27.12.21

सितोपलादि चूर्ण के फायदे:Sitopaladi churn

 


सितोपलादि चूर्ण क्षय (TB), खांसी, जीर्णज्वर (पुराना बुखार), धातुगत ज्वर, मंदाग्नि , अरुचि , प्रमेह, छाती मे जलन, पित्तविकार, खांसी मे कफ के साथ खून आना, बालको की निर्बलता, रात्री मे बुखार आना, नेत्रो (आंखो) मे उष्णता (गरमी) तथा गले मे जलन आदि विकारो को दूर करता है। सगर्भा स्त्रियो को 3-4 मास तक सितोपलादि चूर्ण sitopaladi churna  का सेवन कराने से गर्भ पुष्ट और तेजस्वी बनता है।

 राज्यक्षमा (TB) की प्रथम अवस्थामे श्वास प्रणालिका और फुफ्फुसों के भीतर रहे हुए वायुकोषो मे क्षय किटाणुओ के विष प्रकोप से शुष्कता (सूखापन) आजाती है। उस अवस्था मे यदि बुखार को शमन करने के लिये क्वीनाइन आदि उग्र औषधियो का, या त्रिक्टु, चित्रकमूल आदि अग्निप्रदीपन औषधियोका सेवन प्रधानरूप से या विशेष रूप से किया जाय, तो फुफ्फुस संस्थान मे शुष्कता की वृद्धि होती है। फिर शुष्क कास (सुखी खांसी) अति बढ़ जाती है और किसी-किसी रोगी को रक्त मिश्रित थूक आता रहता है। दिनमे शांति नहीं मिलती और रात्री को पूरी निंद्रा भी नहीं मिलती। व्याकुलता बनी रहती है। अग्निमांद्य, शारीरिक निर्बलता, मलावरोध (कब्ज), मूत्र मे पीलापन, शुष्क कास का वेग चलने पर बार-बार पसीना आते रहना, नेत्र मे जलन होते रहना आदि लक्षण प्रतीत होते है। एसी अवस्था मे अभ्रक आदि उत्तेजक औषधि से लाभ नहीं मिलता, किन्तु कष्ट और भी बढ़ जाता है। शामक औषधि के सेवन की ही आवश्यकता रहती है। अतः यह सितोपलादि चूर्ण अमृतके सद्रश उपकार दर्शाता है।
 मात्रा 2-2 ग्राम गौधृत (गायका घी) और शहद के साथ मिलाकर दिनमे 4 समय देते रहना चाहिये। मुक्तापिष्टि या प्रवालपिष्टि साथ मे मिला दी जाय तो लाभ सत्वर मिलता है।

सूचना: 

 याद रखे घी और शहद कभी समान-मात्रा मे न ले। समान-मात्रा मे लेने से विष के समान बन जाता है। या तो शहद को घी से कम ले या घी को शहद से कम ले।
 ज्वर जीर्ण होने पर शरीर निर्बल बन जाता है, फिर थोड़ा परिश्रम भी सहन नहीं होता; आहार विहार मे थोड़ा अंतर होने पर भी ज्वर बढ़ जाता है। शरीर मे मंद-मंद ज्वर बना रहता है या रात्री को ज्वर आ जाता है और सुखी खांसी भी चलती रहती है। उन रोगियो को प्रवालपिष्टि और सितोपलादि चूर्ण sitopaladi churna शहद मिलाकर दिन मे 3 समय देते रहने से थोड़े ही दिनो मे खांसी शांत हो जाती है, ज्वर विष का पचन हो जाता है और रस, रक्त आदि धातुए पुष्ट बनकर ज्वर का निवारण हो जाता है।
 माता निर्बल होने पर संतान निर्बल रह जाती है। उनकी हड्डीयां बहुत कमजोर होती है। ऐसे शिशुओ को प्रवाल और सितोपलादि चूर्ण का मिश्रण 1 से 2 रत्ती (125 से 250 mg) दिनमे 2 समय लंबे समय तक देते रहने से बालक पुष्ट बन जाता है। यह उपचार प्रथम वर्ष मे ही कर लिया जाय तो लाभ अधिक मिलता है।
 कितने ही मनुस्यों की निर्बलता से उनकी संतान निर्बल होती है। ऐसी संतान की माताओ को सगर्भावस्था मे अभ्रक-प्रवालसह सितोपलादि का सेवन 5-7 मास तक कराया जाय, तो संतान बलवान, तेजस्वी और बुद्धिमान बनती है। इससे गर्भिणी और गर्भ दोनों पुष्ट बन जाते है, शरीर मे स्फूर्ति रहती है और मन भी प्रसन्न रहता है।
कोई रोग की वजह से अथवा अधिक गरम-गरम मसाला, अधिक गरम चाय आदि अथवा आमाशय पित्त (Gastric Juice)की वृद्धि करने वाले लवण भास्कर आदि चूर्णोका सेवन होने पर आमाशयस्थ पित्त की वृद्धि हो जाती है या पित्त तीव्र बन जाता है अर्थात लवणाम्ल की मात्रा बढ़ जाती है। जिससे छाती और गलेमे जलन, मुह मे छाले, खट्टी-खट्टी डकारे आते रहना आदि लक्षण प्रतीत होते है, आहार का योग्य पचन नहीं होता और अरुचि भी बनी रहती है। इन रोगियो को प्रवाल भस्म या वराटिका भस्म और सितोपलादि चूर्ण का सेवन कराने से थोड़े ही दिनों मे अम्लपित्त के लक्षण और अरुचि दूर होकर अग्नि प्रदीप्त हो जाती है।
आमाशय  पित्त (Gastric Juice) तीव्र बनने के कारण पचन क्रिया मंद हो जाती है। इसका उपचार शीघ्र न किया जाय तो किसी किसि को विदग्धाजीर्ण (अजीर्णका एक प्रकार है) हो जाता है। पेसाब का वर्ण अति पीला भासता है। सर्वांग मे दाह (पूरे शरीरमे जलन), तृषा (प्यास), मूत्रके परिमाणमे कमी, मूत्रस्त्राव अधिक बार होना, देह (शरीर) शुष्क (सूखा) हो जाना, चक्कर आते रहना आदि लक्षण उपस्थि होते है। इस अवस्था मे मुख्य औषधि चन्द्रकला रस के साथ साथ आमाशय पित्त की शुद्धि करने के लिये सितोपलादि चूर्णका सेवन कराया जाय तो जल्दी लाभ पहुंचता है।
 जीर्णज्वर (पुराना बुखार) या प्रकुपित हुआ ज्वर दिर्धकाल पर्यन्त रह जाने पर शरीर अशक्त बन जाता है और मस्तिष्क मे उष्णता आ जाती है। जिससे सहनशीलता कम हो जाती है, थोड़ीसी प्रतिकूलता होने या विचार विरुद्ध होने पर अति क्रोध आ जाता है। यकृत (Liver) निर्बल हो जाता है। मलावरोध (Constipation) रहता है और मल मे दुर्गंध आती है, एवं पांडुता (शरीर मे पीलापन), ह्रदय मे धड़कन और अति निर्बलता आदि लक्षण उपस्थित होते है। ऐसे रोगियोको सितोपलादि चूर्ण sitopaladi churna खमीरेगावजवा के साथ कुच्छ दिनों तक देते रहने पर सब लक्षणोसह पित्तप्रकोप दूर होकर शरीर बलवान बन जाता है।
मात्रा: 2 से 4 ग्राम दिनमे 2 बार घी और शहद के साथ। कफ प्रधान रोगो मे घी से शहद दूना (Double) ले। वात और पित्त प्रधान रोगो मे घी मे शहद आधा मिलावे। घी पहले मिलावे फिर शहद मिलावे। कफ सरलता से निकलता हो ऐसी खांसी मे केवल शहद के साथ।
सितोपलादि चूर्ण बनाने की विधि: मिश्री 16 तोले (1 तोला = 11.66 ग्राम), वंशलोचन 8 तोले, पीपल 4 तोले, छोटी इलायची के बीज 2 तोले और दालचीनी 1 तोला लें। सबको कूटकर बारीक चूर्ण बनावें।
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