18.8.24

फिशर फिस्टुला भगन्दर का सही इलाज Fissure remedies

                                       



एनल फिशर और फिस्टुला (भगंदर) को अनदेखा करना बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकता है। खासतौर से तब जब एनल एरिया में खुजली या फिर ब्लीडिंग होने जैसे लक्षण शामिल हों। हालांकि ऐसी स्थिति में मरीजों के लिए ये बवासीर  की ओर इशारा होता है। जो समान्य है। लेकिन ज्यादातर मामलों में एनल से जुड़ा ऊतक फिशर या फिस्टुला के परिणामस्वरूप बढ़ जाता है। अगर आपको भी बवासीर की समस्या है, तो इससे जुड़े लक्षण काफी दर्दनाक हो सकते हैं। इसके अलावा अगर फिशर या फिस्टुला बढ़ जाता है, तो स्थिति बेहद बुरी हो सकती है। इस स्थिति में बिना देर किये किसी एक्सपर्ट की सलाह लेने से समस्या को हल किया जा सकता है। हालांकि एनल फिस्टुला और फिशर के बीच की समानता और अंतर) जानने से आपको अपनी समस्या का निदान करने का बेहतर तरीका मिल सकता है।

फिशर और फिस्टुला (भगंदर) में अंतर

फिस्टुला और फिशर एक ही चीज है, अगर आप भी यही सोच रहे हैं, तो आप बिलकुल गलत हैं। फिशर एक मेडिकल वर्ड है जो स्किन के फटने का जिक्र करता है। वहीं फिस्टुला एक असमान्य ट्यूब जैसे कनेक्शन या अंगों के बिच का मार्ग है।
 आमतौर पर फिशर कुछ दिनों में या कुछ हफ्तों में ठीक हो सकता है। जिसमें उपचार की जरूरत नहीं पड़ सकती। क्योंकि ये खतरनाक नहीं होता। इसके बजाय फिस्टुला को बिना इलाज के छोड़ना खतरनाक हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि, आप जिन लक्षणों को महसूस कर रहे हैं, उसके अनुसार ही उसका इलाज करें।
फिशर और फिस्टुला (भगंदर) होने के कारण
एनल फिशर होने के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। इसके मलाशय का कैंसर, वजाइनल चाइल्डबर्थ, अप्राकृतिक यौन संबंध, और लंबे समय तक दस्त होने की समस्या हो सकती है। ज्यादातर मामलों में फिशर गोने के कारण मल त्याग में रुकावट या फिर कब्ज हो सकता है। ये उन मांसपेशियों को फाड़ देता है एनल के अंदर से दबाने वाले सिस्टम को कंट्रोल करता है।
वहीं फिस्टुला एनल की स्किन तक बनता है। इस स्तिथि में दोनों तरफ की स्किन के नीचे वाले हिस्से में इन्फेक्शन हो जाता है। आमतौर पर फिस्टुला पुराने फोड़े का ही परिणाम होता है। इसलिए अगर इसका इलाज नहीं किया गया तो एक फिस्टुला कई खतरनाक फिस्टुला बनाने का कारण बन सकता है।
फिशर और फिस्टुला (भगंदर) के लक्षण

एनल फिशर के लक्षण -

गुदा में फिशर के लक्षण व संकेतों में निम्न शामिल हो सकते हैं:
 मल त्याग के दौरान दर्द, कभी-कभी गंभीर दर्द होना। मल त्याग करने के बाद दर्द होना जो कई घंटों तक रह सकता है। मल त्याग के बाद मल पर गहरा लाल रंग दिखाई देना। गुदा के आसपास खुजली या जलन होना। गुदा के चारों ओर की त्वचा में एक दरार दिखाई देना। गुदा फिशर के पास त्वचा पर गांठ या स्किन टैग दिखाई देना।
आमतौर पर एनल फिशर से जुड़े कुछ लक्षण में एनल एरिया में मल त्याग के दौरान तेज दर्द महसूस होता है। इसमें खुनी मल के साथ एनल और उसके आस-पास लगातर जलन या खुजली होती महसूस होती है। आमतौर पर एनल एरिया के आसपास पानी भी दिखाई देता है।

फिशर के लक्षण

 मल त्याग करते वक्त दर्द होना।
जलन होना।
कभी कभी रक्ततस्राव होना।

फिशर होने के कारण - 

एनल फिशर होने के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। इसके मलाशय का कैंसर, वजाइनल चाइल्डबर्थ, अप्राकृतिक यौन संबंध, और लंबे समय तक दस्त होने की समस्या हो सकती है। ज्यादातर मामलों में फिशर गोने के कारण मल त्याग में रुकावट या फिर कब्ज हो सकता है। ये उन मांसपेशियों को फाड़ देता है एनल के अंदर से दबाने वाले सिस्टम को कंट्रोल करता है।

लंबे समय से डायरिया होना- 

डायरिया यानी दस्त होना। यदि किसी व्यक्ति को लंबे समय तक दस्त होते रहें, तो इससे एनल फिशर होने का रिस्क  बढ़ जाता है। फिशर के मुख्य लक्षण है जो आम तोर पर देखने को मिल जाते है बार-बार दस्त होने के कारण शरीर से काफी मात्रा में पानी निकल जाता है। इस वजह से स्किन काफी ज्यादा ड्राई हो जाती है और एनल ओपनिंग में कट लग जाता है। वैसे भी एनल स्किन काफी सेंसिटिव होती है। इस वजह से एनल फिशर होने पर काफी ज्यादा दर्द का अहसास भी होता है।

इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज- 


 फिशर, इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज के कारण भी हो सकता है। इसका मतलब है जिस व्यक्ति को अक्सर कब्ज की समस्या रहती है या फिर दस्त बने रहते हैं, उन्हें एनल फिशर हो सकता है। इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज में दो तरह की कंडीशन आती है। एक क्रोहन डिजीज ( Crohn's disease) और अल्सरेटिव कोलाइटिस । इसका मतलब है कि गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (जीआई) ट्रैक में लंबे समय से चल रही सूजन। इस सूजन के कारण अक्सर मरीज को फिशर की प्रॉब्लम का सामना करना पड़ता है।

प्रेग्नेंसी या डिलीवरी-

डिलीवरी के दौरान दबाव बनाते समय एनल लाइनिंग में घाव हो जाता है या कट लग जाता है। सामान्य तौर पर इसको कब्ज से जोड़कर देखा जाता है। अगर किसी महिला को कब्ज है, तो डिलीवरी के लिए दबाव बनाते समय फिशर की समस्या हो सकती है। ये बात अलग है कि जिन महिलाओं को कब्ज नहीं है, उन्हें भी डिलीवरी के दौरान दबाव बनाने के कारण एनल फिशर हो सकता है।

एनल ट्रॉमा के कारण-

अगर किसी को सेक्सुअल एक्टिविटी के दौरान एनल में चोट लग जाए, तो भी एनल फिशर होने का रिस्क बढ़ जाता है। हालांकि, सबके साथ ऐसा हो, यह जरूरी नहीं है। लेकिन, अगर एसटीआई, जैसे सिफलिस और हर्पीस जैसी घातक बीमारियां हैं, तो भी एनल फिशर हो सकता है। इससे एनल कैनाल पूरी तरह डैमेज हो सकती है या फिर इंफेक्शनका खतरा बढ़ सकता है।

एनल फिशर से कैसे करें बचाव-

एनल फिशर से बचाव के लिए आप कुछ उपाय आजमा सकते हैं, जैसे की अगर डायरिया की वजह से एनल फिशर है, तो पहले उसका इलाज करवाएं। ज्यादा से ज्याद खुद को हाइड्रेट रखें, ताकि मल त्याग करते समय तकलीफ कम हो। अपनी डाइट में हेल्दी चीजें शामिल करें, जैसे फाइबर खाएं और फ्लूइड इनटेक ज्यादा लें। आप प्रभावित हिस्से में नारियल तेल या कोई भी लुब्रिकेंट लगा सकते हैं।
एनल फिशर यानी गूदा में फटा हुआ या खुला हुआ घाव। यह किस्म से अल्सर की तरह होता है, जो कि गूदा (एनस) के पास बड़ी आंत की लाइनिंग में विकसित होता है। एनल फिशर होने पर व्यक्ति को मल त्यागने में बहुत ज्यादा दिक्कतें आती हैं। यहां तक कि कई बार मल त्यागते समय तीव्र दर्द होता है और खून भी निकल जाता है। किसी भी व्यक्ति के लिए यह कंडीशन काफी कष्टकारी हो सकती है। सवाल है, ऐसी कंडीशन में क्या किया जा सकता है। हालांकि, इसके लिए कई तरह के ट्रीटमेंट मौजूद हैं। लेकिन आप कुछ घरेलू उपायों की मदद से इसकी तकलीफ को कम कर सकते हैं नारियल का तेल अप्लाई करें- A : एनल फिशर के उपचार के लिए आप नारियल के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसमें ट्राइग्लिसराइड्स नाम का एक तत्व होता है, जो इसे लुब्रिकेंट बनाता है। नारियल तेल को प्रभावित हिस्से में लगाने से मल त्याग करते समय दर्द कम होता है। आप इसका उपयोग एक दिन में से दो से तीन बार कर सकते हैं। इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता है। यही नहीं, नारियल तेल के उपयोग से खुजली और जलन की समस्या में भी कमी आती है।

पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं- :

 एनल फिशर से राहत पाने के लिए बहुत जरूरी है कि आप पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं। पानी की कमी के कारण अक्सर व्यक्ति को बहुत सारी तकलीफों का सामना करना पड़ता है। पानी की कमी की वजह से कब्ज की समस्या भी होती है। इसलिए, जरूरी है कि आप एक दिन में कम से कम आठ गिलास पानी जरूर पिएं। पानी पीने से मल नर्म होता है और मल त्याग करने में दिक्कत नहीं होती है।

डाइट में घी शामिल करें- :

 सर्दियों में घी खाने से कई तरह के लाभ होते हैं। कुछ लोग रोजाना सुबह घी खाने से अपने दिन की शुरुआत करते हैं। एनल फिशर के उपचार तौर पर आप घी का उपयोग कर सकते हैं। दरअसल, घी में नेचुरल तरीके लैक्सेटिव और फैटी एसिड मौजूद होता है, जो कि मल त्याग करने को आसाना बनाता है। हालांकि, घी की ओवर ईटिंग करना ठीक नहीं है। इससे आपका वेट गेन हो सकता है।

गर्म पानी से सिंकाई करें- :

एनल फिशर की समस्या बहुत ज्यादा बढ़ने पर आप गर्म पानी से प्रभावित हिस्से का सिंकाई कर सकते है। यह बहुत ही बेहतरीन उपचार है। लेकिन ध्यान रहे कि पानी बहुत ज्यादा गर्म न हो। गर्म पानी में सिंकाई करने से दर्द कम होता है। एनल फिशर से उपचार के तौर पर आप एक दिन में कम से तीन से चार बार इस प्रोसेस को दोहराएं।

डाइट में करें बदलाव- : 

डाइट में ऐसी चीजें शामिल करने से बचें, जिससे स्टूल सख्त हो सकता है। इसमें खासकर, जंक फूड, स्ट्रीट फूड, रेडी टू फूड जैसी चीजें शामिल हैं। आपको अपनी डाइट में ज्यादा से ज्यादा फाइबर युक्त चीजें शामिल करनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर, मौसमी सब्जियां और फल। इनके सेवन से मल सॉफ्ट होता है और मल त्याग करते समय तकलीफ भी कम होती है।

फिशर में क्या नहीं खाना चाहिए

फिशर को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए, कुछ कारकों से बचने की सलाह दी जाती है जो लक्षणों को खराब कर सकते हैं और उपचार प्रक्रिया में बाधा डाल सकते हैं। सबसे पहले, मसालेदार भोजन से दूर रहें, क्योंकि उनमें पहले से ही संवेदनशील गुदा क्षेत्र में जलन पैदा करने की क्षमता होती है। इसके अतिरिक्त, कॉफी, चाय और कुछ सोडा में पाए जाने वाले कैफीन का सेवन सीमित करें, क्योंकि यह कब्ज को बढ़ा सकता है। शराब से भी बचना चाहिए, क्योंकि इससे निर्जलीकरण हो सकता है और लक्षण बढ़ सकते हैं।
फिशर को और अधिक नुकसान से बचाने के लिए मल त्याग के दौरान तनाव को कम करना चाहिए। नरम और नियमित मल त्याग सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है, इसलिए उच्च फाइबर आहार को शामिल करने से इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। लंबे समय तक बैठने से असुविधा बढ़ सकती है, इसलिए सलाह दी जाती है कि ब्रेक लें और लंबे समय तक बैठने से बचें। भारी सामान उठाने से बचें, क्योंकि इससे गुदा क्षेत्र पर दबाव पड़ सकता है। तनाव कब्ज में योगदान कर सकता है, इसलिए तनाव प्रबंधन तकनीकों को लागू करना फायदेमंद है। अंत में, यह महत्वपूर्ण है कि लक्षणों को नज़रअंदाज न किया जाए; यदि वे बने रहते हैं या बिगड़ जाते हैं, तो विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है।

यहाँ फिशर के लिए कुछ घरेलू नुस्खे दिए गए हैं:

सिट्ज़ बाथ: 

दर्द से राहत और उपचार के लिए गुदा क्षेत्र को दिन में कई बार गर्म पानी में भिगोएँ। इस प्रक्रिया को सिट्ज़ बाथ या सिट्ज़ स्नान कहा जाता है।

टॉपिकल मलहम: 

हाइड्रोकार्टिसोन या लिडोकेन वाली ओवर-द-काउंटर क्रीम अस्थायी रूप से दर्द को कम करने में मदद कर सकती हैं।

आहार परिवर्तन:

 मल को नरम करने और कब्ज को रोकने के लिए फलों, सब्जियों और साबुत अनाज के माध्यम से फाइबर का सेवन बढ़ाएँ।

स्वच्छता: 

मल त्याग के बाद हल्के साबुन और पानी या बिना खुशबू वाले गीले पोंछे का उपयोग करके गुदा क्षेत्र को साफ और सूखा रखें।

मल सॉफ़्नर: 

मल त्याग के दौरान तनाव से बचने के लिए ओवर-द-काउंटर विकल्प या फाइबर सप्लीमेंट का उपयोग करें।

दर्द निवारक दवाएं

एसिटामिनोफेन या एनएसएआईडी जैसी ओवर-द-काउंटर दर्द निवारक दवाएं अस्थायी रूप से असुविधा को कम कर सकती हैं।\



नाशपाती फल है सेहत के लिए गुणों का खजाना pears ke fayde


  सेहतमंद रहने के लिए स्वस्थ आहार लेना जरूरी है। इसके लिए डॉक्टर सब्जियों के साथ-साथ फलों का सेवन करने की सलाह भी देते हैं। अगर फलों की बात करें, तो कई पौष्टिक फल बाजार में उपलब्ध हैं। उन्हीं में से एक है नाशपाती। कई लोगों को नाशपाती फल के बारे में पता तो होगा, लेकिन शरीर के लिए इसके फायदे कम लोगों को ही पता होंगे।

नाशपाती काफी स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरपूर होता है। नाशपाती में विटामिन्स, मिनरल्स और फाइबर अधिक मात्रा में पाया जाता है। नाशपाती पेट के लिए सबसे अधिक फायदेमंद होता है। इसके अलावा इसमें एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटी कैंसर गुण भी होते हैं। नाशपाती वजन घटाने में मदद कर सकता है, साथ ही हार्ट हेल्थ के लिए भी अच्छा होता है। वैसे तो नाशपाती का सेवन दिन के समय कभी भीखाया जा सकता है।

 

 


वजन कंट्रोल रहेगा
नाशपाती में फाइबर अधिक होता है। इसलिए यह वजन को कंट्रोल में रखने में मदद कर सकता है। दरअसल, फाइबर लेने से पेट लंबे समय तक भरा हुआ रहता है और भूख जल्दी नहीं लगती है। इससे हम ओवरइटिंग नहीं करते हैं। जिससे वजन कंट्रोल में रहता है। सुबह खाली पेट नाशपाती खाने से आप लंबे समय तक भूख महसूस नहीं करेंगे।

खाली पेट नाशपाती खाने के फायदे

नाशपाती सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है। रोज सुबह खाली पेट नाशपाती खाने से कई तरह की समस्याओं से बचा जा सकता है। खाली पेट नाशपाती खाने से कब्ज और अपच दूर होती है। इसके अलावा नाशपाती खाने से लंबे समय तक पेट भरा हुआ रहता है। इसलिए आपको भी सुबह खाली पेट नाशपाती जरूर खानी चाहिए।

कैंसर के लिए नाशपाती फल

कैंसर जैसी घातक बीमारी से बचाव करने के लिए नाशपाती फायदेमंद साबित हो सकती है। नाशपाती में यूरोसोलिक एसिड (Urosolic Acid) मौजूद होता है, जो मूत्राशय (Bladder), फेफड़ों (Lungs) और भोजन-नलिका (Oesophageal) के कैंसर से बचाव करने में मदद कर सकता है। नाशपाती को नियमित रूप से खाने से, खासकर रजोनिवृत्ति के दौरान इसे खाने से महिलाओं में कैंसर का जोखिम कम हो सकता है

पेट की समस्याओं में फायदेमंद (Pears for Stomach)

खाली पेट नाशपाती खाने से पेट से जुड़ी समस्याएं दूर हो सकती हैं। नाशपाती में फाइबर होता है, जो कब्ज और अपच को ठीक करने में मदद करता है। फाइबर भोजन को पचाने में मदद करता है, इससे मल नरम बनता है और मल त्याग आसानी से हो जाता है।

हृदय के लिए फायदेमंद

नाशपाती हृदय स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा होता है। यह बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करता है, वहीं गुड कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में मदद कर सकता है। नाशपाती में पोटेशियम होता है, जो हार्ट के लिए जरूर पोषक तत्व है। इसके अलावा यह सूजन को कम करता है। इससे ब्लड प्रेशर भी कंट्रोल में रह सकता है।

एंटी इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर

नाशपाती में एंटीऑक्सीडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण काफी अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। जब सुबह खाली पेट नाशपाती खाई जाती है, तो इससे ये तत्व शरीर आसानी से अवशोषित कर लेता है। इसके बाद शरीर में ये अपना काम करते हैं। एंटीऑक्सीडेंट शरीर को फ्री रेडिकल्स से होने वाले डैमेज से बचाते हैं। एंटी इंफ्लेमेटरी गुण सूजन को कम करने में मदद करते हैं।

ब्लड प्रेशर या उच्च रक्तचाप के लिए नाशपाती फल

अगर आपको ब्लड प्रेशर है या आप उच्च रक्तचाप की समस्या से खुद को बचाना चाहते हैं, तो नाशपाती को अपने डाइट में शामिल करें। यह उच्च रक्तचाप की समस्या से बचाव कर आपको स्वस्थ रहने में मदद कर सकता है

गर्भावस्था के दौरान नाशपाती फल

प्रेगनेंसी के दौरान खान-पान पर विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है। इस दौरान महिलाओं को कई तरह के पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता होती है, लेकिन सबसे ज्यादा जो महत्वपूर्ण होता है, वो है फोलेट। यह शिशु में न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट (Neural Tube Defects) जैसे जन्मदोष से बचाव कर सकता है। ऐसे में नाशपाती का सेवन गर्भवती के लिए बहुत लाभकारी हो सकता है
ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) से बचाव के लिए नाशपाती के लाभ

बढ़ती उम्र और पोषक तत्वों की कमी हड्डियों की समस्याओं का कारण बनती हैं। ऑस्टियोपोरोसिस उन्हीं समस्याओं में से एक है। यह कैल्शियम, विटामिन्स और मिनरल्स की कमी से होने वाली हड्डियों की बीमारी है, जिसमें हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। इससे ये आसानी से टूट सकती हैं या कमर-पीठ में दर्द की शिकायत भी हो सकती है। ऐसे में नाशपाती के सेवन से ऑस्टियोपोरोसिस से बचाव हो सकता है। नाशपाती शरीर के पीएच स्तर को संतुलित करने का काम कर सकती है। इसका बोरोन (Boron, एक प्रकार का केमिकल) शरीर में कैल्शियम को बनाने में मदद कर सकता है, जिससे ऑस्टियोपोरोसिस से बचा जा सकता है

 डायबिटीज के लिए नाशपाती के फायदे

अगर डायबिटीज की बात करें, तो यह सर्दी-जुकाम की तरह आम समस्या बन चुकी है। एक बार अगर किसी को डायबिटीज हो जाए, तो उसे जिंदगी भर सेहत से जुड़ी अन्य समस्याओं को झेलना पड़ सकता है। ऐसे में डायबिटीज से बचाव के लिए नाशपाती का सेवन असरदार हो सकता है। इसमें एंटी-डायबिटिक गुण मौजूद होते हैं, जो डायबिटीज की समस्या से बचाव कर सकते हैं

दर्दनाशक की तरह नाशपाती फल

नाशपाती में एनाल्जेसिक (Analgesic) यानी दर्दनाशक गुण मौजूद होते हैं, जिससे दर्द की समस्या से राहत मिल सकती है। इसलिए, दर्द की समस्या से बचाव करने के लिए नाशपाती का सेवन कर सकते हैं

पाचन के लिए नाशपाती के फायदे

बाहरी और अधिक तेल-मसाले वाले खान-पान के कारण पेट की समस्या आम हो चुकी है। इस स्थिति में आप डाइट में नाशपाती या नाशपाती के जूस को शामिल कर पाचन तंत्र को स्वस्थ रख सकते हैं। इसमें पेक्टिन मौजूद होता है, जो एक तरह का फाइबर है। इसके नियमित सेवन से कब्ज की समस्या से आराम मिल सकता है और पाचन क्रिया स्वस्थ हो सकती है। ध्यान रहे कि अगर किसी को इर्रिटेबल बॉउल सिंड्रोम(Irritable Bowel Syndrome) की समस्या है, तो वो नाशपाती का सेवन डॉक्टर के निर्देशानुसार ही करें, वरना उन्हें पेट दर्द, पेट खराब या गैस जैसी समस्या हो सकती है




दिमागी तनाव से निपटने के घरेलू उपाय how to tackle tension

 



तनाव एक ऐसी बीमारी है जिससे ज्यादातर लोग परेशान हैं. आजकल लोगों को जरा सी बात पर टेंशन हो जाती है. नींद नहीं आती और दिनभर परेशान रहने लगते हैं. तनाव को दूसरी बीमारियों की भी जड़ माना जाता है. तनाव और टेंशन से वजन बढ़ता है, हार्ट की बीमारी होती हैं, ब्लड प्रेशर बढ़ता है, नींद की समस्या हो जाती है और हार्मोंस गड़बड़ होने लगते हैं. हालांकि आप घर में रहकर ऐसे कई काम या एक्टिविटी कर सकते हैं जो तनाव को दूर करने में आपकी मदद करेंगे. आइये जानते हैं घर में रहकर तनाव को कैसे कहें बाय-बाय.आयुर्वेद चिकित्सा की एक प्राचीन भारतीय प्रणाली है जो पूरे स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक उपचार का उपयोग करती है. कुछ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों, तेल और प्रैक्टिस से तनाव को कम करने और विश्राम को बढ़ावा देने में मदद करते हैं, जैसे कि ध्यान, प्राणायाम और योग. ये शरीर, मन और आत्मा में बैलेंस बनाने का काम करते हैं. इसलिए, तनाव से निपटने के लिए आयुर्वेदिक उपायों का प्रयोग करना बहुत फायदेमंद होता है. आइए कुछ आयुर्वेदिक उपायों के बारे में जानते हैं, जिससे तनाव दूर किया जा सकता है.

जटामांसी


जटामांसी शांति और तनाव को कम करने के लिए उपयोगी होती है. इसे चूर्ण बनाकर गर्म पानी के साथ सेवन किया जा सकता है.

ब्राह्मी


ब्राह्मी मस्तिष्क को शांत करने में मदद करती है और तनाव को कम करती है. ब्राह्मी की चाय बनाकर पी सकते हैं.

योग और प्राणायाम


योग और प्राणायाम तनाव कम करने में मदद करते हैं. योग विभिन्न आसनों को शामिल करता है, जो तनाव कम करने में मदद करते हैं. प्राणायाम मानसिक शांति लाने में मदद करता है.


सरसों का तेल


सरसों का तेल शरीर के तनाव को कम करने में मदद करता है. इसे नाभि पर लगाकर मालिश किया जा सकता है.











जिस प्रकार की हम जीवन शैली जी रहे हैं ऐसे में तनाव (Stress) होना स्वभाविक है। ऑफिस का कार्यभार हो या घर की जिम्मेदारी, कभी ना कभी किसी ना किसी ने तनाव को महसूस किया ही है। कारण कुछ भी हो सकता है पर तनाव को समय रहते कम करना बेहद जरूरी है। वरना लोग शारीरिक और मानसिक रूप से बंध जाते हैं, जिसके कारण उन्हें चिंता, डिप्रेशन, हिस्टीरिया आदि समस्याएं होने लगती हैं। इनका प्रभाव दैनिक जीवन पर भी पड़ता है। अगर आप भी तनाव का शिकार हो गए हैं तो आपके घर पर ही इसका इलाज मौजूद है। आज हम आपको इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि आप घरेलू उपाय से कैसे इस तनाव को दूर कर सकते हैं। इसके लिए हमने डॉ निमेश जी देसाई, साइकोलॉजिस्ट और निर्देशक से भी बात की है। पढ़ते हैं आगे...

तनाव को दूर करें हरी चाय (Green Tea for Stress)

हरी चाय जिसे इंग्लिश में ग्रीन टी भी कहा जाता है। अगर उसके साथ शहद और नीबू को मिलाकर पिया जाए तो इससे ना केवल शरीर स्वस्थ बनता है बल्कि यह तनाव को दूर करने में भी बेहद मददगार है। इसके अंदर ऐसे घटक पाए जाते हैं जो व्यक्ति को केंद्रित और उत्पादक बनाते हैं। ऐसे में आप प्रत्येक दिन में एक-दो बार हरी कप की चाय का सेवन कर सकते हैं। ग्रीन टी के अंदर कम मात्रा में कैफीन पाया जाता है ऐसे में आप दिन में तीन बार भी इस चाय का सेवन कर सकते हैं। मानसिक शांति के लिए यह एक अच्छा विकल्प है।

तुलसी

तुलसी तनाव को कम करने में मदद करती है और मानसिक शांति लाती है. तुलसी की चाय बनाकर पी सकते हैं.

सफेद मूसली

सफेद मूसली तनाव को कम करने में मदद करती है और शक्ति बढ़ाती है. इसे पाउडर के रूप में ले सकते हैं

मसाज के माध्यम से दूर करें

मसाज के माध्यम से खुद को रिलैक्स किया जा सकता है। यह न केवल नींद को बढ़ाता है बल्कि अगर आप पैरों की मसाज करवाते हैं तो इससे तनाव भी दूर होता है। इसके लिए आप तिल के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। हर दिन सोने से पहले आप तिल के तेल से अपने बालों की मालिश करें। ऐसा करने से आप अनिद्रा की समस्या को दूर कर पाएंगे और तनाव की समस्या से भी छुटकारा मिल जाएगा। इसके अलावा मसाज से शरीर और मन दोनों को शांति मिलती है।

अश्वगंधा

यह जड़ी-बूटी तनाव कम करने में मदद करती है. आश्वगंधा की जड़ को चूर्ण बनाकर गर्म पानी के साथ सेवन किया जा सकता है.


मसाज के माध्यम से दूर करें 

मसाज के माध्यम से खुद को रिलैक्स किया जा सकता है। यह न केवल नींद को बढ़ाता है बल्कि अगर आप पैरों की मसाज करवाते हैं तो इससे तनाव भी दूर होता है। इसके लिए आप तिल के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। हर दिन सोने से पहले आप तिल के तेल से अपने बालों की मालिश करें। ऐसा करने से आप अनिद्रा की समस्या को दूर कर पाएंगे और तनाव की समस्या से भी छुटकारा मिल जाएगा। इसके अलावा मसाज से शरीर और मन दोनों को शांति मिलती है।

सामाजिक सहयोग

अपने तनाव के क्षणों में अपने दोस्तों व रिश्तेदारों के बीच रहिए क्योंकि इससे आपको सबसे ज्यादा सपोर्ट मिलता है व हिम्मत भी मिलती है विपरीत परिस्थिति का सामना करने की।




अनिद्रा के आयुर्वेदिक ,घरेलू रामबाण उपाय :Nind ke gharelu upchar

                                          

       विडियो:नींद न आने की समस्या और  रामबाण उपचार                                                      


अनिद्रा जिसे अंग्रजी में Insomnia कहते हैं  से परेशान व्यक्ति को रात में काफ़ी देर तक बिस्तर पर पड़े रहने से भी नींद नहीं आती है। 
आज के समय में लोग इस तनाव भरी स्थिति को दूर करने के लिए काफ़ी दवाइयों का सेवन करते नज़र आते हैं जो उनके शरीर में किडनी और लीवर को नुक़सान पहुंचा सकती हैं।  आयुर्वेदिक और घरेलू उपचार की सहायता से इस समस्या को जल्दी दूर किया जा सकता है।


अनिद्रा (Insomnia) नींद नहीं आने के कारण

  *अगर आपको नियमित रूप से नींद आने में परेशानी होती है, तो हर रात सोने से पहले अपने शरीर को शांत करने और आराम करने का अभ्यास  करें । इसका मतलब है नहाना, पढ़ना या शांत संगीत सुनना। दिन के दौरान सक्रिय रहने से आपको बेहतर नींद लेने में मदद मिल सकती है


अनिद्रा को दूर करने के घरेलू उपाय

अश्वगंधा लाभदायक—

इसके चूर्ण को  दिन में दो बार गुनगुने पानी के साथ सेवन किया जाए तो अनिद्रा की समस्या को जल्दी ख़त्म किया जा सकता है।

सरसों का तेल फायदेमंद—

आयुर्वेद के मुताबिक़ रात को सोने से पहले अगर व्यक्ति रोजाना पैर के तलवों में इस तेल की अच्छे से मालिश करता है तो रात को अच्छी नींद आने में सहायता मिलती है।

दालचीनी चूर्ण उपयोगी—

रात को सोने से पहले एक गिलास देसी गाय के गुनगुने दूध में आधा चम्मच दालचीनी चूर्ण मिलाकर सेवन करने से अनिद्रा में लाभ मिलता है।

जायफल उत्तम औषधि—

*रात में अगर एक गिलास दूध में एक 2 ग्राम  जायफल चूर्ण मिश्रण करके कम से कम 1 महिना सेवन किया जाए तो अनिद्रा की परेशानी दूर हो सकती है।

शंखपुष्पी

शंखपुष्पी अपने वात संतुलन और मेध्य गुणों के कारण मन को शांत करने का काम करता है। साथ ही इसमें अनिद्रा को ठीक करने की भी क्षमता होती है।

ब्राह्मी

ब्राह्मी को बकोपा के नाम से भी जाना जाता है। यह रात की अच्छी नींद लाने के लिए बेहतरीन जड़ी बूटी है।

नियमित व्यायाम करे

नियमित रूप से मध्यम शक्ति वाले व्यायाम करना, जैसे तैराकी या पैदल चलना, दिन भर के तनाव को दूर करने में मदद कर सकता है।   सोने से पहिले सोते समय जोरदार व्यायाम नहीं करना कहिए , जैसे दौड़ना या जिम, क्योंकि यह आपको जागृत रख सकता है।

कैफीन वाली चीजों को कम लें

   चाय, कॉफी, एनर्जी ड्रिंक्स और कोका कोला जैसी चीजों से दूर रहे, ख़ासकर शाम के समय इन चीजों को न ले। कैफीन आपकी नींद मे बाधा उत्पन्न कर सकता है,और आप अच्छी नींद नहीं ले पाते। इसलिये अच्छा रहेगा आप सोने से पहले गर्म दूध या हर्बल चाय पीये।

 ज्यादा खाना न खायें

जरूरत से ज्यादा खाना और शराब, इनका सेवन देर रात को करने से भी, आपकी नींद के नियम मे बाधा उत्पन्न होती हैं। 
गर्म पानी से नहा लें, शांत संगीत सुनें या मन और शरीर आराम देने वाले व्यायाम करें।

इन ख़ास बातों का रखें ध्यान:

*अपने भोजन में देसी गाय का दूध, दलिया और बादाम को महत्त्व दें।
*दोपहर के भोजन में सलाद का सेवन ज़रूर करें क्योंकि इसमें पाया जाने वाला लैक्टो calcium तत्व शरीर में जठराग्नि को मज़बूत बनाए रखता है।
*रात को सोने से पहले एक गिलास देसी गाय का दूध नियमित रूप से सेवन करें।
*सूर्योदय से पहले उठकर रोजाना 2 से 3 किलोमीटर पैदल चलें।
*योग, व्यायाम और प्राणायाम को अपनी दिनचर्या में महत्त्वपूर्ण स्थान दें।
*तला हुआ भोजन और फ़ास्ट फ़ूड से आज ही दूरी बनाएं।

सोने से पहले कुछ देर टहलें:

सोने से पहले कुछ देर टहलने से शरीर को आराम मिलता है और नींद आने में मदद मिलती है.

गहरी सांस लें:
सोने से पहले कुछ देर गहरी सांस लेने से भी आराम मिलता है और नींद आने में मदद मिलती है.

स्क्रीन टाइम से बचें:

सोने से पहले कम से कम एक घंटे के लिए स्क्रीन टाइम से बचें, क्योंकि स्क्रीन से निकलने वाला ब्लू लाइट नींद को प्रभावित करता है.

नट्स:

बादाम और अखरोट में मैग्नीशियम और मेलाटोनिन होता है, जो नींद के लिए फायदेमंद है







17.8.24

गठिया और सन्धिवात को अलविदा कहें: दर्द और सूजन के लिए रामबाण नुस्खे

गठिया के इलाज का विडिओ 
                                       

         

मित्रों ,घरेलु उपचार के विडियो  की श्रंखला  में आज हम गठिया  ,संधिवात ,गाउट रोग को पूरी तरह काबू में लाने के रामबाण उपाय बता रहे हैं -
आजकल की बदलती जीवनशैली, मोटापा, गलत खान-पान आदि के कारण यह बीमारी अब सिर्फ बुजुर्गों तक ही सीमित नहीं रह गई है। दरअसल युवा भी इसके शिकार हो रहे हैं. गठिया का सबसे ज्यादा असर घुटनों और फिर कूल्हे की हड्डियों में देखने को मिलता है। कई लोगों को समय-समय पर शरीर में दर्द और अकड़न महसूस होती है। कभी-कभी उनके हाथों, कंधों और घुटनों में सूजन और दर्द होने लगता है और उन्हें हाथ हिलाने में भी दिक्कत होती है। ऐसे लोग गठिया रोग से पीड़ित हो सकते हैं।

 कैमिकलयुक्त दवाओं से बेहतर है कि आप गठिया को  घरेलू या आयुर्वेदिक रूप से ठीक करें। इसका कारण यह है कि प्राकृतिक रूप से बनी जड़ी बूटियों में किसी प्रकार के साइड इफेक्ट नहीं होता। गठिया को ठीक करने के लिए आप कुछ घरेलू उपायों का प्रयोग कर सकते हैं।

ये नुस्खे गठिया  से दिलाए छुटकारा -दर्द-सूजन पर वार करे करारा 

 अमलतास

यह एक पेड़ है जिसकी 10-20 ग्राम पत्तियों को घी या सरसो के तेल में मिलाकर या पकाकर खाने से रूमेटाइड आर्थराइटिस से आराम मिलता है।

सुखी अदरक

सुखी अदरक में एंटी-इंफ्लामेटरी गुण पाए जाते हैं जिससे जोड़ों में होने वाले दर्द से और सूजन से आराम मिलता है। लगभग आधा गिलास हल्का गर्म पानी में सुखी अदरक को मिलाकर पीने से जोड़ों के दर्द से राहत मिलती है। आप दिन में दो बार इसका सेवन कर सकते हैं।

 हरड़ और गुडुची

गुडुची के साथ हरड़ का सेवन करने से रूमेटाइड आर्थराइटिस के कारण उत्पन्न दर्द से राहत मिलती है। अपने जोड़ों के दर्द का आयुर्वेदिक इलाज करने के लिए आप सुखी अदरक और गुडुची को पीसकर उसमें 5 ग्राम हरड़ का पाउडर मिलाकर उसका सेवन कर सकते हैं।
*जितना हो सके उतना ज़्यादा पानी पीएं। इससे आप दिनभर हाइड्रेटिड रहेंगें।

हल्दी :

*हल्दी एक प्राकृतिक एंटीसेप्टिक माना जाता है। चोट लगने पर हल्दी का प्रयोग किया जाए, तो जल्द राहत मिलती है। इसमें करक्यूमिन नामक तत्व पाया जाता है जिससे शरीर में सूजन कम होने लगती है। साथ ही ये आर्थराइटिस के असर को धीरे-धीरे कम करने में सहायक है।

अरंडी का तेल

अरंडी का तेल शरीर में लिम्फोसाइट को बढ़ाने में मदद करता है। इसमें टी सेल यानी श्वेत रक्त कोशिकाएं होती हैं जो किसी भी तरह की बीमारी से लड़ने में सहायक होती है।गठिया (Arthritis) एक ऐसी बीमारी है जो जोड़ों में दर्द, सूजन और अकड़न पैदा करती है. यह किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकती है, लेकिन यह आमतौर पर 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में अधिक आम होती है.

 गठिया के मरीजों को इन पांच फूड्स से बचना चाहिए.

. चावल

चावल में रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट होते हैं, जो सूजन को बढ़ा सकते हैं. 

गठिया के मरीजों को एक हेल्दी और बैलेंस डाइट का सेवन करना चाहिए जिसमें फल, सब्जियां, साबुत अनाज और दुबला प्रोटीन शामिल हों. नियमित व्यायाम भी गठिया के लक्षणों को मैनेज करने में मदद कर सकता है

कोल्ड ड्रिंक

कोल्ड ड्रिंक में चीनी और ऑर्टिफिशियल स्वीटनर होते हैं, जो सूजन को बढ़ा सकते हैं. गठिया के मरीजों को पानी, हर्बल चाय या कम चीनी वाले फल  के पेय का सेवन करना चाहिए.

 गठिया के लक्षणों को कम करने के लिए टिप्स:

*पानी भरपूर मात्रा में पिएं: शरीर में पानी की कमी गठिया के दर्द को बढ़ा सकती है. इसलिए, दिन भर में पर्याप्त मात्रा में पानी पीना बहुत जरूरी है.
*अरंडी के तेल की मालिश किसी भी दर्द का रामबाण इलाज है। अगर आपके जोड़ों में भी हमेशा दर्द की शिकायत रहती है तो आप अरंडी के तेल से जोड़ों की मालिश कर सकते हैं।
*गठिया के लिए आमलकी, अश्वगंधा और शतावरी को मिलाकर उसका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को रोज़ाना सुबह खाली पेट खाएं।
 *नींबू का रस निकालकर जोड़ों की मालिश करें। इससे सूजन व जोड़ों का दर्द खत्म होता है।
* गठिया होने का कारण यूरिक एसिड का बढ़ना है। इसको नियंत्रित करने के लिए आप लहसुन को शहद में डालकर इसका सेवन कर सकते हैं।
* कच्चे आलू का रस निकालकर रोज़ाना खाली पेट पानी के साथ आधा कप पिएं।

 सूर्य की किरणों का हल्का सहारा लें: 

सुबह की हल्की धूप जोड़ों के लिए फायदेमंद होती है. विटामिन-डी हड्डियों को मजबूत बनाने में मदद करता है.

* ठंडे से बचें:

एयर कंडीशनर के अत्यधिक प्रयोग से बचें. ठंड जोड़ों के दर्द को बढ़ा सकती है.

* वजन को कंट्रोल में रखें:

ज्यादा वजन जोड़ों पर दबाव डालता है, जिससे दर्द बढ़ सकता है. हेल्दी वजन बनाए रखने से गठिया के लक्षणों को कम करने में मदद मिलती है.

* नियमित व्यायाम करें: 

हल्के व्यायाम जोड़ों को लचीला बनाते हैं और दर्द को कम करते हैं.
गर्मियों में हड्डियों को मजबूत बनाने वाले डेयरी रहित खाद्य पदार्थ:

* हरी पत्तेदार सब्जियां:

लक, मेथी, ब्रोकली जैसी हरी पत्तेदार सब्जियों में कैल्शियम और विटामिन-के भरपूर मात्रा में होते हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाते हैं.

* सोयाबीन:

सोयाबीन प्रोटीन और कैल्शियम का अच्छा सोर्स है. सोया दूध, टोफू और एडामे का सेवन गठिया के रोगियों के लिए फायदेमंद होता है.

* अलसी के बीज: 

अलसी के बीज ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर होते हैं, जो जोड़ों की सूजन को कम करने में मदद करते हैं.

* अनार का दाना: 

अनार के दानों में एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं, जो शरीर में सूजन को कम करते हैं.

* नट्स और बीज: 

बादाम, अखरोट, कद्दू के बीज आदि कैल्शियम, मैग्नीशियम और हेल्दी फैट के अच्छे सोर्स हैं. ये हड्डियों को मजबूत बनाते हैं.


पानी -

पानी यूरिक एसिड की मात्रा को शरीर में संतुलित रखने में बहुत ही ज्यादा कारगर साबित होता है।

लहसुन -

गठिया व जोड़ों का दर्द में लहसुन काफी फायदेमंद साबित होता है।
इसके लिए आप लहसुन की 3-4 कलियां सुबह खाली पेट ले।

एलोवेरा -

एलोवेरा का इस्तेमाल भी गठिया के दर्द में आराम पाने के लिए किया जाता है।
इसके लिए आप दर्द वाले स्थान पर ताजा एलोवेरा का जेल लगाएं यह आप के दर्द को बहुत हद तक कम कर देगा।

आलू -

आलू के रस में कार्बनिक और विभिन्न प्रकार के खनिज के गुण मौजूद होते हैं।
जिस वजह से यह गठिया के इलाज में बहुत फायदेमंद साबित होते हैं।

प्रभावित जोड़ों पर बर्फ लगाना

कपड़े से ढके बर्फ के पैक को जोड़ पर लगाने से गाउट से संबंधित सूजन को कम करने में मदद मिल सकती है।
दर्द से राहत पाने के लिए बर्फ की थैली या अन्य ठंडी वस्तु को पतले तौलिये में लपेटकर 20 मिनट तक रखें।


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1.8.24

अस्थमा और सांस फूलने के लिए रामबाण घरेलू उपचार: आयुर्वेदिक तरीके से दमा निवारण

 



मित्रों,घरेलू आयुर्वेद से चिकित्सा करने के विडिओ प्रस्तुत करने की शृंखला मे आज का टॉपिक है  "अस्थमा और सांस फूलने की समस्या  के लिए रामबाण घरेलू उपचार: आयुर्वेदिक तरीके से दमा निवारण"
अस्थमा सांस की बीमारी है, इसे दमा भी कहा जाता है। जब श्वसन मार्ग में सूजन पैदा हो जाए तो इससे छाती में कसाव महसूस होने लगता है। जिससे सांस लेने पर परेशानी होती है। कई बार तो खांसी भी होने लगती है। 
 अस्थमा के मरीजों को अपनी डाइट का खास ख्याल रखना पड़ता है। ऐसे में आप कुछ घरेलू उपाय अपनाकर इस समस्या को काफी हद तक कंट्रोल कर सकते हैं।

अस्थमा के कारण क्या है

अभी तक अस्थमा के सटीक कारणों का पता नहीं लगा पाया गया है लेकिन इस बीमारी के पीछे अनुवांशिक और पर्यावरणीय कारण जिम्मेदार हो सकते हैं अस्थमा रोग के शिकार अक्सर धूम्रपान करने वाले या फिर तंबाकू खाने वाले होते हैं। इसके अलावा धूल के कण वायु प्रदूषण, ठंडी हवा भी इसके कारण हो सकते हैं शारीरिक गतिविधियां, एलर्जिक रिएक्शन और कुछ भोज्य पदार्थों के कारण होता है। इसके अलावा अधिक तनाव और भावनात्मक रूप से कमजोर होने के कारण भी यह बीमारी हो जाती है। पेय पदार्थों जैसे बीयर, वाइन खाद्य पदार्थों जैसे सूखे मेवे भी इस बीमारी का कारण हो सकते हैं

अस्थमा मे शहद  उपयोगी 




अस्थमा के लक्षणों को कम करने में शहद काफी प्रभावी होता है। इसका उपयोग करने से खांसी, जुकाम और गले में खराश जैसी समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है। इसका इस्तेमाल करने के लिए आप एक गिलास गुनगुने
पानी में एक चम्मच शहद मिलाकर इसे घूंट-घूंट करके पिएं। दिन में दो से तीन बार इसका सेवन करने से आपको जल्द आराम मिल सकता है।
 रात में सोने से पहले भी एक चम्मच शहद में थोड़ा सा दालचीनी पाउडर मिलाकर उसे चाट लें।

अदरक-अस्थमा मे फायदेमंद 






अदरक में एंटीऑक्सीडेंट्स और एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह खांसी, गले में खराश और दर्द को दूर करने में मदद कर सकता है। इसके लिए आप अदरक की चाय का सेवन कर सकते हैं। इसके अलावा, आप अदरक के टुकड़े को चबा करके भी खा सकते हैं।

कॉफी

आपको शायद जानकर हैरानी हो लेकिन कॉफी भी अस्थमा से राहत दिलाने का एक आसान लेकिन कारगर उपाय है। इसके लिए आप एक कप गर्मागर्म कॉफी का सेवन करें। इससे आपको तुरंत अस्थमा से राहत मिलती है। दरअसल, यह तुरंत वायुमार्ग को खोलता है, जिससे आपको सांस लेने में आसानी होती है।

हल्दी अस्थमा मे उपयोगी 







एक गिलास पानी में एक चौथाई चम्मच हल्दी मिलाकर उसका सेवन करें। करीबन पंद्रह दिनों तक इस उपचार को दिन में तीन बार करें। हल्दी एक बेहतरीन एंटीमाइक्रोबॉयल एजेंट है। साथ ही इसमें कर्क्युमिन भी पाया जाता है, जो अस्थमा से लड़ने में मददगार है।

अदरक और हल्दी- से अस्थमा  मे राहत 






अदरक और हल्दी को औषधिय गुणों का भंडार माना जाता है। इसका इस्तेमाल कर आप आसानी से अस्थमा को काफी हद तक कंट्रोल कर सकते हैं। इसके लिए एक गिलास दूध में थोड़ी सी अदरक कद्दूकस करके उबाल लें।  इसमें आधा चम्मच हल्दी पाउडर मिलाकर सेवन करे। आयुर्वेद के अनुसार दिन में 2 बार इसका सेवन करने से आपको अस्थमा अटैक से काफी लाभ मिलेगा।

 अस्थमा मे लहसुन का दूध उपकारी 



लहसून एक औषधी है और अगर इसे रात में दूध में मिलाकर पीया जाए तो अस्थमा जैसी कई गंभीर बीमारियों से बचा जा सकता है। इसका इस्तेमाल के लिए रोजाना रात में एक गिलास लहसून के दूध का सेवन करें।

लहसुन में एंटी इंफ्लामेट्री गुण पाए जाते हैं जो अस्थमा की समस्या को कम करने में कारगर होता है। इसे इस्तेमाल करने के लिए आधा कप  गरम अदरक वाली चाय में 2-3 लहसुन की कली पीसकर डाल लें और सेवन करें 

तेज पत्ता

तेज पत्ता अस्थमा की समस्या को कम करने में काफी फायदेमंद हो सकता है। इसके लिए आधा चम्मच तेज पत्ता पाउडर में एक चौथाई चम्मच पिपली और एक चम्मच शहद मिलाकर दिन में तीन  बार इसका सेवन करे। यह क्रोनिक अस्थमा में कारगर साबित होता है।

दालचीनी से अस्थमा मे  राहत 




दालचीनी में कैल्शियम, मैग्नीशियम आयरन एवं प्रोटीन जैसे गुणकारी तत्व पाए जाते हैं जो अस्थमा के मरीजों के लिए काफी कागर है। इसके साथ ही इसका सेवन शहद के साथ करने से इसके लाभ दोगुना बढ़ जाते हैं। 
रात को सोने से पहले एक कप गर्म पानी में एक चम्मच दालचीनी पाउडर, एक चौथाई चम्मच त्रिकटु चूर्ण और 1 चम्मच शहद मिलाकर इसका सेवन करें। आप चाहे तो दिन में 2 बार इसका सेवन कर सकते हैं।


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31.7.24

"किडनी विफलता का आयुर्वेदिक इलाज: जीवन रक्षक हर्बल उपचार और लक्षण"


क्रोनिक किडनी डिजीज (CKD) से दुनियाभर में 80 करोड़ से ज्यादा लोग परेशान हैं। यह मौत की भी बड़ी वजह है। भारत जैसे देश में, जहां लो और मिडल क्लास बहुत ज्यादा है, समस्या और गंभीर है। यहां ज्यादातर लोग इस बीमारी के नतीजे नहीं झेल पाते। डायलिसिस और ट्रांसप्लांटेशन का खर्च भी उनकी कमर तोड़ देता है।
किडनी की परेशानियों को आराम से दूर करना हो, तो आयुर्वेद सटीक तरीका साबित होता है। आयुर्वेद, किडनी के काम करने की ताकत को चमत्कार की तरह सही करता है। इतना कि डायलिसिस और ट्रांसप्लांटेशन जैसे इलाजों की जरूरत ही नहीं पड़ती। चलिए जानते हैं कि आयुर्वेद में किडनी डिजीज का क्या इलाज है।
Ayurvedic herb for kidney: जिन लोगों को पहले से किडनी से जुड़ी कोई पुरानी बीमारी है, उनके लिए किसी भी बीमारी से जुड़ी दवाएं लेना थोड़ा मुश्किल हो जाता है और ऐसे में कुछ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां आपके काफी काम आ सकती है।
  किडनी हमारे शरीर के सबसे ज्यादा हेल्दी अंगों में से एक है और इसका नियमित रूप से ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है। जब भी हम बीमार पड़ते हैं, तो उसके लिए डॉक्टर हमें दवाएं देते हैं। हमारे द्वारा खाई जाने वाली ये दवाएं हमारे शरीर की बीमारी को ठीक करने में तो मदद करती हैं, लेकिन इन दवाओं को फिल्टर हमारी किडनी को करना पड़ता है। खासतौर पर जिन लोगों को पहले से किडनी से जुड़ी कोई पुरानी बीमारी है, तो उनके लिए किसी भी बीमारी से जुड़ी दवाएं लेना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। दवाओं का असर हमारी किडनी पर जरूर पड़ता है, चाहे वे दवाएं किडनी की किसी बीमारी का इलाज करने के लिए ही क्यों न तैयार की गई हों। ऐसे में कुछ आयुर्वेदिक एक्सपर्ट्स क्रोनिक किडनी डिजीज के मामलों में कुछ खास प्रकार की आयुर्वेदिक दवाओं को इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। हालांकि, ऐसा नहीं है कि सारी ही आयुर्वेदिक दवाएं आपकी किडनी के लिए सुरक्षित हैं। लेकिन कुछ आयुर्वेदिक उत्पाद आपकी किडनी के लिए सुरक्षित हो सकते हैं।





वरुणा (Varuna for kidney)

आयुर्वेद में किडनी के मरीजों को वरुणा से बनी दवाएं दी जाती हैं। साथ ही वरुणा के पाउडर का सेवन क्रोनिक किडनी के मरीजों को दिया जाता है, ताकि उनके लक्षणों को कंट्रोल करके रखा जा सके। कुछ अध्ययनों में भी यह पाया गया है कि किडनी स्टोन को निकालने और उसे फिर से होने के खतरे को कम करने के लिए वरुणा काफी फायदेमंद हो सकती है।

गिलोय बेल (Giloy bel for kidney)

ग्रामीण भारत में घर-घर पाई जाने वाली गिलोय की बेल आयुर्वेद की सबसे प्रभावी जड़ी-बूटियों में से एक है। आयुर्वेद के अनुसार बुखार, गठिया और डेंगू जैसी बीमारियों में गिलोय बेल काफी फायदेमंद है। किडनी से जुड़ी बीमारियों का इलाज करने और किडनी की क्रोनिक बीमारियों को मैनेज करने के लिए भी आयुर्वेद में गिलोय बेल का इस्तेमाल किया जाता है।

पुनर्नवा (Punarnava for kidney)

किडनी के लिए सुरक्षित जड़ी-बूटियों में किडनी पुनर्नवा का नाम भी आता है। आयुर्वेद के अनुसार नियमित रूप से और समय-समय पर पुनर्नवा का इस्तेमाल करना आपकी किडनी को सुरक्षित रखता है और यहां तक कि जिन्हें पहले से ही किडनी से जुड़ी बीमारियां हैं, उनके लिए पुनर्नवा फायदेमंद है। सिर्फ आयुर्वेद ही नहीं बल्कि एलोपैथी में भी पुनर्नवा को काफी फायदेमंद बताया गया है, जिनके अनुसार इसमें डाइयुरेटिक और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं।

चंदन (Sandalwood for kidney)

आयुर्वेद में स्किन से जुड़ी बीमारियों को दूर करने के लिए चंदन का काफी इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन क्या आपको पता है आयुर्वेद में चंदन की मदद से किडनी से जुड़ी कई बीमारियों का इलाज भी किया जाता है। दरअसल, चंदन भी एक डाइयुरेटिक की तरह काम करती है, जो किडनी से जुड़ी बीमारियों को दूर करने मे मदद करता है।

 गोक्षुरा (Gokhru for kidney)

आयुर्वेद में गुर्दे से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए गोखरू का इस्तेमाल भी काफी माना गया है। किडनी के मरीजों को गोखरू चूर्ण लेने की सलाह दी जाती है। साथ ही कुछ अध्ययनों के अनुसार गोखरू में यूरिक एसिड, क्रिएटिनिन और किडनी स्टोन कम करने के गुण पाए जाते हैं, जो क्रोनिक किडनी डिजीज होने के खतरे को कम करते हैं।

किडनी खराब होने के इन लक्षणों को न करें नजरअंदाज

किडनी रातों-रात फेल नहीं होती, धीरे-धीरे इस हाल तक पहुंचती है। लेकिन किडनी फेल्योर के लक्षण बहुत कम और नॉर्मल होने की वजह से इसके बारे में समय से पता नहीं चलता और इलाज देर से शुरू हो पाता है। इलाज समय से शुरू हो, तभी सफल होगा। इसलिए, अलग तरह के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत मेडिकल हेल्प लेनी चाहिए।पेशाब कम आना

हाथ-पैरों में सूजन
थकान महसूस होना
सांस लेने में परेशानी
कई बार, सीरम क्रिएटिनिन, ब्लड यूरिया और यूरिन एल्बुमिन के लेवल्स अबनॉर्मल रेंज तक बढ़ जाते हैं। इससे किडनी फंक्शन में गड़बड़ी का इशारा मिलता है। आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां और मेडिसिनल प्रीपरेशंस इन इंडिकेटर्स को नॉर्मल रेंज में लाने का काम करते हैं। सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले हर्बल फॉर्मुलेशंस में पुनर्नवा, कासनी, वरुण, पलाश और गोक्षुरा का इस्तेमाल किया जाता है।
आयुर्वेद के ट्रेडिशनल तरीके में नेचरल चीजों का प्रयोग करके बीमारियां ठीक की जाती हैं। इनमें ऐसी परेशानियां भी होती हैं, जहां एलोपैथिक दवाइयां काम नहीं कर पातीं। किडनी फेल्योर को भी आयुर्वेद से पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। शरीर में असंतुलन को सही करके और किडनी फंक्शन में सुधार से आयुर्वेद में किडनी डैमेज को ठीक करने की भी ताकत होती है।
किडनी को स्वस्थ रखने और रोगों से बचाने के लिए टिप्स
हाइड्रेटेड रहें
स्वस्थ आहार का पालन करें
नमक का सेवन सीमित करें
धूम्रपान और अत्यधिक शराब के सेवन से बचें
नियमित व्यायाम करें
तनाव का प्रबंधन करें
रक्तचाप को नियंत्रित करें
ब्लड शुगर के स्तर को मॉनिटर करें
पुनर्नवा, पलाश, गोक्षुरा, कासनी और वरुणादि ऐसी कई जड़ी-बूटियाँ हैं जिनका उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सक किडनी को साफ करने और पोषण देने के लिए करते हैं। ये जड़ी-बूटियाँ सूजन को कम करने में मदद करती हैं, रक्त परिसंचरण में सुधार करती हैं और शरीर से अपशिष्ट को तेजी से बाहर निकालने में मदद करती हैं।
आयुर्वेदिक इलाज हर मरीज की स्थिति के आधार पर तय होता है। इसलिए, किडनी फेल्योर के इलाज के लिए किसी एक दवाई का नाम नहीं लिया जा सकता, जबकि एलोपैथिक इलाज में यही ट्रेंड होता है। मरीज की उम्र, मेडिकल हिस्ट्री, कोमोर्बिटीज, लक्षण, बीमारी की स्टेज और सेहत को देखकर ही आयुर्वेदिक इलाज तय किया जा सकता है। इसके अलावा, आयुर्वेद शरीर में असंतुलन (दोष) दूर करने का काम करता है, इसलिए भी हर मरीज के इलाज का तरीका अलग होगा। एक मरीज को जिन दवाइयों से आराम मिले, जरूरी नहीं कि वह दूसरे के लिए भी फायदेमंद हो।
आयुर्वेदिक इलाज का सिद्धांत, केवल लक्षणों के इलाज की बजाय इसकी जड़ तक पहुंचना होता है। आयुर्वेदिक डॉक्टर, इलाज शुरू करने से पहले बीमारी के मूल कारण का पता लगाते हैं। कई बार, किडनी फेल्योर किसी पुरानी वजह से होता है, जिसमें हाइपरटेंशन, डायबिटीज, दिल की बीमारियां और किसी दवाई से एलर्जी आदि हो सकते हैं। आयुर्वेदिक इलाज से पहले, किडनी फेल्योर के कारण का पता लगाकर इसे दूर किया जाता है।

क्रोनिक किडनी रोग के लिए कौन सी दवा सबसे अच्छी है?

क्रोनिक किडनी डिजीज में खून के फीकेपन का श्रेष्ठ उपचार दवाई और एरिथ्रोपोएटिन है।
विशिष्ट परामर्श- 

विशिष्ट परामर्श-

किडनी फेल रोगी के बढे हुए क्रिएटनिन के लेविल को नीचे लाने और गुर्दे की क्षमता बढ़ाने में हर्बल औषधि सर्वाधिक सफल होती हैं| किडनी ख़राब होने के लक्षण जैसे युरिनरी फंक्शन में बदलाव,शरीर में सूजन आना ,चक्कर आना और कमजोरी,स्किन खुरदुरी हो जाना और खुजली होना,हीमोग्लोबिन की कमी,उल्टियां आना,रक्त में यूरिया बढना आदि लक्षणों  में दुर्लभ जड़ी-बूटियों से निर्मित यह औषधि रामबाण की तरह असरदार सिद्ध होती है|डायलिसिस  पर   आश्रित रोगी भी लाभान्वित हुए हैं| औषधि हेतु  वैध्य दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क किया जा सकता है|
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सफेद दाग का मिटेगा नामों निशान ,अचूक उपचार

 

  सफेद दाग के घरेलू नुस्खे का विडिओ 



  मित्रों ,रोगों की घरेलू रामबाण  चिकित्सा के विडिओ प्रस्तुत करने की शृंखला मे आज हम सफेद दाग ,विटीलिगों ल्यूकोडर्मा  को जड़ मिटाने के उपचारों की जानकारी दे रहे हैं |
 स्किन  के किसी अंग या बालों का सफेद होना विटिलिगो कहलाता है। जिसे सफेद दाग के नाम से भी जानते है। आमतौर पर यह समस्या शरीर में मेलानोसाइट्स की कमी के कारण होते है। जो मेलानिन नामक स्किन के पिगमेंट बनाती है। जिससे स्किन में रंग बनाने वाली कोशिकाएं खत्म होने के कारण यह सफेद दाग होते हैं। यह सफेद दाग शरीर में किसी भी जगह हो सकते हैं। समय से पहले सिर के बाल, भौहें, पलकें, दाढ़ी के बालों का रंग उड़ जाता है या सफेद हो जाती है|विटिलिगो किसी भी उम्र में शुरू हो सकता है, लेकिन विटिलिगो के आधा से ज्यादा मामलों में यह 20 साल की उम्र से पहले ही विकसित हो जाता है,  चेहरे पर या शरीर के अन्य किसी हिस्से में सफेद दाग होने के कारण कई बार व्यक्ति में हीनता की भावना भी पैदा हो जाती है। 
सफेद दाग को ठीक करने के लिए विशेष आहार की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन कुछ खाद्य पदार्थ और पोषक तत्वों को शामिल करके त्वचा के रंग में सुधार किया जा सकता है. विटिलिगो (सफेद दाग) में विटामिन बी12, फोलिक एसिड, विटामिन सी और जिंक से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करना फायदेमंद हो सकता है.

कायाकल्प लेप

इसके लिए एक बाउल में मुल्तानी मिट्टी, गौमूत्र, नीम का पेस्ट, एलोवेरा जेल, हल्दी और अपामार्ग मिलाकर पेस्ट बना लें। इसे लगातार 1 माह तक लगाए। इससे आपकी स्किन अपने रंग में आ जाएगी।

गोमुत्र अर्क़

माना जाता है कि गोमुत्र में ऐसे गुण पाए जाते हैं जो सफेद दाग को काफी हद तक सही कर देते हैं। इसके लिए रोजाना सुबह  एक चम्मच गोमुत्र अर्क पिएं।  दूध के साथ नमकीन चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। इससे सफेद दाग हो सकते हैं। जैसे चाय, कॉफी के साथ नमकीन जैसी चीजें ना खाएं। इसके साथ ही रात को सोने के 1 घंटे पहले दूध का सेवन करे।
ये उपचार भी कारगर होते हैं 
1. पीसी हुई हल्दी गुनगुने दूध में डाल कर पिए। हर रोज 2 बार ये उपाय करने से 5-6 महीने में सफेद दाग साफ़ होने लगेगा।
2. सरसों का तेल 2 चम्मच ले और इसमें 1 चम्मच हल्दी मिलाकर इसका लेप सफेद दागों पर लगाए. फिर 15 मिनट के बाद धो ले। इस घरेलू नुस्खे को कुछ महीने लगातार दिन में 2 से 3 बार लगाए ल्यूकोडर्मा ठीक होने लगेगा।
3. सफेद दाग का अचूक इलाज करने के लिए लहसुन के रस में थोड़ी हरड़ घीस कर मिलाए और सफेद दाग पर इसका लेप लगाए।
4. प्रतिदिन 3 से 4 बादाम और 30 से 50 ग्राम भीगे काले चने खाए।
5. अखरोट का पाउडर 2 चम्मच ले और इसमें थोड़ा सा पानी मिला कर पेस्ट बना ले। अब इस पेस्ट को white spots पर 15 से 20 मिनट के लिए लगा कर छोड़ दे। इस होम रेमेडीज को दिन में 2 से 3 बार प्रयोग करे।
6. सफेद दाग के उपाय में नीम के पत्तों का रस रामबाण इलाज का काम करता है। नीम के पत्तों को पीस कर इसका रस निकाल ले और इसमें 1 चम्मच शहद मिला कर दिन में 2 से 3 बार पिए।

सफेद दाग का  परमानेंट इलाज क्या है

आज के समय में विटिलिगो को पूरी तरह से सही करने के लिए तमाम तरह के इलाज और थेरेपी उपलब्ध हैं। 
  आयुर्वेद के अनुसार, पित्त या इसके साथ बाकी वातों की गड़बड़ी से सफेद दाग की समस्या होती है। जो लोग बहुत ज्यादा तला-भुना, मसालेदार, बेवक्त खाने के अलावा विरुद्ध आहार (मसलन दूध के साथ नमक या मछली आदि) लेता है, उसमें यह समस्या होने की आशंका ज्यादा होती है।
 आयुर्वेद में पंचकर्म के जरिए शरीर को डिटॉक्सिफाई किया जाता है। इसके अलावा बाकुची बीज, खदिर (कत्था), दारुहरिद्रा, करंज, अमलतास आदि  हर्ब्स के जरिए भी खून को साफ किया जाता है। इसके अलावा कंपाउंड मेडिसिन भी दी जाती है जैसे कि गंधक रसायन, रस माणिक्य, मंजिष्ठादि काढ़ा, खदिरादि वटी आदि है। त्रिफला भी काफी असरदार है।
  हल्दी और सरसों के तेल को मिलाकर बनाया गया मिश्रण दाग वाली जगह लगाने से दाग कम होने लगता है। इसके लिए आप एक चम्मच हल्दी पाउडर लें। अब इसे दो चम्मच सरसों के तेल में मिलाए। अब इस पेस्ट को सफेद चकतों वाली जगह पर लगाएं और 15 मिनट तक रखने के बाद उस जगह को गुनगुने पानी से धो लें। ऐसा दिन में तीन से चार बार करें। इससे फर्क नजर आयेगा|
१.५  किलो ग्राम हल्दी को 8 लीटर पानी में रात भर भिगोकर रखें, रात भर भिगोने के बाद सुबह उस पानी को गर्म करें। तब तक गर्म करें जब तक कि 1 लीटर शेष रह जाएँ। इसमेंआधा लीटर सरसों का तेल मिला लें, इसके बाद तब तक पकाते रहें जब तक की आधा लीटर शेष रह जाएँ इस मिश्रण के  प्रयोग से शरीर के सफेद दाग में लाभ मिलता है। इस तेल का प्रयोग सुबह-शाम दोनों समय करना चाहिए।
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