31.8.23

रीढ़ की हड्डी Back bone में गैप क्यों आता है ?कैसे करें इलाज ?

 




उम्र बढ़ने के साथ-साथ शरीर में कई परेशानियां बढ़ने लगती हैं, जिसमें से एक है रीढ़ की हड्डी में गैप आ जाना। रीढ़ की हड्डी में गैप को साइंस की भाषा में स्पोंडिलोसिस कहा जाता है, जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को परेशान कर देता है। ये स्थिति खासकर उम्र बढ़ने के साथ-साथ बढ़ती है लेकिन कुछ कारणों से ये परेशानी कम उम्र के व्यक्ति को भी हो सकती है। बहुत से लोग इस परेशानी के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं लेकिन सही इलाज कभी भी आपके लिए पहले जैसा साबित नहीं हो सकता है। हालांकि अगर शुरुआत में ही इस स्थिति के लक्षणों को समझ लीजिए तो इस स्थिति को बढ़ने से रोका जा सकता है। आइए जानते हैं आप कैसे इस स्थिति से बच सकते हैं।

रीढ़ की हड्डी में गैप होने के लक्षण

1-रीढ़ की हड्डी में दर्द रहना

2-भारी-भरकम सामान उठाने पर दर्द होना

3-झुकते वक्त पीठ में दर्द

4-सीधे खड़े होने पर कमर से कट-कट की आवाज आना

5-पीठ सीधी करने में परेशानी

रीढ की हड्डी में आए गैप को कैसे कम करें? जानें आयुर्वेदिक तरीके से गैप को कम करने का तरीका

रीढ़ की हड्डी में गैप को साइंस की भाषा में स्पोंडिलोसिस कहा जाता है, जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को परेशान कर देता है। जानें आयुर्वेदिक तरीका।
उम्र बढ़ने के साथ-साथ शरीर में कई परेशानियां बढ़ने लगती हैं, जिसमें से एक है रीढ़ की हड्डी में गैप आ जाना। रीढ़ की हड्डी में गैप को साइंस की भाषा में स्पोंडिलोसिस कहा जाता है, जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को परेशान कर देता है। ये स्थिति खासकर उम्र बढ़ने के साथ-साथ बढ़ती है लेकिन कुछ कारणों से ये परेशानी कम उम्र के व्यक्ति को भी हो सकती है। बहुत से लोग इस परेशानी के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं लेकिन सही इलाज कभी भी आपके लिए पहले जैसा साबित नहीं हो सकता है। हालांकि अगर शुरुआत में ही इस स्थिति के लक्षणों को समझ लीजिए तो इस स्थिति को बढ़ने से रोका जा सकता है। आइए जानते हैं आप कैसे इस स्थिति से बच सकते हैं।

रीढ़ की हड्डी में गैप होने के लक्षण

1-रीढ़ की हड्डी में दर्द रहना

2-भारी-भरकम सामान उठाने पर दर्द होना

3-झुकते वक्त पीठ में दर्द

4-सीधे खड़े होने पर कमर से कट-कट की आLinks

6-सीधा लेटने में दिक्कत होना

रीढ़ की हड्डी में गैप का इलाज कैसे करें?

रीढ की हड्डी के जोड़ोंके सामान्य घिसाई को अंग्रेजी भाषा में स्पोंडिलोसिस कहा जाता है, जिसके परिणामस्वरूप जोड़ों का गैप कम हो जाता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ रीढ़ की हड्डी की डिस्क में टूट-फूट होने लगती है, जिसके कारण परेशानी बढ़ने लगती है। स्पोंडिलोसिस आम समस्या है लेकिन ये उम्र के साथ बिगड़ती जाती है। इस स्थिति का उपयोग अक्सर रीढ़ की अपक्षयी गठिया (ऑस्टियोआर्थराइटिस) का वर्णन करने के लिए किया जाता है।

आयुर्वेदिक उपाय से ठीक हो सकती है ये स्थिति

रीढ की हड्डी में गैप आ जाने पर आप एलोपैथी के साथ-साथ आयुर्वेद का भी सहारा ले सकते हैं। आयुर्वेद में ऐसी कई औषधियां हैं, जो इस घिसाव को भरने में सफल साबित हो सकती हैं। आयुर्वेद में लिखी इन दवाओं का सेवन करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लेंः

1-त्रयोदशांग गुग्गुल

2-लाक्षादि गुग्गुल

3-मुक्ता शुक्ति भस्म

अगर किसी व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी कमजोर हो जाती है, तो इसकी वजह से कई परेशानियां हो सकती हैं। क्योंकि, रीढ़ की हड्डी शरीर का सपोर्ट सिस्टम है, इसमें कमजोरी आने से आपके शरीर का पोस्चर तो खराब होता ही है साथ ही कई गंभीर परेशानियां होती हैं। अगर आप इस समस्या से बचना चाहते हैं, तो इसके लिए अपने खाने पर पूरा ध्यान देना चाहिए। तो चलिए जानते हैं रीढ़ की हड्डी को मजबूत करने के लिए फायदेमंद फूड्स।

रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाने के लिए क्या खाएं?-

हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन - 

अगर आप रीढ़ की हड्डी को मजबूत रखना चाहते हैं, तो इसके लिए हरी पत्तेदार सब्जियों Green Vegetable का सेवन करें। इन सब्जियों से शरीर को जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाने में बहुत फायदेमंद है। उदाहरण के लिए आप - पालक, मेथी जैसी हरी पत्तेदार सब्जी का सेवन कर सकते हैं, इनसे शरीर को कैल्शियम, मैग्नीशियम, फोलेट, और विटामिन ए, विटामिन ई मिलता है।

डेयरी प्रोडक्ट्स का सेवन -

 अगर आप अपनी रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाना चाहते हैं, तो इसके लिए डेयरी प्रोडक्ट्स जैसे दूध, दही, पनीर आदि का सेवन कर सकते हैं। इन सबके सेवन से शरीर को कैल्शियम, प्रोटीन जैसे पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। अगर किसी व्यक्ति के शरीर में कैल्शियम की कमी हो जाए, तो इसकी वजह से हड्डियों से जुड़ी बीमारियों का खतरा रहता है। इसलिए रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाने के लिए डाइट में दूध, दही, पनीर, छाछ आदि को जरूर शामिल करे।
नट्स और ड्राई फ्रूट्स का सेवन - कहा जाता है कि रोजाना हर किसी को ड्राई फ्रूट्स Dry Fruits का सेवन जरूर करना चाहिए। इनके सेवन से शरीर की हड्डियां मजबूत होता हैं। नट्स और ड्राई फ्रूट्स में कैल्शियम, विटामिन ई, मैग्नीशियम और फास्फोरस की पर्याप्त मात्रा पाया जाता है। हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए डाइट में बादाम, अखरोट, किशमिश, काजू, पिस्ता आदि को शामिल करना चाहिए। इनका सेवन हड्डियों को मजबूत बनाने और शरीर को बीमारियों से बचाने में फायदेमंद होता है।

बीन्स का सेवन करें - 

अगर आप अपनी रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाना और बीमारियों से बचाना चाहते हैं, तो रोजाना बीन्स का सेवन करना बहुत फायदेमंद होता है। इसके लिए आप फलियों वाली सब्जियों का सेवन कर सकते हैं। बीन्स में फाइबर, प्रोटीन, कैल्शियम और फोलेट जैसे तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। नियमित रूप से इनका सेवन करने से आपको बहुत फायदा मिलता है।

बुजुर्गों को होती है अधिक समस्या

बुजुर्ग लोग आम तौर पर इस समस्या से जूझते हैं। वृद्ध महिलाओं को अक्सर ऑस्टियोपोरेसिस होता है,जिसकी वजह से पीठ दर्द होता है। कभी-कभी शरीर के अन्य हिस्सों जैसे कंधे या कूल्हों में दर्द या बीमारी भी पीठ दर्द (Back Pain) का कारण बन सकती है। रीढ़ की हड्डी में दर्द (Back pain) की समस्या बुर्जुगों को अधिक होती है क्योंकि उम्र के साथ उनकी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।डिस्क ब्रेक होना:रीढ़ में हर वर्टिब्रे के लिए डिस्क कुशन का काम करता है। यदि डिस्क फटती है तो नसों पर अधिक दबाव पड़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप पीठ दर्द होगा।
उभरा हुआ डिस्क: एक ही तरह से टूटे हुए डिस्क के रूप में, एक उभड़ा हुआ डिस्क एक नर्व पर अधिक दबाव डाल सकता है। बल्जिंग डिस्क की वजह से भी रीढ़ की हड्डी में दर्द (Back pain) हो सकता है।
सायटिका (Sciatica): एक तेज और तीखा दर्द बट्स के माध्यम से और पैर के पीछे से होकर, एक नस के दबने या हर्नियेटेड डिस्क के कारण होता है। इसकी वजह से लोगों को बैक में अधिक दर्द महसूस होता है।
गठिया: पुराने ऑस्टियोअर्थराइटिस कूल्हों, पीठ के निचले हिस्से और अन्य स्थानों में जोड़ों के साथ समस्याओं का कारण बन सकता है। कुछ मामलों में, रीढ़ की हड्डी के चारों ओर का स्थान संकरा हो जाता है। इसे स्पाइनल स्टेनोसिस के रूप में जाना जाता है।
रीढ़ की असामान्य वक्रता: अगर रीढ़ असामान्य तरीके से कर्व हो जाता है तो पीठ में दर्द हो सकता है। एक उदाहरण स्कोलियोसिस है, जिसमें रीढ़ एक तरफ झुकने लगता है।
ऑस्टियोपोरोसिस: रीढ़ की वर्टिब्रे सहित हड्डियां आसानी से टूटने वाली हो जाती है और छिद्रपूर्ण हो जाती हैं, जिससे जल्दी फ्रैक्चर की अधिक संभावना होती है।
किडनी की समस्या: किडनी में पथरी या किडनी में संक्रमण के कारण कमर दर्द हो सकता है।
रीढ़ की हड्डी में दर्द से परेशान हैं या इन्हें मजबूत करना चाहते हैं, तो कश्यपासन करें। कश्यपासन को अर्धबद्ध पद्म वशिष्ठासन के नाम से भी जाना जाता है। इस आसन को करने से कई लाभ होते हैं। खासकर रीढ़ की हड्डी को मजबूत करना चाहते हैं, तो इसका अभ्यास नियमित करना शुरू कर दें। इसे करने से शरीर के आंतरिक अंग सशक्त होते हैं।

कैसे करें कश्यपासन






दोनों पैरों को साथ-साथ रखते हुए खड़े हों। सांस भरते हुए शरीर का भार पंजों पर डालें और एड़ियों को ऊपर उठाएं। दोनों हाथों की उंगलियों से इंटरलॉक बनाकर हाथों को ऊपर ले जाएं और तानें। इस दौरान हथेलियों की दिशा ऊपर की ओर रहे। इस अवस्था में पेट को यथासंभव अंदर की ओर रखते हुए घुटने और जांघ की मांसपेशियों को ऊपर की ओर खींचें। अब सांस छोड़ते हुए आगे झुकें और दोनों हथेलियों को जमीन पर टिका दें। फिर अपने पैरों को पीछे ले जाकर दाएं घूम जाएं और दायीं हथेली जमीन पर टिका दें ताकि पूरे शरीर का भार दाहिने हाथ पर आ जाए।
उम्र के साथ-साथ हमारा शरीर कमजोर पड़ने लगता है, जिसे एजिंग प्रोसेस कहा जाता है और यह एक सामान्य क्रिया है। एजिंग के सबसे ज्यादा लक्षण हमारी त्वचा, मांसपेशियों और हड्डियों में होते हैं। ठीक इसी प्रकार एक निश्चित उम्र के बाद महिलाओं की हड्डियां कमजोर पड़ने लगती है और ऐसे में ऑस्टियोपोरोसिस से लेकर बोन फ्रैक्चर आदि का खतरा कम हो जाता है। इसके अलावा जोड़ों व हड्डियों के अन्य हिस्सों में दर्द भी होने लगता है। महिलाओं को एक खास उम्र के बाद ही हड्डियों में कमजोरी कमजोरी महसूस होने लगती है और वह उम्र आमतौर पर 50 साल के बाद होती है। दरअसल, 50 की उम्र तक आते-आते महिलाओं में मेनोपॉज खत्म होने लगता है और पोस्ट मेनोपॉज शुरू हो जाता है। कुछ अध्ययनों के अनुसार पोस्ट-मेनोपॉज उम्र के दौरान हड्डियों की कमजोरी 20 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। चलिए इस उम्र के बाद कौन सी डाइट लेने से हड्डियां मजबूत रहती हैं
रीढ़ की हड्डी का दर्द वाकई बेहद परेशानी का सबब बन जाता है। इसकी हड्डियों की संरचना जितनी जटिल है उससे ज्यादा इसके शारीरिक महत्व भी होते हैं। रीढ़ की हड्डी के जोड़ स्पाइनल में बेहद सुरक्षित रहते हैं। इन जोड़ों का सीधा संबंध दिमाग से होता है। मष्तिष्क को सूचना आदान प्रदान करने में रीढ़ के हड्डियों की उपयोगिता जगजाहिर है। वैसे तो कई बेहद सामान्य कारण होते हैं जो इस तरह के दर्दनाक कारण बनते है। लेकिन रीढ़ की हड्डी का ट्यूमर बेहद जटिलता पैदा कर सकता है। रीढ़ के किसी भी हिस्से में हुई गांठ वैसे तो कोशिकाओं ओर ऊतकों का एक समूह होता है जो दिमाग से सीधा संबंध वाली तरंगों के वेग को रोकने का का करता है। इस समस्या से इंसान को मानसिक रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। रीढ़ की समस्याओं की कई वजहें होती हैं और इसे रोक पाने में कई तत्व अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं। 

रीढ़ की हड्डी में दर्द का कारण


एक अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक भारत जैसे विकासशील देश में रीढ़ के रोग कई कारणों से उत्पन्न होते हैं। साथ ही यह समस्या पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ज्यादा देखने को मिल जाती है। इस तरह के हड्डियों से संबंधित कई प्रमुख कारण हो सकते हैं।
• चोट या फिर मोच के दौरान मांसपेशियों में खिंचाव से ऊतकों की क्षति या फिर लिगामेंट में सूजन होंने से रीढ़ का दर्द बढ़ सकता है।
• रीढ़ की हड्डी का दर्द सही से खड़े ना होने से भी हो सकता है। ज्यादा समय तक झुक कर खड़े होने से हड्डियों में झुकाव हो जाता है जिससे सही ऊर्जा और रक्तवाहिनियों में संक्रमण होने की संभावना प्रबल हो जाती है। इस वजह को भी एक मुख्य कारक माना जा सकता है।
• शरीर में अवशिष्ट पदार्थों के जमाव से भी कई तरह के हड्डी विकार सामने आते हैं। अवशिष्ट पदार्थो के जमाने से हड्डियों के जोड़ों में तेज दर्द हो सकता है इसमें रीढ़ की हड्डी भी शमिल है।
• खून में यूरिया का बढा हुआ स्तर भी रीढ़ में दर्द बढ़ा सकता है। यूरिक एसिड से हड्डियों को नुकसान तो होता ही है साथ ही किडनी समेत कई अन्य आंतरिक अंग भी प्रभावित होते हैं।
• रीढ़ की हड्डी में आंतरिक विकार जैसे टीवी सहित कुछ अन्य रोग बेहद जटिल समस्या उत्पन्न कर सकते हैं।
• पीठ के दर्द को वजह से भी कई बार रीढ़ की हड्डियां प्रभावित हो जाती हैं। कई तरह के रोगों को वजह के रीढ़ की हड्डी में दर्द हो ही जाता है।
• खानपान में त्रुटि या समझौता अक्सर हड्डियों पर भारी पड़ता है। आहार में विकार रीढ़ की हड्डियों को भारी क्षति पहुंचा सकता है।
• बदलती जीवनशैली से इंसान हमेशा परेशान रहता है। इसकी वजह से कई बार तनाव और अनिद्रा उत्पन्न हो जाती है जो रीढ़ के रोग का बड़ा कारण बन जाती है।
• कई अनुवांशिक समस्याओं की वजह से भी रीढ़ की हड्डी की समस्या का होना देखा जाता है जो गठिया या अर्थराइटिस के रूप में सामने आती रहती है।
बदलता मौसम भी रीढ़ की हड्डियों को कर सकता है प्रभावित।
मौसम का बदलाव रीढ़ की हड्डी में दर्द उत्पन्न कर सकता है। सर्दी के मौसम में जहां हड्डियों के जोड़ों की समस्या बढ़ती है तो दूसरी तरफ गर्मी और बरसात भी इसके बड़े कारण होते हैं। गर्मियों के मौसम में कई बार शरीर निर्जलीकरण की तरफ जाता है जिसके कई कारण हो सकते हैं। इस वजह से लू लगने या अन्य कारणों से हड्डियों के दर्द बढ़ जाते हैं। बरसात या गर्मी के दिनों में बहती हुई पुरवाई हवा हड्डियों के पुराने चोट उभार देती है। पुरानी चोट के उभरने की वजह से रीढ़ की समस्या तो होती ही है साथ ही कई अन्य हड्डी रोग उत्पन्न होने लगते हैं। कई बार वायुमण्डल के दबाव से मौसम का परिवर्तन कई तरह के हड्डी विकारों को उत्पन्न करने का कारण बन जाता है।

रीढ़ की हड्डी में दर्द के प्रमुख लक्षण


रीढ़ की हड्डियों में कई डिस्क होती है जो आपस में एक चैन की तरह एक दूसरे से जुड़ी होती है। हड्डियों के चेन की तरह जुड़ाव के दौरान किसी भी भाग में आये संक्रमण या अन्य कारणों से होने वाले लक्षण भिन्न- भिन्न ही सकते हैं।
• रीढ़ की हड्डियों में संकुचन होने की स्थिति में सूजन महसूस होती है और लगता है कि शरीर इधर उधर करने पर भी दर्द हो जाएगा।
• रीढ़ के निचले भाग में दर्द का अनुभव हो सकता है यह तेज या फिर धीमा हो सकता है।
• पेशाब में जलन और मलत्याग में परेशानी का अनुभव हो सकता है।
• आंतरिक रोगों की वजह से पीठ में दर्द होने से रीढ़ को इधर उधर करने में परेशानी या पीड़ा का अनुभव महसूस किया जा सकता है।
• बुखार या गर्दन में तेज दर्द का अनुभव होने की संभावना बढ़ जाती है।

महिलाओं में रीढ़ की हड्डी का दर्द

महिलाओं की काया पुरुषों की तुलना में ज्यादा कोमल होती है। कामकाजी महिलाएं जो ज्यादा देर तक खड़ी होकर दिनचर्या निपटने का काम करती हैं उनकी हड्डियों में दर्द उत्पन्न हो ही जाता है। रीढ़ में दर्द कई तरह के हार्मोन्स के परिवर्तन की वजह से भी देखा जा सकता है। गर्भवती महिलाओं में यह समस्या ज्यादा देखी जाती है। गर्भावस्था के दौरान कई बार कमर के नीचे दर्द भी रीढ़ की हड्डी के दर्द का कारण बन सकता है। बेशक यह कई वजहों से देखा जाता है। कुपोषण सहित शरीर में कैल्शियम की कमी भी कई बार इस तरह की समस्या का कारण बन जाता है। एक स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक महिलाओं में रीढ़ की समस्या 30 से 50 साल की उम्र में ज्यादा दिखाई देती है। बेशक कई बार यह समस्या अर्थराइटिस या गठिया रोग
के रूप में देखने को मिल जाती है। बढ़ता मोटापा और शुगर रोगों की वजह से कई बार रीढ़ के रोग बड़ी तेजी परेशानी की वजह बन जाते हैं।

पुरुषों में रीढ़ की हड्डी का दर्द

कई लोग जो हमेशा झुक कर खड़े होते हैं उन्हें यह समस्या हो ही जाती है। झुककर खड़े होने से रीढ़ की हड्डी में खिंचाव ओर मुड़ाव होने लगता है। झुकाव की वजह से हड्डियों को सही पोषण नही मिल पाता। कई बार यही आदत जोड़ों में गांठ या ट्यूमर का रूप धारण कर लेता है। ट्यूमर बन जाने पर इंसान के दिमाग की तरंगों का रीढ़ को हड्डी को सही निर्देश ना दे पाने से समस्या जटिल होने लगती है। इसके अलावा भी कई अन्य कारण है जिससे रीढ़ की हड्डियां कमजोर भी हो जाती हैं। भारत जैसे देश मे कुपोषण ओर प्रदूषण एक बड़े कारण हैं साथ ही तनाव और अवसाद भी कई बार पुरुषों को इस तरह की बीमारियों की चपेट में ले लेता है। बढ़ता वजन या मोटापा भी इसके बड़े कारण माने जाते हैं।

रीढ़ की हड्डी का दर्द होने से पहले रोकथाम

रीढ़ का दर्द होने से पहले इसकी रोकथाम जहां बेहद सरल है वहीं कम खर्चीला भी है। दवाओं से बचने और रीढ़ का दर्द शरीर को ना सताए यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ जरूरी एहतियात अपनाकर तकलीफ से बचा जा सकता है।
• खानपान या आहार की गुणवत्ता में सुधार की बेहद आवश्यकता होती है। आहार की गुणवत्ता में सुधार से जीवन को कई तरह के कष्टों से मुक्ति दिलाई जा सकती है।
• अनियमित जीवनशैली या दिनचर्या में सुधार लाने की जरूरत होती है। दिनचर्या नियमित कर रीढ़ के दर्द से बच सकते हैं।
• महिलाओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके अंदर कैल्शियम या विटामिन डी की मात्रा की कमी न होने पाए। इस कमी से बचने पर उन्हें इस तरह की समस्या से निजात मिलेगी।
• कभी भी झुककर ना खड़े हों।
• ज्यादा देर तक एक जगह बैठकर काम करने से बचें।
• अल्कोहल से परहेज रखें
• तैलीय भोजन से करें तौबा।
रीढ़ की हड्डी का दर्द हो जाने पर रोकथाम।
रीढ़ में दर्द या रोग वास्तव में एक जटिल स्थिति है। दर्द के कारण कई बार इंसान बिस्तर पकड़ लेता है। कुछ स्थिति में इंसान को अपंगता भी हो जाती है। इस तरह के रोग ओर दर्द से बचाव के लिए आधुनिक युग में कई तरह की औषधि मौजूद है जिनके सटीक प्रयोग से काफी हद तक इससे बचाव किया जा सकता है।
रीढ़ का दर्द का यूनानी उपचार वास्तव में बेहद फायदेमंद होता है। जड़ी बूटियों के प्रयोग से निर्मित पूरी तरह से हर्बल आधारित इस उपचार माध्यम से रीढ़ के दर्द का इलाज काफी प्रचलित है। हालांकि इस उपचार माध्यम में थोड़ा समय जरूर लगता है लेकिन अक्सर समस्या जड़ से समाप्त हो जाती है। दुर्लभ जड़ी बूटियों से बनाई गई सुरंजन की दवाइयां वास्तव में हड्डियों के लिए किसी वरदान से कम नही होती। समय पर हकीम की सलाह से परहेज करने के साथ दवाओं का सेवन काफी लाभदायक साबित होता है। इस विधा में सबसे खास यह होता है कि इन दवाओं का।शरीर पर किसी भी प्रकार का साइड इफेक्ट नही होता है।

नॉन सर्जिकल ट्रीटमेंट

स्ट्रेन, स्प्रेन और न्यूरल कंप्रेशन जैसी समस्याएं कुछ दिन बेड रेस्ट करके और कम भागदौड़ करके ठीक की जा सकती हैं। अगर मोच हल्की है तो आमतौर पर एक से तीन दिन में ठीक हो जाती है। अगर दर्द ठीक हो जाए तो यह बेड रेस्ट को कम कर देना चाहिए, क्योंकि लंबे समय तक बिस्तर पर आराम करने से मांसपेशियों को नुकसान हो सकता है। इससे मांसपेशियों में जकड़न भी बढ़ सकती है, जिससे दर्द बढ़ सकता है। अगर दर्द हल्का है, तो शुरुआती इलाज में आमतौर पर नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी (Non-steroidal anti-inflammatory) दवाएं ली जा सकती हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: