधे की जड़ का इस्‍तेमाल कर सकते हैं।

    सूजन के लिए

    अध्‍ययनों से पता चलता है कि सूजन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने के लिए दारुहरिद्रा फायदेमंद होती है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि इस जड़ी बूटी में एंटीऑक्‍सीडेंट और एंटी-इंफ्लामेटरी गुण होते हैं। जिनके कारण यह सूजन और इससे होने वाले दर्द को प्रभावी रूप से कम कर सकता है। अध्‍ययनों से यह भी पता चलता है कि यह गठिया की सूजन को दूर करने में सक्षम होता है। सूजन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने के लिए आप दारू हल्‍दी का पेस्‍ट बनाएं और प्रभावित जगह पर लगाएं। ऐसा करने से आपको सूजन और दर्द से राहत मिल सकती है।

    कैंसर से बचाव

    दारुहरिद्रा या रसौत में कैंसर कोशिकाओं को रोकने और नष्‍ट करने की क्षमता होती है। क्‍योंकि यह जड़ी बूटी एंटीऑक्‍सीडेंट से भरपूर होती है। कैंसर का उपचार अब तक संभव नहीं है लेकिन आप इसके लक्षणों को कम कर सकते हैं। कैंसर के मरीज को नियमित रूप से दारुहरिद्रा और हल्‍दी के मिश्रण का सेवन करना चाहिए। क्‍योंकि इन दोनो ही उत्‍पादों में कैंसर विरोधी गुण होते हैं। जो ट्यूमर के विकास को रोकने में सहायक होते हैं। इस तरह से दारुहरिद्रा का सेवन करने के फायदे कैंसर के लिए प्रभावी उपचार होते हैं।
    ऊपर बताए गए लाभों के अलावा भी इस जड़ी बूटी के अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य लाभ होते हैं जो इस प्रकार हैं :
    और भी स्वास्थ्य लाभ हैं दारूहरिद्रा के-
    इसका उपयोग घावों की त्‍वरित चिकित्‍सा के लिए भी किया जाता है। इस औषधीय जड़ी बूटी के पेस्‍ट को फोड़ों, अल्सर आदि में उपयोग किये जाते हैं।
    शारीरिक मांसपेशियों के दर्द को कम करने के लिए भी इस जड़ी बूटी का इस्‍तेमाल किया जाता है। क्‍योंकि इस जड़ी बूटी में दर्द निवारक गुण होते हैं जो ल्‍यूकोरिया (leucorrhoea) और मेनोरेजिया (menorrhagia) जैसी समस्‍याओं के लिए लाभकारी होते हैं।
    पीलिया के उपचार में भी यह जड़ी बूटी आंशिक रूप से मददगार होती है। क्‍योंकि इस जड़ी बूटी का उपयोग करने से शरीर में मौजूद विषाक्‍तता को दूर करने में मदद मिलती है। यह यकृत को भी विषाक्‍तता मुक्‍त रखती है और पीलिया के लक्षणों और संभावना को कम करती है।
    दारुहरिद्रा में कैंसर के लक्षणों को कम करने की क्षमता होती है। क्‍योंकि इस जड़ी बूटी में एंटीकैंसर गुण होते हैं। जिसके कारण इसका नियमित सेवन करने से पेट संबंधी कैंसर की संभावना को कम किया जा सकता है।
    कान के दर्द को कम करने के लिए भी दारू हल्‍दी लाभकारी होती है। इसके अलावा यह कान से होने वाले स्राव को भी नियंत्रित कर सकती है।
    पाचन शक्ति को बढ़ाने के लिए इस औषधी का नियमित सेवन किया जाना चाहिए। यह आपकी भूख को बढ़ाने और पाचन तंत्र को मजबूत करने में प्रभावी होती है।
    कब्‍ज जैसी पेट संबंधी समस्‍या के लिए दारुहरिद्रा का इस्‍तेमाल फायदेमंद होता है।
    बुखार होने पर इसकी जड़ से बनाये गए काढ़े को इस्तेमाल करने से जल्द ही बुखार से छुटकारा मिलता है |
    दालचीनी के साथ दारू हल्दी को मिलाकर चूर्ण बना ले | इस चूर्ण को नित्य सुबह – शाम 1 चम्मच की मात्रा में शहद के साथ उपयोग करने से महिलाओं की सफ़ेद पानी की समस्या दूर हो जाती है |
    अगर शरीर में कहीं सुजन होतो इसकी जड़ को पानी में घिसकर इसका लेप प्रभावित अंग पर करने से सुजन दूर हो जाती है एवं साथ ही दर्द अगर होतो उसमे भी लाभ मिलता है | इस प्रयोग को आप घाव या फोड़े – फुंसियों पर भी कर सकते है , इससे जल्दी ही घाब भर जाता है |
    इसका लेप आँखों पर करने से आँखों की जलन दूर होती है |
    दारुहल्दी के फलों में विभिन्न प्रकार के पूरक तत्व होते है | यह वृक्ष जहाँ पाया जाता है वहां के लोग इनका इस्तेमाल करते है , जिससे उन्हें विभिन्न प्रकार के पौषक तत्वों के सेवन से विभिन स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते है 
    पीलिया रोग में भी इसका उपयोग लाभ देता है | इसके फांट को शहद के साथ गृहण लाभ देता है |
    मधुमेह रोग में इसका क्वाथ बना कर प्रयोग करने से काफी लाभ मिलता है |
    इससे बनाये जाने वाले रसांजन से विभिन्न रोगों में लाभ मिलता है
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    6.8.19

    कुटज (इन्द्रजौ) के स्वास्थ्य लाभ और नुस्खे




    कुटज (संस्कृत), कूड़ा या कुरैया (हिन्दी), कुरजी (बंगला), कुड़ा (मराठी), कुड़ी (गुजराती), वेप्पलाई (तमिल), कछोडाइस (तेलुगु) तथा मोलेरीना एण्टी डिसेण्टीरिका (लैटिन) कहते हैं। इन्द्रजौ 5 से10 फुट ऊंचा जंगली पौधा होता है जिसके पत्ते बादाम के पत्तों की तरह लंबे होते हैं। कोंकण (महाराष्ट्र) में इन्द्रजौ ‌‌‌के पत्तों का बहुत उपयोग किया जाता है। इसके फूलों की सब्जी बनायी जाती है। इसमें फलियां पतली और लंबी होती हैं, इन फलियों का भी साग और अचार बनाया जाता है। फलियों के अंदर से जौ की तरह बीज निकलते हैं। इन्ही बीजों को इन्द्रजौ कहते हैं। सिरदर्द तथा साधारण प्रकृति वाले मनुष्यों के लिए यह नुकसानदायक है। इसके दोषों को दूर करने के लिए इसमें धनियां मिलाया जाता है। इसकी तुलना जायफल से भी की जा सकती है। इसके फूल भी कड़वे होते हैं। इनका एक पकवान भी बनाया जाता है। इन्द्रजौ के पेड़ की दो जातियां – काली ‌‌‌वसफेदइन्द्र जौ होती हैं और इन दोनों में ये कुछ अन्तर इस प्रकार होते हैं। कुटज का पेड़ मध्यम आकार का, कत्थई या पीलाई लिये कोमल छालवाला होता है। कुटज के पत्ते 6-12 इंच लम्बे, 1-1 इंच चौड़े होते हैं। कुटज के फूल सफेद, 1-1 इंच लम्बे, चमेली के फूल की तरह कुछ गन्धयुक्त होते हैं। कुटज के फल 8-16 इंच लम्बे, फली के समान होते हैं। दो फलियाँ डंठल तथा सिरों पर भी मिली-सी रहती हैं। बीज जौ (यव) के समान अनेक, पीलापन लिये कत्थई रंग के होते हैं। ऊपर से रूई चढ़ी रहती है। इसे ‘इन्द्रजौ‘ (इन्द्रयव) कहते हैं। इसकी जातियाँ दो होती हैं : (क) कृष्ण-कुटज (स्त्री-जाति का) और (ख) श्वेत-कुटज (पुरुष-जाति का) । यह हिमालय प्रदेश, बंगाल, असम, उड़ीसा, दक्षिण भारत तथा महाराष्ट्र में प्राप्त होता है।

    विभिन्न रोगों में उपचार -

    ‌‌‌जलोदर: –

     इन्द्रजौ की जड़ को पानी के साथ पीसकर 14-21 दिन नियमित लेने से जलोदर समाप्त हो जाता है।

    पीलिया: 

    पीलिया के रोग में इसका रस नियमित रूप से 3 दिन पीने से अच्छा लाभ मिलता है।

    ‌‌‌पुराना ज्वर ‌‌‌व बच्चों में दस्त: – 

    इन्द्रजौ व टीनोस्पोरा की छाल को पानी में उबाल कर काढ़ा या इन्द्रजौ की छाल को रातभर पानी में भिगो कर रखने से व पानी को छान कर लेने से पुराना ज्वर लाभ प्रदान करता है।
    ‌‌‌
    पेट में एंठन: –

     गर्म किये हुए इन्द्रजौ के बीजों को पानी में भिगो कर लेने से पेट की एंठन में लाभ मिलता है।
    ‌‌‌बवासीर: – इन्द्रजौ को पानी के साथ पीस कर बाराबर मात्रा में जामुन के साथ मिला कर छोटी-छोटी गोलींयां बना लें। सोते समय दो गोलीयां ठण्डे पानी के साथ लेने से बवासीर में लाभ मिलता है।

    पुराना बुखार
    :

    इन्द्र जौ के पेड़ की छाल और गिलोय का काढ़ा पिलायें अथवा रात को छाल को पानी में गला दें और सुबह उस पानी को छानकर पिलायें। इससे पुराना बुखार दूर हो जाता है।

    हैजा :

    इन्द्र जौ की जड़ और एरंड की जड़ को छाछ के पानी में घिसकर और उसमें थोड़ी हींग डालकर पिलाने से लाभ मिलता है।

    बच्चों के दस्त :

    छाछ के पानी में इन्द्र जौ के मूल को घिसे और उसमें थोड़ी हींग डालकर पिलायें। इससे बच्चों का दस्त आना बंद हो जाता है।

    पथरी :

    इन्द्र जौ और नौसादर का चूर्ण दूध अथवा चावल के धोये हुए पानी में डालकर पीना चाहिए। इससे पथरी गलकर निकल जाती है।
    इन्द्र जौ की छाल को दही में पीसकर पिलाना चाहिए। इससे पथरी नष्ट हो जाती है।

    फोड़े-फुंसियां :

    इन्द्र जौ की छाल और सेंधानमक को गाय के मूत्र में पीसकर लेप करने से लाभ मिलता है।

    बुखार में दस्त होना :

    10 ग्राम इन्द्र जौ को थोड़े से पानी में ड़ालकर काढ़ा बनाकर उसमें शहद मिलायें और पियें। इससे सभी तरह के बुखार दूर हो जाते हैं।


    मुंह के छाले :
    इन्द्र जौ और काला जीरा 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर कूटकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को छालों पर दिन में 2 बार लगाने से छाले नष्ट होते हैं।

    दस्त :

    इन्द्र-जौ को पीसकर चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में ठंडे पानी के साथ दिन में 3 बार पिलाने से अतिसार समाप्त हो जाती है।
    इन्द्र जौ की छाल का रस निकालकर पिलायें।
    इन्द्र-जौ की जड़ को छाछ में से निकले हुए पानी के साथ पीसकर थोड़ी-सी मात्रा में हींग को डालकर खाने से बच्चों को दस्त में आराम पहुंचता है।
    इन्द्रजौ की जड़ की छाल और अतीस को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बनाकर लगभग 2 ग्राम को शहद के साथ 1 दिन में 3 से 4 बार चाटने से सभी प्रकार के दस्त समाप्त हो जाते हैं।
    इन्द्रजौ की 40 ग्राम जड़ की छाल और 40 ग्राम अनार के छिलकों को अलग-अलग 320-320 ग्राम पानी में पकाएं, जब पानी थोड़ा-सा बच जाये तब छिलकों को उतारकर छान लें, फिर दोनों को 1 साथ मिलाकर दुबारा आग पर पकाने को रख दें, जब वह काढ़ा गाढ़ा हो जाये तब उतारकर रख लें, इसे लगभग 8 ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ पिलाने से अतिसार में लाभ पहुंचता है।

    बवासीर (अर्श) :

    कड़वे इन्द्रजौ को पानी के साथ पीसकर बेर के बराबर गोलियां बना लें। रात को सोते समय दो गोली ठंडे जल के साथ खायें। इससे बादी बवासीर ठीक होती है।

    आंवरक्त (पेचिश) :

    50 ग्राम इन्द्रजौ की छाल पीसकर उसकी 10 पुड़िया बना लें। सुबह-सुबह एक पुड़िया गाय के दूध की दही के साथ सेवन करें। भूख लगने पर दही-चावल में डालकर लें। इससे पेचिश के रोगी को लाभ मिलेगा।
    अग्निमान्द्य (हाजमे की खराबी) :
    इन्द्रजौ के चूर्ण को 2-2 ग्राम खाने से पेट का दर्द और मंदाग्नि समाप्त हो जाती है।

    कान से पीव बहना :

    इन्द्रजौ के पेड़ की छाल का चूरन कपड़छन करके कान में डालकर और इसके बाद मखमली के पत्तों का रस कान में डालना चाहिए।

    दर्द :

    इन्द्र जौ का चूर्ण गरम पानी के साथ देना चाहिए।

    वातशूल :

    इन्द्र जौ का काढ़ा बना लें और उसमें संचर तथा सेंकी हुई हींग डालकर पिलायें। इससे वातशूल नष्ट हो जाती है।

    वात ज्वर :

    इन्द्र जौ की छाल 10 ग्राम को बिलकुल बारीक कूटे और 50 ग्राम पानी में डालकर तथा कपड़े में छानकर पिलायें।

    पित्त ज्वर :

    इन्द्र जौ, पित्तपापड़ा, धनिया, पटोलपत्र और नीम की छाल को बराबर भाग में लेकर काढ़ा बनाकर पी लें। इससे पित्त-कफ दूर होता है। काढ़े में मिश्री और शहद भी मिलाकर सेवन करने से पित्त ज्वर नष्ट हो जाता है।
    जलोदर :
    इन्द्रजौ चार ग्राम, सुहागा चार ग्राम, हींग चार ग्राम और शंख भस्म चार ग्राम और छोटी पीपल 6 ग्राम को गाय के पेशाब में पीसकर पीने से जलोदर सहित सभी प्रकार के पेट की बीमारियां ठीक हो जाती हैं।

    पेट के कीड़े :

    इन्द्रजौ को पीस और छानकर 1-1 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम पीने से पेट के कीडे़ मरकर, मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।

    अश्मरी: – 

    इन्द्रजौ के पाउडर व सालमोनिक को दूध या चावल के धोवल के साथ ‌‌‌या पीसी हुई इन्द्रजौ की छाल को दही के साथ लेने से पत्थरी टूटकर बाहर आ जाती है।

    ‌‌‌गर्भ निरोधक: –

     10-10 ग्राम पीसी हुई इन्द्रजौ, सुवा सुपारी, कबाबचीनी और सौंठ को छानकर 20 ग्राम मिश्री मिला लें। मासिक धर्म के बाद, 5-5 ग्राम, दिन में दो बार लेने से गर्भधारण नही होगा।

    ‌‌‌हैजा: – 

    इन्‍द्रजौ की जड़ को अरंडी के साथ पीसकर हींग ​मिलाकर लेने से हैजे में आराम ​मिलता है।
    रक्त-पित्तातिसार : कुटज की छाल को पीसकर सोंठ के साथ देने से रक्त बन्द होता है। रक्त-पित्त में घी के साथ देने से रक्त आना रुकता है। कुटज के फल पीसकर देने से रक्तातिसार और पित्तातिसार में लाभ होता है।

    रक्तार्श :

     इसकी छाल पीसकर पानी में रात्रि को भिगोकर सुबह छानकर पीने से खूनी बवासीर में निश्चित लाभ होता है।

    प्रमेह :

     प्रमेह में उपर्युक्त विधि से फूलों को पीसकर दें।

    डायबिटीज़ का काल है इन्द्रजौ का यह नुस्खा

    इन्द्र जो कडवा या इन्द्र जो तल्ख़ 250 ग्राम
    बादाम 250 ग्राम
    भुने चने 250 ग्राम
    यह योग बिल्कुल अजूबा योग है अनेकों रोगियों पर आजमाया गया है मेरे द्वारा 100% रिजल्ट आया है आप इस नुस्खे के रिजल्ट का अंदाजा यूं लगा सकते हैं कि अगर इसको उसकी मात्रा से ज्यादा लिया जाए तो शुगर इसके सेवन से लो होने लगती है |बादाम को इस वजह से शामिल किया गया यह शुगर रोगी की दुर्बलता कमजोरी सब दूर कर देता है चने को इन्द्र जो की कड़वाहट थोड़ी कम करने के लिए मिलाया गया |

    बनाने की विधि :

    तीनों औषधियों का अलग अलग पावडर बनाए और तीनो को मिक्स कर लीजिये और कांच के जार में रख लें और खाने के बाद एक चाय वाला चम्मच एक दिन में केवल एक बार खाएं सादे जल से |
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