रीढ़ की हड्डी की बीमारियों में मणके का अपनी जगह से हिल जाना, मणके का भुर जाना, मणके की हड्डी का बढ़ जाना एवं डिस्क का अपनी जगह से सरकना मुख्य हैं। डिस्क हमारी रीढ़ की हड्डी के मणके में एक छोटा सा हिस्सा होता है जो रीढ़ की हड्डी में शॉकर का काम करता है। यह किसी भी प्रकार के आकस्मिक आघात से रीढ़ की हड्डी की रक्षा करता है और अपने साथ जुड़े हुए दो मणकों को हिलने डुलने में मदद करता है। जब यह डिस्क किसी भी कारण से अपनी जगह से हिल जाती है तब यह स्पाइनल कॉर्ड पर दबाव डालती है जिसको स्लिप डिस्क की बीमारी कहा जाता है। यह बीमारी गर्दन से लेकर कमर किसी भी मणके में हो सकती है।
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लक्षणः
होम्योपैथिक इलाज
अन्य चिकित्सा पद्धतियों में इलाज के लिए दर्द कम करने के लिए मरहम, तेल, दर्द निवारक दवाइयों का प्रयोग किया जाता है, जिनसे मरीज का दर्द सिर्फ कुछ घंटों के लिए कम होता है। परंतु डाक्टरों के अनुसार, रीढ़ की हड्डी के मणकों का सम्पूर्ण इलाज नहीं किया जा सकता और यह बीमारी लाइलाज है। कुछ देर के लिए दर्द कम हो सकता है लेकिन बीमारी नहीं। वहीं होम्योपैथी इसके बिल्कुल विपरीत सिद्घात पर काम करती है, जिसमें रोगी का इलाज किया जाता है रोग का नहीं अर्थात होम्योपैथिक इलाज रोगी को तंदरूस्त करता है। तंदरूस्त मनुष्य की बढ़ी हुई प्रतिरक्षा-प्रणाली अपने आप रीढ़ की हड्डी में आई हुई तबदीलियों को सही करके मरीज की बीमारी को सही कर सकती है। इस प्रकार होम्योपैथी रीढ़ की हड्डी की बीमारियों के मरीज को तंदरूस्त करने की पूरी क्षमता रखती है।
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रीढ़ की हड्डी के रोगों मे निम्न होम्योपैथिक औषधिया लक्षणानुसार बेहद उपयोगी पायी गई हैं-
* सिमिसीफ़ुगा
*नेटरम म्यूर
*अगेरिकस
*जिंकम
*काकुलस
*नक्स वोम
*Physostigma
*Tarentula
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