28.2.24

मधुमेह रोगी क्या खाएं क्या न खाएं |Benificial foods for diabetic patients

 



ब्लड प्रेशर व डायबिटीज ऐसी बीमारी है जो व्यक्ति और महिला का जीवन पूरी तरह से बदल देती है। शुगर का रोग होने पर शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाती है। Type 1 और 2 शुगर कंट्रोल करने व इसका ट्रीटमेंट करने के लिए कुछ लोग अंग्रेजी दवा लेते है पर आप शुगर की आयुर्वेदिक दवा, देसी उपाय और घरेलू नुस्खे से घर पर भी इलाज कर सकते है। मधुमेह कम करने के उपचार के साथ साथ इस बात की जानकारी होना जरुरी है की शुगर में क्या खाएं और क्या न खाए l
शुगर जिसे मधुमेह के नाम से भी जाना जाता है, आमतौर पर ख़राब लाइफस्टाइल के कारण होने वाली बीमारी है। अगर आपकी जीवन शैली सही नहीं है, खान पान स्वास्थ्यकर नहीं है और व्यायाम इत्यादि की कमी है तो आपको शुगर होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इसलिए सबसे पहले तो हमें खान पान की आदतों और शारीरिक श्रम आदि का ध्यान रखना जरुरी है।
मधुमेह के रोगियों के लिए अपने भोजन पर नियंत्रण रखना अत्यंत आश्यक है। कई बार इन्सुलिन लेने वाले मधुमेह के रोगियों को जो भोजन तालिका चिकित्सा द्वारा बतायी जाती है उसमें चाय एवं काफी का भी उल्लेख होता है। उन्हें सिर्फ क्रीम और शर्करा न लेने के लिए कहा जाता है। चाय और काफी का प्रयोग मधुमेह से ग्रस्त किसी भी व्यक्ति के लिए न करना ही श्रेयस्कर है, चाहे वह इन्सुलिन पर निर्भर हो अथवा नहीं। ये पदार्थ अच्छे स्वास्थ के निर्माण में सहायक नहीं होते हैं। ऐसे रोगियों को कई बार चिकित्सकों द्वारा डबलरोटी, अचार, अंडे आदि लेने की सलाह भी दी जाती है पर हमें यह ध्यान रखना चाहिए की ये पदार्थ मधुमेह के रोगी के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थों की श्रेणी में नहीं आते हैं।
मधुमेह से ग्रस्त रोगियों को किसी भी वस्तु से अधिक ताजी, हरी सब्जियों की आवश्यकता होती है । प्रत्येक भोजन के साथ सलाद प्रचुर मात्रा में लिया जाना चाहिए । जब हम आधिक मात्रा में फल एवं सब्जियां लेते हैं तो शरीर में अधिक पानी पहूंचता है । यह गुर्दों एवं मूत्र उत्सर्जन तंत्र के लिए आवश्यक है । मधुमेह की स्थिति में हमें अपने गुर्दों एवं मूत्र उत्सर्जन तंत्र को अच्छी हालत में रखना चाहिए क्योंकी यह रोग गुर्दों पर एक प्रकार का तनाव डालता है । मधुमेह के रोगियों को मिठाई, चाय. काफी, मादक द्रव्यों तथा ध्रूमपान आदि को तुरंत बंद कर देने का प्रयास करना चाहिए । चर्बी और शर्करा दोनों में कमी आने से आश्चर्य और उत्साहवर्धक परिणाम सामने आते हैं ।
मधुमेह से ग्रस्त व्यक्ति को यह भलीभांति समझ लेना चाहिए है की यदि वह असमानता से खाना शुरू कर देगा तो शरीर उस भोजन के अनुकूल हो जाएगा । प्राय: देखा गया है कि अधिकांश व्यक्ति अपने वजन एवं शरीर के आकार-प्रकार को परिवर्तित करना नहीं चाहते । मधुमेह से ग्रस्त बहूत से व्यक्ति भोजन की अपनी आदतों के कारण ही पेट की तकलीफों, कब्ज तथा यकृत के विकारों सी पीड़ित रहते हैं ।

आहार नियंत्रण की आवश्यकता

सामान्य जीवन व्यतीत करने के लिए मधुमेह के रोगी को आहार नियंत्रण के नियमों का पालन करना चाहिए । यहाँ इस बात पर भी ध्यान रखना जरूरी है की मधुमेह के रोगी की आयु और रोग की स्थिति पर ही उसका आहार निर्भर करता है । इसलिए एक ही आहार मधुमेह के सभी रोगियों को नहीं दिया जा सकता ।

आहार नियंत्रण में उपयोगी बातें

मधुमेह के रोगियों को अपना आहार निर्धारण करते समय किन- किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए -

मधुमेह के प्रत्येक रोगी का उद्येश्य यही होना चाहिए की वह अपनी रक्त शर्करा के स्तर को यथासम्भव नियंत्रण में रखे । आहार इस उद्येश्य की पूर्ति में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है इसलिए मधुमेह के रोगी को अपने आहार का निर्धारण करे समय निम्नलिखित सिद्धांतों को आवश्यक रूप से ध्यान में रखना चाहिए ।
आहार संतुलित हो जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा वसा आदि प्रदान करने वाले तत्व आवश्यक मात्रा में हों ।शरीर के लिए आवश्यक विटामिन, खनिज लवण तथा फाइबर आदि पर्याप्त मात्रा में होना
शरीर का वजन आदर्श बनाए रखने के लिए उपयुक्त कैलोरी आहार द्वारा शरीर को मिलती रहें ।
मधुमेह की जटिलताएँ उत्पन्न होने पर उनका नियमन किया जाना संभव हो ।
रोगी का आहार विविधता पूर्ण हो ताकि वह अच्छी तरह से ग्रहण किया जा सके । आहार नियंत्रण के नाम पर कड़वी चीजें खाते- खाते कई बार रोगियों को इससे आरूचि हो जाती है । अत: आहार निर्धारण में रोगियों की रुचि का ध्यान रखना भी अत्यंत आवश्यक हैं ।
रोगी के आहार की महत्वपूर्ण जानकारियां

मधुमेह के कारण

1. डायबिटीज में हमेशा समय पर खाना खाये और बार बार खाना खाने की बजाय एक ही बार अच्छे से भोजन करे।2. मिठाइयां ना खाएं और अगर मिठाई खाने की इच्छा हो तो बिना शुगर की मिठाई खाये और वह भी ज्यादा न खाएं।
3. मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति को ज्यादा देर तक भूखा नहीं रहना चाहिए व उपवास भी नहीं रखना चाहिए।
4. भोजन करने से पूर्व थोड़ा सलाद खाए व खाना हमेशा धीरे धीरे और चबा चबा कर खाये।
5. शराब बियर व अन्य किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहे।
6. जो लोग जंक फ़ूड ज्यादा खाते है उनमें शुगर होने की सम्भावना ज्यादा होती है। इसका कारण ये है की खाने की ऐसी चीजों में fat अधिक होता है जिससे शरीर में जरुरत से ज्यादा कैलोरी बढ़ जाती है और मोटापा बढ़ने लगता है, शरीर में प्रयाप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बन पाता और शुगर का लेवल बढ़ने लगता है।
7. डायबिटीज एक अनुवांशिक रोग भी है मतलब अगर परिवार में माता पिता को मधुमेह है तो उनके बच्चों को भी ये रोग होने की संभावना अधिक होती है।
8. मोटापा और जरुरत से ज्यादा वजन वाले लोगों को डायबिटीज होने का खतरा अधिक होता है।
9. शारीरिक श्रम ना करना भी में से एक है। कुछ लोगों की दिनचर्या ऐसी होती है की वे एक जगह बैठ कर काम करते है और ना ही व्यायाम के लिए समय निकालते है।
10. हर समय तनाव में रहना या फिर डिप्रेशन से प्रभावित होना।
11. धूम्रपान, तंबाकू या कोई दूसरा नशा करने से भी शुगर हो सकती है।
12. दवाइयों का ज्यादा सेवन करना भी हो सकता है। अक्सर कोई रोग होने पर हम बिना डॉक्टर की सलाह के दवा लेने लगते है। कोई भी अंग्रेजी दवा बिना सलाह के लंबे समय तक खाना भी नुकसान कर सकता है।
13. ज्यादा चाय, कोल्ड ड्रिंक्स, मीठा और चीनी का सेवन करना।

मधुमेह के लक्षण

शुगर के अनेक लक्षण है जिनमें से प्रमुख लक्षण यहां बताये जा रहे है। अगर किसी भी व्यक्ति को इनमें से ज्यादातर सिम्पटम्स दिखाई दे तो तुरंत डॉक्टर के पास जा कर टेस्ट करवाये।

ज्यादा भूख लगना

किडनी ख़राब होना

पेशाब बार बार आना।

पानी की प्यास ज्यादा लगना

आँखों की रौशनी कम लगना

रोगी के वजन में गिरावट आना

शरीर में कमजोरी महसूस करना

चोट और जख्म जल्दी ठीक ना होना

हाथों पैरों और गुप्तांग पर खुजली वाले जख्म होना

स्किन इंफेक्शन होना और बार बार त्वचा पर फोड़े फुंसी निकलना

 अति भोजन तथा मोटापे के कारण मधुमेह के प्रत्येक चार में से तीन रोगियों का वजन अधिक होता है । इसलिए ऐसे रोगियों को केवल चीनी एवं परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट ही नहीं बल्कि अति प्रोटीन एवं चिकनाई से भी बचना चाहिए 
मधुमेह के रोगी का सर्वोत्तम आहार प्राकृतिक खाद्य, अंकुरित, अन्नकण, फल एवं हरी सब्जी है । यह क्षारीय आहार है । पूर्ण अन्न, कूटू एवं हरी सोया, मेथी अत्यंत लाभप्रद हैं । फलों में संतरा जामुन, अनानास, आवंला, सेब तथा पपीता आदि लिए जा सकते हैं । मट्ठा विशेष रूप से उपयोगी है ।
आहार में कम से कम 90 प्रतिशत अपक्वाहार होना ही चाहिए । अपक्वाहार से अग्नाशय ग्रन्थि उद्दीप्त होकर इन्सुलिन उत्पन्न करती है । अति आहार बंद करके एक बार में अधिक भोजन करने की अपेक्षा चार बार थोड़ा-थोड़ा खाना निरापद है । मधुमेह में प्रोटीन एवं चिकनाई का चयापचय मंद होने से अम्लता बढती है । अत: क्षारीय भोजन उपयुर्क्त है । लहसून से रक्त शर्करा घटती है । जैविकीय उपचारों में पर्याप्त व्यायाम एवं संयमित आहार, खुली हवा में खेलने, दौड़ने, टहलने एवं तैरने में चयापचय क्रिया तेज होती है ।
निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए :-लंबा नहीं बल्कि दो – तीन दिन का रसोपवास सर्वोत्तम ।
शारीरिक एवं मानसिक तनाव से सदा बचना चाहिए ।
कब्ज न रहे इसका ध्यान रखना चाहिए ।
शुष्क घर्षण अवश्य करना चाहिए । इससे चयापचय उन्नत होता है ।
मैगनीज प्रधान खाद्य लेना चाहिए ।
मधुमेह के रोगियों को अजवाइन, सोया, मेथी तथा गाजर की पत्ती का रस दिया जा सकता है । खट्टे फल, लौकी, खीरा, एवं काकड़ी अग्नाशय ग्रंथि को उन्नत करते हैं । प्याज एवं लहसून का रस उपयोगी है अत: इनका रस अन्य सब्जीयों के रस में मिलाना चाहिए ।
फ्रेंचबीन, मकोय की पत्ती, बेल की पत्ती, करेला, अल्फाल्फा, चौलाई, सोया, मेथी, जामुन की पत्ती आदि लेना चाहिए। संतरे का छ्लिका बहूत ही उपयोगी है। सुबह, दोपहर एवं शाम को दिन में तीन बार इसका काढ़ा बनाकर पीना चाहिए । परिष्कृत एवं प्रक्रियागत खाद्यों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। रोजाना एक घंटे का शारीरिक श्रम मधुमेह के रोगियों के लिए अनिवार्य है ।
रोजाना बेल की पत्तीयों का रस 25 से 50 मि. ली. लेना चाहिए । करेला एवं कूंदरू की पत्ती का रस भी 20 मि. ली. लिया जा सकता है। मधुमेह में नेत्र ज्योति घटती है अत: विटामिन ए, बी काम्प्लेक्स तथा विटामिन सी पर्याप्त मात्रा में लेना चाहिए ।
डायबिटीज चाहे ज्यादा हो या फिर बॉर्डर लाइन में हो, हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करना फायदेमंद होता है. डायबिटीज के मरीजों के लिए कच्चा केला, अनार, अवोकाडो और अमरूद का सेवन भी अच्छा होता है. इसके अलावा डायबिटीज पेशेंट्स को डेयरी प्रोडक्ट का दही और दूध का भी सीमित मात्रा में ही सेवन करना चाहिए.

डायबिटीज में क्या ना खाएं

डायबिटीज के मरीजों को खाने में कुछ चीजों से परहेज करना चाहिए. जो लोग डायबिटीक पेशेंट्स होते हैं, उन्हें खाने में नमक का इस्तेमाल कम ही करना चाहिए. इसके साथ ही कोल्ड्रिंक्स, चीनी, आइसक्रीम, टॉफी जंक फ़ूड या ऑयली फ़ूड से भी शुगर लेवल के बढ़ने का काफी खतरा रहता है. ऐसे में डायबिटिक पेशेंट्स को इन सभी चीजों से परहेज करना चाहिए.तरल पदार्थ से संबंधित जानकारियां
मधुमेह का एक रोगी कितनी मात्रा में स्टार्च एवं शर्करायुक्त चीजें ले सकता है-
ग्लूकोज के अक्सिकारण के लिए इन्सुलिन की आवश्यकता होती है। आक्सिकरण की यह प्रकीया शरीर के लिए ऊर्जा उत्पन्न करती है। जब इन्सुलिन की काफी मात्रा उत्पदित नहीं होती तो उसका परिणाम मधुमेह के रूप में सामने है इसलिए स्टार्च युक्त खाद्यपदार्थ अन्य साधारण लोगों की अपेक्षा मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों के आहार का अधिक आवश्यक होते हैं।
शहद एवं कई फल जैसे अंजीर आदि तथा कुछ सब्जियाँ जैसे गाजर एवं चुकन्दर आदि में फ्रक्टोज शर्करा होती है जिसे फल शर्करा का नाम से भी जाना जाता है। फ्रक्टोज शर्करा मधुमेह से ग्रस्त लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी होती है । मधुमेह से ग्रस्त रोगी के बारे में हमें यह जानने का प्रयास करना चाहिए कि शर्करा एवं स्टार्च की मात्रा किस स्तर तक शरीर ग्रहण कर सकता है । कभी-कभी स्टार्च की मात्रा किस स्तर तक शरीर ग्रहण कर सकता है। कभी – कभी स्टार्च की मात्रा एकदम से घटा दी जाती है और बहुत सारे मीठे खाद्य पदार्थ, मिठाई एवं स्टार्च जो एक सामान्य आदमी खाता है, एक साथ कम किए जा सकता हैं । यह मधुमेह की तीव्रता और ग्रहण किए जाने वाली इन्सुलिन की मात्रा पर निर्भर करता है की स्टार्च युक्त खाद्य पदार्थों की कितनी मात्रा ली जा सकती है। हम इसे रक्त शर्करा एवं मूत्र परीक्षणों से नियंत्रण कर सकते हैं।
ग्लाइसिमिक इंडेक्स,ग्लाइसिमिक लोड और ग्लाइमिक रेस्पोंस
मधुमेह के आहार के बारे में चर्चा करते समय ग्लाइसिमिक इंडेक्स ग्लाइसिमिक लोड और ग्लाइमिक रेस्पोंस का जिक्र आता है । ये क्या हैं ?
ये मधुमेह से संबंधित सूचायाकंक हैं जिनका प्रयोग चिकित्सकों द्वारा किया जाता है। ग्लाहसिमिक इंडेक्स है जो खाद्य पदार्थों में मौजूद कार्बोहाइड्रेट के ग्लूकोज में बदलने के आधार पर उन खाद्य पदार्थों को 0-100 के बीच स्थान देता है। एक अनुसंधान के अनुसार हर खाने में मौजूद शर्करा के कारण रक्त में शर्करा का स्तर नहीं बढ़ता है। ग्लाइसिमिक लोड ( जी. एल.): जी. आई. और खाने की कुल मात्रा मिलकर जी. एल. का पता लगाया जाता है। जी. एल. रक्त शर्करा में बढ़ोत्तरी मात्रा को निर्धारित करता है।
ग्लाइसिमिक रिस्पोंस ( जी.आर.) यह एक महत्वपूर्ण सूचकांक है। यह शरीर की वह रफ्तार है जिससे एह खाद्य पदार्थ के ग्लूकोज को रक्त शर्करा में बदलता है।


आप मधुमेह के एक रोगी को दिए जाने वाले दैनिक आहार का नमूना चार्ट बना सकते हैं

मधुमेह के प्रत्येक रोगी को दिया जाने वाला आहार उस रोगी की व्यक्तिगत आवश्यकताओं एवं जीवनशैली के हिसाब से निश्चित किया जाना चाहिए । आहार चार्ट बनाते समय रोगी की आयु, उसका वजन उसके कार्य की प्रकृति, दिनचर्या तथा आवश्यक कैलोरियों की मात्रा आदि को ध्यान में रखा जाना चाहिए । लगभग 1500 कैलोरी उपलब्ध कराने वाले आहार की नमूना तालिका इस प्रकार बनाया जा सकता है :-
प्रात: काल- एक गिलास गूनगूने पानी में आधा निम्बू निचोड़ कर लें या मेथी आथवा आंवले का पानी लें ।
नाश्ता (8 बजे ) – एक कटोरी दही या अंकुरित मूंग एवं मेथी या एक गिलास छाछ ।
भोजन (11 से 12 बजे) – गेहूं, जौ, चना एवं मेथी को मिला कर उस आटे की रोटियाँ2, उबली हुई सब्जी, सलाद, अंकुरित मूंग की दाल या एक कटोरी दही, आंवले की चटनी ।
सांयकाल (4 बजे) – (प्रात: काल की तरह) – सब्जी का सूप या भुने हुए चने या नींबू एवं पानी
भोजन (7 बजे) – रोटी. सब्जी एवं सलाद (दोपहर की तरह) यह एक नमूना चार्ट है । रोगी के रक्त में शर्करा की स्थिति को देखते हुए तथा चिकित्सक के निर्देशानुसार इसमें आवश्यक परिवर्तन किये जा सकते है ।

आहार पर नियंत्रण रखना काफी

मधुमेह के नियंत्रण के लिए क्या केवल आहार पर नियंत्रण रखना काफी है ?
मधुमेह के अधिकतर रोगी इन्सुलिन पर अनिर्भर श्रेणी के होते हैं । इनमें से अधिकांश में रोग पर नियंत्रण रखने के लिए आहार पर नियंत्रण रखना शायद काफी हो सकता है । किन्तु ऐसे रोगियों का आहार नियंत्रण होने के साथ-साथ पोषण की दृष्टि से संतुलित भी होना चाहिए । यही नहीं आहार का निर्धारण करते समय रोगी की आयु, व्यवसाय, शारीरिक वजन तथा रोग की स्थिति आदि को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए ।
खानपान पर नियंत्रण रखना आवश्यक

मधुमेह के नियंत्रित हो जाने के बाद भी खानपान पर नियंत्रण रखना आवश्यक है-

चिकित्सक मधुमेह को जीवन भर के रोग की संज्ञा देते हैं ।इसलिए मधुमेह को नियंत्रण में रखने के लिए हमेशा आहार संबंधी संतुलन बनाए रखना चाहिए । आहार में की गई गड़बड़ी रक्त में शर्करा की स्थिति को पुन: अनियंत्रित कर सकती है । इसलिए आहार का निर्धारण गंभीरता से सोच –विचार कर एवं विविधतापूर्ण ढंग से किया जाना चाहिए। ताकि निरंतर नियंत्रित आहार लेने से रोगी में भोजन के प्रति अरूचि उत्पन्न न हो । धनिया, जीरा, काली मिर्च, नींबू तथा आँवला जैसे पदार्थों का उपयोग भोजन को स्वादिष्ट एवं रूचिकर बनाने में किया जा सकता है । मधुमेह के रोगियों को अपने खान - पान का समय निश्चित कर सदैव उसका पालन करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकी इसके बिना रक्त में शर्करा की मात्रा को सामान्य स्तर पर बनाए रखना संभव नहीं होगा ।
आहार में ‘फाइबर’ की उपयोगिता

मधुमेह के रोगी के आहार में ‘फाइबर’ के क्या उपयोगिता है ?

फाइबर का अर्थ है – मोटे रेशेदार पदार्थ । मधुमेह के रोगी के आहार में ‘फाइबर’ की मात्रा अधिक होनी चाहिए । ये भोजन के बाद रक्त में शर्करा के स्तर को बढ़ने नहीं देते । ये कब्ज को दूर करते हैं तथा रक्त में ट्राईग्लिसराइड्स तथा कोलेस्ट्रोल के स्तर को भी कम करते हैं । ये वजन कम करने में भी सहायता पहुंचाते हैं । हरी पत्ती वाली सब्जियाँ, मेथी तथा चोकर आदि से फाइबर की पूर्ति की जा सकती है । आधुनिक अध्ययनों ने भी इस बात को प्रादर्शित किया है ।
चोकर का नियमित प्रयोग मधुमेह के अलावा हृदय रोगियों के लिए भी लाभदायक है । “हिन्दुस्तान” समाचार पत्र में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट के अनुसार “मात्र 10 ग्राम चोकर आप के दिल की रक्षा कर सकता है । अगर आप अपने खाने में रोजाना 10 ग्राम फाइबर जैसे – चोकर आदि को और बढ़ा दें तो दिल की बीमारी की संभावना 27 प्रतिशत कम जो जाती है ।” यह शोध किया है अमेरिका डाक्टर मैकयोन ने ।

इस शोध के अनुसार हर व्यक्ति को कम से कम रोजाना 37 ग्राम फाइबर जरूर अपने भोजन में शामिल करना चाहिए। वैसे आम आदमी के भोजन में 15 से 20 ग्राम फाइबर शामिल रहता है। इसे 10 ग्राम और बढ़ा दें तो दिल की बीमारी से बचा जा सकता है । डॉ. मैकयोन ने अपने शोध में पाया है की ऐसी चीजें जिनसे स्टार्च बनता है, कम खानी चाहिए या एकदम ही नहीं खानी चाहिए, क्योंकी इनकी भूमिका मानव शरीर में चीनी की तरह होती है। स्टार्च युक्त चीजें रक्त में पहुँच कर धीरे-धीरे चीनी बनाती हैं । अत: आलू, शकरकंद आदि कम खानी चाहिए। अगर आप आलू खाना ही चाहते हैं तो आप मटर आलू कभी न खाएँ, क्योंकी ये स्टार्च पैदा करेंगे । आलू खाना हो तो आलू मेथी, आलू पालक आदि खाये जा सकते हैं। स्टार्च मानव शरीर में प्रवेश करके पहले मेटबालिक सिंड्रोम पैदा कराता है जो दिल को सेहत मंद रखने के लिए जरूरी है की आप रोजाना तीन फल खाएँ। उनका कहना है कि फल जूस से बेहतर होते हैं, क्योंकी इनमें रेशे होते हैं। फल सलाद से बेहतर हैं ये तीनों फल रंग बिरंगे और अलग-अलग होने चाहिए । यह नहीं की आप तीन सेब खा लें या तीन केले। ये तीनों फल अलग-अलग हों। एक सेब में 3 ग्राम, आड़ू में 5 ग्राम, केले,में 3 ग्राम फाइबर होता है । 10 ग्राम चोकर तथा ये तीन रंगबिरंगे फल आप को दिल की बीमारी से मुक्त रखने में समर्थ हैं।
इस शोध पर आगे कहा गया है की जब भी आप कुछ खाने का सामन खरीदें तो देखें की उस पर ‘होल’ लिखा है या नहीं जिसका अर्थ है की यह फाइबर युक्त है । जैसे डबलरोटी या आटा उस पर ‘होल’ लिखा होना चाहिए । जिस पर ‘एनरिच’ लिखा हूआ हो उसका अर्थ है की वह स्टार्च युक्त है और उसे खाने से परहेज करना चाहिए । कई खाद्यान्नों के ऊपर लिखा रहता है ‘एनरिच’ जो की दिल के लिए सुरक्षित नहीं माना जाता है । शोध में आगे कहा गया है की चीनी की अपेक्षा गुड़ ज्यादा अच्छा है । ब्राउन आटा सफेद आटे की तुलना में ज्यादा अच्छा है । डॉ. मैकायोन ने लोगों को मैदा कल्चर से बचने की सलाह दी है ।
उपर्युक्त स्पष्टीकरण से स्पष्ट है कि फाइबर के रूप में चोकर का प्रयोग न केवल मधुमेह के रोगियों के लिए बल्कि अन्य सभी के लिए भी अत्यंत लाभदायक है

मधुमेह और मेथी

मेथी मधुमेह को नियंत्रित करती है।
नवीन अनुसंधानों ने मधुमेह के नियंत्रण में मेथी की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया है । प्राचीन समय से ही हमारे रसोईघरों में मेथी का प्रयोग कई रूपों में होता रहा हैं । मेथी के बीजों में काफी मात्रा में फाइबर होता है । इसमें ट्राईगोनेलीन नामक एक एल्केलाएंड भी पाया गया है । जिसका कार्य रक्त में शर्करा के स्तर को कम करना है । मेथी का प्रयोग मधुमेह के दोनों वर्गो, इंसुलिन पर निर्भर एवं इंसुलिन पर अनिर्भर में किया जा सकता है । यह रक्त में कोलेस्ट्रोल एवं ट्राईग्लिसराईडस के स्तर को भी कम करने में मदद करती है ।
मधुमेह नियंत्रण में मेथी के महत्व को देखते हुए प्राय: सभी प्राकृतिक चिकित्सालयों एवं योग केन्द्रों में मधुमेह के रोगियों के आहार में मेथी का प्रयोग अंकुरित के रूप में तथा मेथी पानी के रूप में काफी लम्बे समय से किया जाता रहा है ।

औषधीय गुणों से भरपूर मेथी की पत्तियों में ट्राईगोथीन होता है । इसके सब्जी यकृत, हृदय और मस्तिष्क संबंधी विकारों के लिए एक उत्तम औषधि माना जाता है । मधुमेह की प्रारंभिक आवस्था में मेथी की ताज़ी पत्तियों का रस प्रात: काल नियमित रूप से तीन महीने तक लिया जा सकता है ।

मधुमेह के रोगी को दाना मेथी का सेवन किस प्रकार से करना चाहिए ?

मधुमेह के रोगी दाना मेथी को कई प्रकार का सेवन किस प्रकार से करना चाहिए ?दाना मेथी को उबालकर उसका क्वाथ बनाकर
दाना मेथी को भिगोकर उसका पानी पीकर
दाना मेथी को अंकुरित करके
दाना मेथी को पीसकर उसका पाउडर बनाकर
प्रकृतिक चिकित्सा केन्द्रों में मेथी को अंकुरित करके प्रयोग में लाया जाता है । यह अत्यंत सुगम एवं सुविधाजनक है । मेथी के अंकुर अत्यंत पुष्ट एवं आकर्षक होते हैं । इतना ही नहीं अंकुरित होने के पश्चात् मेथी की कडुवाहट भी काफी हद तक कम हो जाती है ।

अन्य उपयोगी फलों का उपयोग


मधुमेह के रोगियों को जामुन, करेला, नीम तथा बेलपत्र आदि के प्रयोग की सलाह भी दी जाती है । ये मधुमेह के नियंत्रण में मदद करती हैं।
ऐसा माना जाता है की एय चीजें रक्त में शर्करा के स्तर को कम करने में मदद करती हैं । इसलिए प्राय: मधुमेह के रोगियों द्वारा इनका प्रयोग किया जाता है । कागजी नींबू का रस ताजे पानी में निचोड़कर दिन में एक दो बार पीना चाहिए । ताजे आंवले का रस रोज लेना इस रोग इस रोग में अत्यंत लाभकारी पाया गया है । जामुन का थोड़ा-थोड़ा रस दिन में चार बार पीना भी इस रोग में हितकारी माना जाता है । ताजे बेल पत्रों को पीसकर उनका 10 मिली रस या करेले का आधा कप रस प्रात: उठने पर लेना चाहिए । रक्त में शर्करा के स्तर को ध्यान में रखते हुए तथा चिकित्सा के निर्देशानूसर इन सभी का प्रयोग आवश्यक्तानूसार किया जा सकता है ।

करेला मधुमेह में किस प्रकार से लाभ पहुँचाता है ?

प्राचीन समय से ही करेले का प्रयोग मधुमेह की चिकित्सा के लिए किया जाता रहा है । पुस्तक के लेखक डॉ. अमन ने मधुमेह रोग पर करेला, दाना मेथी और धनिया के प्रयोग द्वारा किए गए एक अनूसंधान का संदर्भ दिया है । यह अनूसंधान कार्य 1957 से 1967 के बीच किया गया था जिसमें कुल 210 रोगियों को चिकित्सा दी गई । उनमें से 190 पुरूष तथा 20 महिलाएँ थीं । रोगियों को तीन समूहों में बाँटा गया –

-प्रथम समूह के रोगियों को एक औंस ताजा करेले का रस दिन में एक बार खाली पेट 3 महीने तक दिया गया । साथ में निम्न कार्बोहाइड्रेट आहार देते हुए मूत्र में शर्करा की नियमित जाँच की गई ।
-दूसरे समूह के रोगियों को एक औंस करेले का रस, दाना मेथी का क्वाथ तीन महीने लिए दिया गया ।
-तीसरे समूह के रोगियों को करेले का रस, दाना मेथी का क्वाथ एवं सप्तरंगी की छाल का क्वाथ तीन माह के लिए किया गया ।
औषिधीय गुणों से भरपूर करेले का प्रयोग मधुमेह के रोगियों के लिए अत्यंत लाभदायक माना जाता है । ‘ रस पीओ कायाकल्प करो’ पुस्तक के लेखक कांति भट्ट और मनहर डी.शाह ने मधुमेह के रोगियों को गाजर, पालक, गोभी, नारियल, सेलेरी तथा करेले का रस लेने का परामर्श दिया है ।

मधुमेह के नियंत्रण में सहयोगी कुछ अन्य प्राकृतिक खाद्य पदार्थों के बारे में बताएँ ।

निम्नलिखित खाद्य पदार्थ वयस्कों में डायबिटीज ( टाइप – 2) में रक्त में चीनी की मात्रा कम रखने में सहायक होते हैं ।मेथी – मेथी के बीज रक्त में चीनी की मात्रा कम करते हैं, इन्सुलिन का स्तर भी घटाते खराब कोलेस्ट्रोल कम करते हैं और अच्छा बढ़ाते हैं ।
एलोवेरा – एलोवेरा की पत्तियों के अंदर का रस प्रभावशाली है ।
प्रिकली पियर – इसमें ऐसे फाइबर होते हैं जो चीची के अणुओं के झटका देते हैं और रक्त में उनका जाना धीमा कर देते हैं ।
ग्रीन टी – इसमें कुछ तत्व बुनियादी और इन्सुलिन आधारित ग्लूकोज का उपयोग बढ़ा देता हैं ।
लहसुन – ग्लूकोज का स्तर कम करता है, फ्री इन्सुलिन की मात्रा बढ़ाता है ।
दालचीनी- इन्सुलिन के प्रभाव को तिगुना कर देती है ।
कोको – इसमें फ्लेवेनाएडस होते हैं जो शरीर में चीनी का उपापचय बढ़ा देते हैं ।
करेला – शरीर में ग्लूकोज का उपयोग बढ़ा देता हैं, रक्त में ग्लूकोज का बनना कम करता है, करेले का रस या इसके बीज उपयोगी है ।
स्टिंगीगं नेटल – इसकी जड़ें और पत्तियाँ रक्त में चीनी का स्तर कम करती हैं ।
निषेधों का पालन

मधुमेह के रोगियों को अपने आहार में क्या-क्या सम्मिलित नहीं करना चाहिए।

मधुमेह के रोगियों को भी इनसे बचना चाहिए ।तम्बाकू ( जर्दा, खैनी, गुटका, बीड़ी, सिगरेट एवं सिगार के रूप में )
काफी, चाय, चाकलेट, कहवा कोका कोला आदि।
नमक का अधिक प्रयोग किन्तु नमक न लेना सर्वोत्तम है ।
मद्यसार का उपयोग ।
हानिप्रद गरम मसाले ।
परिष्कृत सफेद चीनी, सफ़ेद मैदा एवं वनस्पति घी और इससे बनाए गए समस्त खाद्य, पावरोटी, बिस्कुट, पूड़ी, मिठाई, नमकीन एवं आइसक्रीम आदि ।
सभी प्रक्रियागत परिष्कृ, डिब्बा बंद, परिरक्षित एवं फैक्ट्री में बनाए गए खाद्य ।
सभी बासी एवं दूर्गंधित खाद्य ।
सभी रासायनिक औषिधियाँ (संभव हो तो बिल्कुल नहीं वर्ना केवल एकदम आपतीकाल् में ही लेना चाहिए ।)
10. मकान, बाग़, एवं खेत के सभी जहरीले छिडकावयुक्त खाद्य । इसके अतिरिक्त अंडा, मांस, मछली आदि का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए

शुगर की बीमारी में क्या परहेज करना चाहिए?

शुगर के इलाज में सबसे अधिक जिन बातों का ध्यान रखना है, वो है आपकी लाइफस्टाइल यानि की आपकी दैनिक दिनचर्या क्योंकि मधुमेह एक लाइफस्टाइल डिजीज है जो गलत खान पान की आदतों और एक्सरसाइज के कमी से होता है। इसलिए खाने में विशेष परहेज़ रखना होता है, आइये जानते हैं :-
भोजन करने का एक निश्चित समय रखें और भूखे ना रहें।
मीठे उत्पादों जैसे मिठाई, मीठे फल, मीठी चाय आदि को बिलकुल छोड़ दें। अगर खाना भी पड़े तो कम मात्रा में ही खाएं।
व्रत, उपवास आदि से परहेज करें।
खाने में सलाद का प्रयोग जरुर करें।
शराब व अन्य किसी भी प्रकार के नशे को तुरंत बाय बाय कर दें।
जंक फ़ूड, डिब्बा बंद प्रोडक्ट्स ये सभी अधिक कैलोरी से युक्त होते हैं जो शरीर में इन्सुलिन को घटाकर शुगर लेवल में वृद्धि कर देता है अतः इनसे यथासंभव बचें।
बिना डॉक्टर के सलाह पर दवाइयों का सेवन, लगातार अंग्रेजी दवाइयां लेना आदि भी शुगर को अनियंत्रित कर देते हैं। इसलिए लम्बी दवाई के लिए डॉक्टर की सलाह लेवें।

22.2.24

समोसा और कचोरी में कौन आगे है सेहत को नुकसान पहुँचाने में | How Kachori and Samosa harmful to health






  आप कढ़ी कचौरी या समोसे खाते हैं तो आपको सावधान हो जाना चाहिए! देखने में आया है कि खाद्य तेल का उपयोग करते समय लापरवाही बरती जा रही है। तेज आंच पर तेल कई बार गर्म करके समोचे और कचोरी तले जा रहे हैं। बार बार तेल गर्म करने से तेल में रासायनिक परिवर्तन होता है। यह डीएनए को नुकसान पहुंचाने और उसमें परिवर्तन लाने का कारण बनता है। तेल के धुएं में अमोनियम नाइट्रेट सहित कई हानिकारक गैस होती हैं, जो सेहत को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
 चुनिंदा दुकानदारों को छोड़ दिया जाए तो इस व्यवसाय से जुड़े लोग धड़ल्ले से एक ही तेल को बार बार गर्म करके उसमें से कचोरी और समोसे तल रहे हैं। खाद्य विशेषज्ञों की मानें तो तेल को दो से ज्यादा बार तेज आंच में गर्म करने पर वह सेहत के लिए नुकसानदायक हो जाता है। तेल में मौजूद सैचुरेटेड फैट लिवर पर जमा हो जाता है, जिससे फाइब्रोसिस और सिरोसिस जैसी बीमारी होने की आशंका बनी रहती है। कायदे से तो दो बार से अधिक गर्म किए हुए तेल को इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। उसे निकालकर अलग रख देना चाहिए। यह तेल बायोडीजल बनाने में काम आता है। खाद्य सुरक्षा विभाग को भी ऐसा तेल जब्त कर लेना चाहिए।

तेल बदलते नहीं हैं
   एक बार कड़ाही में 15 लीटर तेल डालते हैं। इसमें तीन चार बार में 450 कचोरी तली जाती है। जले हुए तेल को बदलते नहीं हैं। उसी तेल में नया तेल मिला देते हैं।
  बारिश का मौसम स्वाद को लेकर बड़ा नर्म माना जाता है। बारिश में प्याज के पकौड़े, गर्मा-गर्म समोसे, कचौड़ी, चाय और भी कई तरह के पकवान लोग खुशी से खाते हैं। खासकर समोसे और कचौड़ी के बीच एक अजीब सी जंग चलती रहती है। कई लोग सुबह के नाश्ते में समोसे खाते हैं, तो शाम के स्नैक्स में कचौड़ियों का आनंद उठाते हैं। लेकिन आप क्या जानते हैं समोसा और कचौड़ी दोनों में से कौन आपकी सेहत के लिए ज्यादा नुकसानदायक हो सकता है?

क्या समोसा खाना हेल्दी है?

आलू में कई तरह के मसालों को भूनकर, उसको मैदे में लेपटकर और फिर तेल में डीप फ्राई किया गया समोसा खाने में बहुत स्वादिष्ट होता है। डाइटिशियन रीवा श्रीवास्तव के मुताबिक 1 समोसे में लगभग 103 से 110 कैलोरीज पाई जाती है। एक ही तेल में बार-बार फ्राई होने की वजह से समोसे में कोलेस्ट्रोल भी ज्यादा होता है। डाइटिशियन का कहना है कि प्रतिदिन या सप्ताह में 2 से 3 बार समोसे खाने वाले लोगों को हार्ट संबंधित समस्याएं होने का खतरा हो सकता है।
  बारिश में समोसे का स्वाद दोगुना हो जाता है. लेकिन इसके सेवन से आपके शरीर को काफी नुकसान हो जाता है. इसलिए समोसे का सेवन सीमित मात्रा में करें. खासतौर पर समोसे का तेल काफी विषैला होता है जो काफी हानिकारक होता है. इसके अलावा समोसे का मैदा भी कई तरह की समस्याओं को जन्म दे सकता है. इसलिए कोशिश करें कि समोसे का सेवन न करें. आइए जानते हैं समोसे का सेवन करने से शरीर को होने वाले नुकसान क्या हैं?

समोसे के सेवन से शरीर को होने वाले नुकसान

तेल से हार्ट डिजीज होने का खतरा


समोसे के तेल में काफी ज्यादा फैट होता है. इसके अलावा मार्केट में मिलने वाला समोसे को ऐसे तेल में तला जाता है, जिसे बार-बार गर्म किया जाता है. इस तरह के तेल का सेवन करने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ सकता है, जिसकी वजह से हार्ट अटैक और ब्लॉकेज की परेशानी हो सकती है.

कैलोरी की अधिकता


समोसे में कैलोरी की मात्रा काफी ज्यादा होती है. ऐसे में अगर आप रोजाना समोसा खाते हैं जो आपका मोटापा काफी ज्यादा बढ़ सकता है. एक्सपर्ट्स की मानें तो 1 समोसे में लगभग 262 कैलोरी होती है जो काफी ज्यादा कैलोरी है.

फैट बढ़ने की समस्या

काफी ज्यादा समोसा खाने से शरीर का फैट काफी ज्यादा बढ़ सकता है. इसमें ट्रांस फैट होता है जो कई तरह की समस्याएं जैसे- हार्ट डिजीज, मोटापा इत्यादि का कारण होता है.

स्किन को पहुंचाता है नुकसान

समोसे में आलू, मैदा और तेल काफी ज्यादा यूज किया जाता है. ये सभी चीजें आपकी स्किन के लिए हेल्दी नहीं मानी जाती हैं. इसका अधिक सेवन करने से आपकी स्किन पर झुर्रियां और पिंपल्स होने की परेशानी हो सकती है. समोसे का सेवन स्वास्थ्य के लिए हेल्दी नहीं होता है. इसलिए सीमित मात्रा में इसका सेवन करें. अधिक मात्रा में इसका सेवन ब्लड प्रेशर, मोटापा, स्किन डिजीज का कारण बन सकता है.
समोसे को बनाने में मैदे का इस्तेमाल किया जाता है। मैदे में बहुत अत्यधिक मात्रा में स्टार्च पाया जाता है, जो हाई ब्लड प्रेशर और मोटापा का कारण बन सकता है। ज्यादा मात्रा में समोसे का सेवन करने से स्किन संबंधित समस्याएं भी हो सकती हैं। तेल में फ्राई होने की वजह से समोसा पाचन तंत्र भी खराब करता है। ऐसे में कब्ज, गैस और पेट फूलना जैसी समस्या हो सकती है।

कचौड़ी भी पहुंचाती है सेहत को नुकसान

देशभर में कचौड़ी के चाहने वाले हैं। यही वजह है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीक़े से कचौड़ी बनाई जाती है। गुजरात की कचौरी हल्की मीठी होती है। राजस्थान में प्याज़ की कचौरी और दिल्ली में कचौड़ी चाट अधिक पसंद की जाती है। उत्तर प्रदेश की मसालेदार मूंगदाल कचौरी सबसे ज़्यादा लोकप्रिय है। कचौड़ी का चटपटा स्वाद हर किसी को बहुत भाता है। हालांकि तेल में डीप फ्राई होने के कारण कचौड़ी सेहत को नुकसान पहुंचा सकती है।

जले हुए तेल (यूज्ड) की शुद्धता खराब हो जाती है। हानिकारक लवण उत्पन्न हो जाते हैं। जले हुए तेल में बार बार तला हुआ खाने व सूंघने से शरीर को नुकसान हो जाता है। जीन में खराबी हो जाती है। इससे कैंसर भी हो सकता है। आंत्र संबंधी बीमारियों में पेट में जलन, पेट में छाले होना, खट्टी डकार आना शामिल है। कॉलेस्ट्रॉल बढ़ने से मोटापा, हार्ट की बीमारी का भी खतरा बढ़ता है। यूज्ड तेल बीमारी पैदा करने में मदद करता है। इसमें और रिसर्च होनी चाहिए। शुद्ध तेल में पकाई सामग्री खाएं। घर पर बना हुआ खाएं।
* अधिक समोसे का सेवन करने से डायबिटीज का खतरा अधिक होता है। इसलिए समोसे का सेवन कम मात्रा में करना चाहिए।
* समोसे का अधिक सेवन करने से ब्लड प्रेशर की समस्या हो सकती है।
* जो लोग समोसे का अधिक सेवन करते है उनका कोलेस्ट्रोल बढ़ने लगता है।
* समोसे में बहुत अधिक मैदे का प्रयोग किया जाता है। अधिक मैदा होने के कारण शरीर को हानिकारक बिमारियों का सामना करना पड़ता है। अधिक मैदे का सेवन करने से हमारा शरीर अपने आप कांपने लगता है।
* जब भी आप समोसा लेने किसी दुकान पर जाते हैं, तो आपको सबसे पहले इस बात को देखें की समोसा एक ही तेल में बार बार तो नहीं तला गया।

*यदि आप बासी आलू वाला समोसे का सेवन करते हो तो इससे बैक्टीरिया आपके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। जिससे आप बीमार हो जाते हैं।