12.5.25

"गर्मियों में तरबूज का सुपर पॉवर: कैसे और कब खाएं?"

         गर्मियों में तरबूज का सुपर पॉवर: कैसे और कब खाएं
  घरेलू  आयुर्वेद मे फल और सेहत संबंधित  विडिओ की शृंखला मे आज का विषय है 
"गर्मियों में तरबूज का सुपर पॉवर: कैसे और कब खाएं?"
मित्रों ,गर्मियों  का मौसम चल रहा है और यह एक ऐसा समय है जब  आपको अपनी खाने पीने की चीजें बदलना  चाहिए और रूटीन मे  खूब सारे ठंडे  पदार्थ  शामिल करने चाहिए | तरबूज के सेहत के लिए फायदे क्या हैं? 

दिल को रखे स्वस्थ

आजकल की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में हार्ट हेल्थ का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है। तरबूज इस मामले में भी एक फायदेमंद फल साबित होता है। इसमें पाया जाने वाला लाइकोपीन (Lycopene) एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है, जो कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करने और ब्लड प्रेशर (Blood Pressure) को संतुलित बनाए रखने में मदद करता है।

इम्यून सिस्टम मजबूत होता है

तरबूज में भरपूर मात्रा में विटामिन C होता है। इससे इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। यह शरीर को संक्रमण और बीमारियों से लड़ने में मदद करता है और कैंसर जैसी बीमारियों का जोखिम भी कम कर सकता है।
विडिओ देखें 




आंखों के लिए फायदेमंद

एक मीडियम साइज के तरबूज के टुकड़े में 9-11% तक विटामिन A होता है। हमारी आंखों के लिए विटामिन A बहुत जरूरी है। इसलिए तरबूज खाने से आंखें स्वस्थ रहती हैं और नजर कमजोर होने का खतरा कम होता है।

स्किन के लिए फायदेमंद

तरबूज में विटामिन A, B6 और C होता है। ये सभी विटामिन्स स्किन को कोमल और चमकदार बनाए रखते हैं। तरबूज पानी से भरपूर होता है, इसे फेस मास्क के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। एक चम्मच दही में एक चम्मच तरबूज का रस लेकर मिक्स करें। इसे चेहरे पर 10 मिनट तक लगाए रखें और धो लें। इससे स्किन चमकदार होती है।

पाचन तंत्र मजबूत होता है

अगर किसी को पाचन से जुड़ी समस्या रहती है, जैसे क्रोहन या कोलाइटिस है, तो आप तरबूज खा सकते हैं। तरबूज पेट में आसानी से पच जाता है। इससे गुड गट बैक्टीरिया भी बढ़ते हैं, जो खाना पचाने में मदद करते हैं। इसलिए तरबूज खाने से पाचन तंत्र मजबूत होता है।

तरबूज खाने से कौन सी बीमारी ठीक होती है?

तरबूज खाने से कई बीमारियों को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है, जैसे कि डिहाइड्रेशन, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, और कैंसर का खतरा। तरबूज में मौजूद पोषक तत्व और एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर को स्वस्थ रखने और बीमारियों से बचाने में मदद करते हैं।

तरबूज से जुड़े कुछ कॉमन सवाल और जवाब

सवाल: क्या रोज तरबूज खाना सही है?

जवाब: हां, गर्मियों में रोज तरबूज खा सकते हैं। इससे शरीर को हाइड्रेटेड बना रहता है और जरूरी पोषण भी मिलते हैं। हालांकि, एक बार में बहुत ज्यादा तरबूज नहीं खाना चाहिए।

सवाल: क्या डायबिटिक लोग तरबूज खा सकते हैं?

जवाब: हां, लेकिन सीमित मात्रा में खाना चाहिए। तरबूज में नेचुरल शुगर होती है। तरबूज का ग्लाइसेमिक लोड भले कम होता है, पर इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स हाई है। इसलिए अगर इसे डायबिटिक लोग खा रहे हैं तो सीमित मात्रा में ही खाना चाहिए।

सवाल: क्या रात में तरबूज खाना सही है?

जवाब: नहीं, रात में तरबूज खाने से बचना चाहिए। इससे पेट में गैस बन सकती है और ठंडक की वजह से सर्दी-जुकाम हो सकता है।

सवाल: क्या तरबूज से वजन बढ़ता है?

जवाब: नहीं, तरबूज लो कैलोरी फूड है। इसमें पानी ज्यादा होता है, जिससे वजन बढ़ने की संभावना बहुत कम होती है।

दूध और तरबूज खाने से क्या होता है?

दूध और तरबूज को एक साथ खाने से पाचन संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं। तरबूज में विटामिन-सी होता है जो दूध में मौजूद प्रोटीन के साथ प्रतिक्रिया करता है, जिससे पेट फूलने, ब्लोटिंग और पाचन संबंधी अन्य समस्याएं हो सकती हैं. आयुर्वेद के अनुसार, तरबूज खट्टा होता है और दूध मीठा, इसलिए दोनों का कॉम्बिनेशन विषाक्तता और पाचन संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है.
तरबूज पुरुषों के लिए क्या करता है?
तरबूज में सिट्रूलाइन (citrulline) नामक अमीनो एसिड होता है. यह तत्व पुरुषों को बेहतर स्तंभन  में मदद कर सकता है. सिट्रुलाइन एक अलग तरीके से काम करता है, लेकिन यह वियाग्रा की तरह प्राइवेट पार्ट में ब्लड फ्लो को बढ़ाकर स्तंभन  को आसान बनाता है
सवाल: क्या डायरिया होने पर तरबूज खा सकते हैं?

जवाब: डायरिया दस्त होने पर तरबूज खाने से बचना चाहिए। आप सोच सकते हैं कि तरबूज में 92% पानी होता है, तो यह तो हाइड्रेशन में मदद करता है।
जबकि इसके उलट तरबूज में मौजूद नेचुरल शुगर और फाइबर डायरिया की कंडीशन को और गंभीर बना सकते हैं। डायरिया के समय तरबूज खाने से पाचन तंत्र कमजोर हो सकता है।

सवाल: किन लोगों को तरबूज नहीं खाना चाहिए?

जवाब: आमतौर पर हर कोई तरबूज खा सकता है, लेकिन कुछ कंडीशंस में इससे बचना चाहिए-
डायबिटीज मरीजों को सीमित मात्रा में खाना चाहिए।
एसिडिटी की समस्या है तो सावधानी बरतनी चाहिए।
किडनी पेशेंट्स को बहुत ज्यादा नहीं खाना चाहिए।
सर्दी-जुकाम है तो कम मात्रा में खाना चाहिए।

क्या फ्रिज में रखा हुआ तरबूज खाना चाहिए?

गर्मियों में तरबूज को पानी से भरपूर माना जाता है, लेकिन कई लोग इसे ठंडा करने के लिए फ्रिज में रख देते हैं. हालांकि तरबूज को भी फ्रिज में नहीं रखना चाहिए. एक्सपर्ट्स का मानना है कि ऐसा करने से तरबूज में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स कम हो जाते हैं और इसकी पौष्टिकता भी कम हो जाती है
    तरबूज कब नहीं खाना चाहिए?

    तरबूज को कुछ खास समय पर खाने से बचना चाहिए। शाम के बाद या रात में तरबूज खाने से पाचन क्रिया धीमी हो सकती है, जिससे एसिडिटी, गैस, और पेट फूलने जैसी समस्याएं हो सकती हैं. तरबूज को भोजन के तुरंत बाद भी नहीं खाना चाहिए, क्योंकि इससे भी पाचन संबंधी दिक्कतें बढ़ सकती हैं.

तरबूज खाकर क्या नहीं खाना चाहिए?

तरबूज खाने के बाद दूध, अंडे, या प्रोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए। इससे पाचन संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं, जैसे कि गैस, ब्लोटिंग, और अपच. तरबूज के साथ खट्टी चीजें, तली-भुनी चीजें, या शराब का सेवन भी नहीं करना चाहिए.
अधिक जानकारी के लिए आहार विशेषज्ञ से सलाह लें | यह विडिओ आपको कैसा लगा कमेन्ट मे लिखें |कृपया चैनल को suscribe  करें | धन्यवाद आभार !

2.5.25

"दालचीनी के अद्भुत फायदे: सेहत और तंदुरुस्ती के लिए एक वरदान"

 

                         "दालचीनी के अद्भुत फायदे: सेहत और तंदुरुस्ती के लिए एक वरदान"




दालचीनी क्या है?

दालचीनी (Cinnamon) एक प्रकार का मसाला है जो एक पेड़ की छाल से प्राप्त होता है। इसे अंग्रेजी में "Cinnamon" कहा जाता है | यह मसाला खासकर मिठे और मसालेदार व्यंजनों में स्वाद और सुगंध बढ़ाने के लिए इस्तेमाल होता है। इसके स्वाद में मीठापन और हलकी सी तीखापन होती है, जो इसे विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में अद्भुत बनाती है।
दालचीनी के सेहत के लिए अनेकों फायदे हैं | 

इस विडिओ मे दालचीनी के 20  प्रमुख फायदे की चर्चा कर रहे हैं 

1. खांसी मे लाभकारी 

दालचीनी खांसी के इलाज में मददगार है। यह गले के संक्रमण को कम करती है और कफ को बाहर निकालने में मदद करती है, जिससे खांसी से राहत मिलती है। दालचीनी के एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-वायरल गुण खांसी की समस्या को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं।

2. आमाशय विकार में दालचीनी का प्रयोग 

दालचीनी पेट के विकारों जैसे गैस, एसिडिटी, और सूजन को कम करने में मदद करती है। यह पेट को शांत करती है और पाचन क्रिया को ठीक रखती है। दालचीनी के सेवन से पेट के म्यूकोसलीनल अस्तर की सुरक्षा होती है और पेट में आराम मिलता है।

3 . हिचकी की परेशानी में दालचीनी का सेवन 

हिचकी की समस्या बहुत सामान्य है, लेकिन इससे राहत पाने के लिए दालचीनी का सेवन किया जा सकता है। दालचीनी का पाउडर पानी में घोलकर पीने से हिचकी की समस्या में जल्दी राहत मिलती है। इसके एंटी-स्पास्मोडिक गुण हिचकी को रोकने में मदद करते हैं, जिससे हिचकी की तात्कालिक समस्या हल हो जाती है।

4 . उल्टी को रोकने के लिए दालचीनी का प्रयोग 

उल्टी की समस्या में दालचीनी का सेवन राहत प्रदान कर सकता है। यह पेट को शांत करती है और उल्टी की भावना को कम करने में मदद करती है। विशेष रूप से यात्रा के दौरान या आंतों के संक्रमण से उत्पन्न उल्टी में दालचीनी का सेवन प्रभावी होता है।

5 . आंखों के रोग में दालचीनी का प्रयोग 

दालचीनी में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं जो आंखों की सेहत को बेहतर बनाते हैं। यह आंखों की सूजन, जलन और अन्य संक्रमणों को कम करने में मदद करती है। इसके सेवन से आंखों की मांसपेशियों को आराम मिलता है और दृष्टि में सुधार हो सकता है।

6 . दांत के दर्द से आराम पाने के लिए दालचीनी का सेवन 

दांत के दर्द में दालचीनी का पेस्ट दर्द वाली जगह पर लगाने से आराम मिलता है। दालचीनी में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो दांतों में संक्रमण को दूर करते हैं और सूजन को कम करते हैं।

7 . भूख को बढ़ाने के लिए दालचीनी का सेवन 

दालचीनी भूख को बढ़ाती है और पाचन प्रक्रिया को बेहतर करती है। यह शरीर को अधिक कैलोरी लेने के लिए उत्तेजित करती है, जिससे भूख महसूस होती है और पाचन प्रणाली मजबूत होती है। इसके सेवन से पेट में गैस और सूजन की समस्या भी कम होती है, जिससे भोजन का पाचन बेहतर होता है।

8 . सिर दर्द से आराम 

सिर दर्द में दालचीनी का उपयोग बहुत फायदेमंद है। दालचीनी का पेस्ट माथे पर लगाने से रक्त संचार में सुधार होता है, जो सिर दर्द को शांत करता है। इसके अलावा, दालचीनी की सुगंध भी सिर दर्द को कम करने में मदद करती है।

9 . आंतों के रोग में दालचीनी के सेवन से फायदा

दालचीनी आंतों के संक्रमण को ठीक करने और आंतों को मजबूत बनाने में सहायक है। यह पाचन क्रिया को बेहतर करती है और आंतों के माइक्रोबायोम को संतुलित करती है, जिससे शरीर को पोषक तत्वों का बेहतर अवशोषण मिलता है।

10 . नाक के रोग में दालचीनी का इस्तेमाल 

दालचीनी का सेवन नाक की समस्याओं जैसे सर्दी, नाक की बंदी और एलर्जी को ठीक करने में मदद करता है। यह श्वास की नलिकाओं को खोलने और श्वसन प्रक्रिया को सुधारने में सहायक है, जिससे श्वास लेने में आसानी होती है।

11 . कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए दालचीनी का उपयोग 

दालचीनी का नियमित सेवन रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करता है। यह शरीर में अच्छे कोलेस्ट्रॉल (HDL) को बढ़ाता है और बुरे कोलेस्ट्रॉल (LDL) को कम करता है, जिससे हृदय स्वास्थ्य में सुधार होता है।'
12 . दस्त पर रोक लगाने के लिए दालचीनी का उपयोग

दस्त की समस्या में दालचीनी का सेवन फायदेमंद है। दालचीनी पेट को शांत करती है और आंतों के संक्रमण को ठीक करने में मदद करती है, जिससे दस्त की समस्या नियंत्रित होती है। यह आंतों के बैक्टीरिया को भी समाप्त करने में मदद करती है।

13. प्रसव के बाद दालचीनी के सेवन से फायदा 

प्रसव के बाद दालचीनी का सेवन शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है और दूध की गुणवत्ता को बेहतर बनाता है। यह नवजात शिशु को भी लाभ पहुंचाता है क्योंकि यह माँ के शरीर से टॉक्सिन्स को बाहर निकालने में मदद करता है।

14. चर्म रोग में दालचीनी से फायदा 

दालचीनी में एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं, जो त्वचा के बैक्टीरिया और फंगल संक्रमण को ठीक करने में मदद करते हैं। इसका उपयोग मुंहासों, संक्रमण और अन्य त्वचा की समस्याओं के इलाज के लिए किया जा सकता है।

15. दालचीनी के सेवन से बुखार में लाभ 

दालचीनी बुखार को कम करने में मदद करती है। यह शरीर को गर्म करने और बुखार के दौरान पसीने को बढ़ाकर तापमान को नियंत्रित करने में सहायक होती है। दालचीनी के सेवन से बुखार की तीव्रता कम होती है और आराम मिलता है।

16. बहरेपन की समस्या में दालचीनी से लाभ 

दालचीनी का सेवन कानों से संबंधित समस्याओं जैसे बहरेपन में भी मदद कर सकता है। यह रक्त संचार को बेहतर बनाती है, जिससे सुनने की क्षमता में सुधार हो सकता है। दालचीनी के एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण कान के अंदरूनी हिस्से को शांत करते हैं।

17. गठिया में फायदेमंद दालचीनी का उपयोग 

दालचीनी गठिया के दर्द और सूजन को कम करने में मदद करती है। यह सूजनरोधी गुणों से भरपूर होती है, जो जोड़ो के दर्द को शांत करती है और हड्डियों के स्वास्थ्य में सुधार करती है। दालचीनी में मौजूद जिंक और कैल्शियम हड्डियों को मजबूत बनाते हैं।

18. मधुमेह में दालचीनी का सेवन 

दालचीनी मधुमेह रोगियों के लिए लाभकारी होती है। यह रक्त में शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करती है और इंसुलिन की प्रभावशीलता को बढ़ाती है। इसके नियमित सेवन से ब्लड शुगर कंट्रोल में रहता है और डायबिटीज के जोखिम को कम किया जा सकता है।

19. तनाव और चिंता में दालचीनी का उपयोग 

दालचीनी का सेवन मानसिक तनाव और चिंता को कम करने में मदद करता है। यह नर्वस सिस्टम को शांत करता है और शरीर में सेरोटोनिन का स्तर बढ़ाता है, जिससे मानसिक स्थिति में सुधार होता है।

20. वजन घटाने में दालचीनी का सेवन 

दालचीनी शरीर के मेटाबॉलिज्म को तेज करती है और फैट बर्न करने में मदद करती है। इसके सेवन से शरीर में वसा कम होती है और वजन घटाने की प्रक्रिया तेज होती है। दालचीनी का उपयोग प्राकृतिक तरीके से वजन कम करने के लिए किया जा सकता है।

दालचीनी का इस्तेमाल कैसे करें? 

दालचीनी को विभिन्न रूपों में उपयोग किया जा सकता है:
पाउडर: दालचीनी का पाउडर दूध, चाय या व्यंजनों में डाला जा सकता है। यह पाचन में मदद करता है और शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है।
तेल: दालचीनी का तेल सिरदर्द, गठिया, और त्वचा पर रूसी या संक्रमण के इलाज में उपयोगी होता है।
छाल: दालचीनी की छाल को उबालकर या चाय में डालकर पीने से पेट संबंधी समस्याओं में राहत मिलती है।
किसी भी औषधि तत्व का उपयोग करने से पहिले चिकित्सा विशेषज्ञ की सलाह लेवें 
चैनल subscribe  करना न भूलें | धन्यवाद आभार 



15.10.24

वो फिल्मी गाने जिन्हें सुनने से रोग छूमंतर / sangeet se chikitsa




*संगीत का हमारे जीवन पर प्रभाव*

● आजकल संगीत द्वारा बहुत सी बीमारियों का इलाज किया जाने लगा हैं।

● चिकित्सा विज्ञान भी यह मानने लगा हैं कि प्रतिदिन 20 मिनट अपनी पसंद का संगीत सुनने से रोज़मर्रा की होने वाली बहुत सी बीमारियो से निजात पायी जा सकती हैं।

● जिस प्रकार हर रोग का संबंध किसी ना किसी ग्रह विशेष से होता हैं उसी प्रकार संगीत के हर सुर व राग का संबंध किसी ना किसी ग्रह से अवश्य होता हैं।

● यदि किसी जातक को किसी ग्रह विशेष से संबन्धित रोग हो और उसे उस ग्रह से संबन्धित राग, सुर अथवा गीत सुनाये जायें तो जातक विशेष जल्दी ही स्वस्थ हो जाता हैं।

● यहाँ इसी विषय को आधार बनाकर ऐसे बहुत से रोगो व उनसे राहत देने वाले रागों के विषय मे जानकारी देने का प्रयास किया गया है।

● जिन शास्त्रीय रागों का उल्लेख किया किया गया है उन रागो मे कोई भी गीत, संगीत, भजन या वाद्य यंत्र बजा कर लाभ प्राप्त किया जा सकता हैं।

● यहाँ उनसे संबन्धित फिल्मी गीतो के उदाहरण देने का प्रयास भी किया गया है।

(1)हृदय रोग –


इस रोग मे राग दरबारी व राग सारंग से संबन्धित संगीत सुनना लाभदायक है।

इनसे संबन्धित फिल्मी गीत निम्न हैं-

हार्ट प्रॉब्लेम मे हितकारी गाने की यूट्यूब  प्लेलिस्ट 

तोरा मन दर्पण कहलाए (काजल),

राधिके तूने बंसरी चुराई (बेटी बेटे),

झनक झनक तोरी बाजे पायलिया (मेरे हुज़ूर),

बहुत प्यार करते हैं तुमको सनम (साजन),

जादूगर सइयां छोड़ मोरी (फाल्गुन),

ओ दुनिया के रखवाले (बैजू बावरा),

मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये (मुगले आजम)


(2)अनिद्रा –

यह रोग हमारे जीवन मे होने वाले सबसे साधारण रोगों में से एक है। इस रोग के होने पर राग भैरवी व राग सोहनी सुनना लाभकारी होता है, जिनके प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं

अनिद्रा (नींद नहीं आने )मे हितकारी गाने की यूट्यूब  प्लेलिस्ट 

●)रात भर उनकी याद आती रही (गमन),

(●)नाचे मन मोरा (कोहिनूर),

(●)मीठे बोल बोले बोले पायलिया (कितारा),

(●)तू गंगा की मौज मैं यमुना (बैजु बावरा),

(●)ऋतु बसंत आई पवन (झनक झनक पायल बाजे),

(●)सावरे सावरे (अंनुराधा),

(●)चिंगारी कोई भड़के (अमर प्रेम),

(●) छम छम बजे रे पायलिया (घूँघट),

(●) झूमती चली हवा (संगीत सम्राट तानसेन ),

(●) कुहूु कुहू बोले कोयलिया (सुवर्ण सुंदरी )


(3)एसिडिटी –

इस रोग के होने पर राग खमाज सुनने से लाभ मिलता है। इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं

(4)कमजोरी –

यह रोग शारीरिक शक्तिहीनता से संबन्धित है।

इस रोग से पीड़ित व्यक्ति कुछ भी काम कर पाने मे खुद को असमर्थ महसूस करता है।

इस रोग के होने पर राग जय जयवंती सुनना या गाना लाभदायक होता है।

इस राग के प्रमुख गीत निम्न हैं


जिन लोगों की याददाश्त कम हो या कम हो रही हो, उन्हे राग शिवरंजनी सुनने से बहुत लाभ मिलता है।

इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं,

(●)ना किसी की आँख का नूर हूँ (लालकिला),

(●)मेरे नैना (महबूबा),

(●)दिल के झरोखे मे तुझको (ब्रह्मचारी),

(●)ओ मेरे सनम ओ मेरे सनम (संगम ),

(●) जीता था जिस के लिए (दिलवाले),

(●) जाने कहाँ गए वो दिन (मेरा नाम जोकर )

(6)खून की कमी –

इस रोग से पीड़ित होने पर व्यक्ति का चेहरा निस्तेज व सूखा सा रहता है। स्वभाव में भी चिड़चिड़ापन होता है। ऐसे में राग पीलू से संबन्धित गीत सुनने से लाभ पाया जा सकता हैं।

(●)आज सोचा तो आँसू भर आए (हँसते जख्म),

(●)नदिया किनारे (अभिमान),

(●)खाली हाथ शाम आई है (इजाजत),

(●)तेरे बिन सूने नयन हमारे (लता रफी),

(●)मैंने रंग ली आज चुनरिया (दुल्हन एक रात की),

(●)मोरे सैयाजी उतरेंगे पार (उड़न खटोला),

(7)मनोरोग अथवा डिप्रेशन –

इस रोग मे राग बिहाग व राग मधुवंती सुनना लाभदायक होता है। इन रागों के प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं।

(●) तुझे देने को मेरे पास कुछ नहीं (कुदरत नई),

(●) तेरे प्यार मे दिलदार (मेरे महबूब),

(●) पिया बावरी (खूबसूरत पुरानी),

(●) दिल जो ना कह सका (भीगी रात) ,

(●) तुम तो प्यार हो(सेहरा),

(●) मेरे सुर और तेरे गीत (गूंज उठी शहनाई ),

(●) मतवारी नार ठुमक ठुमक चली जाये (आम्रपाली),

(●) सखी रे मेरा तन उलझे मन डोले (चित्रलेखा)


(8)रक्तचाप-

ऊंचे रक्तचाप मे धीमी गति और निम्न रक्तचाप मे तीव्र गति का गीत संगीत लाभ देता है।

शास्त्रीय रागों मे राग भूपाली को विलंबित व तीव्र गति से सुना या गाया जा सकता है।
ऊंचे रक्तचाप में...

(●) चल उडजा रे पंछी कि अब ये देश (भाभी),

(●) ज्योति कलश छलके (भाभी की चूड़ियाँ ),

(●) चलो दिलदार चलो (पाकीजा),

(●) नीले गगन के तले (हमराज़) जैसे गीत

निम्न रक्तचाप मे..

इस रोग मे आस्था–भक्ति पर आधारित गीत संगीत सुनने व गाने से लाभ होता है।

राग मालकोस व राग ललित से संबन्धित गीत इस रोग मे सुने जा सकते हैं। जिनमें प्रमुख गीत निम्न हैं..

इस रोग के होने पर राग भैरव सुनना लाभदायक होता है।

इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं..

9.10.24

अरारोट के फायदे और नुकसान पर एक नजर ,Arrowroot benefits




अरारोट एक कंद है। एरोरूट या अरारोट दोनों सामान्य पौधा की तरह है, किंतु यह पौधा न होकर केवल स्टार्च है। इसकी जड़ का उपयोग बड़ी मात्रा में किया जाता है। अरारोट को वैज्ञानिक नाम मारंता अरुंडिनेशिया कहा जाता है।अरारोट के पौधे में स्‍टार्च मौजूद होता है इसका उपयोग करने के लिए जड़ों को खोद कर निकाला जाता है। निकाली हुई जड़ो से छाल को निकालकर धोया जाता है। इसके बाद कंद को पीसकर आटा यानि पाउडर तैयार किया जाता है। इसे छानकर सुखाते है। इन प्रक्रिया से अरारोट पाउडर बनाते है। इसका उपयोग मुख्य रूप से भोजन को गाढ़ा करने के उपयोग किया जाता है। अरारोट में अच्छी मात्रा में पोषक तत्व होता है जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
अरारोट के फायदे तो अनेक है लेकिन अत्यधिक मात्रा में उपयोग करने से कुछ नकारात्मक परिणाम हो सकते है। यह नुकसान कुछ इस तरह है।अगर आप किसी विशेष प्रकार की दवा का सेवन कर रही है, तो अरारोट का सेवन करने से पहले अपने चिकिस्तक से बात करे।
जिन लोगो को अरारोट के सेवन से एलर्जी में खांसी, उल्टी, मलती की समस्या होती है, उनको इसके सेवन से बचाव करना चाहिए।
अरारोट के साथ दूध व फलो के रस के साथ सेवन करने से बचाव करना चाहिए।

अरारोट के फायदे -

रोग प्रतिरोग क्षमता को बढ़ावा देने में - अगर आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है तो आपको अरारोट का सेवन करना चाहिए। अरारोट में बहुत से पोषक तत्व शामिल है जो थकान व कमजोरी को दूर करने में मदद करता है। इसमें विटामिन तो होते है बल्कि शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट भी होता है। यह फ्री रेडिकल्स से बचाव करते है।

आँखों की बीमारी में फायदेमंद -

आयुर्वेद विशेषज्ञ और पतंजलि संस्थापक श्री बालकृष्ण आचार्य जी का कहना है 1 से 2 ग्राम अरारोट के पाउडर में 200 मिली पानी, 250 मिली दूध और 50 ग्राम मिश्री डालकर पकाये। 15 मिनट पकाने के बाद उसका पानी जल जाये तो गैस बंद कर दें। फिर गुनगुना होने पर पी ले।

बालों के लिए फायदेमंद -

आजकल हर कोई बालों के पतलेपन और डॉयनेस से परेशान है। इसमें (Arrowroot benefits) बहुत से पोषक तत्व पाए जाते है जो बालो को मुलायम और घना करने में मदद करता है। हेयर डाई गाढ़ा करने के लिए अरारोट पाउडर का इस्तेमाल किया जाता है।

हृदय के लिए लाभदायक -

 दिल को स्वस्थ रखने के लिए अरारोट फायदेमंद होता है। इसमें पोटेशियम की अच्छी मात्रा होते है यह धमनियों में तनाव कम करने में मदद करते है। इससे रक्तचाप नियंत्रण में रहता है। इसके अलावा अरारोट दिल के दौरे व स्ट्रोक के जोखिम से बचाव करता है। हृदय को स्वस्थ रखने के लिए अरारोट का सेवन करे।

वजन कम करने के लिए - 

अगर आप अपना वजन कम करना चाहते है तो अरारोट का उपयोग करना चाहिए। अरारोट में अन्य खाद्य पदार्थ की तुलना में कम कैलोरी होता है। इसके अलावा इसमें कार्बोहाइड्रेड व उच्च मात्रा में पोषक होता है। इसमें अच्छी मात्रा में फाइबर मौजूद होता है जो चर्बी को कम करने में मदद करता है। अपने डाइट में अरारोट को शामिल करे।

त्वचा के लिए फायदेमंद रहे अरारोट -

 सबकी त्वचा एक दूसरे से अलग होती है। किसी की त्वचा रूखी, उलझन भरी, तैलीय होती है। बाहरी संक्रमण त्वचा को नुकसान पहुंचाते है। इसके अलावा त्वचा में फोड़े-फुंसी, दाग धब्बा, झुर्रिया आदि की समस्या को ठीक करने के लिए अरारोट का उपयोग बहुत फायदेमंद होता है। इसमें बहुत से विटामिन व खनिज है जो त्वचा की समस्या को कम करते है।

सावधानी बरतें 

जिस तरह एक सिक्के के दो पहलू होते है वैसे ही इसमें भी है। जहाँ इसका सेवन सीमित मात्रा में करने पर स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है वही इसका अधिक सेवन करने से इसके नकारात्मक परिणाम भी हो सकते है। आइये जानते है इसके नुकसान -

➤अगर आप किसी विशेष दवा का सेवन कर रहे है तो अरारोट का इस्तेमाल करने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर सलाह लें।

➤बच्चों को, गर्भवती व नर्सिंग महिलाओं को, किडनी या लिवर के रोगियों को इसका सेवन करने से पहले विशेष ध्यान देना चाहिए।

➤जिन लोगों को अरारोट से एलर्जी होता है, जैसे अरारोट खाने से उल्टी, खांसी, मतली की समस्या हो उनको इसका सेवन नहीं करना चाहिए।

➤इसका (Arrowroot) सेवन दूध और फलों के साथ करने से बचना चाहिए।




18.8.24

फिशर फिस्टुला भगन्दर का सही इलाज Fissure remedies

                                       



एनल फिशर और फिस्टुला (भगंदर) को अनदेखा करना बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकता है। खासतौर से तब जब एनल एरिया में खुजली या फिर ब्लीडिंग होने जैसे लक्षण शामिल हों। हालांकि ऐसी स्थिति में मरीजों के लिए ये बवासीर  की ओर इशारा होता है। जो समान्य है। लेकिन ज्यादातर मामलों में एनल से जुड़ा ऊतक फिशर या फिस्टुला के परिणामस्वरूप बढ़ जाता है। अगर आपको भी बवासीर की समस्या है, तो इससे जुड़े लक्षण काफी दर्दनाक हो सकते हैं। इसके अलावा अगर फिशर या फिस्टुला बढ़ जाता है, तो स्थिति बेहद बुरी हो सकती है। इस स्थिति में बिना देर किये किसी एक्सपर्ट की सलाह लेने से समस्या को हल किया जा सकता है। हालांकि एनल फिस्टुला और फिशर के बीच की समानता और अंतर) जानने से आपको अपनी समस्या का निदान करने का बेहतर तरीका मिल सकता है।

फिशर और फिस्टुला (भगंदर) में अंतर

फिस्टुला और फिशर एक ही चीज है, अगर आप भी यही सोच रहे हैं, तो आप बिलकुल गलत हैं। फिशर एक मेडिकल वर्ड है जो स्किन के फटने का जिक्र करता है। वहीं फिस्टुला एक असमान्य ट्यूब जैसे कनेक्शन या अंगों के बिच का मार्ग है।
 आमतौर पर फिशर कुछ दिनों में या कुछ हफ्तों में ठीक हो सकता है। जिसमें उपचार की जरूरत नहीं पड़ सकती। क्योंकि ये खतरनाक नहीं होता। इसके बजाय फिस्टुला को बिना इलाज के छोड़ना खतरनाक हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि, आप जिन लक्षणों को महसूस कर रहे हैं, उसके अनुसार ही उसका इलाज करें।
फिशर और फिस्टुला (भगंदर) होने के कारण
एनल फिशर होने के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। इसके मलाशय का कैंसर, वजाइनल चाइल्डबर्थ, अप्राकृतिक यौन संबंध, और लंबे समय तक दस्त होने की समस्या हो सकती है। ज्यादातर मामलों में फिशर गोने के कारण मल त्याग में रुकावट या फिर कब्ज हो सकता है। ये उन मांसपेशियों को फाड़ देता है एनल के अंदर से दबाने वाले सिस्टम को कंट्रोल करता है।
वहीं फिस्टुला एनल की स्किन तक बनता है। इस स्तिथि में दोनों तरफ की स्किन के नीचे वाले हिस्से में इन्फेक्शन हो जाता है। आमतौर पर फिस्टुला पुराने फोड़े का ही परिणाम होता है। इसलिए अगर इसका इलाज नहीं किया गया तो एक फिस्टुला कई खतरनाक फिस्टुला बनाने का कारण बन सकता है।
फिशर और फिस्टुला (भगंदर) के लक्षण

एनल फिशर के लक्षण -

गुदा में फिशर के लक्षण व संकेतों में निम्न शामिल हो सकते हैं:
 मल त्याग के दौरान दर्द, कभी-कभी गंभीर दर्द होना। मल त्याग करने के बाद दर्द होना जो कई घंटों तक रह सकता है। मल त्याग के बाद मल पर गहरा लाल रंग दिखाई देना। गुदा के आसपास खुजली या जलन होना। गुदा के चारों ओर की त्वचा में एक दरार दिखाई देना। गुदा फिशर के पास त्वचा पर गांठ या स्किन टैग दिखाई देना।
आमतौर पर एनल फिशर से जुड़े कुछ लक्षण में एनल एरिया में मल त्याग के दौरान तेज दर्द महसूस होता है। इसमें खुनी मल के साथ एनल और उसके आस-पास लगातर जलन या खुजली होती महसूस होती है। आमतौर पर एनल एरिया के आसपास पानी भी दिखाई देता है।

फिशर के लक्षण

 मल त्याग करते वक्त दर्द होना।
जलन होना।
कभी कभी रक्ततस्राव होना।

फिशर होने के कारण - 

एनल फिशर होने के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। इसके मलाशय का कैंसर, वजाइनल चाइल्डबर्थ, अप्राकृतिक यौन संबंध, और लंबे समय तक दस्त होने की समस्या हो सकती है। ज्यादातर मामलों में फिशर गोने के कारण मल त्याग में रुकावट या फिर कब्ज हो सकता है। ये उन मांसपेशियों को फाड़ देता है एनल के अंदर से दबाने वाले सिस्टम को कंट्रोल करता है।

लंबे समय से डायरिया होना- 

डायरिया यानी दस्त होना। यदि किसी व्यक्ति को लंबे समय तक दस्त होते रहें, तो इससे एनल फिशर होने का रिस्क  बढ़ जाता है। फिशर के मुख्य लक्षण है जो आम तोर पर देखने को मिल जाते है बार-बार दस्त होने के कारण शरीर से काफी मात्रा में पानी निकल जाता है। इस वजह से स्किन काफी ज्यादा ड्राई हो जाती है और एनल ओपनिंग में कट लग जाता है। वैसे भी एनल स्किन काफी सेंसिटिव होती है। इस वजह से एनल फिशर होने पर काफी ज्यादा दर्द का अहसास भी होता है।

इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज- 


 फिशर, इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज के कारण भी हो सकता है। इसका मतलब है जिस व्यक्ति को अक्सर कब्ज की समस्या रहती है या फिर दस्त बने रहते हैं, उन्हें एनल फिशर हो सकता है। इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज में दो तरह की कंडीशन आती है। एक क्रोहन डिजीज ( Crohn's disease) और अल्सरेटिव कोलाइटिस । इसका मतलब है कि गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (जीआई) ट्रैक में लंबे समय से चल रही सूजन। इस सूजन के कारण अक्सर मरीज को फिशर की प्रॉब्लम का सामना करना पड़ता है।

प्रेग्नेंसी या डिलीवरी-

डिलीवरी के दौरान दबाव बनाते समय एनल लाइनिंग में घाव हो जाता है या कट लग जाता है। सामान्य तौर पर इसको कब्ज से जोड़कर देखा जाता है। अगर किसी महिला को कब्ज है, तो डिलीवरी के लिए दबाव बनाते समय फिशर की समस्या हो सकती है। ये बात अलग है कि जिन महिलाओं को कब्ज नहीं है, उन्हें भी डिलीवरी के दौरान दबाव बनाने के कारण एनल फिशर हो सकता है।

एनल ट्रॉमा के कारण-

अगर किसी को सेक्सुअल एक्टिविटी के दौरान एनल में चोट लग जाए, तो भी एनल फिशर होने का रिस्क बढ़ जाता है। हालांकि, सबके साथ ऐसा हो, यह जरूरी नहीं है। लेकिन, अगर एसटीआई, जैसे सिफलिस और हर्पीस जैसी घातक बीमारियां हैं, तो भी एनल फिशर हो सकता है। इससे एनल कैनाल पूरी तरह डैमेज हो सकती है या फिर इंफेक्शनका खतरा बढ़ सकता है।

एनल फिशर से कैसे करें बचाव-

एनल फिशर से बचाव के लिए आप कुछ उपाय आजमा सकते हैं, जैसे की अगर डायरिया की वजह से एनल फिशर है, तो पहले उसका इलाज करवाएं। ज्यादा से ज्याद खुद को हाइड्रेट रखें, ताकि मल त्याग करते समय तकलीफ कम हो। अपनी डाइट में हेल्दी चीजें शामिल करें, जैसे फाइबर खाएं और फ्लूइड इनटेक ज्यादा लें। आप प्रभावित हिस्से में नारियल तेल या कोई भी लुब्रिकेंट लगा सकते हैं।
एनल फिशर यानी गूदा में फटा हुआ या खुला हुआ घाव। यह किस्म से अल्सर की तरह होता है, जो कि गूदा (एनस) के पास बड़ी आंत की लाइनिंग में विकसित होता है। एनल फिशर होने पर व्यक्ति को मल त्यागने में बहुत ज्यादा दिक्कतें आती हैं। यहां तक कि कई बार मल त्यागते समय तीव्र दर्द होता है और खून भी निकल जाता है। किसी भी व्यक्ति के लिए यह कंडीशन काफी कष्टकारी हो सकती है। सवाल है, ऐसी कंडीशन में क्या किया जा सकता है। हालांकि, इसके लिए कई तरह के ट्रीटमेंट मौजूद हैं। लेकिन आप कुछ घरेलू उपायों की मदद से इसकी तकलीफ को कम कर सकते हैं नारियल का तेल अप्लाई करें- A : एनल फिशर के उपचार के लिए आप नारियल के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसमें ट्राइग्लिसराइड्स नाम का एक तत्व होता है, जो इसे लुब्रिकेंट बनाता है। नारियल तेल को प्रभावित हिस्से में लगाने से मल त्याग करते समय दर्द कम होता है। आप इसका उपयोग एक दिन में से दो से तीन बार कर सकते हैं। इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता है। यही नहीं, नारियल तेल के उपयोग से खुजली और जलन की समस्या में भी कमी आती है।

पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं- :

 एनल फिशर से राहत पाने के लिए बहुत जरूरी है कि आप पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं। पानी की कमी के कारण अक्सर व्यक्ति को बहुत सारी तकलीफों का सामना करना पड़ता है। पानी की कमी की वजह से कब्ज की समस्या भी होती है। इसलिए, जरूरी है कि आप एक दिन में कम से कम आठ गिलास पानी जरूर पिएं। पानी पीने से मल नर्म होता है और मल त्याग करने में दिक्कत नहीं होती है।

डाइट में घी शामिल करें- :

 सर्दियों में घी खाने से कई तरह के लाभ होते हैं। कुछ लोग रोजाना सुबह घी खाने से अपने दिन की शुरुआत करते हैं। एनल फिशर के उपचार तौर पर आप घी का उपयोग कर सकते हैं। दरअसल, घी में नेचुरल तरीके लैक्सेटिव और फैटी एसिड मौजूद होता है, जो कि मल त्याग करने को आसाना बनाता है। हालांकि, घी की ओवर ईटिंग करना ठीक नहीं है। इससे आपका वेट गेन हो सकता है।

गर्म पानी से सिंकाई करें- :

एनल फिशर की समस्या बहुत ज्यादा बढ़ने पर आप गर्म पानी से प्रभावित हिस्से का सिंकाई कर सकते है। यह बहुत ही बेहतरीन उपचार है। लेकिन ध्यान रहे कि पानी बहुत ज्यादा गर्म न हो। गर्म पानी में सिंकाई करने से दर्द कम होता है। एनल फिशर से उपचार के तौर पर आप एक दिन में कम से तीन से चार बार इस प्रोसेस को दोहराएं।

डाइट में करें बदलाव- : 

डाइट में ऐसी चीजें शामिल करने से बचें, जिससे स्टूल सख्त हो सकता है। इसमें खासकर, जंक फूड, स्ट्रीट फूड, रेडी टू फूड जैसी चीजें शामिल हैं। आपको अपनी डाइट में ज्यादा से ज्यादा फाइबर युक्त चीजें शामिल करनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर, मौसमी सब्जियां और फल। इनके सेवन से मल सॉफ्ट होता है और मल त्याग करते समय तकलीफ भी कम होती है।

फिशर में क्या नहीं खाना चाहिए

फिशर को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए, कुछ कारकों से बचने की सलाह दी जाती है जो लक्षणों को खराब कर सकते हैं और उपचार प्रक्रिया में बाधा डाल सकते हैं। सबसे पहले, मसालेदार भोजन से दूर रहें, क्योंकि उनमें पहले से ही संवेदनशील गुदा क्षेत्र में जलन पैदा करने की क्षमता होती है। इसके अतिरिक्त, कॉफी, चाय और कुछ सोडा में पाए जाने वाले कैफीन का सेवन सीमित करें, क्योंकि यह कब्ज को बढ़ा सकता है। शराब से भी बचना चाहिए, क्योंकि इससे निर्जलीकरण हो सकता है और लक्षण बढ़ सकते हैं।
फिशर को और अधिक नुकसान से बचाने के लिए मल त्याग के दौरान तनाव को कम करना चाहिए। नरम और नियमित मल त्याग सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है, इसलिए उच्च फाइबर आहार को शामिल करने से इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। लंबे समय तक बैठने से असुविधा बढ़ सकती है, इसलिए सलाह दी जाती है कि ब्रेक लें और लंबे समय तक बैठने से बचें। भारी सामान उठाने से बचें, क्योंकि इससे गुदा क्षेत्र पर दबाव पड़ सकता है। तनाव कब्ज में योगदान कर सकता है, इसलिए तनाव प्रबंधन तकनीकों को लागू करना फायदेमंद है। अंत में, यह महत्वपूर्ण है कि लक्षणों को नज़रअंदाज न किया जाए; यदि वे बने रहते हैं या बिगड़ जाते हैं, तो विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है।

यहाँ फिशर के लिए कुछ घरेलू नुस्खे दिए गए हैं:

सिट्ज़ बाथ: 

दर्द से राहत और उपचार के लिए गुदा क्षेत्र को दिन में कई बार गर्म पानी में भिगोएँ। इस प्रक्रिया को सिट्ज़ बाथ या सिट्ज़ स्नान कहा जाता है।

टॉपिकल मलहम: 

हाइड्रोकार्टिसोन या लिडोकेन वाली ओवर-द-काउंटर क्रीम अस्थायी रूप से दर्द को कम करने में मदद कर सकती हैं।

आहार परिवर्तन:

 मल को नरम करने और कब्ज को रोकने के लिए फलों, सब्जियों और साबुत अनाज के माध्यम से फाइबर का सेवन बढ़ाएँ।

स्वच्छता: 

मल त्याग के बाद हल्के साबुन और पानी या बिना खुशबू वाले गीले पोंछे का उपयोग करके गुदा क्षेत्र को साफ और सूखा रखें।

मल सॉफ़्नर: 

मल त्याग के दौरान तनाव से बचने के लिए ओवर-द-काउंटर विकल्प या फाइबर सप्लीमेंट का उपयोग करें।

दर्द निवारक दवाएं

एसिटामिनोफेन या एनएसएआईडी जैसी ओवर-द-काउंटर दर्द निवारक दवाएं अस्थायी रूप से असुविधा को कम कर सकती हैं।\



नाशपाती फल है सेहत के लिए गुणों का खजाना pears ke fayde


  सेहतमंद रहने के लिए स्वस्थ आहार लेना जरूरी है। इसके लिए डॉक्टर सब्जियों के साथ-साथ फलों का सेवन करने की सलाह भी देते हैं। अगर फलों की बात करें, तो कई पौष्टिक फल बाजार में उपलब्ध हैं। उन्हीं में से एक है नाशपाती। कई लोगों को नाशपाती फल के बारे में पता तो होगा, लेकिन शरीर के लिए इसके फायदे कम लोगों को ही पता होंगे।

नाशपाती काफी स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरपूर होता है। नाशपाती में विटामिन्स, मिनरल्स और फाइबर अधिक मात्रा में पाया जाता है। नाशपाती पेट के लिए सबसे अधिक फायदेमंद होता है। इसके अलावा इसमें एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटी कैंसर गुण भी होते हैं। नाशपाती वजन घटाने में मदद कर सकता है, साथ ही हार्ट हेल्थ के लिए भी अच्छा होता है। वैसे तो नाशपाती का सेवन दिन के समय कभी भीखाया जा सकता है।

 

 


वजन कंट्रोल रहेगा
नाशपाती में फाइबर अधिक होता है। इसलिए यह वजन को कंट्रोल में रखने में मदद कर सकता है। दरअसल, फाइबर लेने से पेट लंबे समय तक भरा हुआ रहता है और भूख जल्दी नहीं लगती है। इससे हम ओवरइटिंग नहीं करते हैं। जिससे वजन कंट्रोल में रहता है। सुबह खाली पेट नाशपाती खाने से आप लंबे समय तक भूख महसूस नहीं करेंगे।

खाली पेट नाशपाती खाने के फायदे

नाशपाती सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है। रोज सुबह खाली पेट नाशपाती खाने से कई तरह की समस्याओं से बचा जा सकता है। खाली पेट नाशपाती खाने से कब्ज और अपच दूर होती है। इसके अलावा नाशपाती खाने से लंबे समय तक पेट भरा हुआ रहता है। इसलिए आपको भी सुबह खाली पेट नाशपाती जरूर खानी चाहिए।

कैंसर के लिए नाशपाती फल

कैंसर जैसी घातक बीमारी से बचाव करने के लिए नाशपाती फायदेमंद साबित हो सकती है। नाशपाती में यूरोसोलिक एसिड (Urosolic Acid) मौजूद होता है, जो मूत्राशय (Bladder), फेफड़ों (Lungs) और भोजन-नलिका (Oesophageal) के कैंसर से बचाव करने में मदद कर सकता है। नाशपाती को नियमित रूप से खाने से, खासकर रजोनिवृत्ति के दौरान इसे खाने से महिलाओं में कैंसर का जोखिम कम हो सकता है

पेट की समस्याओं में फायदेमंद (Pears for Stomach)

खाली पेट नाशपाती खाने से पेट से जुड़ी समस्याएं दूर हो सकती हैं। नाशपाती में फाइबर होता है, जो कब्ज और अपच को ठीक करने में मदद करता है। फाइबर भोजन को पचाने में मदद करता है, इससे मल नरम बनता है और मल त्याग आसानी से हो जाता है।

हृदय के लिए फायदेमंद

नाशपाती हृदय स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा होता है। यह बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करता है, वहीं गुड कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में मदद कर सकता है। नाशपाती में पोटेशियम होता है, जो हार्ट के लिए जरूर पोषक तत्व है। इसके अलावा यह सूजन को कम करता है। इससे ब्लड प्रेशर भी कंट्रोल में रह सकता है।

एंटी इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर

नाशपाती में एंटीऑक्सीडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण काफी अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। जब सुबह खाली पेट नाशपाती खाई जाती है, तो इससे ये तत्व शरीर आसानी से अवशोषित कर लेता है। इसके बाद शरीर में ये अपना काम करते हैं। एंटीऑक्सीडेंट शरीर को फ्री रेडिकल्स से होने वाले डैमेज से बचाते हैं। एंटी इंफ्लेमेटरी गुण सूजन को कम करने में मदद करते हैं।

ब्लड प्रेशर या उच्च रक्तचाप के लिए नाशपाती फल

अगर आपको ब्लड प्रेशर है या आप उच्च रक्तचाप की समस्या से खुद को बचाना चाहते हैं, तो नाशपाती को अपने डाइट में शामिल करें। यह उच्च रक्तचाप की समस्या से बचाव कर आपको स्वस्थ रहने में मदद कर सकता है

गर्भावस्था के दौरान नाशपाती फल

प्रेगनेंसी के दौरान खान-पान पर विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है। इस दौरान महिलाओं को कई तरह के पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता होती है, लेकिन सबसे ज्यादा जो महत्वपूर्ण होता है, वो है फोलेट। यह शिशु में न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट (Neural Tube Defects) जैसे जन्मदोष से बचाव कर सकता है। ऐसे में नाशपाती का सेवन गर्भवती के लिए बहुत लाभकारी हो सकता है
ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) से बचाव के लिए नाशपाती के लाभ

बढ़ती उम्र और पोषक तत्वों की कमी हड्डियों की समस्याओं का कारण बनती हैं। ऑस्टियोपोरोसिस उन्हीं समस्याओं में से एक है। यह कैल्शियम, विटामिन्स और मिनरल्स की कमी से होने वाली हड्डियों की बीमारी है, जिसमें हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। इससे ये आसानी से टूट सकती हैं या कमर-पीठ में दर्द की शिकायत भी हो सकती है। ऐसे में नाशपाती के सेवन से ऑस्टियोपोरोसिस से बचाव हो सकता है। नाशपाती शरीर के पीएच स्तर को संतुलित करने का काम कर सकती है। इसका बोरोन (Boron, एक प्रकार का केमिकल) शरीर में कैल्शियम को बनाने में मदद कर सकता है, जिससे ऑस्टियोपोरोसिस से बचा जा सकता है

 डायबिटीज के लिए नाशपाती के फायदे

अगर डायबिटीज की बात करें, तो यह सर्दी-जुकाम की तरह आम समस्या बन चुकी है। एक बार अगर किसी को डायबिटीज हो जाए, तो उसे जिंदगी भर सेहत से जुड़ी अन्य समस्याओं को झेलना पड़ सकता है। ऐसे में डायबिटीज से बचाव के लिए नाशपाती का सेवन असरदार हो सकता है। इसमें एंटी-डायबिटिक गुण मौजूद होते हैं, जो डायबिटीज की समस्या से बचाव कर सकते हैं

दर्दनाशक की तरह नाशपाती फल

नाशपाती में एनाल्जेसिक (Analgesic) यानी दर्दनाशक गुण मौजूद होते हैं, जिससे दर्द की समस्या से राहत मिल सकती है। इसलिए, दर्द की समस्या से बचाव करने के लिए नाशपाती का सेवन कर सकते हैं

पाचन के लिए नाशपाती के फायदे

बाहरी और अधिक तेल-मसाले वाले खान-पान के कारण पेट की समस्या आम हो चुकी है। इस स्थिति में आप डाइट में नाशपाती या नाशपाती के जूस को शामिल कर पाचन तंत्र को स्वस्थ रख सकते हैं। इसमें पेक्टिन मौजूद होता है, जो एक तरह का फाइबर है। इसके नियमित सेवन से कब्ज की समस्या से आराम मिल सकता है और पाचन क्रिया स्वस्थ हो सकती है। ध्यान रहे कि अगर किसी को इर्रिटेबल बॉउल सिंड्रोम(Irritable Bowel Syndrome) की समस्या है, तो वो नाशपाती का सेवन डॉक्टर के निर्देशानुसार ही करें, वरना उन्हें पेट दर्द, पेट खराब या गैस जैसी समस्या हो सकती है




दिमागी तनाव से निपटने के घरेलू उपाय how to tackle tension

 



तनाव एक ऐसी बीमारी है जिससे ज्यादातर लोग परेशान हैं. आजकल लोगों को जरा सी बात पर टेंशन हो जाती है. नींद नहीं आती और दिनभर परेशान रहने लगते हैं. तनाव को दूसरी बीमारियों की भी जड़ माना जाता है. तनाव और टेंशन से वजन बढ़ता है, हार्ट की बीमारी होती हैं, ब्लड प्रेशर बढ़ता है, नींद की समस्या हो जाती है और हार्मोंस गड़बड़ होने लगते हैं. हालांकि आप घर में रहकर ऐसे कई काम या एक्टिविटी कर सकते हैं जो तनाव को दूर करने में आपकी मदद करेंगे. आइये जानते हैं घर में रहकर तनाव को कैसे कहें बाय-बाय.आयुर्वेद चिकित्सा की एक प्राचीन भारतीय प्रणाली है जो पूरे स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक उपचार का उपयोग करती है. कुछ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों, तेल और प्रैक्टिस से तनाव को कम करने और विश्राम को बढ़ावा देने में मदद करते हैं, जैसे कि ध्यान, प्राणायाम और योग. ये शरीर, मन और आत्मा में बैलेंस बनाने का काम करते हैं. इसलिए, तनाव से निपटने के लिए आयुर्वेदिक उपायों का प्रयोग करना बहुत फायदेमंद होता है. आइए कुछ आयुर्वेदिक उपायों के बारे में जानते हैं, जिससे तनाव दूर किया जा सकता है.

जटामांसी


जटामांसी शांति और तनाव को कम करने के लिए उपयोगी होती है. इसे चूर्ण बनाकर गर्म पानी के साथ सेवन किया जा सकता है.

ब्राह्मी


ब्राह्मी मस्तिष्क को शांत करने में मदद करती है और तनाव को कम करती है. ब्राह्मी की चाय बनाकर पी सकते हैं.

योग और प्राणायाम


योग और प्राणायाम तनाव कम करने में मदद करते हैं. योग विभिन्न आसनों को शामिल करता है, जो तनाव कम करने में मदद करते हैं. प्राणायाम मानसिक शांति लाने में मदद करता है.


सरसों का तेल


सरसों का तेल शरीर के तनाव को कम करने में मदद करता है. इसे नाभि पर लगाकर मालिश किया जा सकता है.











जिस प्रकार की हम जीवन शैली जी रहे हैं ऐसे में तनाव (Stress) होना स्वभाविक है। ऑफिस का कार्यभार हो या घर की जिम्मेदारी, कभी ना कभी किसी ना किसी ने तनाव को महसूस किया ही है। कारण कुछ भी हो सकता है पर तनाव को समय रहते कम करना बेहद जरूरी है। वरना लोग शारीरिक और मानसिक रूप से बंध जाते हैं, जिसके कारण उन्हें चिंता, डिप्रेशन, हिस्टीरिया आदि समस्याएं होने लगती हैं। इनका प्रभाव दैनिक जीवन पर भी पड़ता है। अगर आप भी तनाव का शिकार हो गए हैं तो आपके घर पर ही इसका इलाज मौजूद है। आज हम आपको इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि आप घरेलू उपाय से कैसे इस तनाव को दूर कर सकते हैं। इसके लिए हमने डॉ निमेश जी देसाई, साइकोलॉजिस्ट और निर्देशक से भी बात की है। पढ़ते हैं आगे...

तनाव को दूर करें हरी चाय (Green Tea for Stress)

हरी चाय जिसे इंग्लिश में ग्रीन टी भी कहा जाता है। अगर उसके साथ शहद और नीबू को मिलाकर पिया जाए तो इससे ना केवल शरीर स्वस्थ बनता है बल्कि यह तनाव को दूर करने में भी बेहद मददगार है। इसके अंदर ऐसे घटक पाए जाते हैं जो व्यक्ति को केंद्रित और उत्पादक बनाते हैं। ऐसे में आप प्रत्येक दिन में एक-दो बार हरी कप की चाय का सेवन कर सकते हैं। ग्रीन टी के अंदर कम मात्रा में कैफीन पाया जाता है ऐसे में आप दिन में तीन बार भी इस चाय का सेवन कर सकते हैं। मानसिक शांति के लिए यह एक अच्छा विकल्प है।

तुलसी

तुलसी तनाव को कम करने में मदद करती है और मानसिक शांति लाती है. तुलसी की चाय बनाकर पी सकते हैं.

सफेद मूसली

सफेद मूसली तनाव को कम करने में मदद करती है और शक्ति बढ़ाती है. इसे पाउडर के रूप में ले सकते हैं

मसाज के माध्यम से दूर करें

मसाज के माध्यम से खुद को रिलैक्स किया जा सकता है। यह न केवल नींद को बढ़ाता है बल्कि अगर आप पैरों की मसाज करवाते हैं तो इससे तनाव भी दूर होता है। इसके लिए आप तिल के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। हर दिन सोने से पहले आप तिल के तेल से अपने बालों की मालिश करें। ऐसा करने से आप अनिद्रा की समस्या को दूर कर पाएंगे और तनाव की समस्या से भी छुटकारा मिल जाएगा। इसके अलावा मसाज से शरीर और मन दोनों को शांति मिलती है।

अश्वगंधा

यह जड़ी-बूटी तनाव कम करने में मदद करती है. आश्वगंधा की जड़ को चूर्ण बनाकर गर्म पानी के साथ सेवन किया जा सकता है.


मसाज के माध्यम से दूर करें 

मसाज के माध्यम से खुद को रिलैक्स किया जा सकता है। यह न केवल नींद को बढ़ाता है बल्कि अगर आप पैरों की मसाज करवाते हैं तो इससे तनाव भी दूर होता है। इसके लिए आप तिल के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। हर दिन सोने से पहले आप तिल के तेल से अपने बालों की मालिश करें। ऐसा करने से आप अनिद्रा की समस्या को दूर कर पाएंगे और तनाव की समस्या से भी छुटकारा मिल जाएगा। इसके अलावा मसाज से शरीर और मन दोनों को शांति मिलती है।

सामाजिक सहयोग

अपने तनाव के क्षणों में अपने दोस्तों व रिश्तेदारों के बीच रहिए क्योंकि इससे आपको सबसे ज्यादा सपोर्ट मिलता है व हिम्मत भी मिलती है विपरीत परिस्थिति का सामना करने की।




अनिद्रा के आयुर्वेदिक ,घरेलू रामबाण उपाय :Nind ke gharelu upchar

                                          

       विडियो:नींद न आने की समस्या और  रामबाण उपचार                                                      


अनिद्रा जिसे अंग्रजी में Insomnia कहते हैं  से परेशान व्यक्ति को रात में काफ़ी देर तक बिस्तर पर पड़े रहने से भी नींद नहीं आती है। 
आज के समय में लोग इस तनाव भरी स्थिति को दूर करने के लिए काफ़ी दवाइयों का सेवन करते नज़र आते हैं जो उनके शरीर में किडनी और लीवर को नुक़सान पहुंचा सकती हैं।  आयुर्वेदिक और घरेलू उपचार की सहायता से इस समस्या को जल्दी दूर किया जा सकता है।


अनिद्रा (Insomnia) नींद नहीं आने के कारण

  *अगर आपको नियमित रूप से नींद आने में परेशानी होती है, तो हर रात सोने से पहले अपने शरीर को शांत करने और आराम करने का अभ्यास  करें । इसका मतलब है नहाना, पढ़ना या शांत संगीत सुनना। दिन के दौरान सक्रिय रहने से आपको बेहतर नींद लेने में मदद मिल सकती है


अनिद्रा को दूर करने के घरेलू उपाय

अश्वगंधा लाभदायक—

इसके चूर्ण को  दिन में दो बार गुनगुने पानी के साथ सेवन किया जाए तो अनिद्रा की समस्या को जल्दी ख़त्म किया जा सकता है।

सरसों का तेल फायदेमंद—

आयुर्वेद के मुताबिक़ रात को सोने से पहले अगर व्यक्ति रोजाना पैर के तलवों में इस तेल की अच्छे से मालिश करता है तो रात को अच्छी नींद आने में सहायता मिलती है।

दालचीनी चूर्ण उपयोगी—

रात को सोने से पहले एक गिलास देसी गाय के गुनगुने दूध में आधा चम्मच दालचीनी चूर्ण मिलाकर सेवन करने से अनिद्रा में लाभ मिलता है।

जायफल उत्तम औषधि—

*रात में अगर एक गिलास दूध में एक 2 ग्राम  जायफल चूर्ण मिश्रण करके कम से कम 1 महिना सेवन किया जाए तो अनिद्रा की परेशानी दूर हो सकती है।

शंखपुष्पी

शंखपुष्पी अपने वात संतुलन और मेध्य गुणों के कारण मन को शांत करने का काम करता है। साथ ही इसमें अनिद्रा को ठीक करने की भी क्षमता होती है।

ब्राह्मी

ब्राह्मी को बकोपा के नाम से भी जाना जाता है। यह रात की अच्छी नींद लाने के लिए बेहतरीन जड़ी बूटी है।

नियमित व्यायाम करे

नियमित रूप से मध्यम शक्ति वाले व्यायाम करना, जैसे तैराकी या पैदल चलना, दिन भर के तनाव को दूर करने में मदद कर सकता है।   सोने से पहिले सोते समय जोरदार व्यायाम नहीं करना कहिए , जैसे दौड़ना या जिम, क्योंकि यह आपको जागृत रख सकता है।

कैफीन वाली चीजों को कम लें

   चाय, कॉफी, एनर्जी ड्रिंक्स और कोका कोला जैसी चीजों से दूर रहे, ख़ासकर शाम के समय इन चीजों को न ले। कैफीन आपकी नींद मे बाधा उत्पन्न कर सकता है,और आप अच्छी नींद नहीं ले पाते। इसलिये अच्छा रहेगा आप सोने से पहले गर्म दूध या हर्बल चाय पीये।

 ज्यादा खाना न खायें

जरूरत से ज्यादा खाना और शराब, इनका सेवन देर रात को करने से भी, आपकी नींद के नियम मे बाधा उत्पन्न होती हैं। 
गर्म पानी से नहा लें, शांत संगीत सुनें या मन और शरीर आराम देने वाले व्यायाम करें।

इन ख़ास बातों का रखें ध्यान:

*अपने भोजन में देसी गाय का दूध, दलिया और बादाम को महत्त्व दें।
*दोपहर के भोजन में सलाद का सेवन ज़रूर करें क्योंकि इसमें पाया जाने वाला लैक्टो calcium तत्व शरीर में जठराग्नि को मज़बूत बनाए रखता है।
*रात को सोने से पहले एक गिलास देसी गाय का दूध नियमित रूप से सेवन करें।
*सूर्योदय से पहले उठकर रोजाना 2 से 3 किलोमीटर पैदल चलें।
*योग, व्यायाम और प्राणायाम को अपनी दिनचर्या में महत्त्वपूर्ण स्थान दें।
*तला हुआ भोजन और फ़ास्ट फ़ूड से आज ही दूरी बनाएं।

सोने से पहले कुछ देर टहलें:

सोने से पहले कुछ देर टहलने से शरीर को आराम मिलता है और नींद आने में मदद मिलती है.

गहरी सांस लें:
सोने से पहले कुछ देर गहरी सांस लेने से भी आराम मिलता है और नींद आने में मदद मिलती है.

स्क्रीन टाइम से बचें:

सोने से पहले कम से कम एक घंटे के लिए स्क्रीन टाइम से बचें, क्योंकि स्क्रीन से निकलने वाला ब्लू लाइट नींद को प्रभावित करता है.

नट्स:

बादाम और अखरोट में मैग्नीशियम और मेलाटोनिन होता है, जो नींद के लिए फायदेमंद है