21.1.22

गुहेरी अंजनहारी के घरेलू उपचार:Guheri anjanhari ke nuskhe




आँखों की दोनों पलकों के किनारों पर बालों (बरौनियों) की जड़ों में जो छोटी-छोटी फुंसियां निकलती हैं,उसे ही अंजनहारी,गुहेरी या नरसराय भी कहा जाता है | कभी-कभी तो यह मवाद के रूप में बहकर निकल जाती है पर कभी-कभी बहुत ज़्यादा दर्द देती है और एक के बाद एक निकलती रहती हैं | चिकित्सकों के मत मे विटामिन A और D की कमी से अंजनहारी निकलती है | कभी-कभी कब्ज से पीड़ित रहने कारण भी अंजनहारी निकल सकती हैं |


 अंजनहारी के कारण-


डॉक्टर अंजनहारी का कारण विटामिन A और D की कमी मानते हैं।
अंजनहारी का कारण, आम तौर पर एक स्टाफीलोकोकस बैक्टीरिया (staphylococcus bacteria) के कारण होने वाला संक्रमण भी माना जाता है।
पाचन क्रिया में खराबी भी अंजनहारी का कारण है।
अंजनहारी का एक कारण, लगातार रहने वाली कब्ज भी मानी जाती है।
धूल और धुंए समेत अन्य हानिकारक कणों का आँखों में जाना।
बिना हाथ धोए आँखों को छूना।
संक्रमण होना।

आँखों की सफाई पर ध्यान न देना। निरंतर रूप से पानी से न धोना।
वैसे अंजनहारी होने के सटीक कारणों की जानकारी नहीं है, लेकिन ये कुछ कारण हैं जिनकी वजह से यह दिक्क्त आती है।


अंजनहारी के घरेलू उपचार -


१. लौंग को जल के साथ किसी सिल पर घिसकर अंजनहारी पर दिन में दो तीन लेप करने से शीघ्र ही अंजनहारी नष्ट हो जाती है।
२. बोर के ताजे कोमल पत्तों को कूट पीसकर, किसी कपड़े में बांधकर रस निकालें। इस रस को अंजनहारी पर लगाने से शीघ्र लाभ होता है।

३. इमली के बीजों को सिल पर घिसकर उनका छिलका अलग कर दें। अब इमली के सफेद बीज को जल के साथ सिल पर घिस कर दिन में कई बार अंजनहारी (फुसी) पर लगाएं । इसके लगाने से अंजनहारी शीघ्र नष्ट होता है।

guheree anjanahaaree  ke ghareloo  upachaar

3.  १० ग्राम त्रिफला के चूर्ण को ३०० ग्राम जल में डालकर रखें। सुबह बिस्तर से उठने पर त्रिफला के उस जल को कपड़े से छानकर नेत्रों को साफ करने से गुहेरी की विकृति नष्ट होती है। त्रिफला के जल से नेत्रों की सब गंदगी निकल जाती है। प्रतिदिन त्रिफला का ३ ग्राम चूर्ण जल के साथ सुबह शाम सेवन करने से गुहरी की विकृति से राहत मिलती है।

५. काली मिर्च को जल के साथ पीसकर या जल के साथ घिसकर अंजनहारी पर लेप करने से प्रारंभ में थोड़ी सी जलन होती है, लेकिन जल्दी ही गुहेरी का निवारण हो जाता है।
६. ग्रीष्म ऋतु में पसीने के कारण अंजनहारी की विकृति बहुत होती है। प्रतिदिन सुबह और रात्रि को नेत्रों में गुलाब जल की कुछ बूंदे डालने से बहुत लाभ होता है।

guheree anjanahaaree  ke ghareloo  upachaar

७. त्रिफला चूर्ण ३ ग्राम मात्रा में उबले हुए दूध के साथ सेवन करने से अंजनहारी से सुरक्षा होती है।
८. लौंग को चंदन और केशर के साथ जल के छींटे डालकर, घिसकर अंजनहारी का लेप करने से बहुत जल्दी लाभ होता है।
९. सहजन के ताजे व कोमल पत्तों को कूट पीसकर कपड़े में बांधकर रस निकालें। इस रस को दिन में कई बार अंजनहारी पर लगाने से शीघ्र लाभ होता है।
१०. नीम के ताजे व कोमल पत्तों का रस मकोय का रस बराबर मात्रा में कपड़े से छानकर नेत्रों में लगाने से अंजनहारी के कारण शोथ व नेत्रों की लालिमा शीघ्र नष्ट होती है।

guheree anjanahaaree  ke ghareloo  upachaar

११. अंजनहारी में शोथ के कारण तीव्र जलन व पीड़ा हो तो चंदन के जल के साथ घिसकर दिन में कई बार लेप करने से तुरंत लाभ होता है।

१२) छुहारे के बीज को पानी के साथ घिस लें | इसे दिन में २-३ बार अंजनहारी पर लगाने से लाभ होता है |
१३) तुलसी के रस में लौंग घिस लें | अंजनहारी पर यह लेप लगाने से आराम मिलता है |
१४) हरड़ को पानी में घिसकर अंजनहारी पर लेप करने से लाभ होता है |
१५) आम के पत्तों को डाली से तोड़ने पर जो रस निकलता है,उस रस को गुहेरी पर लगाने से गुहेरी जल्दी समाप्त हो जाती है |
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18.1.22

रुद्राक्ष थैरेपी से करें रोग उन्मूलन:Rudraksh ke fayde

                                               


  rudraksh therapy

रुद्र का मतलब भगवान शंकर (शिव) है। अक्ष आंख को कहते हैं। इन दोनों शब्दों से रुद्राक्ष बना। रुद्राक्ष मूल रूप से पर्वतीय क्षेत्र में होता है। जावा सुमात्रा (इन्डोनेशिया) में छोटे आकार के और नेपाल में बड़े आकार के रुद्राक्ष होते हैं। भारत में भी अब कई स्थलों पर यह वृक्ष लगाया गया है।
रुद्राक्ष हमारे लिए कितना लाभकारी है, यह हमारे पूर्वज जानते थे और प्रयोग करते थे। पुराणों के अनुसार भगवान शंकर के नेत्र से ज्ञानानंद अश्रु (आंसू) की बूंद से यह वृक्ष जन्म लेता है। शिव का अर्थ ही कल्याण है तो यह रुद्राक्ष कल्याण के लिए ही धरती पर आया है। इसके अनेक नाम हैं रुद्राक्ष, शिवाक्ष, भूतनाशक, पावन, नीलकंठाक्ष, हराक्ष, शिवप्रिय, तृणमेरु, अमर, पुष्पचामर, रुद्रक, रुद्राक्य, अक्कम, रूद्रचल्लू आदि।
रुद्राक्ष को हम एक साधारण वृक्ष बीज समझ लेते हैं। कोई-कोई इसे गले में तरह-तरह के लाकेट बनाकर माला बनाकर पहन लेते हैं। उसका भी असर होता है, लेकिन विधि-विधान से इसे धारण करना परम लाभकारी है। रुद्राक्ष वृक्ष और फल दोनों ही पूजनीय हैं। मानव के अनेकों रोग, शोक, बाधा नष्ट करने की शक्ति रुद्राक्ष में है।
रुद्राक्ष के दानों में गैसीय तत्व हैं जो इस प्रकार हैं कार्बन 50.031 प्रतिशत, हाईड्रोजन 17.897 प्रतिशत नाइट्रोजन 0.095 प्रतिशत, आक्सीजन 30.453 प्रतिशत इसके अतिरिक्त एल्युमिनियम, कैल्शियम, तांबा, कोबाल्ट, तांबा, आयरन की मात्रा भी होती है। इसमें चुम्बकीय और विद्युत ऊर्जा से शरीर को रुद्राक्ष का अलग-अलग लाभ होता है। एक मुखी रुद्राक्ष दुर्लभ है। शायद ही कभी उसके दर्शन हो पाएं लेकिन बाजार, टैलीविजन में बेधड़क एक मुखी रुद्राक्ष बिक रहे हैं जो शायद ही शुद्ध हों।

rudraksh therapy

एक मुखी रुद्राक्ष :

इसके मुख्य ग्रह सूर्य होते हैं। इसे धारण करने से हृदय रोग, नेत्र रोग, सिर दर्द का कष्ट दूर होता है। चेतना का द्वार खुलता है, मन विकार रहित होता है और भय मुक्त रहता है। लक्ष्मी की कृपा होती है।

दो मुखी रुद्राक्ष : 

मुख्य ग्रह चन्द्र हैं यह शिव और शक्ति का प्रतीक है मनुष्य इसे धारण कर फेफड़े, गुर्दे, वायु और आंख के रोग को बचाता है। यह माता-पिता के लिए भी शुभ होता है।

तीन मुखी रुद्राक्ष : 

मुख्य ग्रह मंगल, भगवान शिव त्रिनेत्र हैं। भगवती महाकाली भी त्रिनेत्रा है। यह तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना साक्षात भगवान शिव और शक्ति को धारण करना है। यह अग्रि स्वरूप है इसका धारण करना रक्तविकार, रक्तचाप, कमजोरी, मासिक धर्म, अल्सर में लाभप्रद है। आज्ञा चक्र जागरण (थर्ड आई) में इसका विशेष महत्व है।

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चार मुखी रुद्राक्ष : 

चार मुखी रुद्राक्ष के मुख्य देवता ब्रह्मा हैं और यह बुधग्रह का प्रतिनिधित्व करता है इसे वैज्ञानिक, शोधकर्त्ता और चिकित्सक यदि पहनें तो उन्हें विशेष प्रगति का फल देता है। यह मानसिक रोग, बुखार, पक्षाघात, नाक की बीमारी में भी लाभप्रद है।

पांच मुखी रुद्राक्ष :

यह साक्षात भगवान शिव का प्रसाद एवं सुलभ भी है। यह सर्व रोग हरण करता है। मधुमेह, ब्लडप्रैशर, नाक, कान, गुर्दा की बीमारी में धारण करना लाभप्रद है। यह बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है।

छ: मुखी रुद्राक्ष : 

शिवजी के पुत्र कार्तिकेय का प्रतिनिधित्व करता है। इस पर शुक्रग्रह सत्तारूढ़ है। शरीर के समस्त विकारों को दूर करता है, उत्तम सोच-विचार को जन्म देता है, राजदरबार में सम्मान विजय प्राप्त कराता है।

सात मुखी रुद्राक्ष : 

इस पर शनिग्रह की सत्तारूढ़ता है। यह भगवती महालक्ष्मी, सप्त ऋषियों का प्रतिनिधित्व करता है। लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, हड्डी के रोग दूर करता है, यह मस्तिष्क से संबंधित रोगों को भी रोकता है।

आठ मुखी रुद्राक्ष :

भैरव का स्वरूप माना जाता है, इसे धारण करने वाला व्यक्ति विजय प्राप्त करता है। गणेश जी की कृपा रहती है। त्वचा रोग, नेत्र रोग से छुटकारा मिलता है, प्रेत बाधा का भय नहीं रहता। इस पर राहू ग्रह सत्तारूढ़ है।

नौ मुखी रुद्राक्ष : 

नवग्रहों के उत्पात से रक्षा करता है। नौ देवियों का प्रतीक है। दरिद्रता नाशक होता है। लगभग सभी रोगों से मुक्ति का मार्ग देता है।

दस मुखी रुद्राक्ष :

भगवान विष्णु का प्रतीक स्वरूप है। इसे धारण करने से परम पवित्र विचार बनता है। अन्याय करने का मन नहीं होता। सन्मार्ग पर चलने का ही योग बनता है। कोई अन्याय नहीं कर सकता, उदर और नेत्र का रोग दूर करता है।

ग्यारह मुखी रुद्राक्ष :

रुद्र के ग्यारहवें स्वरूप के प्रतीक, इस रुद्राक्ष को धारण करना परम शुभकारी है। इसके प्रभाव से धर्म का मार्ग मिलता है। धार्मिक लोगों का संग मिलता है। तीर्थयात्रा कराता है। ईश्वर की कृपा का मार्ग बनता है।

बारह मुखी रुद्राक्ष :

बारह ज्योतिर्लिंगों का प्रतिनिधित्व करता है। शिव की कृपा से ज्ञानचक्षु खुलता है, नेत्र रोग दूर करता है। ब्रेन से संबंधित कष्ट का निवारण होता है।

तेरह मुखी रुद्राक्ष :

इन्द्र का प्रतिनिधित्व करते हुए मानव को सांसारिक सुख देता है, दरिद्रता का विनाश करता है, हड्डी, जोड़ दर्द, दांत के रोग से बचाता है।

चौदह मुखी रुद्राक्ष :

भगवान शंकर का प्रतीक है। शनि के प्रकोप को दूर करता है, त्वचा रोग, बाल के रोग, उदर कष्ट को दूर करता है। शिव भक्त बनने का मार्ग प्रशस्त करता है।
रुद्राक्ष को विधान से अभिमंत्रित किया जाता है, फिर उसका उपयोग किया जाता है। रुद्राक्ष को अभिमंत्रित करने से वह अपार गुणशाली होता है। अभिमंत्रित रुद्राक्ष से मानव शरीर का प्राण तत्व अथवा विद्युत शक्ति नियमित होती है। भूतबाधा, प्रेतबाधा, ग्रहबाधा, मानसिक रोग के अतिरिक्त हर प्रकार के शारीरिक कष्ट का निवारण होता है। केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को सशक्त करता है, जिससे रक्त चाप का नियंत्रण होता है।
रोगनाशक उपाय रुद्राक्ष से किए जाते हैं, तनावपूर्ण जीवन शैली में ब्लडप्रैशर के साथ बे्रन हैमरेज, लकवा, मधुमेह जैसे भयानक रोगों की भीड़ लगी है। यदि इस आध्यात्मिक उपचार की ओर ध्यान दें तो शरीर को रोगमुक्त कर सकते हैं।
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17.1.22

आलू के छिलके से बाल काले करने का तरीका:aloo ke chilke ke fayde

 



 अगर आपके बाल भी उम्र से पहले सफेद होने लगे हैं और आप इस बात को लेकर हमेशा तनाव में रहते हैं तो अब आपको परेशान होने की जरूरत नहीं हैं क्‍योंकि हम आपके लिए लाये हैं एक ऐसा उपाय जिसके इस्‍तेमाल से आप सफेद बालों की समस्‍या से बच सकते हैं। लेकिन इस घरेलू उपाय के लिए आपको थोड़े धैर्य की जरूरत है। साथ ही अपनी डायट में हरी सब्जियां, फल और प्रोटीन से भरपूर आहार को शामिल करना न भूलें।

यह पुराने जमाने की औषधि आलू के छिलके को उतारकर बनाई जाती है। यह आजमाया हुआ नुस्‍खा है जो कि बालों को सफेद होने से बचाने के साथ ही बालों के रोम को भी स्वस्थ रखता है। आलू के छिलके में मौजूद स्टार्च बालों की रक्षा करता है।
 आलू के छिलके के हेयर मास्क में विटामिन ए, बी और सी होता है, जिससे यह स्‍कैल्‍प पर जमे तेल को हटाकर इसे साफ करते हैं, परतदार डैंड्रफ को हटाते हैं, रोम छिद्रों को खोलते हैं और नए बालों के रोमों को बढ़ाते हैं। इतना ही नहीं आलू में आयरन, जिंक, पोटेशियम और कैल्शियम जैसे कई मिनरल्स पाये जाते हैं जिससे बालों का गिरना कम होता है और बाल बढ़ते हैं। आलू में मौजूद स्टार्च एक प्राकृतिक कलर के रूप में काम करता है, यह ना केवल बालों को सफेद होने से रोकता है बल्कि यह चमक भी प्रदान करता है।
     बिना डाई के बाल काले करने की औषधि आलू के छिलके से तैयार होती है। इसे आप अपने घर में आसानी से तैयार कर सकते हैं। यह एक पुराना घरेलू नुस्खा है जो बालों को काला करने के साथ ही उन्हें जड़ से मजबूत रखने में भी मददगार साबित होता है। आलू के छिलके में मौजूद स्टार्च बालों को सुरक्षित रखता है।
 आलू के छिलके से तैयार हेयर मास्क में विटामिन ए, बी और सी होता है। यह स्‍कैल्‍प पर जमे तेल और डैंड्रफ को हटाकर इसे साफ करता है। यह स्कैल्प के रोम छिद्रों को खोलता है जिससे नए बाल उगने में मदद मिलती है।
इसके अलावा आलू में आयरन, जिंक, पोटेशियम और कैल्शियम जैसे कई मिनरल्स पाये जाते हैं जो बालों के झड़ने से रोकते हैं। आलू में मौजूद स्टार्च एक प्राकृतिक कलर के रूप में काम करता है, यह ना केवल बालों को सफेद होने से रोकता है बल्कि इससे बाल चमकदार भी होते हैं।

औषधि बनाने के लिए सामग्री

1- आलू का छिलका- 3 या 4
2- लैवेंडर का तेल (इच्छानुसार)- कुछ बूंदें

बनाने का तरीका

 3-4 आलू लेकर, उनके छिलके उतार लें। फिर इनके छिलके लेकर, एक कप ठंडे पानी में डालें। इसे फ्राइंग पैन में डालकर अच्‍छे से उबालें। जब यह पूरी तरह उबल जाए तो इसे 5 से 10 मिनट तक धीमी आंच पर पकाएं।
इसके बाद मिश्रण को थोड़ी देर के लिए ठंडा होने के लिए रख दें। फिर इसे जार में भरें। इसकी तीखी गंध से छुटकारा पाने के लिए आप कुछ बूंद लैवेंडर ऑयल डाल सकते हैं।
आलू के छिलकों से तैयार मिश्रण को अगर साफ और गीले बालों में लगाया जाये तो यह ज्यादा बेहतर असर करता है। आलू के छिलके के इस मिश्रण को आप सिर पर धीरे-धीरे लगाएं और फिर थोड़ी देर के लिए छोड़ दें।
मिश्रण के साथ बालों की 5 मिनट मसाज करें और फिर 30 मिनट तक इसे ऐसे ही छोड़ दें। अगर मिश्रण कुछ देर बालों में रहता है तो शानदार तरीके से काम करता है। इसके बाद इसे ठंडे पानी से धो लें। अब आप पाएंगे कि आपके बाल पहले से कुछ बेहतर हैं।
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मांसपेशियों मे खिंचाव और एंठन के उपचार:muscles cramps

 


कभी काम करते-करते, तो कभी खेलते या दौड़ते हुए और कभी यूं ही सामान्य अवस्था में अचानक मांसपेशियों में खिंचाव आ जाता है। यह खिंचाव कुछ समय की पीड़ा भी हो सकती है और लंबी समस्या भी। जानिए इस बारे में और भी।

  मांसपेशियों का दर्द muscle spasms and cramps किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है, लेकिन तीस से चालीस वर्ष की आयुवर्ग के युवाओं में यह समस्‍या तेजी से बढ़ रही है। मांसपेशियों में जरूरत से ज्‍यादा दबाव पड़ने के कारण उनमें दर्द होता है।
  आजकल की व्‍यस्‍त और भाग-दौड़ भरी दिनचर्या में मांसपेशियों में दर्द muscle spasms and cramps एक आम समस्‍या बन गई है। । मांसपेशियों में जरूरत से ज्‍यादा दबाव पड़ने के कारण उनमें दर्द होता है। इसके कारण मात्र कुछ विशेष मांसपेशियों में दर्द होता हे जो काम करते समय या इसके बाद शुरू हो सकता है। कामकाजी युवक-युवतियों के इसकी चपेट में आने से कार्य क्षमता भी प्रभावित होती है। यहां ऐसे कुछ नुस्खे दिए जा रहे हैं, जिन्हें आजमाकर आपको दर्द से राहत मिल सकती है।
     पूरे शरीर में फैली मांसपेशियां शरीर की ताकत होती हैं। ये शरीर को मजबूती देने के साथ ही लचीलापन भी देती हैं। ऐसे में इनमें होने वाला खिंचाव पीड़ा muscle spasms and cramps के साथ ही बहुत बेचैनी भी पैदा कर देता है। मसल्स में खिंचाव का मतलब है मसल्स का जरूरत से ज्यादा खिंच जाना या फट जाना। ऐसा तब होता है जब मांसपेशियों का अत्यधिक प्रयोग लगातार किया जाए, उन्हें बहुत थका दिया जाए या गलत तरीके से मसल्स का उपयोग किया जाए।
 मांसपेशियों के खिंचाव muscle spasms and cramps की समस्या यूं किसी भी मसल में हो सकती है लेकिन मुख्यतौर पर यह लोअर बैक, कंधे, गर्दन तथा घुटने के पीछे की मसल्स में ज्यादा होती है। सामान्य खिंचाव में घरेलू इलाज जैसे बर्फ की सिकाई, गर्म सिकाव या साधारण सूजन दूर करने वाली दवाओं से आराम हो सकता है लेकिन गंभीर खिंचाव के केसेस में उचित इलाज की जरूरत हो सकती है। गंभीर केसेस में कई बार छोटी ब्लड वेसल्स को भी नुकसान पहुंच सकता है।


मसल्स के खिंचने muscle spasms and cramps पर तेज दर्द के साथ ही कुछ अन्य लक्षण भी नजर आते हैं। इनमें शामिल हैं-
प्रभावित जगह पर सूजन
यदि किसी खुली चोट की वजह से मसल्स फटी या टूटी हैं तो खुला घाव नजर आन
त्वचा का लाल हो जाना या नील पड़ जाना
चलने-फिरने में कठिनाई आना
बेचैन करने वाला दर्द और आराम के दौरान भी दर्द का बने रहना
प्रभावित स्थान पर त्वचा के रंग का बदल जाना, अकड़न महसूस होना
मसल्स स्पाज्म यानी मांसपेशियों में ऐंठन
कमजोरी महसूस होना।
मिल सकता है आराम
साधारण मसल्स खिंचाव muscle spasms and cramps में जहां थोड़े आराम और इलाज से कुछ हफ्तों में लाभ मिल सकता है वहीं गंभीर मामलों में पर्याप्त इलाज के साथ लगभग कुछ महीनों का समय ठीक होने के लिए लग सकता है। इसलिए मसल्स में खिंचाव के बाद कुछ दिनों में सामान्य इलाज से लाभ न मिले तो तुरंत डॉक्टर से सम्पर्क करें। जितना जल्दी उपाय करेंगे तकलीफ उतनी ही जल्दी ठीक होगी।
थकान भरी शारीरिक गतिविधियों के बाद ऑक्सीजन की कमी से मांसपेशियों में खिंचाव की समस्या हो सकती है। मांसपेशियों में खिंचाव के कारण वह सिकुड़ जाती हैं, जिससे उनमें रक्त प्रवाह ठीक से नहीं हो पाता। और उनमें दर्द होने लगता है। लेकिन सही तरीके से दर्द वाले स्‍थान पर मालिश करने से रक्‍त प्रवाह में सुधार होता है और दर्द से राहत मिलती है।
ओवर-द-काउंटर दर्द निवारक दवाएं जैसे इबुप्रोफेन या एसिटामिनोफेन मांसपेशियों में दर्द को दूर करने में आपकी मदद कर सकती हैं। इबुप्रोफेन नॉन-स्‍टेरायडल एंटी-इंफ्लेमेंटरी दवा है, जो सूजन को कम करने में मदद करती है। इसके अलावा, क्रीम या औषधीय दर्द से राहत देने वाले पैच जैसे अर्निका, बेंगे, टाइगर बाम, सलोपस भी मांसपेशियों में दर्द से राहत दिलाने में कारगर होते हैं। अमेरिकन अकादमी आफ फैमिली फिजिशियन के डॉक्‍टरों की रिपोर्ट के अनुसार, ओवर-द-काउंटर दर्द निवारक स्‍वस्‍थ वयस्‍कों में मांसपेशियों में दर्द और पीड़ा को दूर करने के लिए सु‍रक्षित होती है।
इन बातों पर करें गौर
नियमित व्यायाम या फिजिकल एक्टिविटी का नियम बनाए रखें। शरीर को जितना लचीला बनाए रखेंगे, मसल्स उतनी ही अच्छी स्थिति में रहेंगी
लंबे समय तक खड़े या बैठे रहने, एक ही स्थिति में रहकर किसी काम को करने या किसी भी तरह से मांसपेशियों को आवश्यकता से अधिक थकाने से बचाना
व्यायाम करने से पहले वॉर्म अप जरूर करना
एकदम से बहुत ज्यादा व्यायाम न करना
सही पोषण न लेना
शरीर को एक्टिव बनाए रखना
पैरों को आराम देने और फिसलने से बचाने वाले फुटवेयर पहनें। कोशिश करें कि रोजमर्रा के जीवन में आरामदायक, कुशन वाले, बिना हील के जूते या फुटवेयर चुनें।
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16.1.22

बढ़े हुए प्रोस्टट से पेशाब मे दिक्कत की रामबाण हर्बल औषधि:enlarged prostate

 


प्रोस्टेट नामक ग्रंथि केवल पुरुषों के शरीर में ही पाई जाती है। यह ग्रंथि उम्र बढ़ने के साथ आकार में बड़ी हो जाने enlarged prostate  से पेशाब करने में तकलीफ होती है। यह तकलीफ आमतौर पर 60 साल के पश्चात् अर्थात् बड़ी उम्र के पुरुषों में ही पाई जाती है।

  प्रोस्टेट एक छोटी सी ग्रंथि होती है जिसका आकार अ्खरोट के बराबर होता है। यह पुरुष के मूत्राषय के नीचे और मूत्रनली के आस-पास होती है।

प्रोस्टेट ग्रंथि कहाँ होती है? उसके कार्य क्या हैं?

पुरुषों में सुपारी के आकार की प्रोस्टेट मूत्राशय के नीचे (Bladder Neck) वाले भाग में होती है, जो मूत्रनलिका (Urethra) के प्रारंभिक भाग के चारों ओर लिपटी होती है। अर्थात् मूत्राशय से निकलती मूत्रनलिका का प्रारंभिक भाग प्रोस्टेट के बीच से गुजरता है।
वीर्य ले जानेवाली नलिकाएं प्रोस्टेट से गुजरकर मूत्रनलिका में दोनों तरफ खुलती हैं। इसी वजह से प्रोस्टेट ग्रंथि पुरुषों के प्रजनन तंत्र का एक मुख्य अंग है।

बी. पी. एच. - बिनाईन प्रोस्टेटिक हाइपरट्रॉफी क्या है?

बिनाईन प्रोस्टेटिक हाइपरट्रॉफी (Benign Prostratic Hypertrophy) अर्थात् उम्र बढ़ने के साथ सामान्य रूप से पाई जानेवाली प्रोस्टेट के आकर में वृध्दि।
इस बी. पी. एच. की तकलीफ में संक्रमण, कैंसर अथवा अन्य कारणों से होने वाली प्रोस्टेट की तकलीफ शामिल नहीं होती है।
बी. पी. एच. (BPH ) के लक्षण 50 साल की उम्र के बाद शुरू होते हैं। आधे से ज्यादा पुरुषों को 60 साल की आयु में और 90 % पुरुषों में 70 - 80 साल के होने तक बी. पी. एच. के लक्षण दीखते हैं।
बी. पी. एच. के कारण पुरुषों में होनेवाली मुख्य तकलीफ निम्नलिखित है:
रात को बार-बार पेशाब करने जाना।
पेशाब की धार धीमी और पतली हो जाना।
पेशाब करने के प्रारंभ में थोड़ी देर लगना।
रुक रुककर पेशाब का होना।
पेशाब लगने पर जल्दी जाने की तीव्र इच्छा होना किन्तु, उस पर नियंत्रण नहीं होना और कभी-कभी कपड़ों में पेशाब हो जाना।
पेशाब करने के बाद भी बूँद-बूँद पेशाब का आना।
पेशाब पूरी तरह से नहीं होना और पूरा पेशाब करने का संतोष नहीं होना।
गंभीर बी. पी. एच. अगर अनुपचारित छोड़ दिया जाये तो एक समय के बाद यह गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है।
  
 ५० की आयु के बाद बहुधा प्रोस्टेट ग्रन्थि का आकार बढने  enlarged prostate  लगता है।इसमें पुरुष के सेक्स हार्मोन प्रमुख भूमिका होती है। जैसे ही प्रोस्टेट बढती है मूत्र नली पर दवाब बढता है और पेशाब में रुकावट की स्थिति बनने लगती है। पेशाब पतली धार में ,थोडी-थौडी मात्रा में लेकिन बार-बार आता है कभी-कभी पेशाब टपकता हुआ बूंद बूंद जलन के साथ भी आता है। कभी-कभी पेशाब दो फ़ाड हो जाता है। रोगी मूत्र रोक नहीं पाता है। रात को बार -बार पेशाब के लिये उठना पडता जिससे नीद में व्यवधान पडता है।
यह रोग ७० के उम्र के बाद उग्र हो जाता है। पेशाब पूरी तरह रूक जाने पर चिकित्सक केथेटर लगाकर यूरिन बेग में मूत्र का प्रावधान करते हैं।
यह देखने में आया है कि ६० के पार ५०% पुरुषों और ७०-८० की आयु पार कर चुके लगभग ९०% पुरुषों में प्रोस्टेट वृद्धि enlarged prostate  के लक्षण दिखाई पडते हैं।


  प्रोस्टेट वृद्धि के लक्षण-


१) पेशाब करने में कठिनाई मेहसूस होना।
२) थौडी २ देर में पेशाब की हाजत होना। रात को कई बार पेशाब के लिये उठना।
३) पेशाब की धार चालू होने में विलंब होना।
४) मूत्राषय पूरी तरह खाली नहीं होता है। मूत्र की कुछ मात्रा मूत्राषय में शेष रह जाती है। इस शेष रहे मूत्र में रोगाणु पनपते हैं।
५) मालूम तो ये होता है कि पेशाब की जोरदार हाजत हो रही है लेकिन बाथरूम में जाने पर बूंद-बूंद या रुक-रुक कर पेशाब होता है।
६) पेशाब में जलन मालूम पडती है।
७) पेशाब कर चुकने के बाद भी मूत्र की बूंदे टपकती रहती हैं, याने मूत्र पर नियंत्रण नहीं रहता।
८) अंडकोषों में दर्द उठता रहता है।
९) संभोग में दर्द के साथ वीर्य छूटता है।

बढ़े हुए प्रोस्टट की हर्बल चिकित्सा :Enlarged prostate herbal medicine

१) दिन में ३-४ लिटर पानी पीने की आदत डालें। लेकिन शाम को ६ बजे बाद जरुरत मुताबिक ही पानी पियें ताकि रात को बार बार पेशाब के लिये न उठना पडे।.

२) अलसी को मिक्सर में चलाकर पावडर बनालें । यह पावडर २० ग्राम की मात्रा में पानी में घोलकर दिन में दो बार पीयें। बहुत लाभदायक उपचार है।
3) कद्दू मे जिन्क पाया जाता है जो इस रोग में लाभदायक है। कद्दू के बीज की गिरी निकालकर तवे पर सेक लें। इसे मिक्सर में पीसकर पावडर बनालें। यह चूर्ण २० से ३० ग्राम की मात्रा में नित्य पानी के साथ लेने से प्रोस्टेट सिकुडकर मूत्र खुलासा होने लगता है।

enlarged prostate herbal medicine

४) चर्बीयुक्त ,वसायुक्त पदार्थों का सेवन बंद कर दें। मांस खाने से भी परहेज करें।
५) हर साल प्रोस्टेट की जांच कराते रहें ताकि प्रोस्टेट केंसर को प्रारंभिक हालत में ही पकडा जा सके।

६) चाय और काफ़ी में केफ़िन तत्व पाया जात है। केफ़िन मूत्राषय की ग्रीवा को कठोर करता है और प्रोस्टेट रोगी की तकलीफ़ बढा देता है। इसलिये केफ़िन तत्व वाली चीजें इस्तेमाल न करें।
७) सोयाबीन में फ़ायटोएस्टोजीन्स होते हैं जो शरीर मे टेस्टोस्टरोन का लेविल कम करते हैं। रोज ३० ग्राम सोयाबीन के बीज गलाकर खाना लाभदायक उपचार है।

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८) विटामिन सी का प्रयोग रक्त नलियों के अच्छे स्वास्थ्य के लिये जरूरी है। ५०० एम जी की ३ गोली प्रतिदिन लेना हितकर माना गया है। 
९) दो टमाटर प्रतिदिन अथवा हफ़्ते में कम से कम दो बार खाने से प्रोस्टेट केंसर का खतरा ५०% तक कम हो जाता है। इसमें पाये जाने वाले लायकोपिन और एन्टिआक्सीडेंट्स केंसर पनपने को रोकते हैं।


विशिष्ट परामर्श-




प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने मे हर्बल औषधि सर्वाधिक कारगर साबित हुई हैं| यहाँ तक कि लंबे समय से केथेटर नली लगी हुई मरीज को भी केथेटर मुक्त होकर स्वाभाविक तौर पर खुलकर पेशाब आने लगता है| प्रोस्टेट ग्रंथि के अन्य विकारों (मूत्र    जलन , बूंद बूंद पेशाब टपकना, रात को बार -बार  पेशाब आना,पेशाब दो फाड़)  मे रामबाण औषधि है|  केंसर की नोबत  नहीं आती| आपरेशन  से बचाने वाली औषधि हेतु वैध्य श्री दामोदर से 
98267-95656
 पर संपर्क कर सकते हैं|
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15.1.22

शतावरी एक चमत्कारी आयुर्वेदिक औषधि:Shatavari improves sex power

 


 

सतावर का वानस्पतिक नाम ऐस्पेरेगस रेसीमोसस है यह लिलिएसी कुल का एक औषधीय गुणों वाला पादप है। इसे 'शतावर', 'शतावरी', 'सतावरी', 'सतमूल' और 'सतमूली' के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत, श्रीलंका तथा पूरे हिमालयी क्षेत्र में उगता है। इसका पौधा अनेक शाखाओं से युक्त काँटेदार लता के रूप में एक मीटर से दो मीटर तक लम्बा होता है। इसकी जड़ें गुच्छों के रूप में होतीं हैं। वर्तमान समय में इस पौधे पर लुप्त होने का खतरा है।सतावर अथवा शतावरी भारतवर्ष के विभिन्न भागों में प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली बहुवर्षीय आरोही लता है। नोकदार पत्तियों वाली इस लता को घरों तथा बगीचों में शोभा हेतु भी लगाया जाता है। जिससे अधिकांश लोग इसे अच्छी तरह पहचानते हैं। सतावर के औषधीय उपयोगों से भी भारतवासी काफी पूर्व से परिचित हैं तथा विभिन्न भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में इसका सदियों से उपयोग किया जाता रहा है। विभिन्न वैज्ञानिक परीक्षणों में भी विभिन्न विकारों के निवारण में इसकी औषधीय उपयोगिता सिद्ध हो चुकी है तथा वर्तमान में इसे एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा होने का गौरव प्राप्त है।

शतावरी एक चमत्कारी औषधि है जिसका उपयोग कई रोगों के इलाज में किया जाता है। शतावरी की खूबसूरत लता के रूप में घरों और बंगलों में भी लगाई जाती है। यह पौधा झाड़ीनुमा होता है, जिसमें फूल मंजरियों में एक से दो इंच लम्बे एक या गुच्छे में लगे होते हैं और फल मटर के समान पकने पर लाल रंग के होते हैं। इसके पत्ते हरे रंग के धागे जैसे सोया सब्जी की तरह खूबसूरत, उठल में शेर के नखों की तरह मुड़े हुए मजबूत कांटे, जड़ों में सैकड़ों की संख्या में हरी भूरी जड़ें जो इसका प्रमुख गुणकारी अंग शतावरी है मिलती है। इन जड़ों को ही ऊपर का पतला छिलका उतार सुखा कर औषधि रूप में प्रयोग करते हैं।
सतावर की पूर्ण विकसित लता 30 से 35 फुट तक ऊँची हो सकती है। प्रायः मूल से इसकी कई लताएं अथवा शाखाएं एक साथ निकलती हैं। यद्यपि यह लता की तरह बढ़ती है परन्तु इसकी शाखाएं काफी कठोर और लकड़ी के जैसी होती हैं। इसके पत्ते काफी पतले तथा सुइयों जैसे नुकीले होते हैं। इनके साथ-साथ इनमें छोटे-छोटे कांटे भी लगते हैं। जो किन्हीं प्रजातियों में ज्यादा तथा किन्हीं में कम आते हैं ग्रीष्म ऋतु में प्रायः इसकी लता का ≈परी भाग सूख जाता है तथा वर्षा ऋतु में पुनः नवीन शाखाएं निकलती हैं। सितंबर-अक्टूबर माह में इसमें गुच्छों में पुष्प आते हैं तथा तदुपरान्त उन पर मटर के दाने जैसे हरे फल लगते हैं।
   आयुर्वेद के आचार्यों के अनुसार , शतावर पुराने से पुराने रोगी के शरीर को रोगों से लड़ने क़ी क्षमता प्रदान करता है । इसे शुक्रजनन, शीतल , मधुर एवं दिव्य रसायन माना गया है । महर्षि चरक ने भी शतावर को बल्य और वयः स्थापक ( चिर यौवन को बरकार रखने वाला) माना है । आधुनिक शोध भी शतावरी क़ी जड़ को हृदय रोगों में प्रभावी मान चुके हैं।

  परंपरागत रूप से शतावरी को महिलाओं की जड़ी बूटी माना गया है, हांलाकि यह पौधा पुरुषों के हार्मोन लेवल को बढ़ा कर उनकी कामुकता में भी इजाफा कर सकता है।

 मिल्‍क बढ़ाए:Shatavari  ke fayde

*यदि रोगी खांसते-खांसते परेशान हो तो शतावरी चूर्ण - 1.5 ग्राम, वसा के पत्ते का स्वरस 2.5 मिली, मिश्री के साथ लें और लाभ देखें।
*प्रसूता स्त्रियों में दूध न आने की समस्या होने पर शतावरी का चूर्ण -पांच ग्राम गाय के दूध के साथ देने से लाभ मिलता है।
*पुरुष यौन शिथिलता से परेशान हो तो शतावरी पाक या केवल इसके चूर्ण को दूध के साथ लेने से लाभ मिलता है।
*यदि रोगी को मूत्र से सम्बंधित विकृति हो तो शतावरी को गोखरू के साथ लेने से लाभ मिलता है। /span>
*शतावरी मूल का चूर्ण -2.5 ग्राम, मिश्री -2.5 ग्राम को एक साथ मिलाकर पांच ग्राम क़ी मात्रा में रोगी को सुबह शाम गाय के दूध के साथ देने से प्रमेह, प्री -मैच्योरइजेकुलेशन (स्वप्न-दोष ) में लाभ मिलता है।
*शतावरी के जड़ के चूर्ण को पांच से दस ग्राम की मात्रा में दूध के साथ नियमित रूप से सेवन करने से धातु वृद्धि होती है।
*वातज ज्वर में शतावरी के रस एवं गिलोय के रस का सेवन करने से ज्वर (बुखार) से मुक्ति मिलती है।
*शतावरी के रस को शहद के साथ लेने से जलन, दर्द एवं अन्य पित्त से सम्बंधित बीमारियों में लाभ मिलता है
*शतावरी को चिर यौवन को बरकार रखने वाला माना है। आधुनिक शोध भी शतावरी की जड़ को हृदय रोगों में प्रभावी मान चुके हैं। अब हम आपको शतावरी के कुछ आयुर्वेदिक योग की जानकारी देंगे, जिनका औषधीय प्रयोग चिकित्सक के निर्देशन में करना अत्यंत लाभकारी होगा।

शक्‍ती वर्धक: 
Shatavari  ke fayde

अगर इसमें पत्‍तो के रस 2 चम्‍मच दूध में मिला कर दिन में 2 बार लें, तो यह शक्‍ती प्रदान करता है।
* यदि आप नींद न आने की समस्या से परेशान हैं तो बस शतावरी की जड़ को खीर के रूप में पका लें उसमें थोड़ा गाय का घी डालें और ग्रहण करें। इससे आप तनाव से मुक्त होकर अच्छी नींद ले पाएंगे।
*शतावरी की ताजी जड़ को मोटा-मोटा कुट लें, इसका स्वरस निकालें और इसमें बराबर मात्रा में तिल का तेल मिलाकर पका लें। इस तेल को माइग्रेन जैसे सिरदर्द में लगाएं और लाभ देखें।

मधुमेह:Shatavari  ke fayde 

कहा जाता है कि शतावरी की जड़ों के चूर्ण का सेवन बगैर शक्‍करयुक्‍त दूध के साथ नियमित लिया जाए तो यह काफी फायदेमंद होगा।

स्वप्न दोष, प्री -मेच्युर -इजेकुलेशन : Shatavari  ke fayde

यदि रोगी स्वप्न दोष से पीड़ित हो तो शतावरी मूल का चूर्ण -2.5 ग्राम ,मिश्री -2.5 ग्राम को एक साथ मिलाकर, पांच ग्राम क़ी मात्रा में रोगी को सुबह शाम गाय के दूध के साथ देने से प्रमेह , प्री -मेच्युर -इजेकुलेशन (स्वप्न-दोष ) में लाभ मिलता है। शतावरी के जड के चूर्ण को पांच से दस ग्राम क़ी मात्रा में दूध से नियमित से सेवन करने से धातु वृद्धि होती है ।

यौन शिथिलता :Shatavari  ke fayde

 यदि पुरुष यौन शिथिलता से परेशान हो तो शतावरी पाक या केवल इसके चूर्ण को दूध के साथ लेने से लाभ मिलता है । घी में चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम चाटकर दूध पीने से शारीरिक थकान, कमजोरी, अनिद्रा, पेशाब में रुकावट, धातुक्षीणता आदि विकार नष्ट होते हैं।

माइग्रेन : Shatavari  ke fayde

सतावर की  ताज़ी जड़ को यवकूट करें ,इसका स्वरस निकालें और इसमें बराबर मात्रा में तिल का तेल मिलाकर पका लें,हो गया मालिश का तेल तैयार, इसे माइग्रेन जैसे सिरदर्द में लगायें और लाभ देखें ।

प्रदर रोग :Shatavari  ke fayde

 सुबह-शाम शतावरी चूर्ण 5 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में थोड़े से शुद्ध घी में मिलाकर चाटने व कुनकुना गर्म मीठा दूध पीने से प्रदर रोग से जल्दी से छुटकारा मिलता है।
गर्भवती स्त्री के लिए : नवमास चिकित्सा का विवरण बताया है। शतावरी के चूर्ण का उपयोग दूसरे, छठे और सातवें मास में दूध के साथ करने और नवम मास में शतावरी साधित तेल का एनीमा लेने तथा इसमें भिगोए हुए रूई के फाहे को सोते समय योनि में रखने के बारे में बताया गया है। इससे योनि-प्रदेश लचीला, पुष्ट और स्निग्ध रहता है, जिससे प्रसव के समय प्रसूता को अधिक प्रसव पीड़ा नहीं होती।




पित्त प्रकोप और अजीर्ण :Shatavari  ke fayde

 पित्त प्रकोप और अजीर्ण होने पर इसका 5 ग्राम चूर्ण शहद में मिलाकर सुबह-शाम चाटना चाहिए। शतावरी के रस को शहद के साथ लेने से जलन , दर्द एवं अन्य पित्त से सम्बंधित बीमारीयों में लाभ मिलता है।

कफ प्रकोप और खाँसी : Shatavari  ke fayde

कफ प्रकोप और खाँसी में शतावरी पाक स्त्री-पुरुष दोनों के लिए बलपुष्टिदायक होता है, अतः इस पाक का सेवन आवश्यकता के अनुसार ही करना चाहिए।यदि रोगी खांसते-खांसते परेशान हो तो शतावरी चूर्ण – 1.5 ग्राम ,वासा के पत्ते का स्वरस 2.5 मिली ,मिश्री के साथ लें और लाभ देखें ।

मूत्र विकृति :Shatavari  ke fayde

 यदि रोगी को मूत्र या मूत्रवह संस्थान से सम्बंधित विकृति हो तो शतावरी को गोखरू के साथ लेने से लाभ मिलता है ।

घाव : Shatavari  ke fayde

शतावरी के पत्तियों का कल्क बनाकर घाव पर लगाने से भी घाव भर जाता है ।
प्रसूता स्त्रियों में दूध न आने क़ी समस्या : प्रसूता स्त्रियों में दूध न आने क़ी समस्या होने पर शतावरी का चूर्ण -पांच ग्राम गाय के दूध के साथ देने से लाभ मिलता है। गाँव के लोग इसकी जड़ का प्रयोग गाय या भैंसों को खिलाते हैं, तो उनकी दूध न आने क़ी समस्या में लाभ मिलता पाया गया है । अतः इसके ऐसे ही प्रभाव प्रसूता स्त्रियों में भी देखे गए हैं ।

जच्चा-बच्चा में सूखी खाँसी : Shatavari  ke fayde

जच्चा-बच्चा को यदि खाँसी हो तो शतावरी चूर्ण, अडूसा के पत्ते और मिश्री समान मात्रा में कूट-पीसकर मिला लें। 10 ग्राम चूर्ण को एक गिलास पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इसे दिन में 3-4 बार 2-2 चम्मच प्रसूता पिए और 5-5 बूंद शिशु को अपने दूध में मिलकार पिलाएँ। इससे सूखी खाँसी में आराम होता है।

वातज ज्वर : Shatavari  ke fayde

वातज ज्वर में शतावरी के रस एवं गिलोय के रस का प्रयोग या इनके क्वाथ का सेवन ज्वर (बुखार ) से मुक्ति प्रदान करता है। वात प्रकोप होने पर शतावरी चूर्ण और पीपर का चूर्ण सम भाग मिलाकर 5 ग्राम मात्रा में शहद के साथ सुबह-शाम चाटने से लाभ होता है।
यदि रोगी खांसते-खांसते परेशान हो तो शतावरी चूर्ण - 1.5 ग्राम ,वासा के पत्ते का स्वरस 2.5 मिली ,मिश्री के साथ लें और लाभ देखें।

*शारीरिक दर्दों के उपचार हेतु आंतरिक हैमरेज, गठिया, पेट के दर्दों, पेशाब एवं मूत्र संस्थान से संबंधित रोगों, गर्दन के अकड़ जाने (स्टिफनेस), पाक्षाघात, अर्धपाक्षाघात, पैरों के तलवों में जलन, साइटिका, हाथों तथा घुटने आदि के दर्द तथा सरदर्द आदि के निवारण हेतु बनाई जाने वाली विभिन्न औषधियों में भी इसे उपयोग में लाया जाता है। उपरोक्त के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के बुखारों ह्मलेरिया, टायफाइड, पीलिया तथा स्नायु तंत्र से संबंधित विकारों के उपचार हेतु भी इसका उपयोग किया जाता है।    *ल्यूकोरिया के उपचार हेतु इसकी जड़ों को गाय के दूध के साथ उबाल करके देने पर लाभ होता है। सतावर काफी अधिक औषधीय उपयोग का पौधा है। यूं तो अभी तक इसकी बहुतायत में उपलब्धता जंगलों से ही है परन्तु इसकी उपयोगिता तथा मांग को देखते हुए इसके कृषिकरण की आवश्यकता महसूस होने लगी है तथा कई क्षेत्रों में बड़े स्तर पर इसकी खेती प्रारंभ हो चुकी है जो न केवल कृषिकरण की दृष्टि से बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी काफी लाभकारी सिद्ध हो रही है।
*शतावरी के पेड़ों के नियमित सेवन से बालको की बुद्धि, और निश्चय-शक्ति बढ़ती है और अच्छा विकास होता है। रूपरंग निखरता है। त्वचा मजबूत और स्वस्थ होती है।

*शरीर भरा-भरा पुष्ट और संतुलित होता है। पफेपफड़े रोग रहित और मजबूत बनते हैं। आँखों में चमक और ज्योति बढ़ती है। शरीर की सब प्रकार की कमजोरियां नष्ट होकर अपार वीर्य वृद्धि और शुक्र वृद्धि होती है। इसके सेवन से वृद्धावस्था दूर रहती है और मनुष्य दीर्घायु होता है।
*जो बच्चे रात को चैंक कर और डर कर अचानक नींद से जाग उठते हों उनके सिरहाने, तकिये के नीचे या जेब में शतावरी के पौधे की एक छोटी सी डंठल रख दें अथवा बच्चे के गले में बांध दें तो बच्चा रात में नींद में डरकर या चैंककर नहीं उठेगा।
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