31.8.23

मोगरा पौधा (Mogra Plant) के औषधीय गुण और उपयोग

 




मोगरा एक सुंदर फूलों वाला पौधा है। इसके पौधे की ऊंचाई लगभग 2 से 3 फीट तक होती है। इसके मसालेदार फूलों की सबसे खास बात यह है कि उनकी खुशबू बहुत मनमोहक होती है। मोगरे के फूल सफेद, पीले या गुलाबी रंग के होते हैं। इसे बागों और छतों पर लगाया जा सकता है। मोगरे के पौधे को जल और धूप की अच्छी मात्रा की आवश्यकता होती है। यह एक फूलों के अद्भुत विकास और मनोहारी सुंदरता का प्रतीक है। मोगरे के फूल सभी को आकर्षित करने की क्षमता रखते हैं।
एक टेस्टी और सेहत को दुरुस्त रखने वाली चाय अगर किसी को मिल जाए तो भला कौन नहीं पीना चाहेगा। खासकर सुबह और शाम के टाइम तो लगभग हर कोई पीना पसंद करेगा। लेकिन, एक सामान्य चाय के मुकाबले कुछ ऐसी चाय होती हैं, जिसे टेस्ट के लिए नहीं बल्कि स्वास्थ्य लाभ लिए सेवन किया जाता है। जैसे-केले की चाय, ग्रीन टी, हिबिस्कस टी या फिर ओलॉन्ग टी। ऐसी ही एक सेहतमंद चाय है 'मोगरा की चाय'। देखने में तो ये चाय साधारण दिखाई देती है, लेकिन इसके कुछ बेहतरीन फायदों को जानने के बाद आप भी हर रोजअपनी डाइट में शामिल करना चाहेंगे|
 बदलते लाइफस्टाइल और गलत खानपान की वजह से आजकल हर दस महिलाओं में से कम से कम दो महिलाएं बढ़ते हुए वजन से ज़रूर परेशान रहती हैं। हालांकि, बढ़ते हुए वजन के कई कारण हो सकते हैं लेकिन, इस चाय के सेवन से आसानी से वजन कम किया जा सकता है। आपको बता दें कि मोगरा के फूलों और पत्तियों में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो वजन को कम करने में बहुत हद तक हेल्प करते हैं। इसके इस्तेमाल से चर्बी भी कम होती है।


मोगरे के फूल के बहुत सारे फायदे होते हैं। यह फूल हमारे स्वास्थ्य और सौंदर्य दोनों के लिए उपयोगी होता है। इसकी महक शांति और सुकून देती है और हमारी भावनाओं को प्रभावित करती है। मोगरे के फूल की खुशबू तनाव को कम करने में मदद करती है। इसका इस्तेमाल ध्यान केंद्रित करने और मन को शांत करने के लिए किया जा सकता है। यह मन को स्थिरता प्रदान करता है और चिंता को कम करता है।
 मोगरे के फूल के बूटी का उपयोग त्वचा के लिए भी किया जाता है। इसका तेल त्वचा को मुलायम और चमकदार बनाता है और उसे खूबसूरती प्रदान करता है। इसे त्वचा पर लगाने से चेहरे के दाग-धब्बे और झुर्रियां कम होती हैं। मोगरे के फूल के फायदे शारीरिक, मानसिक और सौंदर्यिक हैं। इसे इस्तेमाल करके हम तनाव से राहत पा सकते हैं और अपनी खूबसूरती को बढ़ा सकते हैं। इसलिए, मोगरे के फूल को नियमित रूप से इस्तेमाल करना हमारे स्वास्थ्य और सौंदर्य के लिए फायदेमंद होता है।
 काम न मिलना, अधिक काम का बोझ होना, परिवार देखना, खाना बनाना, घर की सफाई करना आदि हजारों काम है जिसे महिलाएं हर रोज करती हैं। ऐसे में थकान और तनाव का होना आम बात है। लेकिन, मोगरा की चाय को अगर नियमित और संतुलित मात्रा में कोई सेवन करता है, तो तनाव आसानी से कम हो सकता है। इसके पीने से हर कोई रिलैक्स फील करेगा। मोगरा की चाय सेवन करने के बाद नींद भी अच्छी आती है।
जिस तरह से केले की चाय, ग्रीन टी, हिबिस्कस टी या फिर ओलॉन्ग टी इम्‍यूनिटी सिस्टम के लिए बेस्ट मानी जाती है, ठीक उसी तरह मोगरा की चाय रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए एक बेस्ट चाय है। इस चाय में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट के गुण, शरीर में होने वाली अन्य बीमारी से भी लड़ने और दूर रखने में मदद करते हैं। इसके सेवन से घाव भी जल्दी भर जाता है। कई लोग आज भी मोगरे के फूल का पेस्ट बनाकर घाव के लिए इस्तेमाल करते हैं।
गर्मियों के साथ-साथ बरसात के दिनों में त्वचा पर कई तरह की परेशानियां देखी जाती है। कभी दाग तो कभी खुजली आदि होती रहती है। ऐसे में इन परेशानियों को दूर करने के लिए मोगरा की चाय एक बेस्ट दवा के रूप में काम कर सकती है। बालों के लिए भी ये चाय बेस्ट होती है। त्वचा और बालों की समस्या दूर करने के अलावा मोगरा की पत्तियों से गैस की परेशानी भी दूर हो सकती है। इसके लिए कई लोग पानी में मोगरा की पत्तियों और मिश्री को मिलाकर सेवन करते हैं।

रीढ़ की हड्डी Back bone में गैप क्यों आता है ?कैसे करें इलाज ?

 




उम्र बढ़ने के साथ-साथ शरीर में कई परेशानियां बढ़ने लगती हैं, जिसमें से एक है रीढ़ की हड्डी में गैप आ जाना। रीढ़ की हड्डी में गैप को साइंस की भाषा में स्पोंडिलोसिस कहा जाता है, जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को परेशान कर देता है। ये स्थिति खासकर उम्र बढ़ने के साथ-साथ बढ़ती है लेकिन कुछ कारणों से ये परेशानी कम उम्र के व्यक्ति को भी हो सकती है। बहुत से लोग इस परेशानी के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं लेकिन सही इलाज कभी भी आपके लिए पहले जैसा साबित नहीं हो सकता है। हालांकि अगर शुरुआत में ही इस स्थिति के लक्षणों को समझ लीजिए तो इस स्थिति को बढ़ने से रोका जा सकता है। आइए जानते हैं आप कैसे इस स्थिति से बच सकते हैं।

रीढ़ की हड्डी में गैप होने के लक्षण

1-रीढ़ की हड्डी में दर्द रहना

2-भारी-भरकम सामान उठाने पर दर्द होना

3-झुकते वक्त पीठ में दर्द

4-सीधे खड़े होने पर कमर से कट-कट की आवाज आना

5-पीठ सीधी करने में परेशानी

रीढ की हड्डी में आए गैप को कैसे कम करें? जानें आयुर्वेदिक तरीके से गैप को कम करने का तरीका

रीढ़ की हड्डी में गैप को साइंस की भाषा में स्पोंडिलोसिस कहा जाता है, जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को परेशान कर देता है। जानें आयुर्वेदिक तरीका।
उम्र बढ़ने के साथ-साथ शरीर में कई परेशानियां बढ़ने लगती हैं, जिसमें से एक है रीढ़ की हड्डी में गैप आ जाना। रीढ़ की हड्डी में गैप को साइंस की भाषा में स्पोंडिलोसिस कहा जाता है, जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को परेशान कर देता है। ये स्थिति खासकर उम्र बढ़ने के साथ-साथ बढ़ती है लेकिन कुछ कारणों से ये परेशानी कम उम्र के व्यक्ति को भी हो सकती है। बहुत से लोग इस परेशानी के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं लेकिन सही इलाज कभी भी आपके लिए पहले जैसा साबित नहीं हो सकता है। हालांकि अगर शुरुआत में ही इस स्थिति के लक्षणों को समझ लीजिए तो इस स्थिति को बढ़ने से रोका जा सकता है। आइए जानते हैं आप कैसे इस स्थिति से बच सकते हैं।

रीढ़ की हड्डी में गैप होने के लक्षण

1-रीढ़ की हड्डी में दर्द रहना

2-भारी-भरकम सामान उठाने पर दर्द होना

3-झुकते वक्त पीठ में दर्द

4-सीधे खड़े होने पर कमर से कट-कट की आLinks

6-सीधा लेटने में दिक्कत होना

रीढ़ की हड्डी में गैप का इलाज कैसे करें?

रीढ की हड्डी के जोड़ोंके सामान्य घिसाई को अंग्रेजी भाषा में स्पोंडिलोसिस कहा जाता है, जिसके परिणामस्वरूप जोड़ों का गैप कम हो जाता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ रीढ़ की हड्डी की डिस्क में टूट-फूट होने लगती है, जिसके कारण परेशानी बढ़ने लगती है। स्पोंडिलोसिस आम समस्या है लेकिन ये उम्र के साथ बिगड़ती जाती है। इस स्थिति का उपयोग अक्सर रीढ़ की अपक्षयी गठिया (ऑस्टियोआर्थराइटिस) का वर्णन करने के लिए किया जाता है।

आयुर्वेदिक उपाय से ठीक हो सकती है ये स्थिति

रीढ की हड्डी में गैप आ जाने पर आप एलोपैथी के साथ-साथ आयुर्वेद का भी सहारा ले सकते हैं। आयुर्वेद में ऐसी कई औषधियां हैं, जो इस घिसाव को भरने में सफल साबित हो सकती हैं। आयुर्वेद में लिखी इन दवाओं का सेवन करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लेंः

1-त्रयोदशांग गुग्गुल

2-लाक्षादि गुग्गुल

3-मुक्ता शुक्ति भस्म

अगर किसी व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी कमजोर हो जाती है, तो इसकी वजह से कई परेशानियां हो सकती हैं। क्योंकि, रीढ़ की हड्डी शरीर का सपोर्ट सिस्टम है, इसमें कमजोरी आने से आपके शरीर का पोस्चर तो खराब होता ही है साथ ही कई गंभीर परेशानियां होती हैं। अगर आप इस समस्या से बचना चाहते हैं, तो इसके लिए अपने खाने पर पूरा ध्यान देना चाहिए। तो चलिए जानते हैं रीढ़ की हड्डी को मजबूत करने के लिए फायदेमंद फूड्स।

रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाने के लिए क्या खाएं?-

हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन - 

अगर आप रीढ़ की हड्डी को मजबूत रखना चाहते हैं, तो इसके लिए हरी पत्तेदार सब्जियों Green Vegetable का सेवन करें। इन सब्जियों से शरीर को जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाने में बहुत फायदेमंद है। उदाहरण के लिए आप - पालक, मेथी जैसी हरी पत्तेदार सब्जी का सेवन कर सकते हैं, इनसे शरीर को कैल्शियम, मैग्नीशियम, फोलेट, और विटामिन ए, विटामिन ई मिलता है।

डेयरी प्रोडक्ट्स का सेवन -

 अगर आप अपनी रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाना चाहते हैं, तो इसके लिए डेयरी प्रोडक्ट्स जैसे दूध, दही, पनीर आदि का सेवन कर सकते हैं। इन सबके सेवन से शरीर को कैल्शियम, प्रोटीन जैसे पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। अगर किसी व्यक्ति के शरीर में कैल्शियम की कमी हो जाए, तो इसकी वजह से हड्डियों से जुड़ी बीमारियों का खतरा रहता है। इसलिए रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाने के लिए डाइट में दूध, दही, पनीर, छाछ आदि को जरूर शामिल करे।
नट्स और ड्राई फ्रूट्स का सेवन - कहा जाता है कि रोजाना हर किसी को ड्राई फ्रूट्स Dry Fruits का सेवन जरूर करना चाहिए। इनके सेवन से शरीर की हड्डियां मजबूत होता हैं। नट्स और ड्राई फ्रूट्स में कैल्शियम, विटामिन ई, मैग्नीशियम और फास्फोरस की पर्याप्त मात्रा पाया जाता है। हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए डाइट में बादाम, अखरोट, किशमिश, काजू, पिस्ता आदि को शामिल करना चाहिए। इनका सेवन हड्डियों को मजबूत बनाने और शरीर को बीमारियों से बचाने में फायदेमंद होता है।

बीन्स का सेवन करें - 

अगर आप अपनी रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाना और बीमारियों से बचाना चाहते हैं, तो रोजाना बीन्स का सेवन करना बहुत फायदेमंद होता है। इसके लिए आप फलियों वाली सब्जियों का सेवन कर सकते हैं। बीन्स में फाइबर, प्रोटीन, कैल्शियम और फोलेट जैसे तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। नियमित रूप से इनका सेवन करने से आपको बहुत फायदा मिलता है।

बुजुर्गों को होती है अधिक समस्या

बुजुर्ग लोग आम तौर पर इस समस्या से जूझते हैं। वृद्ध महिलाओं को अक्सर ऑस्टियोपोरेसिस होता है,जिसकी वजह से पीठ दर्द होता है। कभी-कभी शरीर के अन्य हिस्सों जैसे कंधे या कूल्हों में दर्द या बीमारी भी पीठ दर्द (Back Pain) का कारण बन सकती है। रीढ़ की हड्डी में दर्द (Back pain) की समस्या बुर्जुगों को अधिक होती है क्योंकि उम्र के साथ उनकी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।डिस्क ब्रेक होना:रीढ़ में हर वर्टिब्रे के लिए डिस्क कुशन का काम करता है। यदि डिस्क फटती है तो नसों पर अधिक दबाव पड़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप पीठ दर्द होगा।
उभरा हुआ डिस्क: एक ही तरह से टूटे हुए डिस्क के रूप में, एक उभड़ा हुआ डिस्क एक नर्व पर अधिक दबाव डाल सकता है। बल्जिंग डिस्क की वजह से भी रीढ़ की हड्डी में दर्द (Back pain) हो सकता है।
सायटिका (Sciatica): एक तेज और तीखा दर्द बट्स के माध्यम से और पैर के पीछे से होकर, एक नस के दबने या हर्नियेटेड डिस्क के कारण होता है। इसकी वजह से लोगों को बैक में अधिक दर्द महसूस होता है।
गठिया: पुराने ऑस्टियोअर्थराइटिस कूल्हों, पीठ के निचले हिस्से और अन्य स्थानों में जोड़ों के साथ समस्याओं का कारण बन सकता है। कुछ मामलों में, रीढ़ की हड्डी के चारों ओर का स्थान संकरा हो जाता है। इसे स्पाइनल स्टेनोसिस के रूप में जाना जाता है।
रीढ़ की असामान्य वक्रता: अगर रीढ़ असामान्य तरीके से कर्व हो जाता है तो पीठ में दर्द हो सकता है। एक उदाहरण स्कोलियोसिस है, जिसमें रीढ़ एक तरफ झुकने लगता है।
ऑस्टियोपोरोसिस: रीढ़ की वर्टिब्रे सहित हड्डियां आसानी से टूटने वाली हो जाती है और छिद्रपूर्ण हो जाती हैं, जिससे जल्दी फ्रैक्चर की अधिक संभावना होती है।
किडनी की समस्या: किडनी में पथरी या किडनी में संक्रमण के कारण कमर दर्द हो सकता है।
रीढ़ की हड्डी में दर्द से परेशान हैं या इन्हें मजबूत करना चाहते हैं, तो कश्यपासन करें। कश्यपासन को अर्धबद्ध पद्म वशिष्ठासन के नाम से भी जाना जाता है। इस आसन को करने से कई लाभ होते हैं। खासकर रीढ़ की हड्डी को मजबूत करना चाहते हैं, तो इसका अभ्यास नियमित करना शुरू कर दें। इसे करने से शरीर के आंतरिक अंग सशक्त होते हैं।

कैसे करें कश्यपासन






दोनों पैरों को साथ-साथ रखते हुए खड़े हों। सांस भरते हुए शरीर का भार पंजों पर डालें और एड़ियों को ऊपर उठाएं। दोनों हाथों की उंगलियों से इंटरलॉक बनाकर हाथों को ऊपर ले जाएं और तानें। इस दौरान हथेलियों की दिशा ऊपर की ओर रहे। इस अवस्था में पेट को यथासंभव अंदर की ओर रखते हुए घुटने और जांघ की मांसपेशियों को ऊपर की ओर खींचें। अब सांस छोड़ते हुए आगे झुकें और दोनों हथेलियों को जमीन पर टिका दें। फिर अपने पैरों को पीछे ले जाकर दाएं घूम जाएं और दायीं हथेली जमीन पर टिका दें ताकि पूरे शरीर का भार दाहिने हाथ पर आ जाए।
उम्र के साथ-साथ हमारा शरीर कमजोर पड़ने लगता है, जिसे एजिंग प्रोसेस कहा जाता है और यह एक सामान्य क्रिया है। एजिंग के सबसे ज्यादा लक्षण हमारी त्वचा, मांसपेशियों और हड्डियों में होते हैं। ठीक इसी प्रकार एक निश्चित उम्र के बाद महिलाओं की हड्डियां कमजोर पड़ने लगती है और ऐसे में ऑस्टियोपोरोसिस से लेकर बोन फ्रैक्चर आदि का खतरा कम हो जाता है। इसके अलावा जोड़ों व हड्डियों के अन्य हिस्सों में दर्द भी होने लगता है। महिलाओं को एक खास उम्र के बाद ही हड्डियों में कमजोरी कमजोरी महसूस होने लगती है और वह उम्र आमतौर पर 50 साल के बाद होती है। दरअसल, 50 की उम्र तक आते-आते महिलाओं में मेनोपॉज खत्म होने लगता है और पोस्ट मेनोपॉज शुरू हो जाता है। कुछ अध्ययनों के अनुसार पोस्ट-मेनोपॉज उम्र के दौरान हड्डियों की कमजोरी 20 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। चलिए इस उम्र के बाद कौन सी डाइट लेने से हड्डियां मजबूत रहती हैं
रीढ़ की हड्डी का दर्द वाकई बेहद परेशानी का सबब बन जाता है। इसकी हड्डियों की संरचना जितनी जटिल है उससे ज्यादा इसके शारीरिक महत्व भी होते हैं। रीढ़ की हड्डी के जोड़ स्पाइनल में बेहद सुरक्षित रहते हैं। इन जोड़ों का सीधा संबंध दिमाग से होता है। मष्तिष्क को सूचना आदान प्रदान करने में रीढ़ के हड्डियों की उपयोगिता जगजाहिर है। वैसे तो कई बेहद सामान्य कारण होते हैं जो इस तरह के दर्दनाक कारण बनते है। लेकिन रीढ़ की हड्डी का ट्यूमर बेहद जटिलता पैदा कर सकता है। रीढ़ के किसी भी हिस्से में हुई गांठ वैसे तो कोशिकाओं ओर ऊतकों का एक समूह होता है जो दिमाग से सीधा संबंध वाली तरंगों के वेग को रोकने का का करता है। इस समस्या से इंसान को मानसिक रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। रीढ़ की समस्याओं की कई वजहें होती हैं और इसे रोक पाने में कई तत्व अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं। 

रीढ़ की हड्डी में दर्द का कारण


एक अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक भारत जैसे विकासशील देश में रीढ़ के रोग कई कारणों से उत्पन्न होते हैं। साथ ही यह समस्या पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ज्यादा देखने को मिल जाती है। इस तरह के हड्डियों से संबंधित कई प्रमुख कारण हो सकते हैं।
• चोट या फिर मोच के दौरान मांसपेशियों में खिंचाव से ऊतकों की क्षति या फिर लिगामेंट में सूजन होंने से रीढ़ का दर्द बढ़ सकता है।
• रीढ़ की हड्डी का दर्द सही से खड़े ना होने से भी हो सकता है। ज्यादा समय तक झुक कर खड़े होने से हड्डियों में झुकाव हो जाता है जिससे सही ऊर्जा और रक्तवाहिनियों में संक्रमण होने की संभावना प्रबल हो जाती है। इस वजह को भी एक मुख्य कारक माना जा सकता है।
• शरीर में अवशिष्ट पदार्थों के जमाव से भी कई तरह के हड्डी विकार सामने आते हैं। अवशिष्ट पदार्थो के जमाने से हड्डियों के जोड़ों में तेज दर्द हो सकता है इसमें रीढ़ की हड्डी भी शमिल है।
• खून में यूरिया का बढा हुआ स्तर भी रीढ़ में दर्द बढ़ा सकता है। यूरिक एसिड से हड्डियों को नुकसान तो होता ही है साथ ही किडनी समेत कई अन्य आंतरिक अंग भी प्रभावित होते हैं।
• रीढ़ की हड्डी में आंतरिक विकार जैसे टीवी सहित कुछ अन्य रोग बेहद जटिल समस्या उत्पन्न कर सकते हैं।
• पीठ के दर्द को वजह से भी कई बार रीढ़ की हड्डियां प्रभावित हो जाती हैं। कई तरह के रोगों को वजह के रीढ़ की हड्डी में दर्द हो ही जाता है।
• खानपान में त्रुटि या समझौता अक्सर हड्डियों पर भारी पड़ता है। आहार में विकार रीढ़ की हड्डियों को भारी क्षति पहुंचा सकता है।
• बदलती जीवनशैली से इंसान हमेशा परेशान रहता है। इसकी वजह से कई बार तनाव और अनिद्रा उत्पन्न हो जाती है जो रीढ़ के रोग का बड़ा कारण बन जाती है।
• कई अनुवांशिक समस्याओं की वजह से भी रीढ़ की हड्डी की समस्या का होना देखा जाता है जो गठिया या अर्थराइटिस के रूप में सामने आती रहती है।
बदलता मौसम भी रीढ़ की हड्डियों को कर सकता है प्रभावित।
मौसम का बदलाव रीढ़ की हड्डी में दर्द उत्पन्न कर सकता है। सर्दी के मौसम में जहां हड्डियों के जोड़ों की समस्या बढ़ती है तो दूसरी तरफ गर्मी और बरसात भी इसके बड़े कारण होते हैं। गर्मियों के मौसम में कई बार शरीर निर्जलीकरण की तरफ जाता है जिसके कई कारण हो सकते हैं। इस वजह से लू लगने या अन्य कारणों से हड्डियों के दर्द बढ़ जाते हैं। बरसात या गर्मी के दिनों में बहती हुई पुरवाई हवा हड्डियों के पुराने चोट उभार देती है। पुरानी चोट के उभरने की वजह से रीढ़ की समस्या तो होती ही है साथ ही कई अन्य हड्डी रोग उत्पन्न होने लगते हैं। कई बार वायुमण्डल के दबाव से मौसम का परिवर्तन कई तरह के हड्डी विकारों को उत्पन्न करने का कारण बन जाता है।

रीढ़ की हड्डी में दर्द के प्रमुख लक्षण


रीढ़ की हड्डियों में कई डिस्क होती है जो आपस में एक चैन की तरह एक दूसरे से जुड़ी होती है। हड्डियों के चेन की तरह जुड़ाव के दौरान किसी भी भाग में आये संक्रमण या अन्य कारणों से होने वाले लक्षण भिन्न- भिन्न ही सकते हैं।
• रीढ़ की हड्डियों में संकुचन होने की स्थिति में सूजन महसूस होती है और लगता है कि शरीर इधर उधर करने पर भी दर्द हो जाएगा।
• रीढ़ के निचले भाग में दर्द का अनुभव हो सकता है यह तेज या फिर धीमा हो सकता है।
• पेशाब में जलन और मलत्याग में परेशानी का अनुभव हो सकता है।
• आंतरिक रोगों की वजह से पीठ में दर्द होने से रीढ़ को इधर उधर करने में परेशानी या पीड़ा का अनुभव महसूस किया जा सकता है।
• बुखार या गर्दन में तेज दर्द का अनुभव होने की संभावना बढ़ जाती है।

महिलाओं में रीढ़ की हड्डी का दर्द

महिलाओं की काया पुरुषों की तुलना में ज्यादा कोमल होती है। कामकाजी महिलाएं जो ज्यादा देर तक खड़ी होकर दिनचर्या निपटने का काम करती हैं उनकी हड्डियों में दर्द उत्पन्न हो ही जाता है। रीढ़ में दर्द कई तरह के हार्मोन्स के परिवर्तन की वजह से भी देखा जा सकता है। गर्भवती महिलाओं में यह समस्या ज्यादा देखी जाती है। गर्भावस्था के दौरान कई बार कमर के नीचे दर्द भी रीढ़ की हड्डी के दर्द का कारण बन सकता है। बेशक यह कई वजहों से देखा जाता है। कुपोषण सहित शरीर में कैल्शियम की कमी भी कई बार इस तरह की समस्या का कारण बन जाता है। एक स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक महिलाओं में रीढ़ की समस्या 30 से 50 साल की उम्र में ज्यादा दिखाई देती है। बेशक कई बार यह समस्या अर्थराइटिस या गठिया रोग
के रूप में देखने को मिल जाती है। बढ़ता मोटापा और शुगर रोगों की वजह से कई बार रीढ़ के रोग बड़ी तेजी परेशानी की वजह बन जाते हैं।

पुरुषों में रीढ़ की हड्डी का दर्द

कई लोग जो हमेशा झुक कर खड़े होते हैं उन्हें यह समस्या हो ही जाती है। झुककर खड़े होने से रीढ़ की हड्डी में खिंचाव ओर मुड़ाव होने लगता है। झुकाव की वजह से हड्डियों को सही पोषण नही मिल पाता। कई बार यही आदत जोड़ों में गांठ या ट्यूमर का रूप धारण कर लेता है। ट्यूमर बन जाने पर इंसान के दिमाग की तरंगों का रीढ़ को हड्डी को सही निर्देश ना दे पाने से समस्या जटिल होने लगती है। इसके अलावा भी कई अन्य कारण है जिससे रीढ़ की हड्डियां कमजोर भी हो जाती हैं। भारत जैसे देश मे कुपोषण ओर प्रदूषण एक बड़े कारण हैं साथ ही तनाव और अवसाद भी कई बार पुरुषों को इस तरह की बीमारियों की चपेट में ले लेता है। बढ़ता वजन या मोटापा भी इसके बड़े कारण माने जाते हैं।

रीढ़ की हड्डी का दर्द होने से पहले रोकथाम

रीढ़ का दर्द होने से पहले इसकी रोकथाम जहां बेहद सरल है वहीं कम खर्चीला भी है। दवाओं से बचने और रीढ़ का दर्द शरीर को ना सताए यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ जरूरी एहतियात अपनाकर तकलीफ से बचा जा सकता है।
• खानपान या आहार की गुणवत्ता में सुधार की बेहद आवश्यकता होती है। आहार की गुणवत्ता में सुधार से जीवन को कई तरह के कष्टों से मुक्ति दिलाई जा सकती है।
• अनियमित जीवनशैली या दिनचर्या में सुधार लाने की जरूरत होती है। दिनचर्या नियमित कर रीढ़ के दर्द से बच सकते हैं।
• महिलाओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके अंदर कैल्शियम या विटामिन डी की मात्रा की कमी न होने पाए। इस कमी से बचने पर उन्हें इस तरह की समस्या से निजात मिलेगी।
• कभी भी झुककर ना खड़े हों।
• ज्यादा देर तक एक जगह बैठकर काम करने से बचें।
• अल्कोहल से परहेज रखें
• तैलीय भोजन से करें तौबा।
रीढ़ की हड्डी का दर्द हो जाने पर रोकथाम।
रीढ़ में दर्द या रोग वास्तव में एक जटिल स्थिति है। दर्द के कारण कई बार इंसान बिस्तर पकड़ लेता है। कुछ स्थिति में इंसान को अपंगता भी हो जाती है। इस तरह के रोग ओर दर्द से बचाव के लिए आधुनिक युग में कई तरह की औषधि मौजूद है जिनके सटीक प्रयोग से काफी हद तक इससे बचाव किया जा सकता है।
रीढ़ का दर्द का यूनानी उपचार वास्तव में बेहद फायदेमंद होता है। जड़ी बूटियों के प्रयोग से निर्मित पूरी तरह से हर्बल आधारित इस उपचार माध्यम से रीढ़ के दर्द का इलाज काफी प्रचलित है। हालांकि इस उपचार माध्यम में थोड़ा समय जरूर लगता है लेकिन अक्सर समस्या जड़ से समाप्त हो जाती है। दुर्लभ जड़ी बूटियों से बनाई गई सुरंजन की दवाइयां वास्तव में हड्डियों के लिए किसी वरदान से कम नही होती। समय पर हकीम की सलाह से परहेज करने के साथ दवाओं का सेवन काफी लाभदायक साबित होता है। इस विधा में सबसे खास यह होता है कि इन दवाओं का।शरीर पर किसी भी प्रकार का साइड इफेक्ट नही होता है।

नॉन सर्जिकल ट्रीटमेंट

स्ट्रेन, स्प्रेन और न्यूरल कंप्रेशन जैसी समस्याएं कुछ दिन बेड रेस्ट करके और कम भागदौड़ करके ठीक की जा सकती हैं। अगर मोच हल्की है तो आमतौर पर एक से तीन दिन में ठीक हो जाती है। अगर दर्द ठीक हो जाए तो यह बेड रेस्ट को कम कर देना चाहिए, क्योंकि लंबे समय तक बिस्तर पर आराम करने से मांसपेशियों को नुकसान हो सकता है। इससे मांसपेशियों में जकड़न भी बढ़ सकती है, जिससे दर्द बढ़ सकता है। अगर दर्द हल्का है, तो शुरुआती इलाज में आमतौर पर नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी (Non-steroidal anti-inflammatory) दवाएं ली जा सकती हैं।

23.8.23

चेहरे पर होने वाले मस्से आसानी से हटाएँ ,Chehre ke masse hataen

 


 

मस्से त्वचा पर होने वाली टिश्यू की वृद्धि है जो ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (HPV) के कारण होती है। आमतौर पर यह फटी हुई त्वचा पर होता है क्योंकि वायरस त्वचा की ऊपरी परत के माध्यम से आसानी से प्रवेश कर जाता है। संक्रमण के बाद त्वचा की ऊपरी परत पर मस्से तेजी से अपना विकास करते हैं।
मस्से हमारे शरीर को किसी भी प्रकार की कोई हानि नहीं पहुंचाते हैं। यह कुछ महीनों या वर्षों के बाद अपने आप कम हो जाते हैं। मस्से दिखने में छोटे होते हैं और आकार व संरचना में एक पिनहेड से लेकर मटर के दाने तक भिन्न हो सकते हैं। यह रफ, हार्ड बम्प्स, मांसल वृद्धि या छोटा बम्प कुल तीन तरह के होते हैं।एक अध्ययन के अनुसार विटामिन की कमी के कारण मस्से होते हैं। इस बात की पुष्टि विभिन्न प्रकार के विटामिन के सीरम लेवल के अध्ययन में हुई है। इस अध्ययन में कई लोगों के विटामिन में मौजूद सीरम के लेवल की जांच की गई थी।
मस्से HPV (ह्यूमन पैपिलोमा वायरस) संक्रमण के कारण होते हैं। इसके 150 स्ट्रेन मौजूद हैं जिनमें से महज 10 स्ट्रेन के कारण ही मस्से होते हैं। यह वायरस त्वचा में छोटे से कट के माध्यम से प्रवेश करता है। इससे त्वचा की बाहरी परत मोटी और सख्त हो जाती है, जो आगे चलकर मस्से का रूप ले लेती है।
एचपीवी के सम्पर्क में आने से या इससे संक्रमित किसी सरफेस को छूने से यह संक्रमण हो सकता है, जो आगे चलकर मस्से का रूप ले लेता है।
एचपीवी वायरस से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से मस्से हो सकते हैं।
दूसराें का तौलिया या अन्य निजी वस्तुओं के इस्तेमाल से मस्से हो सकते हैं।
किसी भी प्रकार के घाव वाले स्थान की त्वचा के संक्रमित होने से मस्से होने की आशंका बढ़ जाती है।
मस्से को छूने के बाद अपने शरीर के दूसरे हिस्से पर टच करने से यह नए सिरे से संक्रमित कर सकता है।
इस प्रकार के मस्से आमतौर पर व्यक्ति की हांथ या पैर की उंगलियों पर होते हैं। यह शरीर के किसी अन्य स्थान पर भी हो सकते हैं। आम तौर पर मस्से अपने आसपास की त्वचा की तुलना में भूरे रंग के होते हैं।

चेहरे के तिल मस्से हटाने के रामबाण नुस्खे

आज सभी लोग सुंदर दिखना चाहते है एक कहावत है की अगर आपके चेहरे पर एक या दो तिल हों तो आपके सुंदरता में चार चाँद लग जाता। लेकिन यही तिल और मस्से अगर आपके फेस पर ज्यादा हो जाय तो ही बहुत बुरा लगने लगता है। इस समस्या से काफी लड़के-लड़कियां परेशान हैं।अधिकतर लोग तिलों तथा मस्सों को हटाने के लिए लेजर थेरेपी का ही इलाज मानते है,
इसलिए इन्हे नजर अंदाज कर देते हैं तो ये ज्यादा होते है तो और भी ज्यादा होते चले जाते है वैसे तिल दो प्रकार के होते हैं एक वो जो जन्मजात होते हैं और दूसरे जो धीरे-धीरे खुद ही पनपने लगते हैं तो इनको हटाया भी जा सकता है वो भी बिना किसी थेरेपी के बस कुच्ग देसी इलाज से आप घर पर भी इनको हटा सकते है इसके लिए में आज आपको कुछ घरेलू उपाए बताउगा वो भी सस्ता सा तो इसके लिए में आपको दो तरीके बताउगा और उनके लिए क्या क्या चैये वो भी बताउगा तो देखिये क्या क्या चाहिए और कैसे करना है |

धनिए के पत्ते से तिल और मुंहासे हटाए

क्या क्या सामग्री चाहिएधनिया
गुलाब जल
करने की विधि

सबसे पहले आप धनिए के जड़ वाले हिस्से को अलग कर दें और पते अलग करें फिर इसको पत्ते-पत्ते को किसी हम लोग होम जस्ते या मिक्सी के अंदर पत्ते का पेस्ट तैयार कर लें और इसे किसी बर्तन में निकाल लें फिर उस पेस्ट को रुई की सहायता से अपने तिल मुहासे पर लगाएं और धीरे-धीरे लगाएं उसको करीब आधे घंटे तक लगा ही रहने दें बाद में रुई की सहायता से गुलाब जल से धीरे-धीरे साफ करें और यह करीब 1 महीने तक करें जिससे आपके मुहासे तो झड़ने लग जाएंगे और तिलों का रंग बदलने लग जाएगा और कुछ दिनों में वह साफ हो जाएंगे यह एक आसान और सस्ता घरेलू तरीका है जिससे आप अपने तिल और मुंहासे हटा सकते हैं|

आलू की सहायता से तिल और मुंहासे हटाए


क्या क्या सामग्री चाहिएआलू
गुलाब जल
रुई
करने की विधि

सबसे पहले साफ दो आलू लीजिए जो बिल्कुल साफ और बढ़िया हो फिर उनको किसी होम जस्ते या किसी कद्दूकस या मिक्सी की सहायता से उनका अच्छा सा पेस्ट तैयार कर लीजिए और इस पेस्ट को कुछ देर रखिए फिर आप रुई की सहायता से इस पेस्ट को अपने तिल मुंहासे पर लगाइए और करीब 5 से 7 मिनट उसकी मालिश कीजिए और उसको आधे घंटे तक ऐसा ही रहने दें आधे घंटे बाद साफ रुई से गुलाबजल के साथ धीरे-धीरे उसको साफ कीजिए और यह विधि दिन में दो बार कीजिए यह लगातार एक महीने पर करने पर आपके तिल और मुहासे साफ होने लगेंगे इससे मुंहासे तो झरने लगेंगे और तीन का रंग बदलने लगेगा और यदि एक महीने में भी थोड़ी बहुत कमी रह जाए तो आप एक्स्ट्रा कुछ दिन कीजिए पर यह विधि बिल्कुल आपके तिल और मुंहासे साफ कर देंगे यह एक बहुत ही आसान और सस्ता घरेलू नुसका है जिसे आप उपयोग करके अपने तिल और मुंहासे साफ कर सकते हैं|

मस्से ना काटें, ना फोड़ें

कुछ लोग मस्सों को हटाने के लिए उसे कटवा देते हैं या घर पर ही खुद से काट व फोड़ लेते हैं। लेकिन ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। मस्से को काटने और फोड़ने के कारण मस्से के वायरस का शरीर के अन्य हिस्सों में भी जाने का खतरा होता है। जिससे और मस्से हो जाते हैं। कई बार तो मस्से का वायरस एक आदमी से दूसरे आदमी की त्वचा पर भी चला जाता है।
शरीर पर मस्से होना एक प्रकार का चर्मरोग माना जाता है। यह प्रायः सरसों अथवा मूँग के आकार से लेकर बेर तक के आकार का होता है।
मस्से विषाणु संक्रमण से पैदा होते हैं। प्रायः ‘मानव पेपिल्लोमैविरस’ नामक विषाणु की प्रजाति इसका कारण होती है। त्‍वचा पर पेपीलोमा वायरस के कारण छोटे, खुरदुरे कठोर पिंड बन जाते हैं जिसे मस्‍सा कहते हैं।
मस्‍से काले और भूरे रंग के होते हैं। मस्‍से 8 से 12 प्रकार के होते हैं। जिनमें से कुछ मस्से अपने-आप खत्म हो जाते हैं, लेकिन कुछ मस्‍से इलाज के बाद जाते हैं।
मस्‍से को काटने और फोड़ने के कारण मस्‍से का वायरस शरीर के अन्‍य हिस्‍सों में भी चला जाता है जिसके कारण मस्‍से हो जाते हैं। मस्से संक्रमण (छुआछूत) से हो सकते हैं और शरीर में वहाँ प्रवेश करते हैं जहाँ त्वचा कटी-फटी हो।

प्याज  से मस्से हटायें 

प्याज हर तरह से हमारे लिए फायदेमंद है। खाने से लेकर इसके रस को लगाने तक के फायदे हैं। मस्सों के लिए तो ये रामबाण है। मस्सों को हटाने के लिए लगातर बीस से तीस दिनों तक प्याज के रस को मस्सों में लगाएं। जब समय मिले तब प्याज को काटकर मस्सों पर रगड़ें। दिन में दो-तीन बार ऐसा करें। प्याज के रस से मस्सों का वायरस मर जाता है और मस्से जड़ से खत्म हो जाते हैं।

मस्सा को ठीक करने के घरेलू उपाय

सिरका का इस्तेमाल: सिरका के इस्तेमाल से मस्से के वायरस को आसानी से नष्ट किया जा सकता है। यह एसिड होने के कारण इसके संपर्क में आने वाले वायरस को मार देता है। इससे संक्रमित त्वचा जल जाती है और धीरे-धीरे मस्से गिरने लगते हैं। यह इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है।
नींबू का रस: साइट्रिक एसिड से भरपूर होने के कारण नींबू का रस मस्से के इलाज में कारगर होता है। HPV वायरस इस एसिड के संपर्क में आते ही नष्ट हो जाता है। इसके इलाज के बाद मस्से वाली जगह पर सीधे नींबू का रस नहीं लगा सकते हैं। इसे लगाने के लिए इसमें पानी मिलाया जाता है। पानी के साथ नींबू के रस को मस्से पर लगाने से वह ठीक हो जाते हैं।
एप्पल साइडर विनेगर: एप्पल साइडर विनेगर, एसिड की तरह मस्से पर कार्य करता है। यह एक एसिड का हल्का रूप है जो संक्रमित त्वचा के साथ मस्से को जला देता है। एसिड इसके संपर्क में आने वाले वायरस को मारने का काम करता है। इसे पानी के साथ मिलाकर उपयोग किया जाता है।
एलोवेरा: एलोवेरा जेल में मैलिक एसिड होता है, जो मस्से के इलाज में प्रभावशाली है। इसका एंटी वायरल, एंटी बैक्टीरियल और एंटी बायोटिक गुण मस्से की स्किन को सुखाने में मदद करता है। इसे लहसुन के साथ मिलाकर लगाने से मस्से जल्द ठीक हो जाते हैं।
बेकिंग सोडा: बेकिंग सोडा का एंटी इंफ्लेमेट्री और एंटीसेप्टिक गुण मस्से के इनफ्लेमेशन और दर्द को कम करने में मदद करता। इसमें एप्पल साइडर विनेगर मिलाकर लगाने से मस्से को जलाने में मदद मिलती है।
एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने से रोकने के तरीके:नियमित रूप से हाथ साफ करना या धोना।
दूसरे लोगों के मस्से को छूने से बचना।
मस्से को साफ, सूखा और कीटाणुओं रहित रखना।
शरीर के अन्य भागों में फैलने से रोकने के तरीके:मस्से को सूखा रखें।
शेविंग के समय मस्से पर रेजर का यूज न करें।
मस्से को ढक कर रखें।
मस्से को नोंचने या खंरोंचने से बचें।
प्रभावित त्वचा पर नेल फाइलर या पिकर जैसे उपकरण का उपयोग न करें।
सतह से व्यक्ति तक मस्से को फैलने से रोकने के तरीके:संक्रमित व्यक्ति के तौलिए और व्यक्तिगत वस्तुओं को शेयर न करें।
सार्वजनिक स्थानों जैसे जिम, पूल, लॉकर रूम में जूते पहनकर जाएं।
यदि किसी और के मस्से के साथ संपर्क हुआ है, तो उस जगह को तुरंत साफ करें।

मस्सा से बचाव-

अपनी डाइट में कुछ बदलाव करके मस्सा को होने से या बढ़ने से रोक सकते हैं:

क्या खाना चाहिए: 

सब्जियां जैसे, पालक, केला, ब्रोकली आदि सब्जियां विटामिन से भरपूर होती हैं जो वायरस से मुकाबले के लिए आपके इम्यून सिस्टम को शक्ति देती हैं। इम्यून सिस्टम को शक्ति देने के लिए और मस्सों को घटाने के लिए जामुन, टमाटर, चेरी और कद्दू आदि फलों का सेवन भी कर सकते हैं। इसके अलावा प्रोटीन युक्त आहार जैसे; मांस, मछली, मेवे और साबुत अनाज आदि मस्सों में लाभकारी होते हैं।

क्या नहीं खाना चाहिए:

 मस्सा होने पर रिफाइंड और प्रोसेस्ड आहार जैसे व्हाइट ब्रेड और पास्ता का सेवन करने से बचना चाहिए। ट्रांस फैट युक्त आहार जैसे; केक, कूकीज और डोनट को आहार में शामिल न करें। फास्ट फूड जैसे अनियन रिंग्स और फ्रैंच फ्राइज को खाने से बचें। इसके अलावा शक्कर की अधिक मात्रा वाले आहार न लें।

हार्ट अटैक से बचने के लिए कोलेस्ट्रोल कैसे कम करें? How to reduce cholestrol ?

 



कोलेस्ट्रॉल एक तरह का फैट होता है जो खून में मौजूद होता है। कोलेस्ट्रॉल शरीर के अंदर बहुत से कार्यों के लिए जिम्मेदार होता है, जैसे सेल्स को लचीला बनाए रखने के लिए, और विटामिन डी के संशलेषण आदि के लिए। ज्ञात हो कि दो तरह के कोलेस्ट्रॉल होते हैं एक होता है एलडीएल और दूसरा होता है एचडीएल।
हाई कोलेस्ट्रॉल की वजह से तमाम लोग हार्ट अटैक का शिकार हो रहे हैं. कोलेस्ट्रॉल हमारे ब्लड में पाया जाने वाला एक वैक्स जैसा पदार्थ होता है, जिसकी मात्रा बढ़ने से नुकसान होना शुरू हो जाता है. आज के जमाने में कम उम्र के लोग भी हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या से जूझ रहे हैं. घंटों स्क्रीन पर बैठकर काम करना, देर रात तक जागना, जंक फूड का सेवन और फिजिकल एक्टिविटी न करने से कोलेस्ट्रॉल की समस्या तेजी से फैल रही है. इससे बचने के लिए लोग कई तरह की दवाओं का सहारा भी लेते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि आयुर्वेद के कुछ नुस्खे अपनाकर कोलेस्ट्रॉल की समस्या को आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है. जब कोलेस्ट्रॉल लेवल कंट्रोल रहता है, तो हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है.
एनसीबीआई (NCBI) के अनुसार हाल के अध्ययनों से पता चला है कि भारत में 25-30% शहरी और 15-20% ग्रामीण लोग हाई कोलेस्ट्रॉल की परेशानी से पीड़ित हैं। क्या होता है कोलेस्ट्रॉल की बीमारी? कोलेस्ट्रॉल आपके रक्त में पाया जाने वाला एक मोम जैसा पदार्थ है। स्वस्थ कोशिकाओं के निर्माण के लिए आपके शरीर को कोलेस्ट्रॉल की आवश्यकता होती है, लेकिन कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर आपके हृदय रोग के जोखिम को बढ़ा सकता है।
हाई कोलेस्ट्रॉल की शिकायत अनुवांशिक कारको के वजह से भी हो सकती है। लेकिन यह अक्सर अस्वास्थ्यकर जीवनशैली का परिणाम होता है। कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर आपके हृदय रोग के जोखिम को बढ़ा सकता है। दवाईंयों बजाय आप इसे कुछ प्राकृतिक चीजों की मदद से भी ठीक कर सकते हैं।
कैसे कंट्रोल करें कोलेस्ट्रॉल? वैसे तो इसे कंट्रोल करने के लिए कई तरह की दवाईंया बाजार में उपलब्ध हैं लेकिन आप इसे कुछ प्राकृतिक चीजों की मदद से भी ठीक कर सकते हैं। ऐसा ही एक औषधीय पौधा है धनिया। इस बात की पुष्टि कई अध्ययनों में भी की गई है। आइए जानते हैं।

कैसे पता करें बढ़ रहा है कोलेस्ट्रॉल

रक्त में कोलेस्ट्रॉल के उच्च स्तर के कोई स्पष्ट लक्षण नहीं होते हैं। लेकिन यह उन स्थितियों के लिए आपके जोखिम को बढ़ा सकता है जिनमें लक्षण होते हैं, जैसे- एनजाइना (हृदय रोग के कारण सीने में दर्द), उच्च रक्तचाप, स्ट्रोक आदि।

​कोलेस्ट्रॉल में हरा धनिया है फायदेमंद

एक स्टडी के अनुसार, कुछ जानवरों और टेस्ट-ट्यूब अध्ययनों से पता चलता है कि धनिया हृदय रोग के जोखिम वाले कारकों को कम कर सकता है, जैसे उच्च रक्तचाप और एलडीएल (खराब) कोलेस्ट्रॉल का स्तर। एक्सपर्ट बताते हैं कि अन्य मसालों के साथ बड़ी मात्रा में धनिया का सेवन करने वाली आबादी में हृदय रोग की दर कम होती है।
इसमें एंटी-माइक्रोबियल व एंटीऑक्सीडेंट समेत एंटी इंफ्लेमेटरी (सूजन कम करने वाला), एंटी-डिस्लिपिडेमिक (रक्त में लिपिड्स कम करने वाला), एंटी-हाइपरटेंसिव (रक्तचाप कम करने वाला), न्यूरोप्रोटेक्टिव (तंत्रिका को सुरक्षा देने वाला) और मूत्रवर्धक जैसे गुण होते हैं। साथही, यह मधुमेह, मिर्गी, चिंता और अवसाद दूर करने और शरीर से टॉक्सिक पदार्थों की सफाई करने का काम भी करते हैं।

​कैसे करें धनिया का सेवन

धनिया को अपने खाने में शामिल करने से आप कोलेस्ट्रॉल की समस्या का समाधान कर सकते हैं। लोग अक्सर धनिया के पत्तों का सेवन शरबत, चटनी, सलाद के रूप में करते हैं। वहीं, इसके बीजों को भी आप पानी में फूलाकर और छानकर पी सकते हैं।

धनिया को नियमित पर थोड़े मात्रा में खाएं। एक स्टडी के अनुसार ज्यादा धनिया खाने से स्वास्थ पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यह लीवर, एलर्जी, दाने, खुजली से लेकर त्वचा कैंसर तक का खतरा बढ़ा सकती है। इसेक अलावा धनिया ब्लड प्रेशर को कम करने का काम करती है जिससे निम्न ब्लड प्रेशर को लोगों को परेशानी हो सकती है।
एलडीएल कोलेस्ट्रॉल रक्त धमनियों में बाधा उत्पन्न कर हृदय को नुकसान पहुँचाता है। जबकि एचडीएल कोलेस्ट्रॉल आपके दिल का ख्याल रखने का कार्य करता है। कोलेस्ट्रॉल बढ़ने का कारण केवल खराब जीवनशैली या बेकार खान पान ही नहीं. बल्कि इसके लिए फैमिली हिस्ट्री भी जिम्मेदार होती है। लेकिन स्वस्थ्य भोजन, हल्की एक्सरसाइज और जीवनशैली में बदलाव के जरिए इससे राहत पाई जा सकती है।

हल्दी है गुणकारी

यह बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करने का कार्य भी करती है। दरअसल हल्दी के अंदर पाए जाने वाले तत्व रक्त की धमनियों से कोलेस्ट्ऱॉल हटाने का कार्य करते हैं। इसके लिए आप चाहें तो हल्दी वाला दूध पी सकते हैं। या फिर आप सुबह गर्म पानी के अंदर आधा चम्मच हल्दी पाउडर डालकर सेवन कर सकते हैं।


कोलेस्ट्रोल घटाने के लिए आयुर्वेद के अचूक नुस्खे !

अलसी के बीज पोषक तत्वों का खजाना होते हैं. इनमें भरपूर मात्रा में फाइबर, प्रोटीन, हेल्दी फैट्स, आयरन और विटामिन की मात्रा होती है. जो लोग हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या से जूझ रहे हैं, वे अलसी के बीजों को पीसकर चूर्ण बना लें. फिर इस चूर्ण को एक गिलास गुनगुने पानी के साथ एक चम्मच लें. रोज़ ऐसा करने से कुछ ही सप्ताह में कोलेस्ट्रॉल लेवल कंट्रोल हो जाएगा. खास बात यह है कि इसमें फाइबर की भरपूर मात्रा होती है, इसलिए जिन लोगों को डाइजेशन की समस्या है, उन्हें दोगुना फायदा मिलेगा.

अलसी के बीज (Flaxseed) और दालचीनी 

आयुर्वेद में अलसी के बीज (Flaxseed) और दालचीनी (Cinnamon) को कोलेस्ट्रॉल घटाने में सबसे कारगर माना गया है. इन चीजों का सेवन सही तरीके से किया जाए, तो कोलेस्ट्रोल कम करने के साथ कई दिक्कतों से राहत मिल जाएगी. अलसी के बीज पोषक तत्वों का खजाना होते हैं. इनमें भरपूर मात्रा में फाइबर, प्रोटीन, हेल्दी फैट्स, आयरन और विटामिन की मात्रा होती है. जो लोग हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या से जूझ रहे हैं, वे अलसी के बीजों को पीसकर चूर्ण बना लें. फिर इस चूर्ण को एक गिलास गुनगुने पानी के साथ एक चम्मच लें. रोज़ ऐसा करने से कुछ ही सप्ताह में कोलेस्ट्रॉल लेवल कंट्रोल हो जाएगा. खास बात यह है कि इसमें फाइबर की भरपूर मात्रा होती है, इसलिए जिन लोगों को डाइजेशन की समस्या है, उन्हें दोगुना फायदा मिलेगा.

कैसे होता है कोलेस्ट्रॉल कम

1-इंफ्लेमेटरी फूड्स का सेवन न करें

2- ट्रांस-फैट वाले फूड्स
3- मांस और ज्यादा तली-भुनी चीजों के साथ तेल में पकी हुई सब्जियों के सेवन से
4-शराब और धूम्रपान का सेवन कम करें।
5-अच्छी नींद लें
6- वजन कम करें
7-हर दिन कम से कम 5 किमी पैदल चलें।
8-नियमित व्यायाम के साथ-साथ हेल्दी डाइट लें

दवा से कोलेस्ट्रॉल कितने दिन में कम

कोलेस्ट्रॉल को कम करने वाली दवा का नाम है स्टैटिन्स, जिसे आमतौर पर कोलेस्ट्रॉल को कम करने में 4 से 6 सप्ताह तक का वक्त लगता है। अगर आपका एलडीएल कोलेस्ट्रॉल बहुत ज्यादा है यानि 190 तो आपको स्टैटिन की हाई डोज देने की जरूरत होती है ताकि आपका कोलेस्ट्रॉल लेवल तेजी से कम हो सके।

कैसे होता है कोलेस्ट्रॉल कम

अगर आपको पहले से ही कोई बीमारी है तो कोलेस्ट्रॉल कम होने में वक्त लग सकता है। डायबिटीज, हाइपरटेंशन, ह्रदय रोग जैसी क्रॉनिक स्थिति से जूझ रहे लोगों को लंबे वक्त तक दवा खानी पड़ सकती है। जब किसी रोगी को हाई कोलेस्ट्रॉल के लिए दवा लिख दी जाती है को उसे आमतौर पर लंबे वक्त तक दवा का सेवन करने की जरूरत है। हालांकि डॉक्टर की सलाह के बाद दवा जरूर बंद की जा सकती है। हाई कोलेस्ट्रॉल के मरीजों को कुछ सावधानियां बरतने की जरूरत है जैसेः

इंफ्लेमेटरी फूड्स का सेवन न करें
ट्रांस-फैट वाले फूड्स
3- मांस और ज्यादा तली-भुनी चीजों के साथ तेल में पकी हुई सब्जियों के सेवन से
4-शराब और धूम्रपान का सेवन कम करें।
5-अच्छी नींद लें
6- वजन कम करें
7-हर दिन कम से कम 5 किमी पैदल चलें।
8-नियमित व्यायाम के साथ-साथ हेल्दी डाइट लें
कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करने के लिए गर्म पानी फायदेमंद माना जाता है, लेकिन गरम पानी में इन चीजों को मिलाकर पीने से और भी ज्यादा फायदा पहुंचता है
जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ती है तो कई बीमारियों का जोखिम भी बढ़ाता है. इससे हार्ट अटैक, डायबिटीज और ब्लड प्रेशर भी बढ़ सकता है. इतने में तो आप समझ ही गए होंगे कि कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करके रखना कितना जरूरी है. सही खानपान और हेल्दी लाइफ़स्टाइल से आप कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल कर सकते हैं. इसे दूर करने में गर्म पानी के साथ-साथ हमारे किचन में मौजूद कई सारी चीजें भी काम आ सकती है. आइए जानते हैं कोलेस्ट्रॉल घटाने के लिए किस तरह से इन चीजों का सेवन करना चाहिए.
लहसुन औऱ गर्म पानी-कोलेस्ट्रॉल को दूर करने के लिए लहसुन और गर्म पानी का सेवन किया जा सकता है. ये हाई क्वालिटी वालों की समस्याओं को दूर करने के साथ-साथ हार्ट डिजीज से भी आप को सुरक्षित रख सकता है. आप एक गिलास पानी में कुछ लहसुन की कलियों को डालकर उसे अच्छी तरह से उबाल लें, इसके बाद इसका सेवन करें. इससे आपको काफी मदद मिलेगी.

दालचीनी, शहद औऱ गर्म पानी-

गर्म पानी में आप दालचीनी और शहद को मिक्स करके पी सकते हैं. इससे भी कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कंट्रोल करने में मदद मिल सकती है. आधा लीटर गुनगुना पानी ले और इसमें दालचीनी पाउडर और शहद को मिक्स कर दें और फिर इसे पीएं इससे कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल होना मुमकिन है.

हल्दी और गर्म पानी-

हल्दी एंटीसेप्टिक और एंटीबैक्टीरियल गुणों के लिए जाना जाता है.इससे सेहत को कई फायदे मिल सकते हैं. आप कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए एक गिलास गुनगुने पानी में हल्दी मिक्स करके पिएं. इससे कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल होगा,आपकी इम्यूनिटी भी बूस्ट होगी,पाचन शक्ति में भी सुधार होगा.

शहद नींबू औऱ गर्म पानी-

शहद नींबू डालकर भी गर्म पानी पीने से कोलेस्ट्रॉल घटाने में मदद मिल सकती है.दरअसल शहर में एंटीबैक्टीरियल गुण पाया जाता है जिससे शरीर से कई बीमारियों को दूर रख सकता है. नींबू में विटामिन सी होता है, जिससे आपकी इम्यूनिटी बूस्ट होती है.

22.8.23

रोगों का इलाज फूलो-पत्तियों से : क्या है तरीका?

 




भारतीय आयुर्वेद (Ayurveda) में विभिन्न प्राकर के फूलों का इस्तेमाल बहुत पहले से ही होता रहा है. कहते हैं कि कुछ खास प्रकार के फूल (Special Flowers) बीमारियों को ठीक करने में सक्षम होते हैं. इन फूलों का इस्तेमाल औषधि के रूप में किया जाता है. फूल हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग हैं और यह न केवल आपके आसपास की सुंदरता को बढ़ाते हैं बल्कि पोषण और औषधीय उपयोग के लिए भी इस्तेमाल होते हैं. सुंदर से दिखने वाले कई तरह के फूलों में त्वचा की समस्याओं से लेकर कई तरह के संक्रमण (Infection) तक को ठीक करने की शक्ति होती है. आपको बता दें कि कुंभी फूल, गुलाब और केसर के फूल का औषधीय प्रयोजनों के लिए इस्‍तेमाल किया जाता है. इनका सेवन पंखुड़ियों के रूप में या जूस और काढ़े के रूप में भी किया जा सकता है. इसे टिंचर के रूप में शरीर पर लगाया जा सकता है. यदि आपको घाव हो जाए या कहीं चोट लग जाए तो आपको गेंदे के फूल का रस वहां लगाना चाहिए। ये एंटीसेप्टिक होता है और घाव भरने में करागर होता है। फोड़े-फुंसी हो जाए तो गेंदे कि पत्तियों को पीस कर वहां लगा दें।
गुलाब स्कर्वी के उपचार और गुर्दे से जुड़ी समस्याओं पर बेहद कारगर होता है। गुलाब का फूल विटामिन सी की कमी को पूरा करने में भी सहायक है। इसे आप किसी भी रूप में लें ये आपके शरीर को डिटॉक्स भी करता है।
गुलाब की कलियों का अर्क यूरिन से जुड़ी बीमारियों को दूर करता है। साथ ही पेट की जलन को शांत भी करता है।
गुलाब की पंखुड़ियां को पीस कर अगर पीएं या शरीर पर लगा लें तो गर्मी के कारण हो रहे सिर दर्द और बुखार को ठीक किया जा सकता है। साथ ही ये झाइयों को दूर करने में भी कारगर है।

पुष्पों के औषधीय प्रयोग-

पुष्प शीत-गरमी-वर्षा पूरे वर्ष रंग-बिरंगे, परस्पर प्रतिस्पर्धा करते हुए, विभिन्न आकार-प्रकार में दृष्टिगोचर होते हैं। फूलों को शरीर पर धारण करने से शोभा, कांति, सौंदर्य और श्री की वृद्धि होती है। इनको प्राचीनकाल से रानी-महारानी अपनी त्वचा को कोमल बनाने में तथा शृंगार में उपयोग करती रही हैं। जंगली आदिवासी आभूषण बनाने तथा केश सज्जा में करते हैं। फूलों की सुगंध रोग नाशक भी है। इनके सुगंधित परमाणु वातावरण में घुलकर नासिका की झिल्ली में पहुँचकर अपनी सुगंध का एहसास कराते हैं, जिससे मस्तिष्क के अलग-अलग हिस्सों पर प्रभाव दिखाकर उत्तेजना-सी अनुभव कराते हैं। जिनका मस्तिष्क, हृदय, आँख, कान, पाचन क्रिया, रति क्रिया पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। थकान को तुरंत दूर करते हैं। इसकी सुगंध से की गयी उपचार-प्रणाली को ‘ऐरोमा थैरेपी’ कहते हैं। पुष्पों के कुछ औषधीय प्रयोग निम्न हैं-


कमल-

कमल और लक्ष्मी का संबंध अविभाज्य है। कमल सृष्टि की वृद्धि का द्योतक है। इसके पराग से मधुमक्खी शहद तो बनाती ही है, इसके फूलों के गुलकंद का प्रत्येक प्रकार के रोगों में, कब्ज निवारण के लिए उपयोग किया जाता है। फूल के अदंर हरे रंग के दाने-से निकलते हैं जिन्हें भूनकर मखाने बनाये जाते हैं, लेकिन उनको कच्चा छीलकर खाना स्तंभन में उपनयोगी होता है। इसका गुण शीत वीर्य है। इसका प्रयोग सबसे अधिक अंजन की भांति नेत्रों में ज्योति बढ़ाने के लिए, शहद में मिलाकर किया जाता है। इसी कारण आँख को ‘कमल नयन’ भी कहते हैं। पंखुड़ियों को पीसकर उबटन में मिलाकर मलने से चेहरे की सुंदरता बढ़ती है।


केवड़ा-

इसकी गंध कस्तूरी-जैसी मादक होती है। इसके पुष्प दुर्गन्धनाशक मदनोन्मादक हैं। इसका तेल उत्तेजक श्वास विकार में लाभकारी है। सिरदर्द और गठिया में इसका इत्र उपयोगी है। इसकी मंजरी का उपयोग पानी में उबालकर कुष्ठ, चेचक, खुजली, हृदय रोगों में स्नान करके किया जा सकता है। इसका अर्क पानी में डालकर पीने से सिरदर्द तथा थकान दूर होती है। बुखार में एक बूँद देने से पसीना बाहर आता है। इत्र की दो बूँद कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है।


गुलाब-

आशिक मिजाजी, प्रेम का प्रतीक गुलाब है। इसका गुलकंद रेचक है, जो पेट व आँतों की गरमी शांत कर हृदय को प्रसन्नता प्रदान करता है। गुलाब जल से आँखें धोने से आँखों की लाली, सूजन कम होती है। इसका इत्र कामोत्तेजक है। इसका तेल मस्तिष्क को ठंडा रखता है। गुलाब का अर्क मिठाइयों में प्रयोग किया जाता है। गर्मी में इसका प्रयोग शीतवर्द्धक है।


चंपा-

इसके फूलों को पीसकर कुष्ठ रोग के घाव में लगाया जा सकता है। इसका अर्क रक्त के कृमि को नष्ट करता है। फूलों को सुखाकर चूर्ण खुजली में उपयोगी है। ज्वरहर, मूत्रल, नेत्र ज्योति वर्द्धक तथा पुरुषों को रतिदायक उत्तेजना प्रदान करता है। कहावत है ‘चंपा एक चमेली सौ’ अर्थात सौ चमेली पुष्पों के बराबर एक चंपा पुष्प होता है।


सौंफ (शतपुष्पा)-

सौंफ के पुष्पों को पानी में डालकर उबालें, साथ में एक बड़ी इलायची तथा कुछ पोदीना के पत्ते भी लें। अच्छा यह रहेगा कि मिट्टी के बर्तन में उबालें। पानी को ठंडा करके दाँत निकलने वाले बच्चे या छोटे बच्चे जो गर्मी से पीड़ित हों, एक-एक चम्मच कई बार दें, तो उनको पेट में पीड़ा इत्यादि शांत होगी तथा दाँत भी ठीक प्रकार निकलेंगे।


धतूरा-

यह मादक तथा विषैला पौधा है, जिनको उन्माद रोग के कारण अनिद्रा रोग हो, उन्हें फूलों को एकत्रित करके बारीक कपड़े में बाँधकर सिरहाने रखने से निद्रा आना शुरू हो जाती है।


गैंदा-

मलेरिया के मच्छरों का प्रकोप सारे देश में है, लेकिन इनकी खेती यदि गंदे नालों और घर के आसपास की जाए, तो इसकी गंध से मच्छर दूर भागते हैं। यह जंगली फूलों वाला पौधा है, जो आसानी से एक बार बोने पर लग जाता है। लीवर की सूजन, पथरी-नाशक, चर्मरोगों में इसका प्रयोग किया जा सकता है।


बेला-

अत्यधिक सुगंध का गर्मी में अधिकता से फूलने वाला पौधा है, लेकिन आजकल घरों में इसे कम लगाते हैं। गर्मी में इसके हार या पुष्पों को अपने पास रखने से पसीने में गंध नहीं आती है। महिलाएँ इसको केश-सज्जा में बहुत प्रयोग करती हैं। इसकी सुगंध प्रदाह नाशक है। स्त्रियों के गर्भाशय में उत्तेजना को प्रदान करने वाला एकमात्र पुष्प है, रतिदायक है। इसकी कलियाँ चबाने से मासिक खुलकर आता है।


रात की रानी-

इसकी गंध इतनी तीव्र होती है कि पड़ोसियों तक को लुभायमान कर देती है। यह सायं ७ से ११ बजे रात्रि तक खुशबू अधिक देता है। इसके बाद सुप्त हो जाता है। इसकी गंध में मच्छर नहीं आते। इसकी गंध मादकता और निद्रादायक है।


सूरजमुखी-

विटामिन ए/डी होता है। सूर्य की रोशनी न मिलने के कारण होने वाले रोगों को रोकता है। इसकी खेती व्यापारिक स्तर पर लाभकर है। इसका तेल हृदय रोगों में कोलेस्ट्रोल को कम करता है।


चमेली-

चर्म रोगों की औषधि, पायरिया, दंतशूल, घाव, नेत्ररोगों और फोड़ों-फुंसियों में इसका तेल बनाकर उपयोग किया जाता है। इसका तेल बाजीकरण में मालिश के योग्य है। शरीर में रक्त संचार की मात्रा बढ़ाकर स्फूर्तिदायक बन जाता है। इसके पत्ते चबाने से मुँह के छाले तुरंत दूर होते हैं। इसकी माला रति इच्छा बढ़ाने में सहायक है।


केसर-

मन को प्रसन्न करता है। चेहरे को कांतिवान बनाता है। रज दोषों का नाशक, शक्तिवर्द्धक, वमन को रोककर वात, पित्त, कफ (त्रिदोषों का) नाशक है। तंत्रिकाओं में व्याप्त उद्विगन्ता एवं तनाव को केसर शांत रखता है, इसलिए इसे प्रकृति प्रदत्त ‘ट्रैंकुलाइजर’ भी कहा जाता है। यह काम तथा रति में उद्दीपन का कार्य करता है, अतः दूध या पान के साथ सेवन योग्य है।


अशोक-

यह मदन वृक्ष भी कहलाता है। इसके फूल, छाल, पत्तियों का स्त्रियों की औषधि में उपयोग किया जा सकता है। अशोक का अर्थ है जिसको पाकर शोक न रहे। छाल का आसव बनाकर पीने से स्त्रियों की अधिकांश बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं।


ढाक (पलाश)-

इसको अप्रतिम सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि इसके गुच्छेदार फूल बहुत दूर से ही आकर्षित करते हैं। इसी आकर्षण के कारण वन की ज्योति भी कहते हैं। इसका चूर्ण पेट के किसी भी प्रकार के कृमि का हनन करने में सहायक है। इसके पुष्पों को पानी के साथ पीसकर लुगदी बनाकर पेडू पर रखने से पथरी के कारण दर्द होने या मूत्र न उतरने पर मूत्रल का कार्य करता है।


गुड़हल (जवा)-

गणेश एवं काली देवी का प्रिय है। इसका पूर्ण संबंध गर्भाशय से है। ऋतु काल के बाद यदि फूल को घी में भूनकर महिलाएँ सेवन करें, तो उन्हें ‘गर्भ-निरोध’ हो सकता है। मुँह के छाले दूर हो जाते हैं। इसके फूलों को पीसकर बालों में लेप लगाने से बालों का गंजापन मिटता है। यह उन्माद को दूर करने वाला एकमात्र पुष्प है। शीतवर्द्धक, वाजीकारक, रक्तशोधक, सूजाक रोग में गुलकंद या शरबत बनाकर दिया जा सकता है। शरबत हृदय को फूल की भाँति प्रफुल्लित करने वाला रुचिकर है।

गुलमोहर से इलाज 

आयुर्वेद में असरदार औषधि माने जाने वाले गुलमोहर में तमाम औषधीय गुण पाए जाते हैं। यही कारण है कि इनका इस्तेमाल पुराने समय से लोग बीमारियों के इलाज में करते आ रहे हैं। गुलमोहर के इस्तेमाल से बवासीर की बीमारी और गठिया जैसी गंभीर समस्या का भी इलाज किया जाता है। इसकी पत्तियों और फूल में तमाम औषधीय गुण मौजूद होते हैं। खासतौर से इसमें एंटी-डायबिटिक, एंटी-बैक्टीरियल, एंटीऑक्सीडेंट्स, एंटी-माइक्रोबियल, एंटी-डायरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं जो शरीर के लिए कई तरह से उपयोगी होते हैं। गुलमोहर के फूल, फल, पत्तियों और तने में ये औषधीय गुण मौजूद होते हैं।फूल - एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीमाइरियल, एंटीमाइक्रोबियल, एंटीऑक्सिडेंट, कार्डियो-प्रोटेक्टिव, गैस्ट्रो-प्रोटेक्टिव और घाव भरने के औषधीय गुण पाए जाते हैं।
पत्तियां - गुलमोहर की पत्तियों में अतिसार-रोधी, हेपेटोप्रोटेक्शन, फ्लेवोनोइड्स और एंटी डायबिटिक गुण मौजूद होते हैं।
तने - गुलमोहर के तने की छाल में खून को बहने से रोकने के गुण, मूत्र और सूजन से जुड़ी समस्याओं को खत्म करने के गुण पाए जाते हैं।
गुलमोहर के पेड़ तो तरह के होते हैं, एक पीला गुलमोहर और दूसरा लाल गुलमोहर। दोनों तरह के पेड़ के फूल और पत्तियों का औषधीय इस्तेमाल किया जाता है। इसके इस्तेमाल से गठिया, बवासीर जैसी बीमारियों समेत स्किन और बालों से जुड़ी कई समस्याएं भी दूर की जाती हैं। गुलमोहर के पत्तों का इस्तेमाल बालों की समस्या में बहुत फायदेमंद माना जाता है। आप इसके इस्तेमाल से बाल झड़ने की समस्या में भी फायदा पा सकते हैं। आइये जानते हैं गुलमोहर के फायदे और आयुर्वेद के मुताबिक इसके इस्तेमाल के तरीके के बारे में।
गुलमोहर फूल को सुखाकर इसका चूर्ण बना लें। अब रोजाना इसके 2 से 4 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ मिलकर खाएं। ऐसा करने से पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द (Menstrual Cramp) और इससे जुड़ी अन्य समस्याओं में फायदा होगा।
 बाल झड़ने की समस्या में गुलमोहर की पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है। गुलमोहर के पत्तों को सुखाकर इसे पीसकर चूर्ण बना लें। अब इसे गर्म पानी में मि
अगर किसी को भी दस्त या डायरिया की समस्या हो रही है तो उसे गुलमोहर के तने की छाल का सेवन करना चाहिए। आप गुलमोहर के पेड़ के तने की छाल का चूर्ण बना लें और इसका 2 ग्राम चूर्ण डायरिया की समस्या में खाएं। पेचिश और दस्त या डायरिया में इसके सेवन से बहुत फायदा मिलता है।
 पीले गुलमोहर के पत्तों को पीसकर गठिया की दर्द वाली जगह पर लगाने से दर्द की समस्या से छुटकारा मिलता है। गठिया की समस्या में आप इसके पत्तों का का काढ़ा बनाकर उसका भाप दें, इससे भी दर्द से आराम मिलता है।
बवासीर (Piles) की समस्या में गुलमोहर का इस्तेमाल बहुत फायदेमंद माना जाता है। बवासीर की समस्या होने पर आप इसके पत्तों का इस्तेमाल कर सकते हैं। पीले गुलमोहर के पत्ते को दूध के साथ पीसकर बवासीर के मस्सों पर लगाएं। ऐसा करने से दर्द और बवासीर की समस्या से आराम मिलता है।

शंखपुष्पी (विष्णुकांत)-

गर्मियों में इसकी उत्पत्ति अधिक होती है। यह घास की तरह है। फूल-पत्ते तथा डंठल तीनों को उखाड़कर पीसकर पानी में मिलाकर छान लें, इसमें शहद या मिश्री मिलाकर पीने से शाम तक मस्तिष्क में ताजगी रहती है। कार्यालयों में बैठकर काम करने पर सुस्ती नहीं आएगी इसका सेवन विद्यार्थियों को अवश्य करना चाहिए।


बबूल (कीकर)-

फूलों को पीसकर सिर में लगाने से सिरदर्द गायब हो जाता है। इसका लेप दाद और एग्जिमा पर लगाने से चर्म रोग दूर होता है। इसके अर्क के सेवन से रक्त विकार दूर होते हैं। यह खाँसी और श्वास रोग में लाभकारी है। इसके कुल्ले दंतक्षय को रोकते हैं।


नीम-

फूलों को पीसकर लुग्दी बनाकर फोड़े-फुंसी पर रखने से जलन व गर्मी दूर होती है। इनको शरीर पर मलकर स्नान करने से दाद दूर हो जाता है। फूलों को पीसकर पानी में घोलकर छान दें। इसमें शहद मिलाकर पीयें, तो वजन कम होता है तथा रक्त साफ होता है। यह संक्रामक रोगों से रक्षा कारक है।


लौंग-

आमाशय और आँतों में रहने वाले उन सूक्ष्म कीटाणुओं को नष्ट करते हैं जिसके कारण मनुष्य का पेट फूलता है। रक्त के श्वेत कणों में वृद्धि करके शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति की वृद्धि करते हैं, शरीर तथा मुँह की दुर्गंध का नाश करती हैं। शरीर के किसी भी हिस्से पर घिसकर लगाने से दर्दनाशक का काम करते हैं। दाढ़ या दंतशूल में मुख में डालकर चूसा जाता है। यज्ञ द्वारा इसका प्रयोग करने से शरीर में अनावश्यक जमा तत्वों को पसीने द्वारा बाहर निकाल देते हैं।


जूही-

फूलों का चूर्ण या गुलकंद अम्लपित्त को नष्ट कर पेट के अल्सर व छाले को दूर करता है। इसके निरंतर सानिध्य में रहने से क्षय रोग नहीं होता।


माधवी-

चर्म रोगों के निवारण के लिए इसके चूर्ण का लेप किया जाता है। गठिया रोग में प्रातःकाल फूलों को चबाने से आराम मिलता है। इसके फूल श्वास रोग भी हरते हैं।


कुसुम-

इस फूल की कलियाँ मासिक धर्म के बाद खाने से गर्भ निरोध होते देखा गया है।


हरसिंगार (पारिजात)-
गठिया रोगों का नाशक, इसका लेप चेहरे की कांति को बढ़ाता है। इसकी सुगंध ही रात्रि को मादकता प्रदान करती है।

आक-

इसका फूल कफ नाशक है। प्रदाह कारक भी है। यदि पीलिया में पान में रखकर एक या दो कली तीन दिन तक दी जाए, तो काफी हद तक आराम होगा।

गुड़हल का फूल-


गुड़हल का फूल सिर्फ देखने में सुंदर नहीं है बल्कि इसके सेहत को अनगिनत फायदे मिलते हैं। एक अध्ययन में पाया गया है कि इस फूल का रस ब्रेस्ट कैंसर के इलाज में सहायक हो सकता है।
ब्रेस्ट कैंसर का घरेलू इलाज? ब्रेस्ट कैंसर के कई लक्षण हैं और लक्षणों की गंभीरता कम करने के लिए आप दवाओं के साथ कुछ घरेलू या प्राकृतिक उपचार भी आजमा सकते हैं। ब्रेस्ट कैंसर का एक जबरदस्त प्राकृतिक उपचार गुड़हल का फूल भी है
शोधकर्ताओं का मानना है कि नेचुरल चीजें स्वास्थ्य पर साइड इफेक्ट्स नहीं डालती हैं। गुड़हल के फूल का रस लंबे समय तक खपत के लिए सुरक्षित है और इसे औषधीय रूप से सक्रिय माना गया है जिसमें कई बायोएक्टिव यौगिक शामिल हैं, जो कैंसर में कई कमजोरियों को निशाना बना सकते हैं।

कदंब-

पार्वती एवं कृष्ण प्रिय वृक्ष है। रसिक लोगों का मदन वृक्ष यही कहलाता है। कदंब वृक्ष पुराण वृक्ष है। इसको कल्प वृक्ष की संज्ञा भी प्राप्त है। यह कामोत्तेजक वृक्ष है। गाय की बीमारी में इसकी फूल-पत्ती वाली टहनी लेकर गौशाला में लगा देने से बीमारी दूर होती है। मदिरा या वारुणी बनाने में इसका प्रयोग है। वर्षा ऋतु में पल्लवित होने वाला गोपी प्रिय वृक्ष है जिसकी वृंदावन में बहुतायत है।

गुलमोहर के पेड़, फूलों की वजह से देखने में बहुत खूबसूरत लगते हैं। भारत में सबसे ज्यादा उगाए जाने वाले सबसे पुराने पेड़ों में से एक गुलमोहर है। गुलमोहर को डेलोनिक्स रेजिया, रॉयल पॉइंसियाना, फ्लेम ट्री या फायर ट्री के नाम से भी जाना जाता है। आयुर्वेद में गुलमोहर के फूल को काफी असरदार औषधि माना जाता है और इसके पेड़ की छाल, पत्तियां और फल को भी औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। गुलमोहर के पेड़ में फूल अप्रैल और मई के महीने में लगते हैं और नवंबर के आसपास इसकी पत्तियां पीली होकर गिर जाती हैं। कई आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने में भी गुलमोहर के फूल, तने, पत्तियों और फल का इस्तेमाल किया जाता है। गुलमोहर के इस्तेमाल से आप कई बीमारियों को दूर कर सकते हैं। आयुर्वेद में गुलमोहर के औषधीय इस्तेमाल के बारे में विस्तार से बताया गया है, जिसका इस्तेमाल लोग पुराने समय से करते आ रहे हैं।

कचनार-

इसकी कली शरद ऋतु में आती है तथा इसका उपयोग सब्जी व अचार बनाने हेतु होता है। इसकी कलियाँ बार-बार मल त्याग की प्रवृत्ति को रोकती हैं। छाल एवं फूल को जल के साथ मिलाकर पुलटिस तैयार की जाती है, जो जले घाव एवं फोड़े के उपचार में उपयोगी है।


शिरीष-

यह जंगली, तेज सुगंध वाला वृक्ष है। इसकी सुगंध जब तेज हवा के साथ आती है, तो आदमी मस्त-सा हो जाता है। खुजली में फूल पीसकर लगाना चाहिए, शिरीष के फूलों के काढ़े से नेत्र धोने से किसी भी प्रकार के विकारों को लाभ मिलेगा।


नागकेशर-

यह कौंकण और गोवा में होता है। यह खुजली नाशक है। यह लौंग-जैसी लंबी डंठी में लगा रहता है। इसके (फूलों) का चूर्ण बनाकर मक्खन में साथ या दही के साथ खाने से रक्तार्श में लाभ होता है। इसका चूर्ण गर्भ धारण में भी सहायक है।


मौलसिरी (बकुल)-

इसका प्रसिद्ध नाम मौलसिरी है। आदिवासी स्त्रियाँ इसका प्रयोग श्रृंगार में फूलों के आभूषण बनाकर प्रयोग करती हैं। इसके पुष्प तेल में मिलाकर इत्र बनाते हैं। इसके फूलों का चूर्ण बनाकर त्वचा पर लेप करने से त्वचा अधिक कोमल हो जाती है। इसके फूलों का शर्बत स्त्रियों के बाँझपन को दूर कर सकने में समर्थ है।


अमलतास-

ग्रीष्म में फूलने वाला गहरे पीले रंग के गुच्छेदार पुष्पों का पेड़ दूर से देखने में ही आँखों को प्रिय लगता है। फूलों का गुलकंद बनाकर खाने से कब्ज दूर होता है। लेकिन अधिक मात्रा में सेवन करने से दस्तावर, जी मिचलाना एवं पेट में ऐंठन उत्पन्न करता है।

अनार-

शरीर में पित्ती होने पर, अनार के फूलों का रस मिश्री मिलाकर पीना चाहिए। मुँह के छालों में फूल रखकर चूसना चाहिए। आँख आने पर कली का रस आँख में डालना चाहिए।
इन फूलों के पौधों की भीतरी कोशिकाओं में विशेष प्रकार के प्रदव्यी झिल्लियों के आवरण वाले कण कहलाते हैं इन्हें लवक (प्लास्टिड्स) कहते हैं। यह कण जीवित रहते हैं, जब तक फूलों का रंग समाप्त न हो जाए। यह लवक दो प्रकार के होते हैं। इनमें रंगीन लवकों को ‘वर्णी लवक’ कहते हैं। वर्णी लवक ही फूल पौधों को विभिन्न रंग प्रदान करते हैं। वर्णी लवक का आकार निश्चित नहीं होता, बल्कि लवक विभिन्न पौधों में अलग-अलग रचना वाले होते हैं। पौधों में सबसे महत्वपूर्ण लवक है हरित लवक (क्लोरोप्लास्ट), हरा लवक पौधों में हरा रंग ही नहीं देता, बल्कि पौधों में भोजन का निर्माण भी करता है। हरित लवक कार्बन डाइऑक्साइड, गैस, जल और सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में ग्लूकोस-जैसे कार्बोहाइड्रेट पदार्थ का निर्माण करते हैं।

कमल-

कमल के बीज को गर्म पानी में डालें और जब ये फूल जाए तो इसमें काला नमक और चायपत्ती डाल कर उबाल लें। इसें आप दिन में कई बार पीएं।
कमल की पत्तियों को पीस कर जली या झुलसी त्वचा पर लगाने से उसकी जलन खत्म होने लगती है। साथ ही इससे जले का निशान भी धीरे-धीरे जला जाता है।
कमल कि पत्तियों को पीस कर इसका रस पीने से शरीर की वसा भी पिघलने लगती है।
एग्जिमा, दाग-धब्बे के साथ ही अगर आग से जल जाएं तो आप इस पर गेंदे और तुलसी की पत्तियों को पीस कर लगाएं। लगातार लगाने से ये समस्याएं दूर हो जाएंगी

16.8.23

सर्दी जुकाम बुखार में राहत देता है ये काढ़ा sardi jukam ka kadha





काढ़ा (decoction), सर्दी और बुखार के लिए एक पारंपरिक आयुर्वेदिक उपचार है। यह जड़ी-बूटियों और मसालों का एक सरल लेकिन प्रभावी मिश्रण है जो प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने और सर्दी और बुखार के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है।
बच्‍चों में सर्दी जुकाम या खांसी होने पर दवाओं की बजाय घरेलू नुस्‍खों या काढे का इस्‍तेमाल करना चाहिए। यहां हम आपको घर पर काढा बनाने की विधि के बारे में बता रहे हैं। ये काढा बच्‍चों में खांसी और जुकाम का इलाज करने में असरकारी है।

​तुलसी काढा

तुलसी की चार पत्तियों, एक चम्‍मच काली मिर्च, अदरक का एक छोटा टुकडा और शहद स्‍वादानुसार। तुलसी की पत्तियों , काली मिर्च और अदरक को एक कटोरी में एक साथ पीस लें। इसे एक कप पानी में उबालें और फिर शहद मिलाकर बच्‍चे को दें।
दालचीनी की दो छोटी स्टिक और तीन लौंग एवं शहद स्‍वादानुसार। दालचीनी का काढा बनाने के लिए कप पानी में आधा चम्‍मच दालचीनी के पाउडर को लौंग के साथ उबालें। इसमें शहद मिलाकर बच्‍चों को पिलाएं। इस काढे से बच्‍चों में सर्दी जुकाम ठीक होगा।
आधा चम्‍मच घी, एक चुटकी काली मिर्च और अदरक का छोटा टुकडा, तुलसी की चार पत्तियां और चीनी। एक पैन लें और उसे गैस पर रख कर उसमें थोडा घी डालें। घी गर्म होने पर काली मिर्च, अदरक और तुलसी को कूटकर डाल दें। अब दो कप पानी और तीन चम्‍मच चीनी डालकर पानी को उबाल लें। आपका काढा तैयार है।

सर्दी जुकाम ठीक होगा इस काढ़े से-

इस काढ़े को बनाने के लिए आपको निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होगी:

- 1 कप पानी (Water)

- 1 इंच अदरक (Ginger) का टुकड़ा, बारीक कटा हुआ

- लहसुन (Garlic) की 2 कलियां बारीक कटी हुई

- 1 दालचीनी स्टिक (Cinnamon)

- 1 बड़ा चम्मच शहद (Honey)

- 2-3 काली मिर्च (Black pepper)

- 2-3 तुलसी के पत्ते (Tulsi leaves)

सबसे पहले एक छोटे बर्तन में पानी उबालने के लिए रख दें। अदरक, लहसुन, दालचीनी स्टिक और काली मिर्च डालें। आँच को कम कर दें और 10-15 मिनट तक पकाएँ। इसके बाद मिश्रण में तुलसी के पत्ते और शहद डालकर अच्छी तरह मिलाएं। सॉसपैन को आंच से उतार लें और काढ़े को कमरे के तापमान पर ठंडा होने दें। आप अपनी पसंद के आधार पर इस काढ़े को गर्म या ठंडा पी सकते हैं। सर्वोत्तम परिणामों के लिए इसे दिन में दो बार, सुबह और शाम पीने की सलाह दी जाती है।
इस काढ़े में मौजूद अदरक में एंटी-इंफ्लेमेटरी (anti-inflammatory) और एंटीऑक्सीडेंट (antioxidant) गुण होते हैं, जो सूजन को कम करने और प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं। लहसुन भी एक शक्तिशाली प्रतिरक्षा बूस्टर है और इसमें जीवाणुरोधी गुण होते हैं, जो सर्दी और फ्लू के वायरस से लड़ने में मदद कर सकते हैं। दालचीनी में रोगाणुरोधी (antimicrobial) गुण होते हैं और बुखार को कम करने और गले में खराश को शांत करने में मदद कर सकते हैं। शहद एक प्राकृतिक खांसी दमनकारी है और गले में खराश को शांत करने और सूजन को कम करने में मदद कर सकता है। तुलसी के पत्ते अपने एंटी-इंफ्लेमेटरी और जीवाणुरोधी गुणों के लिए जाने जाते हैं और प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने और बुखार को कम करने में मदद कर सकते हैं।
इन सामग्रियों के अलावा, इस काढ़े में काली मिर्च भी होती है, जिसमें एंटीऑक्सीडेंट और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले गुण होते हैं। वे जमाव को साफ करने और श्वसन क्रिया को बेहतर बनाने में भी मदद कर सकते हैं।
कुल मिलाकर, इस काढ़े का सेवन सर्दी और बुखार के उपचार में कई लाभ प्रदान कर सकता है। यह प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने, सूजन को कम करने, जमाव को साफ करने और सर्दी और बुखार के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है। इसलिए, यदि आप सर्दी या बुखार से पीड़ित हैं, तो इस काढ़े को आजमाएँ और अपने लिए लाभ देखें।
काढ़ा पीने से आप खांसी से छुटकारा पा सकते हैं।
काढ़े की खुराक आपके लिए जुकाम को कम करेगी।
बुखार में काढ़े की डोज फायदेमंद है।
इसे पीने से बहती नाक बंद हो जाएगी।
गले की खराश दूर करता है काढ़ा।
अक्सर लोगों की बुखार में भूख कम हो जाती है लेकिन काढ़ा पीने से आपका भोजन करने का मन करेगा।

हनी और लेमन टी (शहद वाली चाय)

कई रिसर्च इस बात का दावा करते हैं कि शहद सर्दी-जुकाम या खांसी के इलाज के लिए सबसे बेहतर विकल्प होता है। अगर आपको या आपके छोटे बच्चे को खांसी है, तो शहद वाली चाय (हनी टी) पीने से गले में खराश और खांसी से राहत पा सकते हैं। जुकाम के घरेलू उपचार में शहद को हमेशा अव्वल माना गया है।

कैसे बनाएं

एक कप हर्बल टी या गर्म पानी में 2 चम्मच शहद और नींबू का रस मिलाएं और इसे दिन में एक या दो बार पीएं। ध्यान रखें कि इस चाय को एक साल की उम्र से छोटे बच्चों को न पिलाएं।

अनानास का जूस

आमतौर पर सर्दी-जुकाम होने पर खट्टे फल नहीं खाने चाहिए। ऐसे में आप सोच रहे होंगे कि भला अनानास का जूस क्यों पीना चाहिए। बता दें कि अनानास खांसी को बस दो दिनों में दूर कर सकता है, क्योंकि इसमें ब्रोमलेन की अच्छी मात्रा होती है। ब्रोमलेन एक एंजाइम है जो केवल अनानास के तने और फल में ही पाया जाता है। ऐसे में अनानास का जूस पीने पर गले में खराश और बलगम की समस्या से भी राहत मिलती है, तो जुकाम के घरेलू उपचार के तरीकों में एक बार अनानास के गुण भी जरूर आजमाएं

कैसे बनाएं


अनानास का छिलका हटाकर उसका जूस बनाकर पीएं या उसके 2 से 3 टुकड़े भी खा सकते हैं। दिन में तीन बार अनानास का जूस पीएं। ध्यान रखें कि अगर आप या आपका बच्चा खून पतला करने वाली दवाओं का इस्तेमाल करते हैं, तो अनानास का सेवन न करें।

काली तुलसी और मसालों वाला काढ़ा

सदियों से सर्दियों के मौसम में होने वाले जुकाम के घरेलू उपचार के लिए काढ़े का इस्तेमाल होता चला आया है। काढ़ें में कई तरह के मसाले और जड़ी-बूटियां मिलाई जाती हैं, जो गले और फेफड़े के इंफेक्शन को दूर करने में मददगार होती हैं।

कैसे बनाएं

काढ़ें की मदद से जुकाम के घरेलू उपचार के लिए दो गिलास साफ पानी गर्म करें। जब यह उबलने लगें तब उसमें लौंग, काली मिर्च, इलायची और अदरक का पाउडर मिलाएं। इसके बाद इसमें स्वादानुसार गुड़ मिलाएं। थोड़ी देर बाद इसमें 5 से 6 काली तुलसी की पत्तियां डालें। उसके बाद चायपत्ती डाल कर उसमें दो बार उबाल आने दें। इसके बाद गैस बंद कर दें और हल्का गुनगुना रहने पर इस काढ़ें को पी लें।